
सेहत के लिये उपयोगी आयुर्वेदिक नुस्खा, आइये जानते हैं डॉ0 रोहित गुप्ता आज क्या बताते हैं…
सर्वाइकल CERVICAL
यह रोग गर्दन के आसपास के मेरुदंड की हड्डियों की बढ़ोतरी और सर्वाइकल वटेब्रे के बीच के इंटरवटेबल डिस्क में कैल्शियम का डी-जनरेशन,बहि:क्षेपन और अपने स्थान से सरकने की वजह से होता है। लगातार कम्प्यूटर या लैपटॉप पर बैठे रहना, बेसिक या मोबाइल फोन पर देर तक बात करना और फास्ट फूड व जंक फ़ूड का सेवन, कुछ प्रमुख कारण है। प्रौढ़ और वृद्धों में मेरुदंड में डी-जेनरेटिव बदलाव साधारण क्रिया है और इसके कोई लक्षण नहीं उभरते।नस पर दबाव पड़ने से लक्षण दिखते हैं। सामान्यत: 5,6,7, के बीच की डिस्क प्रभावित होती है।
लक्षन- इसके लक्षण तभी दिखाई देते हैं,जब सर्वाइकल नस में दबाव या खिंचाव होता है,तब ये समस्याएं भी हो सकती है ।
- गर्दन में अकड़न, जिससे सिर हिलाने में तकलीफ होती है।
- सिरदर्द विशेष कर सिर के पीछे भाग में
- कंधों, बाजुओं और हाथ में जलन, झनझनाहट या असंवेदनशीलता।
- मितली,उल्टी,या चक्कर आना।
- गर्दन में दर्द जो बाजू और कन्धों तक जाता है।
- कंधे, बांह,व हाथ की मांसपेशियों में कमजोरी तथा क्षति।
- निचले अंगों में कमजोरी, मूत्राशय और मलद्वार पर नियन्त्रण न रहना।
कारण-
एलोपैथी में दर्द निवारक दवा कुछ देर राहत देती हैं पर रोग वैसा ही बना रहता है।
- लम्बे समय तक बैठे रहने या खड़े- खड़े काम करने से।
- स्कूटर आदि वाहन गलत मुद्रा में चलाना
- आराम तलब और व्यायाम रहित दिनचर्या।
- संतुलित भोजन का सेवन न करना।
- मोटे तकिए पर सोना, कुछ लोग दो दो तकिया लगा कर सोते हैं,ये रोग उत्पन्न करते हैं।
- सामने की ओर अधिक देर तक झुक कर रहना।
- फोम के तकिये व गद्दे रोग के बड़े कारण है।
- मानसिक तनाव और ज्यादा भागदौड़ भी रोग को बढ़ाता है।
प्राकृतिक चिकित्सा–
इसके कई उपचार उपलब्ध है।इन उपचारों का उद्देश्य होता है।
1.नसों पर पड़ने वाले दबाव के लक्षण और दर्द कम करना।
2. स्थायी मेरुदंड और नस की जड़ पर होने वाले नुक़सान को रोकना।
3.आगे के डी-जनरेशन को रोकना।
- चिकित्सक की देखरेख में गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करने के व्यायाम से लाभ लेना ।
- इस बिमारी का एकमात्र इलाज योगासन तथा एक्यूप्रेशर व भरपूर आराम हैं।
गर्दन की सूक्ष्म क्रियाएं– एनिमा जरुर लें। तनाव को कम करने के लिए शवासन, योगनिद्रा, ऊंकार जाप,ये सभी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। प्राणायाम अनुलोम-विलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम
आहार- संतुलित पौष्टिक भोजन लें। जैसे– हरी सब्जिया,फलो में तरबूज, पपीता, खरबूजा, आदि। भोजन में रागी का उपयोग करें। मेवों में बादाम, अंजीर, किशमिश आदि भिगोकर लें, भोजन समय पर लें। खाना चिन्ता मुक्त होकर, अच्छी तरह से चबा चबाकर खाये ..