भारत के चार पवित्र धामों में प्रमुख दक्षिण धाम रामेश्वरम

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भारत के चार पवित्र धामों में प्रमुख दक्षिण धाम रामेश्वरम
भारत के चार पवित्र धामों में प्रमुख दक्षिण धाम रामेश्वरम

—– 5 जून 2025 को सेतुबंध रामेश्वर प्रतिष्ठा दिवस पर विशेष —–

अशोक प्रवृद्ध
अशोक प्रवृद्ध

भारत के चार प्रमुख पवित्र तीर्थ स्थलों, चार धामों- बद्रीनाथ, जन्नाथपुरी, द्धारका और रामेश्वरम की यात्रा करने से मोक्ष प्राप्ति की मान्यता होने के कारण चार धामों के साथ करोड़ों भारतीयों की आस्था जुड़ी हुई है। इस विश्वास के कारण प्रतिवर्ष करोड़ों लोग इन पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं। इन स्थलों पर अवस्थित मंदिरों, देव स्थलों, जलाशयों पर स्नान- ध्यान, पूजा- अर्चना, आराधना- उपासना, दान -पुण्य करते हैं। इन चार धामों में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वरम मंदिर का अपना अलग व विशिष्ट महत्व है। उत्तर भारत में काशी की मान्यता, महता के समान ही दक्षिण भारत में चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में अवस्थित रामेश्वरम् की है। हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ यह सुंदर शंख आकार का द्वीप पहले भारत की मुख्य भूमि के साथ जुड़ा हुआ था, परंतु बाद में सागर की लहरों के द्वारा इस मिलाने वाली कड़ी को काट डाले जाने से वह चारों ओर पानी से घिरकर टापू बन गया। इसी स्थल पर भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, जिस पर चढ़कर वानर सेना लंका पहुंची व वहां विजय पाई। बाद में श्रीराम ने विभीषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर यह सेतु तोड़ दिया था। वर्तमान में भी इस 30 मील अर्थात 48 किलोमीटर लंबे आदिसेतु के अवशेष सागर में दिखाई देते हैं। इस स्थान की महता के कारण कालांतर में यहां पर मंदिर और अन्य निर्माण किए गए। भारत के चार पवित्र धामों में प्रमुख दक्षिण धाम रामेश्वरम

  रामनाथ के मंदिर में रखे गए एक ताम्रपट से पता चलता है कि 1173 ईस्वी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहु ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था। उस मंदिर में अकेले शिवलिंग की स्थापना की गई थी। देवी की मूर्ति नहीं रखी गई थी, इस कारण वह नि:संगेश्वर का मंदिर कहलाया। यही मूल मंदिर आगे चलकर वर्तमान दशा को पहुंचा है। मंदिर के गोपुरम का निर्माण प्रमुख रूप से रामनाड वर्तमान रामनाथपुर के सेतुपती राजघराने एवं नागूर निवासी एक वैश्य ने मिलकर करवाया। वर्तमान का मंदिर वर्ष 1414 में उदयन सेतुपती राजा ने लंका के राजाधिपति परराजशेखर की सहायता से बनाया था और अगले साढ़े तीन सौ वर्षों तक सेतुपती घराने के राजपुरुषों ने ही इसका विस्तार किया। सोलहवी सदी में मंदिर के दक्षिण के दूसरे हिस्से की दीवार का निर्माण एवं नंदी मंडप बनवाया गया। फिर सत्रहवीं सदी में रघुनाथ किलावन और राजा किजहावन सेठुपति ने चार धामों में से एक रामेश्वरम मंदिर का निर्माण करवाया गया। भगवान की पहली पूजा इसी राजघराने की होती है। यहां के उपाध्याय महाराष्ट्रीय ब्राह्मण हैं। इस मंदिर में माता सीता का स्थापित शिवलिंग और भगवान हनुमान द्वारा कैलाश पर्वत से लाए गए दो लिंग मौजूद है। रामेश्वरम मंदिर के तीसरे प्रकार का गलियारा विश्व का सबसे लंबा गलियारा माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में रामेश्वरम का नाम गंधमादन पर्वत कहा गया है। यहां पर ही भगवान श्रीराम ने नवग्रह की स्थापना की थी। सेतुबंध यहां से ही शुरु हुआ है। सेतुबंध की शुरुआत भी यहीं से की गई थी।

  इस मंदिर के थोड़े ही दूर में जटा तीर्थ नामक एक कुंड है, जहां पर श्री राम ने लंका में रावण से युद्ध करने के बाद अपने बाल धोए थे। इस स्थल पर ही माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। मान्यतानुसार रामेश्वरम तीर्थ स्थल में डुबकी लगाने से सारी बीमारियां दूरी हो जाती है और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। दक्षिण भारत में बना यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर रामनाथ स्वामी मंदिर और रामेश्वरम द्धीप के नाम से भी प्रसिद्ध है। अगस्त्य ऋषि और अन्य ऋषि- मुनियों के द्वारा प्रभु श्रीराम को सागर तीर पर ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के मुहूर्त पर शिवलिंग की स्थापना करने का आदेश दिए जाने के कारण वर्तमान में यहां पर प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को सेतुबंध रामेश्वर प्रतिष्ठा दिवस मनाया जाता है।

भारत के दक्षिण-पूर्व किनारे पर बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित महत्त्वपूर्ण तीर्थक्षेत्र पवित्र धाम रामेश्‍वरम का इतिहास और इसकी स्थापना की कथा त्रेतायुगीन भगवान श्रीराम की लंका गमन व लंका विजय पश्चात वापसी की कथा से जुड़ी हुई है। रामायण महाकाव्य के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम ने श्रीलंका में राक्षस राज रावण के विरुद्ध युद्ध के समय अज्ञानता में भी हुए किसी भी पाप से मुक्ति के लिए यहां शिव से प्रार्थना की थी। रामेश्‍वर के दर्शन का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व है। वर्तमान में सेतुबंध रामेश्‍वर स्थल पर रामेश्‍वरम में रामनाथस्वामी मंदिर है। यह मंदिर रामनाथ स्वामी मंदिर के साथ ही रामेश्वरम द्धीप के नाम से भी प्रसिद्ध है। मंदिर में विशालाक्षी माता के गर्भ-गृह के निकट ही विभीषण द्वारा स्थापित नौ ज्योतिर्लिंग भी हैं।

रामायण व पौराणिक कथा के अनुसार रावण के वध के उपरांत अगस्त्य ऋषि ने प्रभु श्रीराम को ब्रह्महत्यानिरसनार्थ सागर तीर पर अन्य कोई शिवस्थल नहीं होने के कारण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के मुहूर्त पर शिवलिंग की स्थापना करने का आदेश दिया। इस कार्य के लिए हनुमान भगवान शिव का दिव्य लिंग लाने के लिए कैलाश गए, परंतु भगवान शिव के दर्शन न होने से उन्होंने वहां तप आरंभ कर दिया। कुछ काल के पश्‍चात भगवान शिव ने प्रकट होकर हनुमान को अपना दिव्य लिंग दिया। इस प्रक्रिया में विलंब होने से हनुमान मुहूर्त के समय तक नहीं पहुंच सके। इसलिए माता सीता ने एक वालुकामय लिंग अर्थात बालू से निर्मित लिंग बनाकर दिया। ऋषियों के आदेशानुसार श्रीराम ने फिर सीता द्वारा मृदनिर्मित लिंग की ही स्थापना कर दी। इसे ही रामेश्‍वरलिंग कहा जाता है। स्थानीय लोग उसे रामनाथस्वामी कहते हैं। कथा के अनुसार वापस पहुंचने पर जब हनुमान ने श्रीराम द्वारा स्थापित लिंग को देखा तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। इस पर श्रीराम ने हनुमान से स्वस्थापित लिंग के समीप ही उनके द्वारा लाए गए लिंग की स्थापना करने का आदेश देते हुए कहा कि उनके द्वारा स्थापित इस लिंग के दर्शन लिए बिना श्रद्धालुओं को रामेश्‍वरदर्शन का फल नहीं मिलेगा। इस लिंग को काशीविश्‍वनाथ अथवा हनुमदीश्‍वर भी कहते हैं। उत्तर भारत में अवस्थित काशी के धार्मिक महत्त्व के समान ही दक्षिण भारत में रामेश्‍वर का महत्व है। मान्यतानुसार काशी की तीर्थयात्रा, बंगाल का उपसागर अर्थात महोदधि और हिन्द महासागर अर्थात रत्नाकर के संगम पर स्थित धनुषकोडी में स्नान करने के पश्‍चात काशी के गंगाजल से रामेश्‍वर को अभिषेक करने के उपरांत ही पूर्ण होता है। रामेश्‍वरम हिन्दुओं के पवित्र चारधाम यात्रा में से दक्षिणधाम है। हिन्दुओं की जीवनयात्रा की पूर्णता बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्‍वरम, इन चार धामों की यात्रा के उपरांत ही होती है। यहां सीता द्वारा बालू से निर्मित शिवलिंग मुख्य दर्शन स्थान है। यह हनुमान द्वारा लाए गए शिव का आत्मलिंग है।

श्रीराम की पूजा के लिए आत्मलिंग मंगाते समय हनुमान ने शिव से अपने लिए भी एक आत्मलिंग मांगा। यह शिवलिंग आत्मलिंगेश्‍वर के रूप में पहचाना जाता है। रामेश्‍वर मंदिर में कुल 22 तीर्थ हैं, जिनमें से 6 तीर्थ सबसे बाहर के तीसरे दालान में हैं। इन सभी तीर्थों में स्नान करने के उपरांत ही रामेश्‍वर का पूजन, अर्चन और दर्शन करने की परिपाटी है। देवालय के बाहर रामकुंड, सीताकुंड और लक्ष्मणकुंड हैं। यात्री इन कुंडों पर स्नान, श्राद्धविधि इत्यादि धार्मिक कृत्य करते हैं। यात्री यहां के सभी पवित्र तीर्थों में क्रम से स्नान करने के उपरांत रामेश्‍वर को काशी से लाए गंगाजल से अभिषेक करते हैं। इसके साथ ही रामेश्‍वर से बारह मील दूर स्थित सेतुबंध से सेतु (बालू) लाकर, उसे सेतु रामेश्‍वर के मंदिर में सेतुमाधव के निकट रखकर उसकी पूजा करते हैं। प्रयाग के त्रिवेणी संगम में विधिपूर्वक विसर्जित करने के उपरांत ही यह यात्रा वास्तविकरूप में संपन्न होती है ।

भारत के सर्व धर्मस्थल शैव और वैष्णव संप्रदायों में विभाजित हैं, परंतु रामेश्‍वरम अपवाद है। यह शैव और वैष्णव, इन दोनों संप्रदायों के लिए वंदनीय है। विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम ने साक्षात रामेश्‍वर की स्थापना की थी, इसलिए यह स्थान शैवक्षेत्र होने पर भी वैष्णवों के लिए वंदनीय है। श्रीराम के द्वारा स्थापना करने के कारण यहां के शिवलिंग को रामेश्‍वर कहते हैं। रामायण काल से लेकर आज तक रामेश्‍वरम भारत की एकात्मता का प्रतीक पुण्यस्थल है, क्योंकि काशी विश्‍वेश्‍वर की यात्रा रामेश्‍वर के दर्शन के बिना पूर्ण नहीं होती है। भारतीय संस्कृति में भारत को एक सूत्र में बांधने की यह अद्भुत परंपरा है। इन परंपराओं के कारण ही यहां बारह महीने यात्रियों की भीड रहती है और सहस्रों वर्षों से अनंत आघात होकर भी आसेतुहिमाचल भारतवर्ष की एकता टिकी है। भारत के चार पवित्र धामों में प्रमुख दक्षिण धाम रामेश्वरम