प्रधानमंत्री मोदी के 644.49 करोड़ के रोप-वे ट्रैफ़िक प्लान पर उठे सवाल..! हवा में झूलते यातायात के नाम पर टैक्स पेयर का पैसा बर्बाद करने की दिशा में यह रोप-वे एक मिसाल बनेगा। मज़ाक बनेगा रोप-वे ट्रैफ़िक प्लान..! क्या यह एक ऐसा शिगूफ़ा साबित होगा, जिसका लंबे समय तक देश और दुनिया में मज़ाक बनता रहेगा। क्या हवा में झूलता यातायात ही बनारस की ट्रैफिक समस्या का समाधान है..? क्या रोप-वे कि यात्रा व्यावहारिक,जनोपयोगी और सुखद होगी..?
विजय विनीत
बनारस। बनारस को जाम के झाम से निजात दिलाने के लिए प्रधानमंत्री ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए उत्तर प्रदेश में जिस रोप-वे का शिलान्यास किया है उस पर विशेषज्ञों ने सवालिया निशान लगाना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि हवा में झूलते यातायात से गझिन (घनी) बसावट वाली नगरी काशी की आम जनता और देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की मुश्किलें कम होने वाली नहीं हैं। अब सवाल इस बात को लेकर उठाया जा रहा है कि टैफिक समस्या से कराह रहे शहर बनारस को क्या रोप-वे की जरूरत थी? क्या हवा में झूलता यातायात ही बनारस की ट्रैफिक समस्या का समाधान है..? क्या रोप-वे कि यात्रा व्यावहारिक,जनोपयोगी और सुखद होगी..?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2023 को बनारस में देश के पहले पब्लिक ट्रांसपोर्ट रोप-वे की सौगात दी है। रोप-वे के शिलान्यास के बाद से डंका पीटा जा रहा है कि इस परियोजना के शुरू होने के बाद बनारसियों को ट्रैफिक समस्या से निजात मिलेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर, दशाश्वमेध घाट और रथयात्रा आना-जाना आसान हो जाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बनारस के कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया चौराहे तक रोप-वे का संचालन होगा। 50 मीटर ऊंचाई पर करीब 3.8 किलोमीटर तक हवा में झूलता रोप-वे बनाया जाएगा। इसमें 150 ट्रॉली कारें होंगी और हर कार में एक साथ दस यात्री बैठ सकेंगे। इस परियोजना के लिए सरकार ने 644.49 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है।
कितना झूठ-कितना सच….?
नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अनुराग त्रिपाठी कहते हैं, “बनारस का रोप-वे एक पायलट प्रोजेक्ट है। इस परियोजना का निर्माण स्विट्जरलैंड की कंपनी बर्थोलेट और नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड (एनएचएलपीएल) मिलकर करेगी। यह दुनिया का पहला ऐसा शहर होगा जहां मैक्सिको और बोलीविया के बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए रोप-वे का इस्तेमाल किया जाएगा। बनारस के कैंट रेलवे स्टेशन से गोदौलिया चौराहे तक कुल पांच स्टेशन होंगे। इनमें कैंट रेलवे स्टेशन, काशी विद्यापीठ, रथयात्रा, गिरजाघर और गोदौलिया चौराहे पर स्टेशन बनाया जाएगा। रोपवे बनने के बाद लोग 3.8 किलोमीटर की कुल दूरी सिर्फ 16 मिनट में तय कर लेंगे। हर डेढ़ से दो मिनट के अंतराल पर यात्रियों के लिए ट्रॉली उपलब्ध रहेगी। करीब 16 घंटे तक हवा में झूलते यातायात का संचालन होगा। इससे काशी की कला, धर्म और संस्कृति की झलक भी देखने को मिलेगी। यह रोप-वे सिर्फ दो साल के अंदर बनकर तैयार हो जाएगा। भूमि अधिग्रहण और अन्य दूसरे काम तेजी से चल रहे हैं।”
काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के निकटवर्ती मुहल्ले में रहने वाले पत्रकार ऋषि झिंगरन कहते हैं, “रोप-वे की हास्यास्पद कहानियां अखबारों में छप रही हैं। दावा किया जा रहा है कि एक घंटे में छह हजार लोग रोप-वे से सफर करेंगे। इनके दावों को कल्कुलेट करेंगे तो पाएंगे कि बड़ी संख्या में लोगों को रोप-वे से पहुंचाने और माल ढोने की बात सिर्फ हाइपोथोपिकल है। कैंट स्टेशन पर रोप-वे का टिकट कटवाने से लेकर गोदौलिया तक पहुंचने में पर्यटकों को आधे घंटे का समय लग जाएगा। इतने समय में लोग दूसरे साधन से वहां पहुंच जाएंगे। अगर पूरी क्षमता से रोप-वे को चलाया जाए तब भी दिन भर में दस हजार से ज्यादा लोग इससे सफर नहीं कर पाएंगे। अगर पूरी परियोजना का खर्च निकाला जाए तो 16.50 लाख रुपये प्रति मीटर खर्च आएगा। इतने धन से बनारस की ज्यादातर सड़कें मुआवजा देकर चौड़ी की जा सकती हैं। गौर करने की बात यह है कि जिनके घर के ऊपर से रोप-वे जाएगा, उसे कैसा महसूस होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है।”
रेंगता ट्रैफिक बड़ी मुसीबत
बनारस में रेंगता हुआ ट्रैफ़िक आज की बेइंतिहा तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी का अटूट हिस्सा बन गया है। इस शहर की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। ट्रैफ़िक जाम दूर करने वाले सिस्टम इस भीड़ से निपटने में नाकाम साबित हो रहे हैं। कभी बारिश, कभी वाहनों की रेल-पेल, कभी धरना-प्रदर्शन, कभी सरकारी दौरे और कार्यक्रम और कभी बिना वजह ही लगने वाले लंबे जाम में फंसकर लोग परेशान रहते हैं। इस जाम में स्कूली बच्चों की गाड़ियां फंसती हैं तो पर्यटक भी। धीमा चलता ट्रैफ़िक बनारस का दम घोंटता सा नजर आता है। यहां बन रही नई सड़कें, बाईपास और फ्लाईओवर बनने के बावजूद, इन गाड़ियों को तेज़ रफ़्तार से चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। यानी आने वाले दौर में ट्रैफ़िक जाम की समस्या और बढ़ेगी।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एवं जाने-माने वैज्ञानिक प्रभात कुमार सिंह दीक्षित हवा में झूलते यातायात को बनारसियों के लायक नहीं मानते। इन्हें लगता है कि रोप-वे से बनारस की ट्रैफिक समस्या का स्थायी हल मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। प्रो. दीक्षित कहते हैं, “दुनिया की सांस्कृतिक राजधानी बनारस में नासूर बन चुके जाम से निपटने के लिए आज तक वैज्ञानिक तौर-तरीके से कभी कोई सर्वे नहीं हुआ। पब्लिक डोमेन में यह बात आई ही नहीं कि काशी में जाम का पुख्ता इलाज क्या है? जाम के झाम की मुश्किलें कहां उलझी हुई हैं? हवा में झूलता यातायात बनारस की ट्रैफिक समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह परियोजना बहुत अधिक खर्चीली है, जिसकी लागत निकाल पाना सरकार के बूते में नही है।”
बीएचयू के प्रोफेसर प्रभात कुमार सिंह दीक्षित चाहते हैं कि बनारस में ट्रैफिक के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा हो और इसका स्थायी समाधान ढूंढने के लिए वैज्ञानिक तरीके से सर्वेक्षण करने के लिए सरकार विशेषज्ञों की टीम गठित करे। सर्वे से निकले नतीजे के आधार पर यहां नए सिरे से ट्रैफिक प्लान तैयार किया जाए। वह कहते हैं, “रोप-वे से सिर्फ उन सैलानियों की मुश्किलों थोड़ी कम हो सकती हैं जो आए दिन जाम में फंस जाया करते हैं। इस परियोजना से बनारस की ट्रैफिक समस्या पर कोई खास असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। बनारस की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर आज तक न कोई डिस्कशन हुआ है और न ही वैज्ञानिक सर्वेक्षण। जहां तक मेट्रो की बात है तो वह ट्रैफिक प्रणाली सुधारने का आखिरी चरण होता है। इतना जरूर कहा जा सकता है कि रोप-वे से बाबा विश्वनाथ मंदिर और गंगा दर्शन के बहाने टूरिज्म को नया पंख लग सकता हैं। वैसे भी कारिडोर बनने के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर आस्था का केंद्र कम, टूरिज्म का ज्यादा हो गया है। अब गोवा और काशी में कोई खास अंतर नहीं रह गया है। यहां दर्शन करने वाले आधे लोग श्रद्धा से और आधे टूरिज्म के नजरिये से रहे हैं। बहुत सारे पर्यटक अब विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने नहीं, घूमने आते हैं। रोप-वे से सिर्फ उन्हीं लोगों को फायदा होगा जो कैंट से गोदौलिया आना चाहेंगे।”
भारी-भरकम धनराशि खर्च कर बनारस में रोप-वे बनाने की योजना प्रबुद्धजनों के गले से नीचे नहीं उतर रही है। रोप-वे का पहला स्टेशन, कैंट होगा। गौर करने की बात यह है कि सिर्फ इसी स्टेशन से भीड़ नहीं आती। बनारस के दूसरे तमाम रास्तों से भी बड़ी तादाद में टूरिस्ट आते हैं। ऐसे में झूलते यातायात से यहां की ट्रैफिक समस्या को नहीं सुधारा जा सकता है। इस शहर में सड़कों पर सिर्फ इंसानों की नहीं, वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या ने ट्रैफिक की विकराल समस्या पैदा की है। छुट्टे पशुओं और आटो-टोटो की भारी भीड़ दाद में खाज का काम कर रही है। बनारस के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, “रोप-वे के मूल चरित्र को समझने की जरूरत है। यह एक ऐसा साधान है जिसके जरिये आदमी नीचे के दृश्य को देखता है और दुर्गम स्थलों तक पहुंचता है। दुनिया में किसी मैदानी इलाका अथवा शहर में रोप-वे नहीं है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल ऊंचाई का सफर तय करने के लिए किया जाता है। इसके जरिये ट्रैफिक समस्या हल होने की कोई उम्मीद नहीं है। इतना जरूर होगा कि बनारस दुनिया का ऐसा पहला और अनोखा शहर होगा जहां रोप-वे के जरिये अपनी मंजिल तय करने वाले लोग ऊपर से कंकरीट के जंगल का आसानी से दीदार कर सकेंगे।”
सिर्फ़ शिगूफ़ा साबित होगा
डबल इंजन की सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए प्रदीप कहते हैं, “हवा में झूलते यातायात के नाम पर टैक्स पेयर का पैसा बर्बाद करने की दिशा में यह रोप-वे एक मिसाल बनेगा। अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि रोप-वे मखमल के पर्दे पर टाट के पैबंद सरीखा दिखेगा। इससे न सिर्फ बनारस की खूबसूरती खत्म होगी, बल्कि यह एक ऐसा शिगूफा साबित होगा, जिसका लंबे समय तक देश और दुनिया में मजाक बनता रहेगा। हमें लगता है कि कुछ कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए यह अजीबो-गरीब योजना अमल में लाई जा रही है। अब से पहले मोदी सरकार ने बनारस में जितनी भी परियोजनाएं खड़ी की हैं, उससे विकास कम, सरकारी धन की बर्बादी ज्यादा हुई है। चाहे वह गंगा में नहर बनाने की योजना रही हो अथवा बंदरगाह बनाने की। मज़ाक बनेगा रोप-वे ट्रैफ़िक प्लान..! विकास के नाम पर खड़ा किए गए रुद्राक्ष और लालपुर का टीएफसी सेंटर सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। वो इतना खर्चीला है कि सरकारी कार्यक्रमों को छोड़ दिया जाए तो वहां कोई निजी कार्यक्रम आयोजित करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।”
“बनारस की संस्कृति और बनारसियों के हितों को नजरंदाज कर बनाई जा रही परियोजनाओं से काशी की सनातन संस्कृति और परंपरा को जितना आघात पहुंचा है, रोप-वे उसकी अगली कड़ी साबित होगा। मिसाल के तौर पर टेंट सिटी ने काशी के पवित्र गंगा तट को अध्यात्म के केंद्र की जगह सैलानियों के मौज मस्ती का अड्डा बना दिया है। वहां काकटेल पार्टियों का दौर और मदमस्त लोगों के हुजूम के बीच मारपीट की घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि गंगा का सुरम्य तट कितना प्रदूषित हो रहा है? यही हाल काशी विश्वनाथ कारिडोर का है। यह कारिडोर पूजा-अर्चना के क्रिया-कलापों की जगह आधुनिकतम माल बनकर रह गया है। काशी विश्वनाथ मंदिर सालों से धर्मप्राण जनता की आस्था और श्रद्धा का केंद्र रहा है। अब उसे एक ऐसा दर्शनीय स्थल बना दिया गया है कि लोग उसकी दिव्यता को भूलकर उसकी भव्यता को निहारने पहुंच रहे हैं। दुनिया की पुरातन नगरी काशी के साथ खुलेआम हो रहे खिलवाड़ को बेहद खूबसूरती के साथ नूतन और पुरातन के संगम की संज्ञा दी जा रही है। यह मूल रूप से बनारस की आत्मा को मारने का प्रयास है। इतना साफ है कि हवा में झूलते ट्रैफिक का यह मामला इतिहास में जरूर दर्ज होगा कि एक हुक्मरान के अनियोजित फैसलों पर काशी के लोगों ने अपनी मौन स्वीकृति दी। इस शहर की बर्बादी में बनारस के लोग भी जिम्मेदार माने जाएंगे।”
सभ्यता व संस्कृति पर चोट
वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य कहते हैं, “बनारस दुनिया का ऐसा प्राचीनतम जीवंत शहर है जिसकी पुरातनता ही दर्शनीय है। उसे नया स्वरूप देना, उसके मूल स्वरूप के साथ भद्दा मजाक कहा जा सकता है। अफसोस इस बात का है कि सरकार, प्रशासन और देशी-विदेशी कंपनियों का गठजोड़ हजारों साल पुरानी नगरीय सभ्यता व संस्कृति को मटियामेट करने पर उतारू है। रोप-वे, इस कड़ी में एक और आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। हैरत इस बात है कि काशी के प्रबुद्धजन इस तरफ उदासीन हैं, जबकि उन्हें इस मुद्दे पर मुखर आवाज उठानी चाहिए। जनता की यह खामोशी किसी डर की वजह से है या किसी लोभ की वजह से है, यह कहना फिलहाल मुश्किल है।”
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर बृंद कुमार वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार और विनय मौर्य के तर्कों और दावों पर इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, “बनारस में पिछले डेढ़ दशक से मेट्रो परियोजना शुरू करने की कवायद चल रही है, लेकिन अभी तक उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है। दुनिया के उन्नत राष्ट्रों में त्वरित सामूहिक यातायात की व्यवस्था है। हमारे यहां आन-बान-शान दिखाने के लिए गाड़ियों के काफिलों के साथ निकलने का चलन है। विदेशों की तरह हमारे पास उतनी सड़कें नहीं है कि सारी गाड़ियां उतार दी जाएं। बनारस में कई बार अंडर ग्राउंड मेट्रो चलाने की बात हुई। इसी बीच लाइट रेल ट्रांजिट की योजना बनी, लेकिन दिक्कतें खड़ी होती गईं। कई फ्लाई ओवर भी बनाए गए, लेकिन हालात जस के तस रहे। इस बीच जो चीज निकलकर आई वो यह थी कि कैंट से गोदौलिया के बीच ट्रैफिक सबसे ज्यादा है। इसी आधार पर रोपवे की परिकल्पना हुई। इसी ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए रोप-वे का प्लान तैयार किया गया है। यह बहुत सेफ और वातानुकूलित यातायात होगा, जो लोगों को बहुत आनंदित करेगा। देखने वाली यह होगी कि शुल्क कितना वसूला जाएगा,मज़ाक बनेगा रोप-वे ट्रैफ़िक प्लान..!? “
एआई से मिलेगी रफ़्तार
बनारस में जाम से निपटने के लिए बहुत से लोग अब अक़्लमंद मशीनों की तरफ़ बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं। उन्हें लगता है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से हम ट्रैफिक जाम को काबू में कर सकते है। साउथ कोरिया स्थित योनसेल यूनिवर्सिटी के रिसर्च फैकल्टी डा. आशुतोष मिश्र बनारस के पहड़िया स्थित अकथा के निवासी हैं। वह आटोनोमस गाड़ियों के विशेषज्ञ भी हैं। ‘न्यूज़क्लिक’ से बातचीत करते हुए डा. मिश्र कहते हैं, “भविष्य में बनारस की सड़कों पर भीड़ और बढ़ेगी। ऐसे में स्मार्ट सिटी बनारस में बदहाल ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार तभी संभव है, जब इंटेलिजेंट ट्रैफिक मानिटरिंग सिस्टम को अमल में लाया जाएगा। रोप-वे के जरिये किसी भी शहर की ट्रैफिक व्यवस्था नहीं सुधारी जा सकती है। हवा में झूलते यातायात की प्रणाली काफी खर्चीली है। इससे बेहतर हैं ख़ुद से चलने वाली गाड़ियां (ड्राइवर रहित वाहन)। रोबोटिक तकनीक से चलने वाली ये गाड़ियां ट्रैफ़िक के नियम नहीं तोड़ेंगी। लेन में चलेंगी और मुश्किल वक़्त में ज़्यादा तेज़ी से फ़ैसले ले सकेंगी। लेकिन, अभी सड़कों पर सेल्फ ड्राइविंग कारों का असर दिखने में कम से कम दो दशक लगेंगे। दिनों-दिन बढ़ती गाड़ियों की भीड़ से निपटना होगा और ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा, जो जाम लगने पर फ़ौरन इससे निजात दिलाने में जुट जाएं।”
“बनारस में व्यस्त समय के दौरान ट्रैफ़िक की रफ़्तार औसतन चार किलोमीटर प्रति घंटे होती है। यानी यह शहर पीक टाइम में कछुए की तरह रेंगता है। ऐसे में एक ऐसा मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करने की जरूरत है जो कैमरों की मदद से जाम पर नजर रखे और गाड़ियों की तादाद के हिसाब से ट्रैफिक लाइटें जलाए और बुझाए, ताकि जाम न लगे। स्मार्ट सिटी बनारस में सड़कों पर लगाए गए कैमरों की मदद से गाड़ियों की तादाद का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। अगर हमारे पास आंकड़े हैं, तो हम बहुत सी चुनौतियों से आसानी से पार पा सकते हैं। ये बात ट्रैफ़िक जाम पर भी लागू होती है।”
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फ्यूचर मोविलिटी प्लान के विशेषज्ञ डा. आशुतोष मिश्र के मुताबिक, “आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से दुनिया भर में ट्रैफ़िक जाम को कम करने की कोशिशें हो रही हैं। लंदन के मशहूर एलन तुरिग इंस्टीट्यूट और टोयोटा मोबिलिटी फाउंडेशन ने मिलकर हाल ही में नया प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसका मक़सद ट्रैफ़िक मैनेजमेंट सिस्टम को इतना बेहतर बनाना है कि वो जाम लगने से पहले ही भविष्यवाणी कर सके और इससे निपटने के निर्देश ख़ुद ही दे। आगे चलकर ट्रैफ़िक सिस्टम इतना पेचीदा होने वाला है कि बिना आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के हम इनका मैनेजमेंट ही नहीं कर पाएंगे। एआई के आंकड़ों की मदद से हम ट्रैफिक जाम में पैटर्न तलाशकर उनका हल भी निकाल सकेंगे।”
“जर्मनी के हैजेन शहर में आर्टिफ़िशियल इंटलिजेंस की मदद से ट्रैफिक लाइट कंट्रोल की जाती है। इससे चौराहों पर गाड़ियों को ग्रीन लाइट का इंतज़ार करने में कम वक़्त गंवाना पड़ता है। आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के फ़ायदे ज़्यादा हैं। उन्नत देशों में ट्रैफिक कंट्रोल करने के अलावा तमाम रिहाइशी इलाक़ों में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को रोकने और पार्किंग के लिए सही जगह बताने तक के लिए इनका इस्तेमाल हो रहा है। बनारस में ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जाए तो हमारी ज़िंदगी को थोड़ी रफ़्तार मिलेगी और कुछ ज्यादा सुकून भी।”
(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं–साभार न्यूज़क्लिक)