नैनो यूरिया का इस्तेमाल से किसानों को होगी आर्थिक बचत

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नैनो यूरिया के सम्बन्ध में कृषकों को जागरूक करने हेतु प्रदेश के समस्त विकासखण्डों में गोष्ठियां सम्पन्न।


लखनऊ। किसानों को इफको यूरिया के उपयोग से होने वाले लाभों की जानकारी के सम्बन्ध में जागरूक करने के लिए सहकारिता विभाग द्वारा जे0पी0एस0 राठौर, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), सहकारिता के निर्देशन में दि0 05.05.2022 से 15.05.2022 तक प्रदेश के समस्त विकासखण्डों में किसान गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय लिया गया।15.05.2022 तक प्रदेश के समस्त 823 विकासखण्डों में गोष्ठी आयोजित कर 50 हजार से अधिक किसानों को जागरूक किया गया। इन विकासखण्ड गोष्ठियों में मुख्य अतिथि के तौर पर सांसद, विधायकगण एवं अन्य जनप्रतिनिधियों को आमांत्रित किया गया तथा विभिन्न विभागों से समन्वय स्थापित कर नोडल अधिकारी सहायक आयुक्त एवं सहायक निबन्धक, सहकारिता द्वारा संपन्न कराया गया। प्रत्येक विकासखण्ड को अधिकतम किसानों तक नैनो यूरिया के सम्बन्ध में जानकारी देने का लक्ष्य रखा गया था।


जे0पी0एस0 राठौर राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार), सहकारिता ने कृषक गोष्ठियों में शामिल हुए किसानों को बधाई देते हुए कहा कि उन्नत स्वदेशी तकनीकी से बनी नैनो यूरिया कृषि क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। किसान इसका उपयोग करके अपनी उपज को बढ़ाने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को लम्बे समय के लिए अच्छा बनाये रख सकते है। साथ ही प्रदेश में यूरिया की मांग के सापेक्ष 25 प्रतिशत पारम्परिक यूरिया को नैनो यूरिया से रिप्लेस करने की वर्ष 2022-23 की योजना है।इफको नैनो यूरिया समस्त सहकारी बिक्री केन्द्रों जैसे-पैक्स, क्रय-विक्रय सहकारी समितियां, केन्द्रीय सहकारी उपभोक्ता भण्डार के केन्द्रों आदि पर उपलब्ध कराई जा रही है। उ0 प्र0 में वर्ष 2021-22 में 40.62 लाख नैनो यूरिया की बोतलों की बिक्री हुई। 1 अप्रैल, 2022 से 14.05.2022 तक 7.92 लाख नैनो यूरिया बोतलों की इफको द्वारा बिक्री की गई।


नैनो यूरिया भारत सरकार के प्राथमिकताओं का बिन्दु है। नैनो यूरिया का इस्तेमाल बढ़ने से किसानों को आर्थिक बचत होगी, उत्पादकता बढ़ेगी, भारत की यूरिया आयात निर्भरता घटेगी। इससे सरकार पर सब्सिडी बोझ भी कम होगा और इस बचत का इस्तेमाल सरकार जन कल्याण योजनाओं पर कर पायेगी। भारत नैनो यूरिया का कमर्शियल इस्तेमाल करने वाला विश्व का पहला देश बन गया है।नैनो यूरिया नाइट्रोजन का स्त्रोत है। यह बहुत कम समय में पारम्परिक यूरिया का सशक्त विकल्प बन कर उभरा है। नैनो यूरिया से सरकार, किसान और मिट्टी तीनों को फायदा होगा। नैनो यूरिया का आविष्कार डा. रमेश रलिया भारतीय वैज्ञानिक ने किया, जिसका उन्होनें पेटेन्ट कराया, किन्तु भारतीय किसानों को मुफ्त में दिया ताकि किसान इसे कम कीमत पर प्राप्त कर सकें।

नैनो यूरिया के लाभ मिट्टी में मिलाने वाली दानेदार यूरिया का 30-40 प्रतिशत ही पौधे उपयोग कर पाते हैं बाकी यूरिया मिटृटी को अम्लीय बना कर स्वास्थ्य खराब कर देता है, साथ ही मिट्टी के रास्ते जमीन पर जाकर पानी को दूषित कर देता है। दूसरी ओर छिड़काव के बाद नैनो यूरिया 10 प्रतिशत ही हवा में उड़ती है शेष 90 प्रतिशत का उपयोग पौधे कर लेते हैं।
पारम्परिक यूरिया से सस्ती होने के कारण किसानों के पैसे की बचत होगी। नैनो यूरिया के छिड़काव से फसलों की उत्पादकता में 8 प्रतिशत की वृद्धि पाई गयी है (सब्जी की फसलों पर 24 प्रतिशत उत्पादकता में वृद्धि हुई है)।आमतौर पर एक स्वस्थ्य पौधे में नाइट्रोजन की मात्रा 1.5 से 4 प्रतिशत के बीच होती है। नैनो नाइट्रोजन कण नैनो यूरिया में तरल रूप में फैल जाते है। फसल की पोषण सम्बन्धी आवश्यकता को पूरा करने के लिए फसलों के पत्तों पर छिड़काव करने पर वे लगभग तुरन्त ही काम करना शुरू कर देते हैं।


प्रयोग की विधि एवं सावधानियां-

उपयोग से पहले बोतल को अच्छी तरह से हिलाए। एक बोतल नैनो यूरिया को 100-125 लीटर पानी के ड्रम में मिला लें, फिर घोल का स्प्रे मशीन में भरकर फसल के ऊपर छिड़काव करें यदि ड्रम उपलब्ध नहीं हो तो 15 लीटर क्षमता की स्प्रे मशीन में नैनो यूरिया की बोतल के 2 ढक्कन डाल दें। 15 लीटर स्प्रे मशीन में तैयार हो जायेगा और छिड़काव कर दें। नैनो तरल यूरिया का पहला छिड़काव अंकुरण/रोपाई के 30-35 दिनों बाद , तथा दूसरा छिड़काव फूल आने के पहले करना चाहिए। दलहनी फसलों में एक बार और शेष फसलों में छिड़काव 2 बार करना होगा, लेकिन बोवाई के समय इसका उपयोग नहीं होता है। उस समय परम्परागत यूरिया का ही उपयोग करना होगा। अच्छे नतीजों के लिए नैनो यूरिया का उपयोग उसके निर्माण की तारीख के 1 वर्ष के भीतर कर लेना चाहिए। नैनो यूरिया से भूजल पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह पूरी तरह से विष रहित होता है। फिर भी इसका छिडकाव करते वक्त चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहनना चाहिए। नैनो यूरिया को बच्चों और पालतू पशुओं से दूर तथा ठण्डी और सूखी जगह पर रखना चाहिए।