भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक

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भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक
भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक
विजय गर्ग 
विजय गर्ग 

 कौन थे डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक वैज्ञानिक पद्मश्री लालजी सिंह..? “डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक” कहे जाने वाले भारत के महान वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. लालजी सिंह एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने न केवल भारतीय जैवविज्ञान को नई ऊँचाइयाँ दीं, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान को सामाजिक न्याय से भी जोड़ा। डॉ. लालजी सिंह ने भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक की शुरुआत की, जिससे अपराधियों की पहचान, रिश्तेदारी की पुष्टि, और जैविक सबूतों की जांच संभव हो सकी।उन्होंने 1988 में इस तकनीक को पहली बार भारतीय संदर्भ में लागू किया, और तब से लेकर हजारों मामलों में डीएनए साक्ष्य ने निर्णायक भूमिका निभाई।यह तकनीक बाद में न्यायपालिका, फॉरेंसिक विज्ञान, और कस्टडी विवादों में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का कारण बनी। भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक

भारत को डीएनए और फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित वैज्ञानिक लालजी सिंह की देन हैं, भारत को डीएनए और फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित वैज्ञानिक लालजी सिंह की देन हैं, जिनका जनम आज के दिन ही 5 जुलाई 1947 को हुआ और 70 साल की उम्र में 10 दिसंबर 2017 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कर दिया था, लेकिन उन्होंने भारत को डीएनए, ब्रीडिंग टेक्नोलॉजी और कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक देकर मेडिकल की दुनिया में इतिहास रच दिया। लालजी सिंह को भारतीय डीएनए और फिंगरप्रिंटिंग का जनक कहा जाता है। उन्होंने लिंग निर्धारित करने वाले अणुओं, वन्यजीव संरक्षण, फोरेंसिक साइंस के क्षेत्र में भी काम किया। साल 2004 में इंडियन साइंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में उनके योगादान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था। 10 दिसंबर 2017 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कर दिया था । \ लालजी सिंह की उपलब्धियां डॉ. लालजी सिंह उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कलवारी गांव में जन्मे थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से बीएससी, एमएससी और पीएचडी की थी। उन्होंने भारत में डीएनए और फिंगरप्रिंटिंग टेक्नोलॉजी को विकसित किया, जिसने फोरेंसिक साइंस और क्राइम इन्वेस्टिगेशन को नए आयाम पर पहुंचाया। राजीव गांधी हत्याकांड, नैना साहनी तंदूर हत्याकांड, बेअंत सिंह हत्याकांड जैसे हाई प्रोफाइल केस इसी टेक्नोलॉजी की मदद से सुलझाए गए और आज फिंगर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आधार कार्ड बनाने के लिए पूरे देश में हो रहा है। सरकार फिंगर प्रिंटिंग के जरिए ही भारतीयों का रिकॉर्ड मेंटेन किए हुए है।

मेडिकल साइंस की दुनिया में योगदान देते हुए लालजी सिंह ने 1995 में हैदराबाद में सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी) की खोला। साल 1998 में वन्य जीव संरक्षण संबंधी टेस्टिंग के लिए लेबोरेटरी फॉर द कॉन्सर्वेशन ऑफ एंडेंजर्ड स्पीशीज (लाकोन्स) की स्थापना की। साल 2004 में अपने पैतृक गांव में जीनोम फाउंडेशन खोला, जिसका उद्देश्य गांवों में रहने वाले लोगों को जेनेटिक डिसिज का इलाज उपलब्ध कराना है। उन्होंने ही जीनोम बेस्ड पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का सिद्धांत दिया, जो भविष्य में होने वाली बीमारियों की पहचान करने और उनका इलाज करने के लिए जरूरी है ।

लालजी सिंह के 50 से ज्यादा रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए। साल 2011 से 2014 तक वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। बतौर कुलपति उन्होंने केवल एक रुपये सैलरी ली थी। उन्होंने 1987 में हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के साथ अपने वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत की थी। उनके द्वारा स्थापित जीनोम फाउंडेशन और डीएनए फिंगरप्रिंटिंग टेक्नोलॉजी ने भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

कैसे किया टेक्नोलॉजी का आविष्कार ? 1968 में जब वे एमएससी कर रहे थे तो उनकी रुचि भारत में पाए जाने वाले सांपों के साइटोजेनेटिक्स की स्टडी करने में थी। उन्होंने एक सांप की प्रजाति बैंडेड क्रेट में सेक्स क्रोमोसोम पर स्टडी भी की। इस स्टडी के दौरान उन्हें डीएनए सिक्वेंस मिले, जिसे उन्होंने बैंडेड क्रेट माइनर (बीकेएम) सिक्वेंस नाम दिया। डीएनए पर ओर रिसर्च की तो जानवरों कई प्रजातियों में यह मिले और इंसानों में कई रूपों में इनकी मौजूदगी पता चली। 1987 से 1988 तक हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) में रिसर्च करते हुए उन्हें पता चला कि फोरेंसिक टेस्ट के लिए डीएनए मैचिंग के लिए सैंपल और फिंगर प्रिंट लिए जा सकते हैं। 1988 में माता-पिता से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए पहली बार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था। भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के जनक