
डॉ.सुधाकर कुमार मिश्रा
महात्मा गांधी ने अहमदाबाद मिल मजदूरों के क्षेत्रीय आंदोलन में ‘उपवास’ का पहली बार प्रयोग किया था और गांधी जी आंदोलन में नैतिक दबाव बनाने में सफल रहे थे। गांधी जी ने कांग्रेस संगठन में प्रवेश कर उसे एक जन संगठन के रूप में परिणति किया था। गांधी जी के कुशल नेतृत्व में कांग्रेस ने अपने आपको जनता से जोड़ने का कार्य किया एवं जनता को शिक्षित करना, जनता को प्रशिक्षित करना , जनता को अनुशासित करना एवं अपने मौलिक अधिकारों के लिए अहिंसक संघर्ष करना जनता को सिखाया था। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस की प्रासंगिकता
महात्मा गांधी ने कांग्रेस को जन संगठन बनाने के लिए कई प्रकार से कार्यों को अमली जामा पहुंच थे। कांग्रेस की सदस्यता राशि न्यूनतम रखा(जिससे आम जनता को भार ना हो), हिंदी भाषा को सम्मेलनों का आधार बनाएं,सभी कांग्रेसी नेताओं एवं कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ‘खादी पहनना’ अनिवार्य किया एवं गांव से लेकर कस्बों, राज्यों एवं केंद्र तक कई चरणों में समितियों का निर्माण किया, जिससे संगठन गांव और कस्बों तक विस्तारित किया जा सके। गांधी जी कांग्रेस को एक मजबूत संगठन के रूप में परिणत करते हुए भारत की आम जनता की आवाज के रूप में स्थापित किया ,जिससे अंग्रेजों का प्रत्येक नीति बनाने से पूर्व या पश्चात इस संगठन से वार्तालाप करना आवश्यक हो गया था। प्रसिद्ध इतिहासकार एडवर्ड थॉमसन ने गांधी से मिलकर के कहा है कि सुकरात के बाद संसार ने उसके समान पूर्णतः स्व नियंत्रित तथा मानसिक संतुलन वाला व्यक्ति नहीं देखा है। उसने कहा कि अब उसे समझ में आया है कि एथेंस वासियों ने सुकरात को जहर क्यों दिया था ?
गांधी जी समझ चुके थे कि भारत के हिंदू समाज में तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही है! उन्होंने अस्पृश्यता विरोधी अपने अभियान को और तेज किया। गांधी जी ने श्री घनश्याम दास बिरला जी के सभापतित्व में हरिजनोद्वार के लिए एक अखिल भारतीय संगठन बनाया और श्री ठक्कर बाबा उसके मंत्री नियुक्त किए गए। यही संगठन कालांतर में जाकर ‘ अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ’ में विकसित हुआ। महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम को ‘हरिजन सेवक संघ’ को दान कर दिया था। वर्ष 1933 में गांधी जी ने लिखा है की अंतर्जातीय भोजन एवं अंतर्जातीय विवाह अस्पृश्यता को समाप्त करने एवं बंधुता की भावना को बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
राजनीति में अहिंसा के सफल प्रयोग के वह आविष्कारक हैं। विश्व में सत्ता के विरोध में होने वाले आंदोलन में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन ,भूख हड़ताल, धरना, ज्ञापन मांग पत्र इत्यादि का उपयोग महात्मा गांधी की उपादेयता है। भारतीय राजनीति में “सत्याग्रह” शब्द महात्मा गांधी का सफलतम देन है। सत्याग्रह का उद्देश्य विरोधी को डराना,धमकाना या प्रताड़ित करना नहीं है ;अपितु उसका हृदय परिवर्तन करना है जिससे वह सत्य को स्वीकार कर सके। अहिंसा विवेक से अधिक शक्तिशाली हथियार है ,अहिंसा आत्मतप और त्याग के माध्यम से विरोधी का हृदय परिवर्तन करने के लिए सक्षम होती है ।सत्याग्रह व्यक्तिगत हितों को पूरा करने के लिए नहीं, अपितु सामूहिक हितों का तथा नैतिक रूप से सत्य के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध है।
सत्याग्रह के चार अभिन्न हिस्से हैं:- १.सत्य; २. अहिंसा; 3. आत्म पीड़ा एवं ४. व्यक्ति।
जींस शार्प ने अहिंसात्मक विरोध के 198 तरीके बताएं हैं, जो गांधीवादी आंदोलन( असहयोग आंदोलन ,सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन) के दौरान प्रयोग कर दिया गया था। वैश्विक स्तर पर मार्टिन मार्टिन लूथर(संयुक्त राज्य अमेरिका का गांधी जी) और नेल्सन मंडेला(दक्षिण अफ्रीका के गांधीजी) जैसे महान नेता महात्मा गांधी को अपना प्रेरक आदर्श व्यक्तित्व मानते थे।महात्मा गांधी जी विश्व में अन्याय के अहिंसात्मक विरोध के प्रतीक थे। महात्मा गांधी दार्शनिक, धार्मिक ,राजनेता,आहार-विशेषज्ञ,चिकित्सक ,लेखक, पत्रकार, प्रकाशक एवं कुशल संगठनकर्ता थे। गांधी जी के पर्यावरण संबंधी विचारों से प्रेरणा लेकर’आर्न नैंस’ ने डीप इकोलॉजी का सिद्धांत दिया था।
अर्थशास्त्रीय इ.एम.सुभांकर ने अपने लोकप्रिय पुस्तक ‘ स्मॉल इस ब्यूटीफुल’ में गांधीवादी आर्थिक संरचना को आर्थिक विकास का सही मॉडल बतलाया है। गांधी जी के राजनीति में उपादेयता के कारण रविंद्र नाथ टैगोर ने सार्वजनिक रूप से ‘महात्मा’ कहा था ,सुभाष चंद्र बोस ने ‘राष्ट्रपिता’ कहा था, और सामान्य जन ने’ बापू’ का नाम दिया था। 2007 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा द्वारा गांधी जी के जन्म दिवस 2 अक्टूबर को “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस “मनाने की घोषणा की गई थी।गांधी जी का उपाय था कि नीतिगत निर्णय लेते समय सबसे गरीब और कमजोर आदमी को ध्यान में रखना चाहिए कि सबका कल्याण हो सके। यही भारतीय राजनीति में “अंत्योदय” है।1919 ईस्वी में खिलाफत आंदोलन से उन्हें लगा कि मुस्लिम सहयोग से भारत शीघ्र स्वतंत्र हो जाएगा तथा उन्हें राष्ट्र के मुख्य धारा से जोड़ा जा सकेगा। राजनीति के क्षेत्र में वह धर्म मय राजनीति के महान पोषक तथा पक्षधर थे। महात्मा गांधी अपने देश के स्वतंत्रता संग्राम में 1919 से 1944 तक नेतृत्व किए थे। इसी कारण वर्ष 1919 से 1948 तक के काल को’ गांधीवादी काल ‘ की संज्ञा दी जाती है।

महात्मा गांधी गीता के अनन्य भक्त थे तथा कर्म के अटल सिद्धांत में पूरा आस्था रखते थे ।उनका मत था कि गीता का आदर्श सदा – सर्वदा के लिए सत्य है ।उनकी सदैव इच्छा रहे की वह गीता को कंठस्थ कर ले। महात्मा गांधी जी गोरक्षा का अर्थ ईश्वर की समस्त मूक सृष्टि की रक्षा बतलाया है। महात्मा गांधी जी गोरक्षा को हिंदू धर्म का केंद्रीय बिंदु मानते थे। उनका कहना है कि ” जो हिंदू गोरक्षा के लिए जितना तत्पर है वह उतना ही श्रेष्ठ हिंदू है”। गांधी जी गाय को मानवीय सृष्टि का पवित्रमय रूप माना है”। महात्मा गांधी जी के अनुसार” हिंदुस्तान में गाय माता ही मनुष्य का सबसे सच्चा साथी और सबसे बड़ा आधार है । गाय हिंदुस्तान की कामधेनु है। गाय दूध ही नहीं देती, बल्कि सारी खेती का आधार स्तंभ थी । गाय दया, धर्म, करुणा ,त्याग की मूर्तिमान कविता है । इस गरीब और शरीफ जानवर में हम केवल दया ही उमड़ते देखते हैं ।
यह लाखों करोड़ों हिंदुस्तानियों का पालन करने वाली माता है”। महात्मा गांधी के प्रमुख शिष्य विनोबा भावे का कथन था कि” गो हत्या मातृ हत्याहै”।गांधी जी को पूर्ण विश्वास था कि भारत की स्वतंत्रता के साथ गो हत्या पर प्रतिबंध लग जाएगा । उन्होंने यह भी कहा था कि गोबंध होने पर स्वराज का महत्व नहीं रहता। जिस दिन भारत स्वतंत्र होगा सब बूचड़खाने बंद कर दिए जाएंगे ;लेकिन सत्ता के लोभी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जी जवाहरलाल नेहरू ने इसको वोट बैंक के लिए समय पर काल और भाग्य के लिए टाल दिया।
सामाजिक दृष्टि से दृष्टि में भारतीय जनमानस में उत्पन्न अनेक बुराइयों एवं दोष का वर्णन करते हुए उन्होंने छुआछूत को प्रमुखता से लिया है। वह छुआछूत को धार्मिक नहीं, बल्कि शैतान की चाल कहते हैं। उन्होंने इसे हिंदू धर्म के मस्तक पर लगा कलंक बताया था। उन्होंने छुआछूत के नियमों को आत्मा के विकास में बाधक बताया था। सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने महात्मा गांधी के विचारों पर कहा है कि “महात्मा गांधी के समय राजनीति परिवार ,समाज, राज्य एवं संविधान के विकास के लिए होती थी ,लेकिन अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है। कभी-कभी उनका मन राजनीति को छोड़ देने को करता है”।
महात्मा गांधी ने उदारवादियों तथा राष्ट्रवादियों को एक मंच पर लाने के लिए नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस का लक्ष्य शांतिपूर्ण तथा कानूनी तरीकों से भारत की जनता द्वारा स्वशासन की प्राप्ति बताया है। गांधी जी का रॉलेट एक्ट विरोधी सत्याग्रह आंदोलन के अतिरिक्त 1919 से 1944 के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर तीन बड़े आंदोलन किए थे। सभी आंदोलन में अधिराज्य के विभिन्न भागों के विभिन्न संप्रदायों की सहभागिता थी। लंबे काल तक चले आंदोलन के कारण इन्हें गांधीवादी आंदोलन या गांधी युग के नाम से भी पुकारा जाता है। एक बार लुई फिशर 1942 में सेवाग्राम आश्रम में गांधीजी से पहली बार मिलने गया तो गांधी जी ने कहा कि “मैं तुम्हें बताऊंगा कि वह कौन सी घटना थी ?जिसके कारण मैं अंग्रेजों के भारत छोड़ने पर जोर देने का निश्चय किया। यह घटना 1917 की है”।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा जी ने क्षेत्रीय स्तर पर तीन एवं अखिल भारतीय स्तर पर तीन आंदोलन का सफल नेतृत्व किया था। गांधी जी की उपादेयता इस तथ्य में निहित है कि इनका आंदोलन पूर्णतः अहिंसक था।तत्कालीन शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को महात्मा गांधी के जन नेतृत्व के सामने घुटने टेकना पड़ा था। महात्मा गांधी जी के सफल नेतृत्व में कांग्रेस ने अपने आप को जनता से जोड़ने का कार्य किया एवं जनता को शिक्षित करना ,जनता को प्रशिक्षित करना, जनता को अनुशासित करना एवं अपने मौलिक अधिकारों के लिए अहिंसक संघर्ष करना जनता को सिखाया था। गांधी जी ने कांग्रेस को लोकसहमति पर आधारित संगठन बनाने का प्रयास किया। इसके लिए कांग्रेस की सदस्यता की राशि न्यूनतम रखा( जिसको आम जनता के लिए भार ना हो), हिंदी भाषा को सम्मेलनों का आधार बनाया था।सभी कांग्रेसी नेताओं को खादी पहनना अनिवार्य किया था जिससे देश का आर्थिक उन्नति हो सके। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस की प्रासंगिकता