राष्ट्रहित में विदेशी नैरेटिव तोड़ने की घड़ी

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राष्ट्रहित में विदेशी नैरेटिव तोड़ने की घड़ी
राष्ट्रहित में विदेशी नैरेटिव तोड़ने की घड़ी

अनिल धर्मदेश

इजराइल पर हमास और हिजबुल्ला के हमले के बाद छिड़े युद्ध में वार-प्रतिवार की नैतिकता पर संयुक्त राष्ट्र और विश्व के सशक्त देशों की चुप्पी आश्चर्यजनक है। यह भी निश्चित है कि युद्ध नीति की अनदेखी अनजाने में नहीं हो रही। हमास-हिजबुल्ला और ईरान ने इजराइल पर हजारों मिसाइलें दागीं जिसके जवाब में इजराइल की कठोर कार्रवाई से ये देश हिल गए। एक तरफ फ्रांस, टर्की और रूस सहित कई देश लेबनान में इजराइली हमलों के बाद से नागरिकों की सुरक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं तो दूसरी तरफ भारत सहित विश्व के दर्जनों देशों ने बमबारी से ध्वस्त गाजा की दशा-दुर्दशा पर गंभीर चिंता जतायी है। युद्ध अपराध की चर्चाओं में इधर इजराइल पर अनेक सवाल खड़े किए गए हैं। राष्ट्रहित में विदेशी नैरेटिव तोड़ने की घड़ी

जबकि वैश्विक मीडिया से लेकर संयुक्त राष्ट्र और प्रमुख देशों ने इजराइल पर दागे गए करीब तीस हजार मिसाइलों के विषय में इस तथ्य को प्रमुखता से रेखांकित नहीं किया कि हमास-हिजबुल्ला और ईरान ने बिना पूर्व सूचना सीधा रिहायशी इलाकों पर हमले किए। इजराइल के पास मौजूद आयरन डोम जैसी मिसाइल रोधी तकनीक के कारण 90 प्रतिशत मिलाईलें अवश्य निष्क्रिय कर दी गयीं मगर यह नहीं सोचा गया कि यदि आयरन डोम न होता तो इतने व्यापक हमले के बाद दुनिया की एक वैश्विक अल्पसंख्यक आबादी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। तथ्य यह है कि सभी देश इजराइल के साथ हो रहे युद्ध अपराध की अनदेखी अपने कूटनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं। देशों ने जैसी चुप्पी ईरानी कमांडर और हमास-हिजबुल्ला प्रमुखों की हत्या पर साधी है, ठीक वैसा ही मौन इजराइल पर अनैतिक आक्रमण को लेकर भी कायम रखा है।

स्पष्ट है कि वैश्विक पटल पर उचित-अनुचित के बजाय हित-अहित के आधार पर समर्थन-विरोध या मौन नीति अपनायी जाती है। यह भारत के लिए भी गहरी सीख का अवसर है। अमेरिका लादेन को पाकिस्तान में घुसकर मार सकता है। अमेरिका द्वारा घोषित आतंकियों की हत्या के लिए उसकी सेनाएं इराक, सीरिया, अफगानिस्तान, और यमन में बड़े-बड़े ऑपरेशन चलाती आयी हैं जिनमें कई बार निर्दोश नागरिक भी मारे जाते हैं। वही अमेरिका आज भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती बने विदेशी आतंकवादियों को अपना नागरिक बताकर उनका संरक्षण ही नहीं कर रहा, ऐसे तत्वों के विरुद्ध भारत की कार्रवाई को घटघरे में खड़ा कर रहा है। ठीक यही स्थिति कनाडा की भी है। वहां की ट्रूडो सरकार ने एक खालिस्तानी आतंकी की हत्या पर भारत के साथ रिश्तों को ताक पर रख दिया है। 

अमेरिका और कनाडा का प्रयास वैश्विक पटल पर भारत की निर्वाचित सरकार को एक अपराधी जैसा चित्रित करने का है। यही कारण है कि गुरपतवंत पन्नू जैसे खालिस्तानी आतंकी को अमेरिकी एजेंसियां कोर्ट में एक सामान्य वकील के रूप में प्रस्तुत करती हैं जबकि भारतीय एजेंसियाँ दशकों से पन्नू और खालिस्तानी आतंकी संगठनों के विरुद्ध ब्रिटेन, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों को नियमित साक्ष्य देती आयी हैं। बीते दशकों में हुई कई घटनाओं में खालिस्तान समर्थित समूहों की संलिप्तता साबित होने के बाद भी पश्चिमी देश आतंकवाद पर दोहरा चरित्र दिखा रहे हैं। कनाडा और अमेरिका में बैठकर पन्नू जैसे आतंकी खुलेआम भारत के विरुद्ध हिंसा के वीडियो प्रसारित करते हैं, जिसे ये देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हैं। यह आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई में नस्लीय भेदभाव का भी प्रमाण है कि आतंकी संगठनों के सफाए का अधिकार सिर्फ गोरे देशों को ही है।

घोषित आतंकियों के कारण राजनयिकों के निष्कासन तक पहुंच चुकी कूटनीति बताती है कि पश्चिमी देश भारत को अस्थिर करने के अपने षड्यंत्र और स्वार्थ में उत्तरदायित्व व समानता के सिद्धांत की खुली अवहेलना से भी नहीं चूक रहे। ऐसे समय में भारत को चाहिए कि वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाली नीतियों के आधार पर कनाडा और अमेरिका जैसे दोहरे चरित्र के देशों को उन्हीं की भाषा में उत्तर दे। पन्नू पर अमेरिकी स्टैंड देखने बाद इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाउद सईद गिलानी को अमेरिका से भारत इसलिए ही प्रत्यर्पित नहीं किया गया क्योंकि मुंबई हमलों के इस साजिशकर्ता को इसके पीछे खड़ी सभी ताकतों की पूरी जानकारी थी। किसी जमाने में अमेरिकी एजेंसियों का मुखबिर रहा हेडली आज भी अमेरिका में ही सुरक्षित है। 

अन्य देश चहेते आतंकवादी को न मार सकें, इसलिए उसे अपने देश की नागरिकता देने की पश्चिमी नीति के उजागर हो जाने के बाद भारत को चाहिए कि वह आतंकवाद पर दोहरे मापदंड रखने वाले देशों के साथ आतंक संबंधी खुफिया सूचनाएं साझा न करे। भारत में मौजूद ऐसे देशों के राजनयिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की भी दुबारा समीक्षा की जानी चाहिए। विदेशी राजनयिक जिस स्वच्छन्दता से भारत में अस्थिरता पैदा करने वाले समूहों से मिलते-जुलते हैं, आतंक पर पश्चिमी देशों के दोहरे चरित्र को दृष्टिगत रख भारत सरकार अब विदेशी मिशनों की सीमाएं तय करे, यही वक्त की मांग है। इजराइल की भांति भारत को भी अपने हित में कठोरतम निर्णय लेने की सशक्तता दर्शनी ही होगी। इसके लिए आवश्यक है कि ओटावा या वाशिंगटन डीसी से व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने के लिए नई दिल्ली राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता न करे। राष्ट्रहित में विदेशी नैरेटिव तोड़ने की घड़ी