
प्रतिदिन की तरह आज भी हम जानेंगे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का निदान कैसे हो, आईए समझते हैं आयुर्वेदिक डॉ. रोहित गुप्ता से आज का क्या है ताज़ा नुस्ख़ा….लकवा (पैरालिसिस)। ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क
आयुर्वेदिक डॉ.रोहित गुप्ता
आजकल लकवा,ब्रेन हैमरेज के केस अचानक से बढ़ गए हैं , पहले बड़ी उम्र के लोगों को ही ये देखने में आता था लेकिन अब 30 – 35 के लोग भी इसके शिकार हो रहे हैं। पैरालिसिस को लकवा, पक्षाघात, अधरंग, ब्रेन अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के नाम से भी जाना जाता है। सही जानकारी न होने समय पर इलाज न मिलने से बहुत से लोगों की मौत हो जाती है, लोग अपंग हो जाते हैं। ऐसे में इन्हें अपने परिवार वालों पर आश्रित होना पड़ता है। करीब एक-तिहाई लोग खुशकिस्मत होते हैं, जो वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं और पहले की तरह की ही नॉर्मल जिंदगी जीने लगते हैं।
पैरालिसिस क्यों होता है..?
ब्रेन हमारे शरीर का सबसे अहम हिस्सा है और पैरालिसिस का सीधा संबंध दिमाग से है। शरीर के सभी अंगों और कामकाज का नियंत्रण दिमाग से होता है। बोलने, चलने-फिरने, देखने जैसे सभी काम दिमाग से ही कंट्रोल होते हैं। जब दिमाग की खून की नलियों में कोई खराबी आ जाती है तो ब्रेन स्ट्रोक होता है, जो पैरालिसिस की वजह बनता है। शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह ही दिमाग में भी दो तरह की खून की नलियां होती हैं। एक जो दिल से दिमाग तक खून लाती हैं और दूसरी, जो दिमाग से वापस दिल तक खून लौटाती हैं। जो नलियां खून लाती हैं, उन्हें धमनी (आर्टरी) कहते हैं और जो दिमाग से वापस खून दिल तक ले जाती हैं, उन्हें शिरा (वेन) कहते हैं। यों तो पैरालिसिस धमनी या शिरा में से किसी की भी खराबी से हो सकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों में यह समस्या आर्टरी में खराबी के कारण होती है।
दिल से दिमाग तक चार मुख्य नलियों से खून जाता है – दो गर्दन में आगे से और दो पीछे से। अंदर जाकर ये पतली-पतली नलियों में बंट जाती हैं ताकि दिमाग के हर हिस्से में खून पहुंच सके। इसे हम पाइपलाइन के उदाहरण के जरिए भी समझ सकते हैं। घरों में पानी पहुंचाने के लिए पाइपलाइन का इस्तेमाल होता है। इनमें से कुछ पाइप मोटे होते हैं तो कुछ पतले। पानी के पाइप में कोई खराबी आएगी तो वह अमूमन दो नतीजे हो सकते हैं
पानी के दबाव के कारण या तो पाइप फट जाएगा या फिर लीक करेगा। इसी तरह दिमाग तक खून ले जाने वाली आर्टरी में अगर खराबी आएगी तो वह या तो फट जाएगी या फिर लीक करेगी। अगर दिमाग के अंदर नली फट जाती है तो खून बाहर निकलकर जम जाता है। इसे ब्लड क्लॉट (खून का थक्का) कहते हैं। जैसे-जैसे खून की मात्रा बढ़ती जाती है क्लॉट का साइज बढ़ता जाता है और जल्द ही यह खून की नली या उसके जख्म को बंद कर देता है जिससे खून का निकलना बंद हो जाता है। लेकिन बहुत-से मरीजों में तब तक इतना खून निकल चुका होता है कि सिर के अंदर दबाव बढ़ जाता है और इससे दिमाग काम करना बंद करने लगता है। इस बढ़ते दबाव की वजह से सिरदर्द या उलटी होने लगती है। ज्यादा बढ़ने पर दबाव बेहोशी, पैरालिसिस, सांस अटकने आदि का कारण बनता है।
खून की नली के बंद होते ही दिमाग का वह हिस्सा ऑक्सिजन के अभाव में भूखा-प्यासा तड़पने लगता है और काम करना बंद कर देता है। अगर दिमाग के इस भाग को आसपास से भी खून नहीं मिल पाता या खून की नली का क्लॉट ज्यों का त्यों पड़ा रहता है तो दिमाग के इस भाग को नुकसान पहुंचता है। यह स्ट्रोक का ज्यादा बड़ा और मुख्य कारण है। स्ट्रोक की स्थिति में ब्लड क्लॉट खून की नली के अंदर होता है और खून के बहाव को बंद या कम कर देता है। ऐसे में दो काम अहम होते हैं: पहला, जहां नली के फटने के कारण खून बाहर निकला है, वहां से जल्दी-से-जल्दी थक्के को हटाना और दूसरा, आर्टरी जहां खून लेकर जा रही थी, वहां जल्द-से-जल्द खून पहुंचाना। अगर समय रहते ऐसा न हो तो दिमाग पर असर पड़ता है और समस्या बढ़ने पर जान भी जा सकती है। यही वजह है कि पैरालिसिस के इलाज में टाइम बहुत अहम चीज हो जाती है। जल्दी इलाज मिल जाए तो ज्यादा नुकसान होने से बच जाता है।
ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क
ब्रेन हेमरेज में खून की नली दिमाग के अंदर या बाहर फट जाती है। अगर अचानक या बहुत तेज सिरदर्द होता है या उलटी आ जाए, बेहोशी छाने लगे तो हेमरेज होने की आशंका ज्यादा होती है। ब्रेन हेमरेज से भी पैरालिसिस होता है। इसमें दिमाग से बाहर खून निकल जाता है और इसे हटाने के लिए सर्जरी की जाती है और क्लॉट को हटाया जाता है। अगर किसी भी रुकावट की वजह से दिमाग को खून की सप्लाई में कोई रुकावट आ जाए तो उसे स्ट्रोक कहते हैं। स्ट्रोक और हेमरेज, दोनों से पैरालिसिस हो सकता है।
कैसे होता है
चाहे हेमरेज हो या स्ट्रोक, दिमाग का प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है। दिमाग के अंदर बना क्लॉट आसपास के हिस्से को दबाकर निष्क्रिय कर देता है, जिससे वह काम करना बंद कर देता है। ऐसे में उस हिस्से का जो भी काम है, उस पर असर पड़ता है। हाथ-पांव चलने बंद हो सकते हैं, दिखने और खाना निगलने में दिक्कत हो सकती है, बोलने में परेशानी हो सकती है और बात समझने में मुश्किल आ सकती है। अगर दिमाग का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो तो स्ट्रोक जानलेवा भी साबित हो सकता है।
पैरालिसिस अचानक होता है। अक्सर पीड़ित रात में खाना खाकर ठीक-ठाक सोने जाता है। सुबह उठता है तो पता चलता है कि हाथ-पांव नहीं चल रहा। खड़े होने की कोशिश करता है तो गिर जाता है। कई बार दिन में ही काम करते या खड़े-खड़े या बैठे-बैठे अचानक पैरालिसिस हो जाता है। हेमरेज अक्सर तेज सिरदर्द और उलटी से शुरू होता है। फिर शरीर का कोई अंग काम करना बंद कर देता है और बेहोशी आने लगती है। फेशियल पैरालिसिस भी बहुत कॉमन है। यह चेहरे की मसल्स के कमजोर होने से होता है। यह वायरल इंफेक्शन या उसके बाद भी हो सकता है। मरीज में इस तरह का कोई लक्षण या हिस्ट्री नहीं होने के बावजूद यह हो सकता है।
नोट- दिमाग का दायां हिस्सा बाईं ओर के अंगों को कंट्रोल करता है और बायां हिस्सा दाईं ओर के अंगों को। ऐसे में अगर दिमाग के दाएं हिस्से में दिक्कत हुई है तो बाएं हाथ-पैरों पर असर पड़ेगा और बाएं में गड़बड़ी हुई है तो दाएं हाथ-पैरों पर।
क्या हैं वजहें
हाई ब्लड प्रेशर डायबीटीज स्मोकिंग दिल की बीमारी मोटापा बुढ़ापा जैसे कारणों से ब्रेन स्ट्रोक हेमरेज की सम्भावना रहती है।महिलाओं की तुलना में पुरुषों को खतरा ज्यादा है। बीमारी की फैमिली हिस्ट्री है तो 40-45 साल की उम्र में जांच के जरिए पता लगाना चाहिए कि हमें बीमारी का खतरा है या नहीं। उम्र बढ़ने पर इसका खतरा बढ़ जाता है। हालांकि हमारे देश में युवा मरीज ज्यादा हैं। यहां आमतौर पर 55-60 साल की उम्र में खतरा बढ़ना शुरू हो जाता है, जबकि पश्चिमी देशों में इसके चपेट में आने की औसत उम्र 70-75 साल है। इसकी वजह जिनेटिक और खराब लाइफस्टाइल है।
बचाव के लिए हमें 20-25 साल की उम्र से ही सावधानियां बरतनी चाहिए। अगर हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं। 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं। डॉक्टर की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ाएं। अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/ 80 है तो अच्छा है। ज्यादा है तो 135/85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए। अगर ब्लड प्रेशर की कोई दवा लेते हैं तो उसे नियमित रूप से लें। ब्लड प्रेशर ठीक हो जाए, तब भी डॉक्टर की सलाह पर दवा लेते रहें, वरना यह फिर बढ़ जाएगा। डॉक्टर से बिना पूछे न कोई दवा लें, न ही बंद करें। 35-40 साल की उम्र के बाद साल में एक बार शुगर और कॉलेस्ट्रॉल की जांच जरूर कराएं। अगर बढ़ा हुआ हो तो डॉक्टर की सलाह से दवा लें और परहेज करें। वजन कंट्रोल में रखें। 18 से कम और 25 से ज्यादा बॉडी मास इंडेक्स यानी बीएमआई (BMI) न हो। कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खाएं
स्मोकिंग, शराब न लें ज्यादा-से-ज्यादा ताजे फल और हरी सब्जियां खाएं , नमक कम-से-कम पैकेज्ड फूड या अचार न लें क्योंकि इनमें नमक अधिक होता है , महीने में एक शख्स को आधा किलो से ज्यादा घी-तेल नहीं खाना चाहिए, पानी खून के बहाव को बढ़ाता है इसलिए रोजाना कम-से-कम 8-10 गिलास पानी जरूर पिएं। नियमित रूप से एक्सरसाइज और प्राणायाम करें। रोजाना कम-से-कम तीन से चार किमी ब्रिस्क वॉक करें। 10 मिनट में एक किलोमीटर की रफ्तार से 30-40 मिनट रोज चलें। साइक्लिंग, स्वीमिंग, जॉगिंग भी बढ़िया एक्सरसाइज हैं। आधा घंटा प्राणायाम और ध्यान जरूर करें। इनसे मन शांत रहता है। ठंड में, खासकर जनवरी में इसका खतरा ज्यादा होता है। ऐसा अक्सर एक्सरसाइज में कमी के कारण होता है। ऐसे में घर पर ही सही, एक्सरसाइज जरूर करें।
रात में खाना खाने के बाद और सुबह में पैरालिसिस का अटैक ज्यादा होता है। अगर बोलने में अचानक समस्या होने लगे, शरीर का एक तरफ का हिस्सा भारी महसूस हो, चलने में दिक्कत हो, चीज उठाने में परेशानी हो, एक आंख की रोशनी कम होने लगे, चाल बिगड़ जाए , सुबह अचानक आँख और मस्तक पर सुजन दिखे तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं, सबेरे गरम कमरे से ठन्डे में न जाये ये सबसे बड़ा कारन स्ट्रोक का है.
अगर पैरालिसिस हो जाए तो क्या करें ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क
अगर किसी को अचानक हाथ-पैर चलाने में, देखने में, बोलने में या बात समझने में दिक्कत हो या अचानक ऐसा दर्द हो जैसा कभी न हुआ हो, तो जल्द-से-जल्द उसे हॉस्पिटल पहुंचाना चाहिए। इसके इलाज में अटैक के बाद के 6 घंटे बहुत अहम होते हैं। इलाज में देरी होने से अपंग होने से लेकर जान जाने तक की आशंका रहती है। अगर खून की नली के अंदर ब्लड क्लॉट खून के दौरे को रोक रहा है तो उसको खत्म करने की दवा तकलीफ शुरू होने के तीन घंटे के अंदर मिल जानी चाहिए। इसके पहले सीटी स्कैन, एमआरआई, खून की जांच, ब्लड प्रेशर आदि की जांच करनी पड़ती है। इस दौरान अगर मरीज बेहोश हो जाए तो उसको एक करवट लिटा देना चाहिए ताकि मुंह की लार फेफड़े में न जा पाए। इस बीमारी में मरीज को फिजियोथेरपी से बहुत मदद मिलती है। अस्पताल से घर आने पर भी फिजियोथेरपी कराएं। जितना दिन डॉक्टर कहें, उतने दिन फिजियोथेरपी जरूर कराएं।
पैरालिसिस के मरीजों को दूसरे अटैक से बचने के लिए पहले अटैक के एक साल तक ज्यादा सतर्क रहना चाहिए। पहले एक साल तक मरीजों में दूसरा अटैक होने का खतरा ज्यादा रहता है। दवाएं डॉक्टर से बिना पूछे बंद न करें। ब्लड प्रेशर और डायबीटीज कंट्रोल में रखें। कॉलेस्ट्रॉल सामान्य रखें। ब्लड क्लॉट न बने, इसके लिए अगर एस्प्रिन (Aspirin) या दूसरी कोई दवा दी गई है तो बिना डॉक्टरी सलाह के उसे बंद न करें। जिस कारण स्ट्रोक हुआ है, उसकी नियमित जांच करानी चाहिए और उस कारण को कंट्रोल में रखना चाहिए।
सबसे पहले मरीज का सीटी स्कैन किया जाता है। जरूरत पड़ने पर एमआरआई भी करते हैं। इसके अलावा, ड्रॉप्लर टेस्ट, सीटी एंजियोग्राफी, हार्ट इको, ईसीजी, शुगर, थायरॉयड आदि जांच करते हैं। खून की नली में अगर ब्लॉकेज है तो स्टंट लगाकर उसे खोलते हैं। इसके बाद लगातार मरीज को निगरानी में रखा जाता है। अगर मरीज को कम नुकसान हुआ है तो अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है। आमतौर पर इलाज के तीन महीने में नतीजे सामने आने लगते हैं। हालांकि कई बार रिकवरी में दो-तीन साल का समय भी लग जाता है।
स्ट्रोक के बाद फिजियोथेरपी बहुत अहम है। अगर मरीज फिजियोथेरपी की एक्सरसाइज खुद सही से नहीं कर पा रहा हो तो परिवार को इसमें मदद करना चाहिए। मरीज की हालत धीरे-धीरे ही सुधरती है। ऐसे में परिवार वालों को सब्र रखना चाहिए। दिन में दो-तीन बार मालिश करें। यह फिजियोथेरपी का ही एक हिस्सा है। इससे खून का दौरा बढ़ता है।
आमतौर पर अटैक आने पर हमें किसी अच्छे अस्पताल ही जाना चाहिए क्योंकि इसमें समय का खयाल रखना बहुत अहम होता है और इसमें देरी होने से नुकसान हो सकता है। बाद में रिकवरी के लिए आयुर्वेद होमियोपैथी , प्राकृतिक चिकित्सा की सहायता ले सकते हैं. बेहतर है कि मरीज को एयर मेट्रेस पर रखें। इसमें प्रेशर अपनेआप कम-ज्यादा होता है।
अगर यूरीन की पाइप लगी है तो उसकी साफ-सफाई बहुत जरूरी है। मरीज को तब तक मुंह से खाना न दें जब तक कि डॉक्टर न कहें। अगर कोई बिस्तर से उठ नहीं सकता तो उसे लगातार एक ही स्थिति में न लिटाकर रखें। उसे हर 2-3 घंटे में करवट बदलवा देनी चाहिए। सारे प्रेशर पॉइंट्स (कुहनी, घुटने आदि) को सपोर्ट दें ताकि उन पर लगातार दबाव न रहे। जिस तरफ पैरालिसिस हुआ है, उस ओर के हिस्से को चलाते रहें। ऐसा दिन में कम-से-कम 3-4 बार करें वरना मसल्स में अकड़न हो जाती है। ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क
आयुर्वेद में पैरालिसिस, ब्रेन स्ट्रोक, हैमरेज का बहुत अच्छा ट्रीटमेंट होता है, जो इसके खतरे की परिधि में आते हैं उन्हें होमियोपैथी ट्रीटमेंट पहले से ही लेते रहना चाहिए जिससे अटैक की कोई सम्भावना ही नहीं बचे कुछ मेडिसिन तो ऐसी होती हैं जो तुरंत देने से मरीज की जान बच सकती है,लकवे के जो मरीज सालों साल तक परेशान है और अंग काम नहीं करते वो हमारे द्वारा बनाई गई लकवे की दवाई इस्तेमाल कराए और अपने रोगी को उपचार करा कर ठीक करे। ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क