डॉ.घनश्याम बादल
उत्तराखंड। देश के सत्ताईसवें राज्य के रूप में उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल नाम से आज के उत्तराखंड का जन्म पहाड़ को पहचान व विकास में जान डालने के सपने के साथ हुआ, शुरु में केवल 10 जिले थे जो बाद में बढ़कर 13 हो गए इनमें से 7 गढ़वाल में, देहरादून, उत्तरकाशी , पौड़ी, नई टिहरी, चमोली, रूद्रप्रयाग और हरिद्वार और 6 कुमाऊँ मंडल में हैं जिनमें अल्मोड़ा, रानीखेत, पिथौरागढ़, चम्पावत, बागेश्वर और उधमसिंहनगर शामिल हैं जबकि और तीन जिलों की मांग पूरी करना अभी भी शेष है। उत्तराखंड पूर्व में नेपाल, उत्तर में चीन, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां के धरातल पर भौगौलिक समाजवाद दिखाई देता है।उत्तराखंड की संस्कृति संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में मानी जा सकती है। इस भूमि की पवित्रता एवं प्राकृतिक विशेषता के कारण ही इसे देवभूमि का नाम दिया गया है। प्रकृति का खजाना है देवभूमि उत्तराखंड
पुराणों में मानसखंड
पौराणिक ग्रन्थों में यह क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर को बताया गया है । कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग, खश आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है।
धर्म कर्म का राज्य
उत्तराखंड मेंं बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धाम भारतीय संस्कृति के समन्वय की अद्भुत मिसाल हैं, ये चारों धाम भारतवासियों के ही नहीं विश्व जनमास के श्रद्धा व विश्वास के धर्म स्थल हैं। यहाँ भिन्न- भिन्न प्रजातियों के पशु-पक्षी, गंगा, यमुना, काली, रामगंगा, भागीरथी, अलकनन्दा, कोसी, गोमती, टौंस, मंदाकिनी, धौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर , नयार आदि छोटी- बड़ी साफ़ सुथरी नदियां हैं । प्राकृतिक झरने, बाँस, बुरांस, देवदार के आसमान छूते उच्च वृक्ष हैं और पर्वत चोटियों पर सिद्धपीठ, प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर शहर, हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे धार्मिक नगर, गंगा जैसी पवित्र नदियाँ अपनी कल-कल ध्वनि करती हुई युगों से लाखों जीवों की प्राण रक्षा का भार उठाते हुए सम्पूर्ण मलिनताओं को धोते हुए अंतिम गंतव्य तक पंहुचती हैं।
प्रकृति की उदारता
प्रकृति की उदारता यहां जमकर बरसी है तभी तो यहां देश के प्रमुख ग्लेशियर गंगोत्री ,यमुनोत्री , पिण्डर, खतलिगं , मिलम , जौलिंकांग, सुन्दर ढूंगा इत्यादि।मौजूद हैं वहीं प्रमुख झीलें गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नंदीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीताल, भीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुंमाऊँ क्षेत्र) हैं ।
बहुत पुराना इतिहास
उत्तराखंड का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि मानव जाति का। यहाँ कई शिलालेख, ताम्रपत्र व प्राचीन अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। जिससे गढ़वाल की प्राचीनता का पता चलता है। गोपेश्नर में शिव-मंदिर में एक शिला पर लिखे गये लेख से ज्ञात होता है कि कई सौ वर्ष से यात्रियों का आवागमन इस क्षेत्र में होता आ रहा है। मार्कण्डेय पुराण, शिव पुराण, मेघदूत व रघुवंश महाकाव्य में यहाँ की सभ्यता व संस्कृति का वर्णन हुआ है। बौधकाल, मौर्यकाल व अशोक के समय के ताम्रपत्र भी यहाँ मिले हैं। इस भूमी का प्राचीन ग्रन्थों में देवभूमि या स्वर्गद्वार के रूप में वर्णन किया गया है। पवित्र गंगा हरिद्वार में मैदान को छूती है।
लोकसंस्कृति का अनुपम गढ़
उत्तराखंड की संस्कृति उत्तराखंड की में संगीत का एक अहम स्थान रहा है। यहां के लोक गीत, लोक गाथायें, वाद्य, नृत्य इत्यादि यहां के जीवन का अभिन्न अंग हैं। इन लोक गीत को जब यहां के परम्परागत वाद्यों हुड़का, बादी, औजी, मिरासी, डौर-थाली आदि के तान के साथ जब गाया जाता है तो अद्भुत समां बंध जाता है। यह लोकगीत जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए हैं इसी आधार पर इनको कुछ भागों में विभाजित किया जा सकता है जैसे – संस्कार गीत, धार्मिक गीत, ऋतु गीत इत्यादि। इन्हीं में से एक हैं संस्कार गीत। संस्कार गीतों में प्रमुख हैं शकुनाखर।
राजधानी का उलझा प्रश्न
देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है, राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है। महज 12 साल में ही सात मुख्यमंत्री व पांच राज्यपाल देखने वाले उत्तराखंड में आज पहाड़वाद व प्लेनवाद की पीड़ादायी कसक इसके विकास में बाधक बनी है।
पहाड़ आज भी विकास की राह देख रहे हैं तो मैदानी लोग मूलनिवास आदि के लिए भेदभाव का खुला आरोप लगा रहे हैं। कभी गोविंद बल्लभ पंत जैसे आदर्श व हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे चतुर नेता देने वाले राज्य के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले नरायणदत्त तिवारी उपेक्षित होकर स्वर्ग सिधारे,तो लग्भग हर सरकार ने बस सपने दिए मगर पूरे कौन करेगा इस की प्रतीक्षा देख रहा है उत्तराखंड। प्रकृति का खजाना है देवभूमि उत्तराखंड