पानी के बाद अब ऑक्सीजन की बोतल खरीदने को रहे तैयार..!

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पानी की बोतल के बाद अब तैयार रहे ऑक्सीजन की बोतल खरीदने के लिए..! महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष सुधीर श्रीवास्तव ने इस मौके पर कहा कि हमारे पास पर्यावरण से जुड़ी अनेक चुनौतियां हैं। पानी के बाद अब ऑक्सीजन की बोतल खरीदने को रहे तैयार

अशोक भाटिया


हाल ही में IQAir की छठवीं वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट में दिल्ली को एक बार फिर दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बताया गया है। दिल्ली को चौथी बार यह दर्जा मिला है। रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में बिहार का बेगुसराय दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषित है। दूसरे स्थान पर गुवाहाटी है और तीसरे स्थान पर दिल्ली है। भारत को तीसरा सबसे प्रदूषित देश बताया गया है। प्रदूषित देशों की लिस्ट में पहले पायदान पर बांग्लादेश और दूसरे पर पाकिस्तान हैं। इस कारण शंका जाहिर की जा रही है कि  कही ऐसा न हो भविष्य के दिनों में शुद्ध हवा के लिए शुद्ध  पानी की बोतल की तरह हमें ऑक्सीजन की बोतल खरीदने की जरुरत पड़ जाए। इसीलिए अब देश में प्रदूषण की बढ़ती मार को रोकने के लिए पूरे भारत में इसके स्‍तरों पर नजर रखने के लिये जरूरी नेटवर्क के विस्‍तार की बहुत ज्‍यादा जरूरत महसूस की जा रही है। इसके लिये भारी निवेश के रूप में एक बड़ी बाधा सामने है। ऐसे में कम लागत वाले स्‍वदेशी संवेदी उपकरण (सेंसर) एक नयी उम्‍मीद जगाना आवश्यक हैं। पानी के बाद अब ऑक्सीजन की बोतल खरीदने को रहे तैयार

महाराष्‍ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) द्वारा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्‍थान, कानपुर (आईआईटी-के) तथा ब्‍लूमबर्ग फिलांट्रोफीज के सहयोग से पिछले दिनों  किये गये पायलट अध्‍ययन के नतीजे यह बताते हैं कि स्‍थानीय स्‍तर के स्‍टार्टअप्‍स द्वारा तैयार किये गये कम लागत वाले संवेदी उपकरणों (सेंसर्स) ने नियामक श्रेणी (रेगुलेटरी ग्रेड) वाले निगरानी उपकरणों के मुकाबले 85-90 प्रतिशत दक्षता से काम किया। यह निष्‍कर्ष बेहद उत्‍साहजनक होने के साथ-साथ भविष्‍य में प्रदूषण निगरानी केन्‍द्रों के व्‍यापक नेटवर्क की परिकल्‍पना को नया आधार भी देते हैं।

इस अध्‍ययन के लिये चार विभिन्‍न स्‍टार्टअप्‍स ने 40 किफायती सेंसर तैयार किये। अध्‍ययन के नतीजों से पता चलता है कि तीन स्‍टार्टअप्‍स द्वारा विकसि‍त सेंसर्स में गैर अंशांकित (अनकैलिब्रेटेड) मूल्‍यों (कंटीनुअस एम्बियेंट एयर क्‍वालिटी मॉनीटरिंग स्‍टेशंस ‘सीएएक्‍यूएमएस’ द्वारा मापे गये वास्‍तविक पैमानों के लिहाज से) में विचलन (एरर) 25 प्रतिशत से कम था। कैलिब्रेशन के बाद तीन प्रकार के सेंसर्स में यह एरर घटकर 15 प्रतिशत से कम रह गया, जबकि चौथी किस्‍म के सेंसर में यह एरर 20 फीसद रहा। यह अध्‍ययन नवम्‍बर 2020 से मई 2021 के बीच किया गया। इसके लिये वर्तमान में स्‍थापित एमपीसीबी के 15 सीएएक्‍यूएमएस के साथ कम कीमत के 40 मॉनीटरिंग सेंसर्स लगाये गये थे। इनमें से मुम्‍बई में 10 तथा नवी मुम्‍बई, ठाणे, कल्‍यान, वसई-विरार, सियोन, बोरिवली, एयरपोर्ट, पवई तथा डोम्बिवली में एक-एक सेंसर लगाया गया।

रेस्पिरर लिविंग साइंसेज, एयरवेदा टेक्‍नॉलॉजीज, पर्सनल एयर क्‍वालिटी सिस्‍टम्‍स (पीएक्‍यूएस) और ओइजोम इंस्‍ट्रूमेंट्स नामक स्‍टार्टअप्‍स द्वारा विकसित सेंसर्स को एमपीसीबी के रेगुलेटरी ग्रेड वाले वायु गुणवत्ता बीएएम (बेटा अटेनुएशन मॉनीटरिंग) के साथ लगाया गया। कम कीमत वाले इन स्‍वदेशी वायु गुणवत्‍ता निगरानी सेंसर पीएम2.5 (2.5 माइक्रॉन से कम आकार वाले पार्टिकुलेट मैटर) और पीएम10 (10 माइक्रॉन से कम आकार वाले पार्टिकुलेट मैटर) का एक मिनट का डेटा उत्‍पन्‍न कर सकते हैं। सौर ऊर्जा से चलने वाले ये सेंसर डेटा ट्रां‍समिशन के लिये रियल टाइम कम्‍युनिकेशन की विशेषता से लैस हैं।

इस अध्‍ययन के निष्‍कर्षों को एक वेबिनार में पेश किया गया था । इस वेबिनार में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नगर विकास मंत्रालय, केन्‍द्रीय एवं राज्‍य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स के प्रतिनिधियों, तकनीकी विशेषज्ञों, मीडिया तथा सिविल सोसाइटी के सदस्‍यों ने भी हिस्‍सा लिया। इस वेबिनार के आयोजन का मकसद नेशनल क्‍लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) के तहत देश में वायु गुणवत्ता निगरानी केन्‍द्रों का विस्‍तार करने की योजना पर अमल के उपायों पर विचार-विमर्श करना है।

आईआईटी-के में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख और नेशनल क्‍लीन एयर प्रोग्राम के नेशनल नॉलेज नेटवर्क के राष्‍ट्रीय समन्‍वयक डॉक्‍टर एस.एन. त्रिपाठी ने कहा, “वायु गुणवत्ता निगरानी का भविष्य उच्च अस्थायी आवृत्ति पर बेहद स्‍थानीय स्‍तर का डेटा प्रदान करने के लिए रेगुलेटरी ग्रेड मॉनिटर और सेंसर के संयोजन के एक संकर  (हाइब्रिड) दृष्टिकोण में निहित है। मुंबई सेंसर प्रयोग के नतीजों से साफ जाहिर है कि देश में वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए बड़े पैमाने पर तैनात करने के लिये स्वदेशी सेंसर तकनीक तैयार है।”

उन्‍होंने महाराष्‍ट्र में कम लागत वाले सेंसर आधारित प्रदूषण निगरानी नेटवर्क के तकनीकी आकलन का जिक्र करते हुए कहा कि इस दौरान बड़े पैमाने पर डेटा एकत्र किया गया। इस दौरान सेंसर ने लॉकडाउन जैसे मुश्किल वक्‍त में भी बिना किसी खास मानवीय सहयोग के बेहतर तरीके से काम किया। इस दौरान दो स्‍टार्टअप्‍स के सेंसर के आंकड़ों में त्रुटि का प्रतिशत 15 से भी नीचे गिर गया और सेंसरों ने कैलिब्रेशन के बाद सीएएक्‍यूएमएस के साथ गहरा सह-सम्‍बन्‍ध (कोरिलेशन) दिखाया।

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष सुधीर श्रीवास्तव ने इस मौके पर कहा कि हमारे पास पर्यावरण से जुड़ी अनेक चुनौतियां हैं, जिनमें वायु प्रदूषण सबसे प्रमुख है। हममें से हर कोई रोजाना 11000 लीटर ऑक्सीजन को सांस के तौर पर लेता है। हम पानी की बोतल तो खरीद सकते हैं लेकिन ऑक्सीजन की बोतल खरीदने की कल्पना नहीं की जा सकती।

उन्‍होंने कहा कि वायु प्रदूषण की बात करें तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि समस्या का मापन कैसे किया जाए। सीपीसीबी ने नेशनल एयर मॉनिटरिंग प्रोग्राम शुरू किया है। महाराष्ट्र में हमारे लगभग 100 स्टेशन स्थापित हो चुके हैं। अगर हम स्थानीय परिप्रेक्ष्य में और ज्यादा अर्थपूर्ण तरीके से वायु की गुणवत्ता पर नजर रखने की बात करें तो हमें वायु गुणवत्ता निगरानी के संजाल को बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ाना होगा। बहुत घनी मॉनिटरिंग नेटवर्क की जरूरत होगी। इसमें वित्तीय बाधाओं का समाधान करने के लिये हमें कम लागत वाले सेंसर की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए हमें सस्ते और लगभग सटीक परिणाम देने वाले सेंसर लगाने होंगे।

इस समय वैसे  छोटे-छोटे स्टार्टअप्स ने भी वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान की दिशा में काम शुरू करते हुए कम कीमत वाले सेंसर उपलब्ध कराए हैं। जो उद्यमी किफायती सेंसर के जरिए डाटा सामने रखने की कोशिश कर रहे हैं उनके पास बहुत अच्छा डेटा हो सकता है। इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष सामने आए और वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों के सघनीकरण की दिशा में नई उम्मीद जगी है।

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के संयुक्त निदेशक डॉक्टर वी एम मोटघरे ने कहा कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 18 नॉन अटेनमेंट शहर हैं। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत जरूरी निगरानी के लिए स्टार्टअप्स द्वारा बनाए गए यह किफायती सेंसर हॉटस्पॉट टेक्नोलॉजी के लिहाज से बहुत मददगार साबित होंगे, एक कमी यह है कि यह सेंसर परंपरागत निगरानी केंद्र के बगैर एकल इकाई के रूप में काम नहीं कर सकते, इस पर बहुत साफ तौर पर विचार करने की जरूरत है। महाराष्‍ट्र में किये गये इस पायलट अध्‍ययन से वह बढ़ा हुआ अपटाइम भी जाहिर होता है जो सेंसरों के जरिये निगरानी प्रणाली को मिल सकता है। सभी चार स्टार्टअप्‍स द्वारा विकसित कम लागत वाले सेंसर का अपटाइम 95% से ज्‍यादा था।

मुंबई मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में प्रत्येक स्थान पर पीएम 2.5 संकेंद्रण नापने के लिए लगाये गये सेंसर-आधारित नेटवर्क द्वारा गणना की गई औसत में महीने दर महीने अंतर पाया गया है। उदाहरण के लिए, विले पार्ले में नवंबर में यह 80 ug/m3 था जो मई में घटकर 26 ug/m3 हो गया। कोलाबा जैसे कुछ तटीय स्थानों में भी दिसंबर के सर्दियों के महीनों में 56 ug/m3 की पीएम 2.5 संकेंद्रण के साथ उच्च प्रदूषण स्तर दर्ज किया गया। जनवरी के महीने में कल्यान में मासिक औसत सबसे अधिक 124 ug/m3 था।

इस अध्‍ययन के नतीजों ने देश में कम कीमत पर वायु गुणवत्‍ता निगरानी नेटवर्क को और विस्‍तार देने की सम्‍भावनाओं के दरवाजे खोल दिये हैं। जहां नियामक श्रेणी वाले मानीटर की लागत 20 लाख रुपये है, वहीं स्‍टार्टअप्‍स द्वारा तैयार किये गये छोटे सेंसर की कीमत करीब 60 हजार रुपये होती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानिक, अस्थायी और सांख्यिकीय रूप से PM2.5 प्रदूषण पर नजर रखने के लिए 4,000 अनवरत निगरानी केन्‍द्रों की जरूरत है। देश में इस वक्‍त 286 निरंतर नियामक ग्रेड मॉनिटर और 818 मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशन स्थित हैं।

ब्‍लूमबर्ग फिलांट्रॉफीज के क्‍लाइमेट एण्‍ड एनवॉयरमेंट प्रोग्राम की निदेशक (भारत) प्रिया शंकर ने कहा ‘वायु प्रदूषण से जनस्‍वास्‍थ्‍य, आर्थिक उत्‍पादकता तथा पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। हवा की गुणवत्ता को सुधार और उसका बेहतर ढंग से प्रबन्‍धन करने के लिये वायु प्रदूषण के स्‍तरों को मापना और उन्‍हें समझना बेहद जरूरी है। भारत में अपनी तरह के इस पायलट प्रयोग में इस्‍तेमाल की गयी नयी और अनूठी सेंसर प्रौद्योगिकी की प्रभावशीलता काफी हौसला बढ़ाने वाली है। इनमें व्‍यापक क्षमता है, और पारंपरिक तरीकों के संयोजन से यह वायु प्रदूषण से निपटने में हमारी मदद करने के लिए काफी बेहतर डेटा प्रदान करते हैं।’

उन्‍होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के 90% लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। भारत में एनसीएपी कार्यक्रम के तहत मॉनिटर की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। ये किफायती सेंसर हालांकि अभी शुरुआती दौर में हैं मगर वे कम कीमत में प्रदूषण के स्तरों के बारे में बेहतर आंकड़े उपलब्ध करा सकते हैं। छोटे सेंसरों में रेगुलेटेड केंद्रों के अनुपूरक के तौर पर काम करने की पूरी क्षमता है। इसके बावजूद  भी यदि प्रदूषण पर नियंत्रण न हो पाता  है तो एक दिन हमें बोतल बंद ऑक्सीजन खरीदने के लिए तैयार रहना होगा। पानी के बाद अब ऑक्सीजन की बोतल खरीदने को रहे तैयार