

लगातार तीन लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि वो मोदी सरकार पर हमला कैसे करे । उसे समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्या करें जिससे कि मोदी सरकार की साख खत्म हो जाए, वो जनता की नजरों में गिर जाए और उसे सरकार बनाने का मौका मिल जाये । 2024 के चुनाव में 99 सीट जीतकर कांग्रेस को लगा कि उसने मैदान मार लिया है और अब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनने वाले हैं। जब मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो लगा कि वो बहुत कमजोर प्रधानमंत्री बनेंगे क्योंकि भाजपा को बहुमत नहीं मिला है। जब कांग्रेस को महसूस हुआ कि वो इस बार भी बुरी तरह से हार गई है और मोदी पहले की तरह ही मजबूती से शासन कर रहे हैं और उनका गठबंधन मजबूती के साथ उनके साथ खड़ा हुआ है तो कांग्रेस फिर से जंग के मैदान में कूद गई है । दस साल तक कांग्रेस ने मोदी से लड़कर देख लिया है और उसे कुछ हासिल नहीं हुआ । कांग्रेस को अभी तक यह समझ नहीं आया है कि वो मोदी से किस मुद्दे पर लड़े ताकि उसका कुछ भला हो। विदेश और सुरक्षा नीति पर राजनीति आत्मघाती कदम
कांग्रेस नये-नये मुद्दों की तलाश में रहती है और हर नए मुद्दे पर राजनीति शुरू कर देती है । कांग्रेस हमेशा मोदी सरकार पर हमला करने के लिए तैयार रहती है और मौका मिलते ही टूट पड़ती है। समस्या यह है कि कांग्रेस जल्दबाजी में यह भी नहीं देख पाती कि मुद्दा राजनीति करने के काबिल है या नहीं। यही कारण है कि वो देशविरोध तक पहुंच जाती है। उसे सिर्फ मोदी पर हमला करना है फिर चाहे उससे देश का कितना भी नुकसान हो जाए। समस्या यह है कि मोदी कांग्रेस के सवालों पर चुप्पी साधे रहते हैं । कांग्रेस कितनी भी उछल-कूद करे लेकिन मोदी अपनी प्रतिक्रिया अपने समय पर देते हैं । वो कांग्रेस के मुद्दों का अपने ढंग से और अपनी सुविधा के अनुसार जवाब देते हैं । 11 साल बाद भी कांग्रेस को यह बात समझ नहीं आयी है कि मोदी बहुत शांत मन से लंबी सोच के साथ राजनीति करते हैं। उन्हें छुटपुट हमले करके नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता। इतनी अनुभवी पार्टी को यह नहीं पता कि मोदी को हराने के लिए मोदी जैसा बनना होगा लेकिन कांग्रेस की समस्या यह है कि वो बेशक पुरानी पार्टी है लेकिन उसको चलाने वाले लोग नए हैं।
आज़ादी के बाद से भारतीय राजनीति में सभी दलों में एक आपसी समझ बनी हुई थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति नहीं की जाएगी। विशेष तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सार्वजनिक बहस से बचा जाएगा और अगर चर्चा की जरुरत होगी तो ये चर्चा संसद में की जाएगी । कांग्रेस ने लगभग 55 साल राज किया है और वो अच्छी तरह जानती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के मामलों पर सरकार ज्यादा कुछ नहीं बोल सकती है। अगर सुरक्षा और विदेश नीति के मुद्दे पर सरकार को घेरा जाए तो सरकार अपना अच्छी तरह से बचाव नहीं कर सकती । सरकार के पास ऐसी सूचनाएं होती हैं जिन्हें वो सार्वजनिक रूप से कभी प्रकट नहीं कर सकती । कई बार वो जवाब दे सकती है लेकिन देशहित में चुप रहना उसकी मजबूरी होती है। राहुल गांधी ने सरकार की इस कमजोरी को भांप लिया है इसलिए अब वो विदेश और सुरक्षा के मामलों पर सरकार को घेरने में लगे हुए हैं। वास्तव में वो सरकार की राष्ट्रवादी छवि को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। विदेश और सुरक्षा नीति पर राजनीति आत्मघाती कदम
जब सरकार उनके सवालों का जवाब नहीं देती है तो वो उसकी छवि खराब करने की कोशिश में लगे रहते हैं। राहुल गांधी के हमले के बाद उनके कुछ नेता सरकार के खिलाफ मुहिम चलाना शुरू कर देते हैं। कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता हैं जो राहुल गांधी के बयानों का इंतजार कर रहे होते हैं और जैसे ही राहुल गांधी कोई बड़ा बयान देते हैं ये नेता राहुल गांधी से भी आगे बढ़कर बोलना शुरू कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें इससे राहुल गांधी को खुश करने का मौका मिल गया हो । देखने में आ रहा है कि ऐसी ओछी राजनीति के कारण कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कांग्रेस की राजनीति से दूरी बनाते जा रहे हैं। उन्हें समझ आ गया है कि पार्टी गलत रास्ते पर जा रही है लेकिन वो खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। अब पार्टी में उनकी सुनने वाला कोई नहीं है इसलिए वो चुपचाप देख रहे हैं।

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने कांग्रेस को बेचैन कर दिया है। उसे लगता है कि भाजपा विधानसभा चुनावों में इस सफलता का फायदा उठा सकती है, इसलिए भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस इस कार्यवाही की सफलता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है। कांग्रेस को याद नहीं है कि उसने भी 1971 में मिली जीत का फायदा उठाया है और भाजपा को भी इस कार्यवाही की सफलता का राजनीतिक फायदा होना निश्चित है। कांग्रेस अपनी राजनीति के चक्कर में जनता में अपनी छवि खराब करती जा रही है। जब देश पाकिस्तान की बुरी तरह हुई पराजय का जश्न मना रहा था तो राहुल गांधी बार-बार यह सवाल पूछ रहे थे कि पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के कितने विमान गिरा दिए हैं। यह विमर्श भी चलाने की कोशिश की गई कि पाकिस्तान ने भारत के 6 राफेल युद्धक विमान गिरा दिए हैं। वायुसेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बता दिया कि हमारा भी नुकसान हुआ है और इसका पूरा विवरण सही समय पर बता दिया जाएगा लेकिन कांग्रेस फिर भी चुप नहीं हुई।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भी कांग्रेस सरकार पर कोई कार्यवाही न करने का आरोप लगा रही थी और ऐसा ही वो उरी और पुलवामा हमले के बाद भी कर चुकी है। मोदी ने ऐसे हमलों का जवाब दो हफ्ते बाद दिया था और इस बार भी ऐसा ही किया है लेकिन कांग्रेस 15 दिन का इंतजार भी नहीं कर पाई और शोर मचाती रही। जब कार्यवाही हो गई तो कितना नुकसान हुआ ये पूछने के लिए व्याकुल है। विदेश मंत्री एस जयशंकर को कांग्रेस ने मुखबिर और जयचंद की उपाधि देते हुए मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ दी। भारतीय राजनीति में आजतक किसी ने भी वर्तमान विदेश मंत्री को मुखबिर नहीं कहा है क्योंकि ऐसा काम कोई विदेश मंत्री नहीं कर सकता।
पाकिस्तान के जनरल आसिम मुनीर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लंच करवाने के फैसले को मोदी सरकार की असफलता बताया जा रहा है । सवाल यह है कि क्या अमेरिका भारत से पूछकर अपनी विदेश नीति तैयार करेगा । ट्रंप को अगर किसी को लंच पर बुलाना है तो क्या वो मोदी से पूछ कर बुलायेंगे। हम क्या रूस के साथ अमेरिका से पूछ कर रिश्ते निभाते हैं। हर देश अपने हितों के हिसाब से विदेश नीति बनाता है और हम नहीं जानते कि अमेरिका के पाकिस्तान के साथ क्या हित जुड़े हुए है और पाकिस्तान का कैसा इस्तेमाल करना चाहता है। इजराइल-ईरान युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिका की कैसी मदद करने वाला है। युद्ध-विराम पर ट्रम्प के मध्यस्थता वाले बयान पर भी कांग्रेस ने जमकर राजनीति की है। जब सरकार के विदेश मंत्रालय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बता दिया कि युद्ध-विराम दोनों देशों ने आपस में बातचीत करके किया है तब भी कांग्रेस नहीं रुकी । कांग्रेस को अपने देश की सरकार से ज्यादा भरोसा बड़बोले ट्रम्प पर है।
अब पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री इशाक डार ने बयान दिया है कि हमने ही भारत से युद्ध विराम करने की गुहार लगाई थी क्योंकि हमारे महत्वपूर्ण एयरबेस तबाह हो गए थे। राहुल गांधी मोदी जी पर सरेंडर करने का आरोप लगा रहे हैं। कभी युद्ध जीतने वाला भी सरेंडर करता है क्या, लेकिन राहुल गांधी बोलते जा रहे हैं। सवाल यह है कि एक तरफ राहुल गांधी सेना को जीत की बधाई देते हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री को आत्मसमर्पण करने वाला बोल देते हैं। जब सेना ने युद्ध जीत लिया तो सरेंडर कैसे होगा। क्या युद्ध-विराम का मतलब सरेंडर होता है।
जी -7 की बैठक में मोदी जी को न्यौता न मिलने का मजाक बनाया और जब न्यौता मिल गया तो उनको सम्मान न देने का विमर्श चलाया गया। जी-7 की बैठक में कनाडा ने मोदी जी को सम्मान के साथ बुलाया और रिश्ते सुधारने की भी बात की। 2024 की एक रिपोर्ट में खुद कनाडा ने माना है कि उसकी धरती का इस्तेमाल खालिस्तानी समर्थको द्वारा 45 साल से किया जा रहा है, भारत के खिलाफ उग्रवाद और उसके लिये वित्तीय मदद का इंतज़ाम किया जा रहा था। मोदी सरकार विदेश और रक्षा के मामलों को बहुत गंभीरता से ले रही है। कांग्रेस अगर इन मुद्दों पर राजनीति करेगी तो अपना ही नुकसान करेगी। देश की जनता को इन मुद्दों पर राजनीति करना पसंद आने वाला नहीं है। विदेश और सुरक्षा नीति पर राजनीति आत्मघाती कदम