विज्ञान के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है विश्व विज्ञान दिवस

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विज्ञान के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है विश्व विज्ञान दिवस
विज्ञान के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है विश्व विज्ञान दिवस

—– विश्व विज्ञान दिवस —–

अशोक प्रवृद्ध

भारतीय साहित्य में विज्ञान का अर्थ विशेष ज्ञान लिया गया है। संसार के दिखाई देने वाले तथा न दिखाई देने वाले पदार्थों के विषय में जानकारी को ज्ञान कहते हैं। जैसे वायु, जिसमें सांस लेते हैं, जल, जो प्यास लगने पर पिया जाता है, अन्न, फल, मूल, कन्द इत्यादि जिनसे भूख मिटाई जाती है, पृथ्वी, जिस पर हम टिके हुए हैं, जिस पर मकान कल-कारखाने लगे हुए हैं, सूर्य जो दिन भर प्रकाश देता है और ऊष्मा तथा शक्ति प्रदान करता है, चाँद जो शीतलता सौम्यता प्रदान करता है और मन में उल्लास उत्पन्न करता है। अभिप्राय यह कि सब पदार्थ, अन्तरिक्ष के नक्षत्रादि से लेकर अति शक्तिशाली क्षुद्रबीन से देखे जाने वाले कीटाणु तथा पदार्थों के अणु तक के विषय की सब बातें ज्ञान के अन्तर्गत हैं। इस सब को भारतीय साहित्य में कार्य-जगत कहते हैं। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान। यह सब जगत कैसे उत्पन्न हुआ..? विज्ञान के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है विश्व विज्ञान दिवस

उसके कारण पदार्थ की जानकारी को विज्ञान कहते हैं। उदाहरण से बात स्पष्ट हो जाएगी। हम पीने वाले जल के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं, तो यह पता चलता है कि यह तरल है,पारदर्शक है, भार रखता है। इसका तुलनात्मक गुरुत्व (स्पेसिफिक ग्रैविटी) एक है। यह हृदय है पोषक है और प्राणी के जीवन के लिए एक अत्यावश्यक पदार्थ है, आदि, आदि, तो हम ज्ञान के क्षेत्र में ही हैं। अर्थात जल के विषय में इन और ऐसी बातों का जानना ज्ञान प्राप्त करना कहलाता है। परन्तु जब हम जल का विश्लेषण कर यह जान जाते हैं कि यह दो प्रकार के वायुरूप पदार्थों से बना है। इनमें से एक पदार्थ का नाम हाइड्रोजन और दूसरे का नाम ऑक्सीजन है, फिर हम यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग ऑक्सीजन के संयोग से जल बनता है। इसके साथ ही जब हम यह देखते हैं कि हाइड्रोजन रासायनिक विचार से एक प्रारम्भिक पदार्थ है और जल की भांति दो पदार्थों के संयोग से नहीं बना। और यह हाइड्रोजन बहुत ही बारीक-बारीक कणों से बनी है, इनको रासायनिक परमाणु कहते हैं। इससे भी आगे जब हम यह पता करते हैं कि एक हाइड्रोजन का रासायनिक परमाणु भी तीन प्रकार के कणों से बना है।

उन कणों को इलेक्टौन, प्रोटौन और न्यूट्रौन कहते हैं। और कुछ लोग तो इससे भी दूर जाने का दावा करते हैं। वे कहते हैं कि ये तीनों कण शक्ति से उत्पन्न हुए हैं। तो इस प्रकार की खोज को भारतीय साहित्य में विज्ञान की ओर जाना कहा जाता है। विज्ञान कार्य-जगत के पदार्थों में कारण-पदार्थ के ज्ञान का नाम है। पूर्ण जगत के कारण-पदार्थ अर्थात मूल पदार्थ के ज्ञान को विज्ञान का नाम दिया है। मूल पदार्थ तीन हैं- आदि प्रकृति, आत्मा और परमात्मा। कुछ भारतीय विद्वान यह भी कहते हैं कि अन्त में ये तीनों मूल पदार्थ भी एक ही पदार्थ के तीन रूप हैं। अतएव चर-अचर जगत, जो दृष्टिगोचर होता है इसको कार्य जगत कहते हैं। और भारतीय साहित्य में इस कार्य-जगत की जानकारी को ज्ञान कहते हैं। और इस कार्य-जगत के कारण पदार्थ अथवा पदार्थों की जानकारी को प्राप्त करना विज्ञान माना जाता है। परन्तु आज-कल का सायंस शब्द इससे भिन्न अर्थ रखता है। उदाहरण के रूप में खनिज पदार्थों की विद्या को, समुद्र जल के गुणों को तथा इसी प्रकार की वस्तुओं की जानकारी प्राप्त करने को भी सायंस का नाम दिया जाता है।

आधुनिक हिन्दी में सायंस का अर्थ विज्ञान लिया जाने लगा है। भारतीय साहित्य में इसको ज्ञान के नाम से पुकारा जाता है। भगवान जाने आज-कल के हिन्दी के विद्वानों ने क्यों सायंस का अर्थ विज्ञान किया है? कदाचित उनको भारतीय साहित्य में विज्ञान शब्द के यथार्थ अर्थ का ज्ञान नहीं होगा। भारतीय साहित्य में विज्ञान का सम्बन्ध विद्या अर्थात ब्रह्मज्ञान से है। यहां तक समझ लेना चाहिए कि ब्रह्म के अर्थ उन तीन मूल पदार्थों से हैं जिनसे यह पूर्ण कार्य-जगत बना और चल रहा है। वे तीन मूल पदार्थ हैं, मूल प्रकृति, आत्मा और परमात्मा। यह ठीक है कि कई भारतीय इन तीन मूल पदार्थों को एक ही मूल पदार्थ के तीन रूप मानते हैं। परन्तु यह भी सत्य है कि अनेक अन्य विद्वान हैं जो इस पूर्ण जगत के मूल में दो और कई विद्वान तीन पदार्थों का होना स्वीकार करते हैं।

भारत में ज्ञान और विशेष ज्ञान- विज्ञान की बहुत ही प्राचीन, वृहत व समृद्ध परंपरा रही है। और इसका आरंभ वेदों से माना जाता है। वेद सृष्टि के आदिकाल में ईश्वर के द्वारा मनुष्यों को दिया गया ज्ञान है। सहस्त्राब्दियों से चली आ रही भारतीय ज्ञान-विज्ञान परंपरा एक समृद्ध और विविधतापूर्ण इतिहास रखती है। ज्ञान- विज्ञान की यह भारतीय परंपरा सिर्फ भारत की सीमाओं तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। वेद मानव मात्र के लिए प्रकाश स्तम्भ और शक्ति का स्रोत हैं। विश्व को संस्कृति का ज्ञान देने का श्रेय वेदों को है। वेद ही मानव मात्र के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त करते हुए सुख और शांति की स्थापना करते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है– सर्वज्ञानमयो हि सः। अर्थात- वेदों में सभी विद्याओं के सूत्र विद्यमान हैं। वेदों में धर्म, आचार शिक्षा, नीति शिक्षा, सामाजिक जीवन, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र आदि के साथ ही विज्ञान के विभिन्न अंगों से संबंधित ज्ञान भी वृहद रूप में अंकित है। वेदों में भौतिकी, रसायन शास्त्र, वनस्पति विज्ञान, जन्तु विज्ञान, कृषि, गणित, ज्योतिष, भूगर्भविज्ञान आदि विषयक ज्ञान प्रचुर मात्रा में है। वेद में अंकित ये विज्ञान की बातें सृष्टि के आदिकाल में ईश्वर के द्वारा मनुष्यों को जीवन जीने की कला सिखलाने के लिए दिए जाने के बाद से ही भारत में प्रचलित हैं, और विज्ञान की इस शिक्षा को संसार में शांति स्थापन, कल्याण कामना और विकास के लिए प्रयुक्त होता रहा है।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता ने सहस्त्राब्दियों से विज्ञान, गणित, खगोल, चिकित्सा, आयुर्वेद और दर्शन आदि क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया है। भारतीय मनीषियों ने अपने गहन चिंतन और अनुसंधान से न केवल अपने देश में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी विज्ञान और ज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है। वर्तमान में विश्व में शांति एवं विकास कार्यों में विज्ञान के योगदान के बारे में जानकारी देने के लिए प्रत्येक वर्ष 10 नवम्बर को विश्व विज्ञान दिवस मनाया जाता है। विश्व विज्ञान दिवस का आयोजन सर्वप्रथम वर्ष 1999 में बुडापेस्ट में अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद और यूनेस्को द्वारा संयुक्त रूप से विज्ञान पर विश्व सम्मेलन के अनुसरण में किया गया। यूनेस्को द्वारा इस दिवस की स्थापना दुनिया भर में विज्ञान के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की थी। भारत में अलग से प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तत्वावधान में मनाया जाता है। 28 फ़रवरी सन 1928 को सर चंद्रशेखर वेंकट रमन (7 नवम्बर 1888- 21 नवम्बर 1970) ने रमन प्रभाव नामक अपनी खोज की घोषणा की थी। इसी खोज के लिए उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार दिया गया था। इस खोज के स्मरण में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन किया जाता है। विज्ञान के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाता है विश्व विज्ञान दिवस