आत्मनिर्भरता से विदेशी मुद्रा भी बचेगी। सरकार की मंशा, हर आदमी की थाल में हो जरूरी मात्रा में दाल।
लखनऊ । दालें, शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। हर उम्र में शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए प्रोटीन की हर रोज तय मात्रा में जरूरत होती है। लिहाजा दालों का खाद्य ही नहीं पोषण सुरक्षा में बेहद महत्व है। यही वजह है कि देश की डबल इंजन की सरकार चाहती है कि हर आम एवं खास के थाल में जरूरी मात्रा में कोई न कोई दाल जरूर हो। इसके लिए दोनों सरकारें लगातार प्रयास भी कर रहीं हैं।
उत्तर प्रदेश की होगी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका
आबादी के नाते उत्तर प्रदेश सर्वाधिक उपभोग करने वाला राज्य है। संयोग से उत्तर प्रदेश दलहन की सर्वाधिक पैदावार वाला भी राज्य है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की भूमिका भी दलहनी फसलों के उत्पादन में महत्वपूर्ण हो जाती है।
प्रदेश की योगी सरकार लगातार इस बारे में प्रयास भी कर रही है।
दलहन के ग्रास वैल्यू आउटपुट के मामले में यूपी नंबर एक
दलहन उत्पादन के क्षेत्र में सरकार के प्रयास के नतीजे भी सामने आने लगे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार एक दशक में दालों का ग्रॉस वैल्यू आउटपुट (जीवीओ) करीब 250 फीसद बढ़ा है। यह देश में सर्वाधिक है। एक दशक पहले दालों का जीवीओ 18 हजार करोड़ रुपये था जो बढकर 45 हजार करोड़ रुपये हो गया।
केंद्र ने हाल में प्रोत्साहन के लिए जो कदम उठाए
केंद्र सरकार ने 7 जून को ख़रीफ की फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया है। इसमें सर्वाधिक 10.4 फीसद की वृद्धि मूंग की है। वर्ष 2022-2023 में यह प्रति कुंतल 7755 था। इस साल इसे बढ़ाकर 8558 रुपये कर दिया गया। इसी तरह अरहर की एमएसपी 6600 से 7000, उड़द की 6600 से 6950 रुपये कर दी गई। इसके एक दिन पहले केंद्र सरकार ने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत इन पर लगी खरीद सीमा को भी हटा दिया। माना जा रहा है कि एमएसपी बढ़ने से किसान कम समय में तैयार होने वाली मूंग एवं उड़द की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे। खासकर सहफसली खेती के रूप में यह लोकप्रिय हो सकती है। एमएसपी के जरिये भी बेहतर भाव मिलने से किसान इसका रकबा बढ़ाएंगे। इससे सबको जरूरी मात्रा में दाल और इसके जरिये प्रोटीन उपलब्ध होगी।
पांच साल में उत्पादन 35.79 लाख मीट्रिक टन करने का लक्ष्य
केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप योगी सरकार ने दलहन का उत्पादन बढ़ाकर प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की मुकम्मल कार्ययोजना तैयार की है। दरअसल इस योजना पर काम तो योगी सरकार के पहले कार्यकाल में ही शुरू हो गया था। नतीजतन 2016-17 से 2020-21 के दौरान दलहन का उत्पादन 23.94 मीट्रिक टन से बढ़कर 25.34 लाख मीट्रिक टन हो गया। इस दौरान प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 9.5 कुंतल से बढ़कर 10.65 कुंतल हो गई। योगी सरकार-2.0 ने इसके लिए पांच साल का जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार दलहन का रकबा बढ़ाकर 28.84 लाख हेक्टेयर करने का है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 12.41 कुंतल और उत्पादन 35.79 मीट्रिक टन करने का है।
कैसे हासिल होगा ये लक्ष्य
उत्पादन में गुणवत्ता बीज की महत्ता को देखते हुए दलहन की विभिन्न फसलों की नई प्रजातियों के प्रमाणित (सर्टिफाइड) एवं आधारीय (फाउंडेशन) बीज के वितरण लक्ष्य में कई गुना की वृद्धि की गई। ये बीज किसानों को अनुदानित दर पर दिए जाते हैं। इसके साथ ही दलहनी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए अंतःफसली एवं जायज की फसलों में दलहनी (उड़द, मूंग) फसलों को प्रोत्साहन। असमतल भूमि पर स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का प्रयोग करते हुये उत्पादन में वृद्धि, फरो एंड रिज मेथड से खेती कर उत्पादन में वृद्धि और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी जैसे कदम लक्ष्य हासिल करने में मददगार बनेंगे।
आत्मनिर्भरता से विदेशी मुद्रा भी बचेगी
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल का उत्पादक, उपभोक्ता और आयतक है। सर्वाधिक आबादी के नाते इस उपभोग का सर्वाधिक हिस्सा यूपी का ही है। ऐसे में पूरी दुनिया के दाल उत्पादक देशों (कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, टर्की,और म्यानमार) की नजर न केवल भारत और उत्तर प्रदेश के पैदावार बल्कि छह महीने के भंडारण पर भी रहती है। ऐसे में अगर पैदावार कम है तो यहां की भारी मांग के मद्देनजर अतंरराष्ट्रीय बाजार में दाल यूं ही तेज हो जाती है। इस पर रुपये के मुकाबले डॉलर की क्या स्थिति है, इसका भी बहुत असर पड़ता है। रुपये के मुकाबले अगर डॉलर के दाम अधिक हैं तो आयात भी महंगा पड़ता है। इस तरह दाल के आयात में देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भी खर्च करनी पड़ती है। अगर उत्तर प्रदेश दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाय तो विदेशी मुद्रा भी बचेगी।
हर उम्र में शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी है प्रोटीन- डॉ. तृप्ती
मुंबई के अपोलो अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. तृप्ती दूबे के मुताबिक हर उम्र में शारीरिक एवं मानसिक विकास में प्रोटीन की महत्वपूर्ण भूमिका है। महिलाओं में नियमित होने वाली माहवारी से होने वाली क्षति, गर्भावस्था में बच्चों के उचित विकास, पैदा होने पर बच्चे के उचित विकास एवं आगे मांसपेशयों के विकास में प्रोटीन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बुजुर्ग लोगों में भी नए सेल के निर्माण में प्रोटीन रिच डाइट जरूरी है। आत्मनिर्भरता से बचेगी विदेशी मुद्रा