भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग

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भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग
भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग
ललित गर्ग

सुप्रीमकोर्ट द्वारा हाल ही में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में शामिल करने की मांग वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था। यह मांग बिल्कुल प्रासंगिक एवं भारत के पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने का सराहनीय प्रयास है। ऐसा करने से एक बड़ी आबादी को सस्ती एवं अचूक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा। आज जबकि देश में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी बीमारियां तेज़ी से बढ़ रही हैं, जैसे-जैसे चिकित्सा-विज्ञान का विकास हो रहा है, नयी-नयी बीमारियां एवं उनका महंगा इलाज बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इसलिये पारंपरिक चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद पर भरोसा और दुनिया में इसकी मांग, दोनों में इज़ाफ़ा हुआ है। सरकार को पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को पूरी दुनिया में ज्यादा स्वीकार्य बनाने के लिए काम करते हुए एक अभिनव स्वास्थ्य क्रांति का सू़त्रपात करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत की समृद्ध एवं शक्तिशाली परम्पराओं यानी योग, आयुर्वेद आदि को बल दे रहे हैं। वे आधुनिक चिकित्सा को सस्ता एवं जनसुलभ बनाने के लिये भी योजनाएं ला रहे हैं। इन्हीं सन्दर्भों में सुप्रीम कोर्ट में पिछले दिनों दायर इस याचिका में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को शामिल करने की मांग समयोचित एवं सूझबूझभरा प्रयास है। ऐसा करने से जहां एक बड़ी आबादी को सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिल सकेगी, वहीं पारंपरिक चिकित्सा को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग

भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे कि आयुर्वेद और योग दूसरी पद्धतियों के मुकाबले सस्ती एवं सुगम हैं। इसके लिए ज्यादा इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं पड़ती। मौजूदा स्वास्थ्य ढांचे के जरिये ही इन्हें भी लागू किया जा सकता है। इससे न सरकार पर ज्यादा बोझ आएगा और न जनता पर, बल्कि स्वास्थ्य बीमा का विस्तार होने से देश की कुल चिकित्सा लागत में कमी ही आएगी। हालांकि यह मामला ऐसा नहीं है, जिस पर सरकार को फैसला लेने में बहुत दिक्कत हो। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना या आयुष्मान भारत दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है। लगभग 55 करोड़ लोग इसके दायरे में आते हैं। लेकिन एक बड़ी आबादी अब भी इसके लाभ से छूटी हुई है। पारंपरिक चिकित्सा और भी लोगों को जोड़ सकती है। इसको तेजी से विकसित कर व्यक्ति-व्यक्ति एवं घर-घर पहुंचाया जा सकता है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को पूरी दुनिया में ज्यादा स्वीकार्य बनाने के लिए सरकार ने काम शुरु कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर यह भी देखा जा रहा है कि किस तरह से भारत का पारंपरिक ज्ञान दुनिया को सेहतमंद रखने में योगदान दे सकता है। इस दिशा में रिसर्च और इनोवेशन पर ध्यान दिया जा रहा है। याचिका में उठाई गई मांग को पूरा करके सरकार अपने काम को ही आगे बढ़ाएगी एवं दुनिया के लिये एक स्वास्थ्य उजाला करेगी।

दुनिया में आयुर्वेद एवं योग दोनों की मांग बढ़ रही है। बाजार की दृष्टि से देखें, तो इसकी ग्रोथ रेट 15 प्रतिशत से अधिक है। साल 2014 में आयुष का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 2.85 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2020 में बढ़कर 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। अमेरिका और यूरोप समेत 100 से अधिक देशों में भारत के हर्बल प्रॉडक्ट एवं आयुर्वेद इलाज पहुंच रहा है। आयुष्मान भारत के तहत इसे लाने से इसमें और तेजी आएगी। मांग बढ़ेगी तो जाहिर है कि उत्पादन भी बढ़ाना होगा। इससे इस क्षेत्र में रोजगार के मौके बनेंगे, आर्थिक प्रगति होगी। भारत के आयुर्वेद का दुनिया बाजार बनेगी। इससे निश्चित ही भारत के दुनिया की तीसरी अर्थ-व्यवस्था बनने को बल मिलेगा।

आयुर्वेद को दुनिया भर में स्वीकृत सबसे पुरानी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में से एक माना जाता है। आयुर्वेद में, पौधों, खनिजों, पशुओं से प्राप्त उत्पादों, आहार, व्यायाम, संयमित जीवनशैली और प्राकृतिक जीवन को शामिल किया जाता है। आयुर्वेद की शुरुआती अवधारणाएं अथर्ववेद में बताई गई हैं। इस पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में प्राचीन ज्ञान का अभी भी पूरी तरह से पता नहीं लगाया गया है। विभिन्न पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के समृद्ध ज्ञान के संगम से हर्बल दवा खोज प्रक्रिया में नए रास्ते खुल सकते हैं। इन प्रणालियों के सैद्धांतिक सिद्धांतों के बीच अंतर और समानता की समझ की कमी, पौधों पर आधारित दवाओं की खोज में अन्य बाधाओं के अलावा उनके अभिसरण की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है। इस समीक्षा का उद्देश्य आयुर्वेद के सदियों पुराने इतिहास और बुनियादी सिद्धांतों को सामने लाना है। इससे नवोदित विद्वानों, शोधकर्ताओं और चिकित्सकों को पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों की गहरी समझ हासिल करने, समानताओं को मजबूत करने और ऐसी औषधीय प्रणालियों की वैश्विक स्वीकृति और सामंजस्य की चुनौतियों को दूर करने में मदद मिलेगी।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति सदियों से आज तक जीवित और समृद्ध रही है। इस प्रकृति आधारित चिकित्सा के विशाल ज्ञान, मानव शरीर की संरचना और प्रकृति के साथ कार्य करने के संबंध और ब्रह्मांड के तत्व में समन्वय में कार्य करते हैं और जीवित प्राणियों को प्रभावित करते हैं, के साथ यह प्रणाली आने वाले युगों में भी समृद्ध होने की संभावनाओं को ही उजागर कर रही है। शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा अभी भी कई रास्ते तलाशे जाने बाकी हैं ताकि इस ज्यादा सुरक्षित, कारगर एवं कम खर्चीली पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को जीवंत बनाकर स्वास्थ्य की चुनौतियों को कमतर किया जा सके। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में से हर साल लगभग 58 लाख लोगों की मौत होती है। इनसे बचाव में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति कारगर साबित हो सकती है।

केंद्र ने कुछ अरसा पहले ही प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 70 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों को भी शामिल करने की मंजूरी दी थी। पारंपरिक चिकित्सा बढ़ती बुजुर्ग आबादी की जरूरतों को भी बेहतर तरीके से पूरा कर सकती है। आयुर्वेद दवाओं के साथ-साथ असाध्य बीमारियों को दूर करने में सहज, प्रकृतिमय और चिन्तामुक्त जीवन, शुद्ध वातावरण, शुद्ध हवा-पानी, सात्विक-संतुलित आहार और भरपूर मेहनत को बल दिया जाता है। महानगरों की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में आदमी मात्र मशीन बनकर रह गया है। अपने स्वास्थ्य के बारे सोचने एवं समझने का समय भी उसके पास नहीं है। विकास की तीव्र गति से उपजी अति तनावपूर्ण जीवनशैली एवं प्रतिस्पर्धाओं ने चिन्ता एवं तनावों को जन्म दिया है, जो आधुनिक बीमारियों को बढ़ाते हैं।

अनेक अनुसंधान एवं शोध में बताया गया है कि ध्यान एवं योग करने वाले व्यक्तियों की मनोविज्ञान में असाधारण रूप से परिवर्तन होता है। ऐसे व्यक्तियों में घबराहट, उत्तेजना, मानसिक तनाव, उग्रता, मनोकायिक बीमारियां, स्वार्थपरता और विकारों में कमी पाई गयी हैं तथा आत्मविश्वास, सहनशक्ति, स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोदप्रियता, एकाग्रता आदि गुणों में वृद्धि देखी गयी है। ये ध्यान-साधना एवं योग में प्रत्यक्ष लाभ अनुभूत किये गये हैं जो तरह-तरह की बीमारियों पर नियंत्रण का सशक्त माध्यम है। इसीलिये आधुनिक बीमारियों को परास्त करने के लिये इन गुणों युक्त जीवनशैली को अपनाया जाना चाहिए। सम्पूर्ण आस्था एवं विश्वास के साथ जीवनरूपी प्रयोगशाला में इसे प्रायोगिक रूप देकर जीवन में तरह-तरह की बीमारी रूपी-राक्षस को निस्तेज करके जीवन में आनन्द का अवतरण किया जा सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि शारीरिक निष्क्रियता भी बीमारियों की जड़ है। शारीरिक गतिविधि जैसे नियमित रूप से योग-व्यायाम और खेलकूद से वजन को नियंत्रित किया जा सकता है और इससे ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल में रखा जा सकता है। योग एवं आयुर्वेद में आशावादी दृष्टिकोण एवं आहार संयम को अपनाने की बात की जाती है। किसी भी बीमारी से लड़ने के लिये संकल्प जगाने एवं प्रमाद त्यागने पर बल दिया जाता है। संतुलित जीवन जीने एवं तनावों-दबावों को अपने पर हावी न होने देनेे के साथ आयुर्वेद दवाओं को उपयोग में लाया जाता है, जिससे बीमारी पर नियंत्रण करने का प्रभावी असर देखने को मिलता है। सोचो, जिन्दगी मात्र जीने के लिये नहीं, स्वस्थता एवं सरसता से जीने के लिये हैं और योग-आयुर्वेद उसका अचूक उपाय है। आयुर्वेद एवं योग रूपी जीवनशैली, इच्छाशक्ति, योग-साधना और स्वस्थ आहार आदतों से तरह-तरह की बीमारियों को रोका जा सकता है।  भारत की पारंपरिक चिकित्सा को प्रोत्साहन देने की मांग