

भारत में ऐसा कोई शहर नहीं बताया जाता जहां मस्जिद के नीचे मंदिर होने का दावा सामने न आए। इस विवाद को लेकर हालात इतने नाजुक हो गए हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इससे चिंतित दिखाई दे रहा है। आरएसएस ने पहले अयोध्या, मथुरा और काशी जैसे बड़े मंदिर-मस्जिद विवादों में ही हिंदू पक्ष के दावों का समर्थन किया था। लेकिन अब बताया जा रहा है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज को रोकने की अपील की है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी इसी तरह की चिंता जताई है। इससे यह स्पष्ट है कि संध नहीं चाहता कि यह विवाद आगे चलकर किसी विकट समस्या का कारण बने। क्या आरएसएस मंदिर मस्जिद विवाद का समर्थन नहीं करता..?
दत्तात्रेय होसबाले के अनुसार कि अगर हम 30,000 मस्जिदों को खोदना शुरू कर दें, यह दावा करते हुए कि वे मंदिरों को तोड़कर बनाई गई हैं तो भारत किस दिशा में जाएगा? क्या इससे समाज में और अधिक शत्रुता और नाराजगी नहीं पैदा होगी? क्या हमें एक समाज के रूप में आगे बढ़ना चाहिए या अतीत में फंसे रहना चाहिए? कथित तौर पर नष्ट किए गए मंदिरों को पुनः प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास में कितना पीछे जाना चाहिए?’’ शताब्दी वर्ष के मौके पर हुए एक इंटरव्यू में होसबाले ने कई विषयों पर संगठन के विचार स्पष्ट किए। इनमें से कई विचार भारतीय जनता पार्टी और संघ से जुड़े अन्य संगठनों के विचारों से मेल नहीं खाते हैं।
मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज पर होसबाले ने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन आरएसएस ने शुरू नहीं किया था। आरएसएस के स्वयंसेवक सांस्कृतिक महत्व के कारण इस आंदोलन में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा, ’’उस समय, विश्व हिंदू परिषद और धार्मिक नेताओं ने तीन मंदिरों का उल्लेख किया था। अगर कुछ आरएसएस स्वयंसेवक इन तीन मंदिरों को फिर से प्राप्त करने के प्रयासों में शामिल होना चाहते थे, तो आरएसएस ने इसका विरोध नहीं किया। लेकिन अब स्थिति बहुत अलग है। देश में 30,000 मस्जिदों के नीचे मंदिरों के दावे हैं। अगर हम इतिहास को पलटने के लिए उन सभी को खोदना शुरू कर दें तो क्या इससे समाज में और अधिक दुश्मनी और नफरत नहीं पैदा होगी?’’
होसबाले ने कहा कि मस्जिदों के नीचे मंदिरों की खोज करने से हम अस्पृश्यता को खत्म करने, युवाओं में जीवन मूल्यों को स्थापित करने, संस्कृति की रक्षा करने और भाषाओं को संरक्षित करने जैसे अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने कहा, ’’जब मंदिरों की बात आती है, तो क्या किसी इमारत में जो अब एक मस्जिद है, कोई दिव्यता है? क्या हमें इमारत में हिंदू धर्म की तलाश करनी चाहिए, या हमें उन लोगों में हिंदू धर्म को जगाना चाहिए जो खुद को हिंदू नहीं मानते हैं? इमारतों में हिंदू धर्म के अवशेषों की खोज करने के बजाय अगर हम समाज में हिंदू धर्म की जड़ों को जगाते हैं तो मस्जिद का मुद्दा अपने आप हल हो जाएगा।’’
होसबाले ने दावा किया कि भारत में लोग एक ही नस्ल के हैं और हिंदू धर्म अनिवार्य रूप से मानवतावाद है। भारतीय मुसलमानों ने अपनी धार्मिक प्रथाओं को बदल दिया होगा, लेकिन उन्हें अपनी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक जड़ों को नहीं छोड़ना चाहिए। यह आरएसएस का रुख है।’’ हालांकि, उन्होंने कहा कि मुसलमानों या ईसाइयों को हिंदू होने के लिए अपना धर्म छोड़ने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “हमें दूसरों की पूजा के तरीकों से कोई विरोध नहीं है, जब तक कि यह इस देश की संस्कृति के खिलाफ न हो।” आएसएस ने हमेशा शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनी मातृभाषा को बढ़ावा दिया है। हम मानते हैं कि बच्चों के लिए सीखना आसान और अधिक स्वाभाविक है जब उन्हें उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जा रहा हो। उन्होंने कहा कि शिक्षा में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने को न केवल एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रूप में देखा जाना चाहिए बल्कि संस्कृतियों को संरक्षित करने के साधन के रूप में भी देखा जाना चाहिए। अंग्रेजी के प्रति आकर्षण समझ में आता है। लेकिन हमें एक स्थायी समाधान की आवश्यकता है।’’
होसबाले ने ऐसी आर्थिक योजनाएं बनाने का भी आह्वान किया जो क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षित लोगों के लिए नौकरियां प्रदान करें। उन्होंने कहा, ’’बुजुर्गों, न्यायाधीशों, शिक्षा विशेषज्ञों, लेखकों, राजनेताओं और धार्मिक नेताओं को इस पर सकारात्मक रुख अपनाना चाहिए। तीन-भाषा फॉर्मूले का उचित कार्यान्वयन 95 प्रतिशत समस्या का समाधान कर सकता है। समस्याएं तब पैदा होती हैं जब भाषा का राजनीतिकरण किया जाता है। हमारे देश ने हजारों वर्षों से भाषाई विविधता के भीतर एकता बनाए रखी है।’’
होसबाले इसे गलत है कि किसी विशेष राजनीतिक समूह से संबंधित लोगों को देशभक्त के रूप में पहचाना जाए और दूसरों को गद्दार कहा जाए। देशभक्ति और राष्ट्रवाद सामान्य लक्षण हैं। उन्होंने कहा, देश में कई राजनीतिक दलों का अस्तित्व इसकी एकता में बाधा नहीं है। हालांकि, राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से, हम सभी को कुछ सार्वभौमिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।’’ होसबाले से पूछा गया कि क्या आरएसएस का केवल एक राजनीतिक दल का समर्थन करना एक समस्या है। उन्होंने कहा कि यह मानना गलत है कि आरएसएस केवल एक राजनीतिक दल का समर्थन करता है। उन्होंने कहा, ’’स्वयंसेवक किसी भी सामाजिक या राजनीतिक व्यवस्था में काम करने के लिए स्वतंत्र हैं। स्वयंसेवक स्वाभाविक रूप से उन दलों के साथ जुड़ते हैं जिनके आरएसएस के साथ संबंध हैं। अन्य दलों के स्वयंसेवकों को आरएसएस और उनकी पार्टी दोनों का हिस्सा बनने की अनुमति देनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवकों के अल्पसंख्यकों, जाति, एकता, धर्मांतरण और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर कुछ विश्वास हैं, जो उनके लिए ऐसी पार्टी में काम करना मुश्किल बना देंगे जो इन सिद्धांतों के खिलाफ है। जबकि कई राजनीतिक दलों ने खुले तौर पर आरएसएस के साथ संपर्क में नहीं रहने का विकल्प चुना, संगठन ने दलों के नेताओं के साथ संपर्क बनाए रखा है।’’ होसबोले के अनुसार आरएसएस ने बार-बार कहा है कि वह राजनीति में प्रवेश नहीं करना चाहता है। हालांकि, जैसे-जैसे समय बदलता है, हमें अनुकूल होना चाहिए।’’
आरएसएस पर उच्च जातियों के लोगों का पक्ष लेने का आरोप लगाये जाने को लेकर होसबाले ने कहा कि जबकि संगठन में सभी धर्मों और जातियों के लोग हैं। आरएसएस में जाति और धर्म पर चर्चा नहीं की जाती है। उन्होंने कहा कि संगठन में दिया जाने वाला पहला सबक यह है कि हम सभी हिंदू हैं और यह जाति द्वारा बनाए गए विभाजनों को कम करने के लिए किया जाता है। होसबाले ने ’’अखंड भारत’’ पर आरएसएस के विचार को लेकर कहा कि जिसमें पड़ोसी देशों का क्षेत्र भी शामिल है, अपरिवर्तित हैं। उनके अनुसार हालांकि, हमें वैश्विक भू-राजनीति में बदलावों पर भी विचार करना चाहिए। ’’अखंड भारत’’ का सपना भारत के भीतर एक मजबूत और एकजुट हिंदू समाज के बिना साकार नहीं किया जा सकता है। जब भारत और हिंदू समाज अपनी ताकत दिखाएंगे, तो दुनिया इसे पहचानेगी।’’
आरएसएस सहकार्यवाह के अनुसार संगठन का प्राथमिक उद्देश्य सभी का उत्थान और कल्याण है। इसे राम राज्य या धर्म राज्य कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत के ’’सर्वाच्च गौरव’’ में होने के कुछ संकेतक हैं- जब अस्पृश्यता का उन्मूलन हो जाए। जब राष्ट्रवाद जीवन के सभी पहलुओं में व्यक्त किया जाए। जब सभी की भोजन, ज्ञान और शिक्षा तक पहुंच हो। जब सभी को सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा उपलब्ध हो। जब लिंग या जन्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो। जब भारत को किसी भी बाहरी आक्रमण-भौगोलिक या सांस्कृतिक – को रोकने की ताकत मिले। जब भारत को दुनिया के किसी भी हिस्से, देश या समाज को संकट में मदद करने की ताकत मिले। उन्होंने कहा, ’’एक ऐसा वातावरण बनाना जहां हिंदू गर्व से खुद को हिंदू के रूप में पहचान सकें, इस दृष्टि का हिस्सा है।’’ क्या आरएसएस मंदिर मस्जिद विवाद का समर्थन नहीं करता..?