

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”इस समाचार को सुने”] मन सभी ज्ञात वस्तुओं से ज्यादा गतिशील है। हमारा मन प्रायः वहाँ नहीं होता जहाँ हम होते हैं। हम घर में बैठे हैं। हमारा मन मथुरा और काशी में है। हम तीर्थाटन या पर्यटन की दृष्टि से किसी तीर्थ पर बैठे हैं। मन तीर्थों पर नहीं होता। घर चला जाता है। मन को समझने के गंभीर प्रयास हुए हैं। मन की प्रकृति को समझने के लिए पतंजलि ने बड़ा श्रम किया है। उन्होंने योग सूत्रों में (श्लोक-2) योग की परिभाषा की और कहा चित्तवृत्ति का निरोध योग है। उन्होंने चित्त की वृत्तियाँ भी बताई। मन की चर्चा ऋग्वेद में भी है। यूरोप के विद्वानों ने मन पर पूरा विज्ञान ही खड़ा कर दिया है। वे उसे अंग्रेजी में साइकोलॉजी कहते हैं। मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड ने साइको एनालिसिस नाम की सुन्दर पुस्तक लिखी है। उनके समर्थक एडलर युंग ने भी साइको एनालिसिस या मन का विवेचन किया है। मन से तरंगें निकलती हैं। हम ऐसी तरंगों को मनतरंग कह सकते हैं। यजुर्वेद के 6 मन्त्र शिव संकल्प सूक्त कहे जाते हैं। इसके रचनाकार मन की चंचलता से परिचित थे। छहों मंत्र बड़े प्यारे हैं। ऋषि कहते है कि हमारा मन यहाँ-वहाँ बहुत दूर आकाश पर्वतों की ओर चला गया है, ”हे देवताओं हमारे मन को यहीं लौटाओ। हमारा मन शिव संकल्प से भरा पूरा हो।” यही बात छह मन्त्रों में दोहराई गई है। सभी मंत्रो की दूसरी पंक्ति में तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु की टेक है।
गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को मन के निग्रह का उपदेश दिया है। इधर-उधर भागते मन को एक ही विषय पर केन्द्रियभूत करना आसान नहीं है। अर्जुन ने उत्तर दिया हे कृष्ण मन बड़ा चंचल है। इसे निग्रह करना वायु को हाथ में पकड़ने जैसा कठिन कार्य है। अर्जुन मन की चंचल प्रवत्ति से व्यथित हैं। उसने श्री कृष्ण का ध्यान खींचा। उत्तर में श्री कृष्ण ने योग के सारभूत तत्व बताए। मन संकल्प का भी केंद्र है। हम अपने दैनिक जीवन में तमाम विचारों से प्रभावित या अप्रभावित होते हैं। हम अपनी प्रकृति को ठीक करने के लिए सत्य और शुभ को ग्रहण करने की शपथ लेते हैं। रात में सोते समय सूर्याेदय के पहले जाग जाने का संकल्प करते हैं। सुबह उठते ही देर हो जाती हैं और संकल्प धरा रह जाता है। मेरे मन में विचार आता है कि रात में दूसरे दिन सुबह उठने का निश्चय हम ही करते हैं, लेकिन सवेरे उठते समय स्वयं अपना निश्चय काट देते हैं। मन ऐसे ही खेल खेलता है। तमाम सद्कार्यों के लिए हम सब अनुष्ठान करते हैं। संकल्प धराशाई हो जाते हैं। मन जीत जाता है। बुद्धि हार जाती है। भारतीय चिंतन में किसी भी काम को प्रारम्भ करने के लिए प्रगाढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है।
