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• प्रदेश में बढ़ते कोरोना के केसों को ध्यान में रखते हुए फिर से प्रोटोकाल का पालन करना जरूरी।
• घर से बाहर निकलते वक्त पर्स, रुमाल और मोबाइल जितनी ही अहमियत दें फेस मास्क को।
लखनऊ। प्रदेश में कोरोना वायरस एक बार फिर से रंग दिखाने लगा है। राजधानी में तो रोजाना कोरोना मरीजों की संख्या सैकड़ा पार कर रही है। लिहाजा अब फिर से जरूरत आन पड़ी है सतर्कता बरतने की…सार्वजनिक स्थान पर मास्क पहनने की…कोरोना प्रोटोकाल के पालन की। मास्क आपको न सिर्फ कोरोना से बचाएगा बल्कि ट्यूबरक्लोसिस जैसी संक्रामक बीमारियों से भी दूर रखेगा।
केजीएमयू के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत के मुताबिक कोरोना आने के बाद लोगों को घर से बाहर निकलते वक्त फेस मास्क को उतनी ही तवज्जो देना चाहिए जितनी अहमियत वह पर्स, रुमाल और मोबाइल को देते हैं। उन्होंने बताया कि मास्क लगाने की आदत कोरोना समेत कई घातक बीमारियों की रोकथाम में सहायक है। अगर आप रोजमर्रा के जीवन में मास्क को अहमियत देते हैं तो आप सांस संबंधी कई बीमारियों की चपेट में आने से बच सकते हैं।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि मास्क पहनने से ट्यूबरक्लोसिस, निमोनिया और कई तरह की एलर्जी से भी बचाव होता है। बढ़ता प्रदूषण इन बीमारियों को और गंभीर बना सकता है। ऐसे में मास्क लगाना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि खांसी, जुकाम, बुखार जैसे लक्षण कोरोना व टीबी दोनों बीमारी के होते हैं। ऐसे में पहचानना मुश्किल होता है कि मरीज को कोरोना है या टीबी। अगर मास्क का उपयोग किया जाएगा तो मरीज दोनों बीमारियों से बच सकता है।
रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष ने बताया कि वायु प्रदूषण का असर फेफड़ों पर ही नहीं बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों पर भी पड़ता है। कम तापमान व स्मॉग के चलते धूल कण ऊपर नहीं जा पाते और नीचे ही वायरस व बैक्टीरिया के संवाहक का कार्य करते हैं। ऐसे में अगर बिना मास्क लगाए बाहर निकलते हैं तो वह सांसों के जरिए शरीर में प्रवेश करने का मौका पा जाते हैं।
डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि घर से बाहर निकलने पर मास्क से मुंह व नाक को अच्छी तरह से ढककर वायरस व बैक्टीरिया से जुड़ी बीमारियों जैसे कोरोना, टीबी व निमोनिया ही नहीं बल्कि एलर्जी, अस्थमा व वायु प्रदूषण जनित तमाम बीमारियों से भी सुरक्षित रहा जा सकता है। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 माइक्रान यानि बहुत ही महीन धूल कण ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकते हैं, क्योंकि वह सांस मार्ग से फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं जबकि 10 माइक्रान तक वाले धूलकण गले तक ही रह जाते हैं जो गले में खराश और बलगम पैदा करते हैं।
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