महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

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महाकुम्भ:‘शस्त्र’ और ‘शास्त्र’ का संगम हैं नागा साधु
महाकुम्भ:‘शस्त्र’ और ‘शास्त्र’ का संगम हैं नागा साधु

महाकुंभ-2025 की शुरुआत हो चुकी है और सनातन के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में उत्साह और आस्था की अलग ही छटा बिखर रही है. इस वक्त प्रयागराज भारत की आध्यात्मिक चेतना का शहर बना हुआ है, जिसका साक्षी बनने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुओं के जत्थे यहां पहुंचे हुए हैं. कुंभ मेला भारत का वो धार्मिक आयोजन है, जिसका जिक्र वेदों के श्लोकों और पुराणों की कहानियों में है. महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

नागा साधुओं को हिंदू धर्म और भारत की प्राचीन संस्कृति को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए हिंदुओं की सैन्य शक्ति माना जाता है। नागाओं को पहली बार 8वीं शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए सैन्य समूहों में संगठित किया गया था, जो भारत का आधार और अस्तित्व है.नागा साधु अपने हाथ में अस्त्र-शस्त्र लेकर क्यों चलते हैं, उनकी जीवन शैली दूसरे संतों से अलग क्यों है हर बार नागा साधु महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनते हैं और पहला शाही स्नान का अधिकार नागा साधुओं को दिया गया है. पुरुषों की तरह ही महिला भी नागा साधु बनती हैं, जिनके जीवन और उनकी तपस्या के बारे में लोग जानना चाहते हैं.

महाकुंभ में नागा साधुओं की एक अलग ही दुनिया है. नागा साधु, सनातन धर्म के प्रहरी महाकुंभ के राजाधिराज माने जाते हैं. सालों से चले आ रहे आस्था के महापर्व….महाकुंभ में नागा साधुओं का एक खास स्थान होता है. हर बार महाकुंभ में जुटने वाले नागा साधुओं की चर्चा सबसे ज्यादा होती है. इसका कारण है उनकी जीवन शैली, पहनावा और भक्ति. नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना नहीं की जा सकती है, महाकुंभ के अमृत स्नान में सबसे पहले नागा साधु डुबकी लगाते हैं. इसके लिए वो करते हैं खास श्रृंगार, जिसे नागा साधुओं का 17 श्रृंगार कहा जाता है.

शिव सी जटा…हाथ में डमरू- त्रिशूल, शरीर पर भस्म, बिना वस्त्र के अवधूत. शिव की धुन में नाचते ये नागाओं का अद्भुत संसार है….जिनके तन में शिव, मन में शिव है. साधना-अराधना में महादेव बसे हैं. नागा का अर्थ होता है खाली यानी शून्य. शून्य यानी आदमी के अस्तित्व में मोह, माया दीन दुनिया सबकुछ नगण्य. अगर कुछ है, तो वो हैं शिव और उनका सत्य. 

नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना तक नहीं की जा सकती. हर बार कुंभ में जुटने वाले नागा साधुओं की चर्चा सबसे ज्यादा होती है. इसका कारण है उनकी जीवन शैली, पहनावा और भक्ति. धर्म रक्षा के मार्ग पर चलने के दौरान नागा साधु अपने जीवन को इतना कठिन बना लेते हैं कि आम आदमी के लिए सोचना भी मुश्किल है. नागा साधु उन्हें कहा जाता है जो संसार की सभी चीजों का त्याग कर शुद्धता और साधना की मिसाल पेश करते हैं. महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

एक गज कपड़े और मुट्ठी भर भभूत में सिमटा जीवन

महाकुंभ की रहस्यगाथा में नागा संन्यासियों का खास जिक्र है. साथ ही रोचक है. उनका शिव अराधना में किया जाने वाला 17 श्रृंगार. नागाओं का पूरा जीवन एक गज  कपड़े और एक मुट्ठी भभूत के सहारे कटता है. भभूत को ये नागा अपने अराध्य भगवान शिव का अंश मानते हैं, जिसके साथ ये करते हैं 17 वां श्रृंगार. हिंदू धर्म के 16 श्रृंगारों के बारे में तो सब जानते हैं, जो सुहागन महिलाएं करती हैं. नागाओं के लिए भी श्रंगार का मतलब वही होता है, जो किसी आम महिला के लिए होता है, मगर इसका मकसद दिखावा नहीं, बल्कि उस साज-श्रंगार को अपने भीतर महसूस करना होता है. अपने ईष्टदेव शिव को प्रसन्न करना होता है. इस 17 श्रृंगार के बाद ही नागा साधु संगम में अमृत स्नान के लिए डुबकी लगाते हैं.

नागा बाबाओं के 17 श्रंगार! 

नागा साधुओं के 17 श्रृंगार हैं- भभूत, लंगोट, चंदन, पांव में चांदी या लोहे के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटना, रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में चिमटा, डमरू, कमंडल, जटाएं, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, विभूति का लेप और गले में रुद्राक्ष. नागा संन्यासियों के दर्शन इतने दुर्लभ होते हैं कि ये या तो अपनी स्थाई छावनी में रहते हैं या फिर महाकुंभ में दिखते हैं. कुंभ और सनानत की रक्षा के लिए इन नागाओं ने न जाने कितनी लड़ाइयां लड़ीं और उसमें अपनी जान न्योछावर की है. 

कुंभ के बाद कहां चले जाते हैं नागा?

नागा साधु, सनातन धर्म के प्रहरी महाकुंभ के राजाधिराज माने जाते हैं. वो तब भी इसी तरह के अवधूत थे, जैसा आज दिखते हैं. ऐसे बेलाग संन्यासियों को देख कर आम आदमी एकबारगी हैरत में पड़ जाता है. लगता है जैसे भगवान शिव के गणों का समूह साक्षात हो गया. महाकुंभ या कुंभ में सबसे पहले नागा साधु ही स्नान करते हैं, इसके बाद ही अन्य श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति होती है. महाकुंभ और कुंभ की समाप्ति के बाद सभी नागा साधु अपनी-अपनी रहस्यमयी दुनिया में लौट जाते हैं.महाकुंभ में साधु संत आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. इनमें एक भागीरथी गिरी जी नागा बाबा, जो 15 साल से एक पैर पर ही खड़े हुए हैं और तपस्या कर रहे हैं. बाबा के मुताबिक 15 साल से वह जनकल्याण के लिए यह तप कर रहे हैं. 

नागाओं की ‘रहस्यमयी’ दुनिया 

  • गृहस्थ जीवन से लेना-देना नहीं.
  • आश्रम और मंदिरों में रहते हैं.
  • हिमालय में जाकर तप करते हैं.
  • एक बार ही शाम को भोजन.
  • कभी बिस्तर पर नहीं सोते.
  • पैदल ही भ्रमण करते हैं.
  • डमरु, त्रिशूल, चिमटा रखते हैं.
  • नागा साधु कपड़े नहीं पहनते.
  • सिर्फ लंगोट ही धारण करते हैं.
  • अंतिम प्रण के बाद नग्न रहते हैं.

महाकुंभ में बनाए जाएंगे 6 हजार नागा!

महाकुंभ के अमृत स्नान से ठीक पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने ऐलान किया कि महाकुंभ में 6 हजार नागा साधु बनाए जाएंगे और दीक्षा के बाद उन्हें वन तपस्या के लिए भेजा जाएंगा. लेकि नागा साधुओं की फौज बढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ रही है. 

अखाड़ा परिषद प्रमुख का मानना है कि नागा बाबा की फ़ौज में बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है. ये सनातन और समाज के लिए काम करते है. बांग्लादेश जैसे हालात भारत मे न बने इसीलिए आवश्यक है कि नागा बाबाओ की फौज बढे. संतो में नागा बाबाओ की फौज की बढ़ोत्तरी को लेकर उत्साह है. बाबाओ का कहना है कि  नागा बाबा बनने के बाद वन में कठिन तपस्या करनी पड़ती है.नागा साधुओं का एक योद्धा रूप के रूप में जिक्र किताबों में भले ही कम मिलता हो लेकिन इतिहास गवाह है कि जब-जब धर्म को बचाने की अंतिम कोशिशें बेकार होती होती दिखी हैं, तब-तब नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए ना सिर्फ हथियार उठाए हैं. दुनिया का सबसे बड़ा मानव समागम ‘महाकुंभ’ यूपी के प्रयागराज में शुरू हो रहा है. इस बार के कुंभ में 40 करोड़ से ज्यादा लोगों के जुटने की संभावना है,जिसके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. श्रद्धालुओं के साथ-साथ कुंभ में लाखों की संख्या में साधु-संत पहुंचते हैं और उनके लिए भी खास तैयारी कीकी जाती है. लेकिन हर बार कुंभ में जुटने वाले नागा साधु कौतुहल का विषय बने रहते हैं. नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना तक नहीं की जा सकती.

कुंभ में नागा साधुओं की धमक महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

कुंभ के दौरान विभिन्न अखाड़ों में नागा साधुओं का अमृत स्नान होता है. यहां महिला नागा साधु भगवा वस्त्र पहनकर रहती हैं, वहीं नागा साध्वी कभी सार्वजनिक रूप से निवस्त्र नहीं रहती हैं. नागा साधु जैसे लंबे बाल रखते हैं, वहीं नागा साध्वी मुंडन कराकर रहती हैं और पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करती है. देश-विदेश से आई हुई साध्वियों का जमावड़ा भी कुंभ में लगा हुआ है.  कुंभ में महिला साध्वी महंत दिव्या गिरी ने बताया कि कुंभ में नागा साध्वियों की परंपरा रही है. पहले नागा साध्वी जूना अखाड़े का हिस्सा होती थीं लेकिन अब एक अलग शाखा बनाई गई है. उन्होंने बताया कि नागा साध्वियों के नियम भी साधुओं की तरह कठोर होते हैं. हर बार की तरह इस बार भी सभी नागा अमृत स्नान में हिस्सा लेंगे, जो कुंभ में आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है.

नागा साधुओं के बिना कुंभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. महाकुंभ के आगाज होने के साथ ही करोड़ों की संख्या में अघोरी और नागा साधु आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं. पुरुषों के समान ही महिला नागा साधू भी होती हैं.

महिला नागा साधु का जीवन

नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होता है, लेकिन महिला नागा साधु का जीवन सबसे अलग होता है. महिला नागा साधु गृहस्थ जीवन से दूर हो चुकी होती हैं. इनके दिन की शुरुआत और अंत दोनों पूजा-पाठ के साथ ही होती है. महिला नागा साधु का जीवन कई तरह की कठिनाइयों से भरा होता है. महिला नागा साधुओं को दुनिया से कोई मतलब नहीं होता है.

महिला नागा साधु कौन बनाता है?

महिला नागा साधु बनने के बाद सभी साधु-साध्वियां उन्हें माता कहती हैं. माई बाड़ा में महिला नागा साधु होती हैं, जिसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा कहा जाता है. साधु-संतों में नागा एक पदवी होती है. साधुओं में वैष्णव, शैव और उदासीन संप्रदाय हैं. इन तीनों संप्रदायों के अखाड़े नागा साधु बनाते हैं.

महिला नागा साधु कैसे बनती हैं…?

पुरुष नागा साधु नग्न रह सकते हैं, लेकिन महिला नागा साधु को नग्न रहने की इजाजत नहीं होती है. पुरुष नागा साधुओं में वस्त्रधारी और दिगंबर (निर्वस्त्र) दो तरह के नागा साधु होते हैं. सभी महिला नागा साधु वस्त्रधारी होती हैं. महिला नागा साधुओं को अपने माथे पर तिलक लगाना जरूरी होता है, लेकिन महिला नागा साधु गेरुए रंग का सिर्फ एक कपड़ा पहनती हैं, जो सिला हुआ नहीं होता है. महिला नागा साधु के इस वस्त्र को गंती कहा जाता है.

नागा साधु बनने की प्रक्रिया क्या है…?

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है और इनका जीवन भी बेहद कठिन होता है. नागा साधु बनने कि लिए महिलाओं को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता है. नागा साधु या संन्यासनी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. नागा साधु बनने लिए गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह महिला नागा साधु बनने के लिए योग्य हैं और खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर चुकी हैं. इसके बाद गुरु ही नागा साधु बनने की स्वीकृति देते हैं.

महिला नागा साधु बनने से पहले कराना पड़ता है मुंडन

नागा साधु बनने से पहले महिला की बीते जीवन को देखकर यह पता किया जाता है कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और वह नागा साधु बनने के बाद कठिन साधना कर सकती है या नहीं. नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है.

महिला नागा साधु क्या करती हैं…?

मुंडन कराने के बाद महिला को नदी में स्नान कराया जाता है और फिर महिला नागा साधु पूरा दिन भगवान का जप करती हैं. पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधु भी शिवजी की पूजा करती हैं. सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना करती हैं. दोपहर में भोजन के बाद फिर वह शिवजी का जाप करती हैं.

महिला नागा साधु बनने में कितना समय लगता है…? महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

संन्यासी बनने के बाद महिला नागा साधु बनने के अंतिम चरण तक पहुंचने में लगभग 10 साल तक का समय लग सकता है.

नागा साधु क्या खाते हैं…?

नागा साधु खाने में कंदमूल फल, जड़ी-बूटी, फल और कई तरह की पत्तियां खाते हैं. नागा साधु के समान ही महिला नागा साधु भी यही चीजें खाती है.

महिला नागा साधु कहां रहती हैं..?

कुंभ मेले के दौरान नागा साधुओं के समान ही महिला नागा साधु भी शाही स्नान करती हैं. महिला नागा साधु के रहने के लिए अलग-अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है. हालांकि, पुरुष नागा साधु के स्नान करने के बाद वह नदी में स्नान करने के लिए जाती हैं. अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतानी या नागिन कहा जाता है.

अफगानों से भी नागा साधुओं ने लिया लोहा

सन् 1751 में प्रयाग के संगम तट पर कुंभ पर्व का आयोजन हुआ था और इसमें हजारों नागा साधु एकत्र हुए थे. उन दिनों अवध क्षेत्र में अफगानों ने उत्पात मचा रखा था. प्रयाग भी इन अफगानों की आक्रामकता से पीड़ित था.

जब उल्टे पांव भागी अब्दाली की सेना

नागा साधुओं का युद्ध अफगान आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली से भी हुआ था. सन् 1756-57 में मथुरा में नागा साधुओं का इससे सीधा सामना हुआ था. अब्दाली ने मथुरा में कत्लेआम मचा रखा था. इस कत्लेआम का शिकार जनता के साथ-साथ साधु-संत भी हो रहे थे. यह समाचार पाकर नागा साधुओं का एक जत्था मथुरा पहुंचा और अपनी वीरता के बल पर अब्दाली की सेना को मथुरा से खदेड़ दिया. इस भीषण युद्ध में भी लगभग दो हजार नागा साधु बलिदान हुए थे. इस युद्ध के दौरान ही अब्दाली की सेना में हैजा फैल गया. सैनिकों ने माना कि मथुरा में संतों पर जो हमले हुए इससे उन्हें श्राप लगा और वे बीमार पड़ गए. 

पानीपत के युद्ध में नागा साधुओं ने संम्हाला था मोर्चा

इसी तरह सन् 1761 में पानीपत में हुए मराठा-अफगान युद्ध में भी नागा साधुओं की वीरता का वर्णन मिलता है. यह वह दौर था, जब मराठे कमजोर पड़ने लगे थे और अफगान हावी होने लगे थे. तब महंत पुष्पेंद्र गिरि के नेतृत्व में नागा साधुओं के जत्थे ने मोर्चा संभाला और अफगानों को उल्टे पांव भागना पड़ा. ऐसे भी तथ्य मिलते हैं कि महंत पुष्पेंद्र गिरि ने आगे चलकर स्थानीय शासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 

औरंगजेब की सेना के भी हो गए थे दांत खट्टे

अब बात करते हैं औरंगजेब की. नागा साधुओं और औरंगजेब की सेना के बीच काशी (वाराणसी) में हुए युद्ध भी इतिहास में काफी चर्चित रहा है. संवत 1721 में जब औरंगजेब की सेना ने ज्ञानव्यापी पर हमला किया तो पहले से ही तैयार लगभग पंद्रह हजार नागा साधुओं ने तलवारों, भाल और फरसों से मुगल सेना का सामना किया. दिनभर चले इस युद्ध में नागा साधुओं ने अपने युद्ध कौशल के समक्ष औरंगजेब की सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. इस युद्ध में लगभग एक हजार नागा साधुओं ने अपना बलिदान दिया था. महाकुम्भ:शस्त्र-शास्त्र और सनातन का संगम हैं नागा साधु

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. निष्पक्ष दस्तक़ प्रकाशन समूह इसकी पुष्टि नहीं करता है.)