विष्णु के तीन पद यदि सृष्टि करते हैं, स्थापन करते हैं, धारण करते हैं तो वहीं पर आश्रित जनों का पालन-पोषण भी किया करते हैं। लोगों को अपना भोग्य अन्नादि उन्हीं तीन पद-क्रमों के प्रसादस्वरूप प्राप्त होता है, जिससे कि वे परम तृप्ति का अनुभव किया करते हैं। जो लोग विष्णु की स्तुति करते हैं, उनका वे सर्वविध कल्याण करते हैं, क्योंकि उनके स्तवनादि कर्म से उसे परम स्फूर्ति मिलती है। इस प्रकार स्फूर्ति-प्रदायिनी स्तुति विष्णु तक पहुँचा पाने के लिये सभी लालायित रहते हैं। वे वरिष्ठ दाता हैं।विष्णु के गुणों में भी त्रयात्मकता परिलक्षित होती है। वे तीन पद-क्रम वाले, तीन प्रकार की गति करने वाले, तीनों लोकों को नाप लेने वाले और लोकत्रय के धारक हैं। इसी प्रकार वह ‘त्रिधातु’ अर्थात् सत्, रज और तम का समीकृत रूप अथवा पृथ्वी, जल और तेज से युक्त भी हैं।
वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं।आप सभी ने ये ध्यान दिया होगा कि जब भी हम भगवान विष्णु और उनके अवतारों के विषय में बात करते हैं तो हम उनके आगे “श्री” शब्द लगाते हैं, जैसे श्रीहरि, श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि। किन्तु ऐसा हम भगवान ब्रह्मा महादेव अथवा अन्य देवताओं के साथ नहीं करते। तो क्या इसका अर्थ ये है कि श्री बोल कर भगवान विष्णु को सम्मान दिया जाता है और अन्य देवताओं को नहीं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है। आइये इसे समझते हैं।ईश्वर, विशेषकर भगवान विष्णु के सम्बन्ध में एक भ्रान्ति ये है कि उनके नाम के आगे लगने वाला शब्द “श्री” सम्मान सूचक है। यही कारण है कि हम ये अपेक्षा करते हैं कि हम सभी देवताओं के आगे उसी सम्मान के रूप में श्री लगाएं। आज के परिपेक्ष्य में अवश्य श्री एक सम्मान सूचक शब्द है किन्तु आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान विष्णु के नाम के आगे लगने वाला श्री केवल सम्मान के लिए नहीं है।ब्रह्मा, विष्णु, महेश ईश्वर हैं इसी कारण सम्मान पर उनका अधिकार निर्विवाद है। श्री लगाएं अथवा ना लगाएं, उनका सम्मान कम नहीं होता। किन्तु वास्तव में श्रीहरि के आगे लगने वाले “श्री” का अर्थ है “लक्ष्मी”। आप सभी को ये तो पता ही होगा कि माता लक्ष्मी का एक नाम श्री भी है। श्री का अर्थ होता है ऐश्वर्य प्रदान करने वाली। तो वास्तव में हम श्रीहरि कह कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को एकाकार करते हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे भगवान शंकर का अर्धनारीश्वर स्वरुप।
विष्णु की सर्वश्रेष्ठता का यह तात्पर्य नहीं है कि शिव या ब्रह्मा आदि उनसे न्यून हैं। ऊँच-नीच का भाव ईश्वर के पास नहीं होता। वह तो लीला में सृष्टि-संचालन हेतु सगुण (सरूप) होने की प्राथमिकता मात्र है। इसलिए वैष्णव हो या शैव — सभी पुराण तथा महाभारत जैसे श्रेष्ठ ग्रन्थ एक स्वर से घोषित करते हैं कि ईश्वर एक ही हैं। कहा गया है कि एक ही भगवान् जनार्दन जगत् की सृष्टि, स्थिति (पालन) और संहार के लिए ‘ब्रह्मा’, ‘विष्णु’ और ‘शिव’ इन तीन संज्ञाओं को धारण करते हैं। अनेकत्र विष्णु तथा शिव के एक ही होने के स्पष्ट कथन उपलब्ध होते हैं।
अब श्रीहरि तक तो ठीक है किन्तु क्या श्रीराम और श्रीकृष्ण के आगे जो "श्री" लगता है वो सम्मान सूचक नहीं है? उत्तर है हाँ, है किन्तु इन दोनों के नाम के साथ लगने वाले श्री का अर्थ भी माता लक्ष्मी का ही रूप है। जब हम श्रीराम कहते हैं तो वास्तव में हम "सीता-राम" कह रहे होते हैं। जब हम श्रीकृष्ण कहते हैं तो वास्तव में हम "रुक्मिणी-कृष्ण" कह रहे होते हैं। तो इस प्रकार दोनों के नाम में श्री लगाने का वास्तविक तात्पर्य इनकी अर्धांगिनी के नाम को भी इनके साथ जोड़ना है।धार्मिक मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु धरती पर कई अवतार ले चुके हैं । भगवान विष्णु को लेकर धार्मिक मान्यता है कि उनके 24 अवतार इस धरती पर होंगे, इनमें से 23 अवतार अब तक आ चुके हैं, वहीं आखिरी ‘कल्कि अवतार’ आना बाकी है, हालांकि उनका आना भी सुनिश्चित है । इन 24 अवतारों में से विष्णु जी के 10 प्रमुख अवतार माने गए हैं ।