डा.श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिंदा न होते हुए भी अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण व अहिंसा संदेश के कारण हर वर्ष याद किए जाते है।वही कुछ सिरफिरे लोग महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे का भी महिमा मंडन करने का आज भी दुस्साहस कर रहे है। आज के समय मे गांधी बनना आसान नही है,वह भी तब जब उन्ही के हत्यारे गोडसे का कुछ लोगो के द्वारा महिमामण्डन का दुस्साहस किया जा रहा हो। वे लोग भूल जाते है कि गांधी बनने में सदियां बीत जाती है ,लेकिन गोडसे क्षण भर में बना जा सकता है।
जितनी देर मोहनदास करमचंद गांधी को गांधी या फिर महात्मा गांधी अथवा बापू बनने में लगी ,उतनी से ज्यादा देर तक गांधी जिंदा भी रहेगा,जबकि गोडसे जिसका जन्म ही क्षणभर में हुआ उसे उतनी ही जल्दी मरना भी पड़ेगा।यही अकाट्य सत्य है।यही सृष्टि का नियम भी है।गांधी की विराटता को लेकर अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहते थे कि आने वाली पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि गांधी जैसा कोई व्यक्ति इस धरती पर चला करता था। वही डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग जूनियर का भी मानना था कि अगर मानवता को आगे बढ़ाना है तो गांधी बहुत ही जरूरी हैं। दुनिया में शांति और सद्भाव के लिए ही वह जीते, सोचते और काम करते थे। हम अपने जोखिम पर ही उन्हें नजरअंदाज कर सकते हैं। अन्यथा गांधी तो हमेशा अमर रहेगा।
बौद्ध गुरु दलाई लामा के शब्दों में,“गांधी जी एक ऐसे महान व्यक्ति थे, जिन्हें मानवता की समझ थी। उनकी जिंदगी ने मुझे बचपन से ही प्रेरित किया है।” पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराकओबामा कहते है कि अपनी जिंदगी में प्रेरणा के लिए मैं हमेशा गांधी की तरफ देखता हूं क्योंकि वह बताते हैं कि खुद में बदलाव कर साधारण व्यक्ति भी असाधारण काम कर सकता है। इसी तरह रबिंद्रनाथ टैगोर का कहना था कि महात्मा गांधी लाखों बेसहारा लोगों के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं, उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं। आखिर और कौन है, जो इतनी सहजता से इस बड़े वर्ग को अपना रहा है।
जवाहर लाल नेहरू की सोच थी कि इस देश में जो लौ महात्मा गांधी के रूप में रोशन हुई, वह साधारण नहीं थी। यह लौ आने वाले हजारों सालों तक भी राह दिखाती रहेगी।
लॉर्ड माउंटबेटन कहा करते थे कि इतिहास में महात्मा गांधी को गौतम बुद्ध और ईसा मसीह के बराबर देखा जाएगा।वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचारों में,’2 अक्तूबर को पोरबंदर में एक व्यक्ति ने जन्म नहीं लिया था बल्कि एक युग की शुरुआत हुई थी। मुझे इस बात पर पूरा विश्वास है कि वह आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने अपने समय में थे।’ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के शब्दों में ,’महात्मा गांधी ने दुनिया को अहिंसा,सत्यता,राष्ट्रभक्ति की राह दिखाई,सचमुच वे एक महान आत्मा थे।’सच यही है कि
महात्मा गांधी को कुछ लोग विचारो के रूप मानते है तो कुछ लोग नोटो पर गांधी जी का चित्र छपा होने के कारण उन्हे सीने से लगाकर रखते है। यानि हर किसी को किसी न किसी रूप में गांधी हमेशा याद रहते है। आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी की गिनती नरम नेता के रूप में होती थी।लेकिन उक्त आन्दोलन के गरम दल के नेता भी उनका उतना ही सम्मान करते थे जितना नरम दल के लोग उनका आदर भाव करते थे।
गरम दल के नेता के रूप में चर्चित रहे नेताजी सुभाष चन्द्र बोश भी उन्हे अपना नेता मानते थे। यही गांधी जी की अहिंसा की सबसे बडी कामयाबी थी। बैरिस्टर जैसे सम्मानजनक व्यवसाय को छोडकर देश के लिए वे आजादी के आन्दोलन में कूद पडे थे। उनका एक ही नारा था कि जैसे भी हो हम हथियार नही उठायेगे और बिना हथियार ही भारत मां को आजादी दिलायेगें। इसके लिए उन्होने स्वयं भी अंगे्रजो की लाठिया खायी और उन्हे बहुत सी यातना भी सहन करनी पडी। लेकिन देश की खातिर उन्होने कभी उफ तक नही की।
अहिंसा के पुजारी कहे जाने वाले मोहन दास कर्मचन्द गांधी जिन्हे सम्मान से बापू या फिर महात्मा गांधी कहकर पुकारा जाता है,का दुनियाभर में आज भी नाम है और हमेशा रहेगा। उनकी शान में लिखा गीत,”देदी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल” पंक्तिया चरितार्थ कर दिखाने वाले बापू के प्रति दुनियाभर के लोगों ने भरपूर सम्मान प्रकट किया है।
महात्मा गांधी विश्व के ऐसे महान नायक थे जो धोर तपष्चर्या का जीवन व्यतीत करते थे। करोडों देशवासी उन्हे महान सन्त मानते थे। लक्ष्य साधन में उनकी सच्चाई और निष्ठा पर उंगली नहीें उठाई जा सकती थी। महात्मा गांधी के जीवित रहने से सारा संसार सम्पन्न था और उनके निधन से दुनिया भर को लगा कि पूरा संसार ही विपन्न हो गया है। गांधी के परामर्श देश के लिए सदा सहायक सिद्ध हुए।जिनके बल पर देश को आजादी प्राप्त हुई।
महात्मा गांधी एक ऐसे विजयी योद्धा थे जिसने बल प्रयोग का सदा निरादर किया वे बुद्धिमान नम्र, द्रढसंकल्पी और निश्चय के धनी थे।सच तो यह है कि आधुनिक इतिहास में किसी भी एक व्यक्ति ने अपनी चरित्र की वैयक्तिक शक्ति, ध्येय की पावनता और अंगीकृत उद्देश्य के प्रति निस्वार्थ निष्ठा से लोगों के दिमागों पर इतना असर नहीं डाला, जितना महात्मा गांधी का असर दुनिया पर हुआ था।
देश और दुनिया के लिए महात्मा गांधी उन महान व्यक्तित्वों में से एक थें जो अपने विश्वास पर हिमालय की तरह अटल और दृढ़ रहते थे। ससांर का प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि गांधी जी एक उत्तम व्यक्ति थें तोे उन्हे क्यों मार डाला गया, यह सवाल अनेक लोगों ने उठाया भी, इसका जवाब है कि कुछ लोग नही चाहते कि देश दुनिया में भले लोगो का वजूद कायम रहे इसी कारण कुछ सिरफिरे ऐसे महानतम लोगो के भी दुश्मन बन जाते है।
महात्मा गांधी हर रोज सुबह सबसे पहले प्रार्थना जरूर करते थे। अपने देश के लोगों की नज़रों में भी महात्मा गांधी शीर्ष स्तर पर छाये रहे। प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू उन्हे एक उच्च सिद्धान्तवादी और सत्य का अनुयायी सन्त मानते थे। उनकी नजर में गांधी जनता की नब्ज को खूब पहचानते थे ,वे कहा करते थे कि वास्तव में यदि कोई सार रूप में भारत का प्रतिनिधित्व करने में योग्य था तो वह सिर्फ और सिर्फ महात्मा गांधी थे। बहुत सी बातों में लोगों का गांधी जी से मतभेद हो सकता है और बहुत से लोग उनसे अधिक विद्वान हो सकते है परन्तु उनमें चरित्र की जो महतता रही,उसके कारण वह सब लोगों के आदर्श बन गये थे। गांधी जी निसंदेह उस धातु के बने हुए है जिस धातु से शुरमा और बलिदानी लोगों का निर्माण होता हैं।
आत्मिक शक्ति के बल पर महात्मा गांधी विश्व भर में छाये रहे।लेकिन दुर्भाग्य है कि देश को आजाद कराने का प्रबल आधार स्तभ बने महात्मा गांधी के प्रति कृज्ञता अभिव्यक्त करने के बजाए कुछ लोग उनके हत्यारे को महिमा मंडित करने का निदंनीय प्रयास कर रहे है। ऐसे लोगो को देश कभी माफ नही करेगा।गांधी के जीवन, धर्म, राजनीति, चिंतन में, स्वतंत्रता संघर्ष में या कह लें कहीं भी, उनका हर क्षण धर्म से प्रच्छन्न था।उसी से प्रेरित-निर्देशित था। उनके पास धर्मविहीन या धर्म से परे कुछ भी नहीं था।गांधी का यह धर्म, उनके व्यक्तिगत जीवन में असंदिग्ध रूप से हिंदू था और अन्य दूसरे धर्मों के प्रति पूरी तरह सहिष्णु और विनीत था। इस धर्म का ‘ईश्वर’, इसकी ‘आध्यात्मिकता’, ‘आत्मा’ और ‘नैतिकता’ उनकी अपनी गढ़ी हुई या चुनी गई परिभाषाओं से तय होती थी। उनकी व्यक्तिगत जीवन शैली उनके आचरण से परिभाषित होती थी।
गांधी के जीवन के संस्कार अस्तेय, सत्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य से बने थे। गांधी कमोबेश इन्हें अपने जीवन में, अपने कर्म और दर्शन में हमेशा उतारने की कोशिश करते रहे। गांधी ने जब 1920 में अपनी पहली बड़ी राजनैतिक लड़ाई शुरू की, तब तक वे देश के पारंपरिक और कट्टर हिंदुओं के लिए भी, राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता संघर्ष और अंग्रेजों के शासन से मुक्ति की आकांक्षा के साथ-साथ, उनकी हिंदू आस्था के रक्षक और हिंदू धर्म के पुनरुद्धार का प्रतीक भी बन चुके थे। गांधी ने खुद भी, 12 अक्तूबर, 1921 के यंग इंडिया में घोषणा की थी, ”मैं अपने को सनातनी हिंदू कहता हूं क्योंकि मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और समस्त हिंदू शास्त्रों में विश्वास करता हूं और इसीलिए अवतारों और पुनर्जन्मों में भी मेरा विश्वास है। मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करता हूं। इसे मैं उन अर्थों में मानता हूं जो पूरी तरह वेद सम्मत हैं लेकिन उसके वर्तमान प्रचलित और भोंडे रूप को नहीं मानता।
मैं प्रचलित अर्थों से कहीं अधिक व्यापक अर्थ में गाय की रक्षा में विश्वास करता हूं। मूर्तिपूजा में मेरा विश्वास नहीं है. बावजूद इस सबके, गांधी का यह हिंदू धर्म या उनका हिंदुत्व, देश के तत्कालीन प्रमुख हिंदू संगठनों, ‘हिंदू महासभा’ और ‘राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ’ के हिंदुत्व से पूरी तरह अलग था। गांधी की प्रार्थना सभाओं में कुरआन का पाठ होता था। बाइबल और गीता उनके लिए बराबर का महत्व रखती थीं। गांधी का भारत हिंदू भारत न हो कर वह भारत था, जिसमें समस्त स्तरों पर समानता के साथ, देश के समस्त धर्मों, जीवन पद्धतियों, उपासना पद्धतियों, रीति-रिवाजों का समावेश हो। वर्तमान में कुछ लोगो के द्वारा गांधी को मिटाने की कौशिश की जा रही है।वास्तव में अब गांधी एक व्यक्ति नही, बल्कि एक विचारधारा है,जिसको अपनाकर हम सत्य,अहिंसा, भाईचारा कायम कर सकते है।जो आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।