
पानीदार रहेंगे तो इज्जतदार होंगे। जल संसाधन स्थायी समिति के सदस्य एवं जालौन-गरौठा-भोगनीपुर के सांसद नारायण दास अहिरवार ने कहा कि बुंदेलखंड में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। क्या जल संकट का सामना करेगा भारत
कुमार कृष्णन
भारत इस समय गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है, नदियाँ सूखने की कगार पर हैं, और तालाबों व जल स्रोतों पर अतिक्रमण बढ़ रहा है। बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र, जहाँ जल संकट विकराल रूप ले चुका है, वहाँ पानी की एक-एक बूंद जीवन का आधार बन चुकी है। इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए, बुंदेलखंड की जल सहेलियों ने देश में पहली बार जल संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक पदयात्रा का आगाज किया है । रविवार को रामराजा सरकार के पावन स्थल बेतवा नदी के कंचना घाट से जल सहेलियों की जल यात्रा का भव्य शुभारंभ हुआ। इस यात्रा का उद्देश्य बुंदेलखंड में जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और समुदाय को जल संकट के प्रति जागरूक करना है। निवाड़ी जिले के जिलाधिकारी लोकेश जांगिड़ ने हरी झंडी दिखाकर यात्रा को रवाना किया और जल सहेलियों को सफल यात्रा की शुभकामनाएं दीं।
जल संरक्षण आंदोलन के प्रख्यात कार्यकर्ता जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा, आज हमारी जल सहेलियां रामराजा सरकार के प्रांगण से निकल रही हैं और 300 किलोमीटर की जल यात्रा के दौरान गांव के बच्चों और बुजुर्गों को यह समझाते हुए आगे बढ़ेंगी कि यदि हम पानीदार रहेंगे, तो इज्जतदार होंगे और यदि पानीदार होंगे, तो मालदार रहेंगे। उन्होंने राजस्थान के जल संकट का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले वहां पानी की किल्लत के कारण लोग गांव से पलायन कर गए थे, लेकिन अब जल संरक्षण के प्रयासों से गांव के युवा वापस लौटने लगे हैं।
जल संसाधन स्थायी समिति के सदस्य एवं जालौन-गरौठा-भोगनीपुर के सांसद नारायण दास अहिरवार ने कहा कि बुंदेलखंड में जल संकट गंभीर रूप ले चुका है। पहले यहां की नदियां बारहमासी प्रवाहित होती थीं, झरने गिरते थे, लेकिन अब अधिकांश जल स्रोत सूख चुके हैं। खेतों की सिंचाई के लिए किसान वर्षा और नहरों पर निर्भर हैं, लेकिन अनियमित बारिश के कारण कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। इन चुनौतियों के बावजूद नीली साड़ी पहने जल सहेलियां बुंदेलखंड को पानीदार बनाने के मिशन में जुटी हुई हैं।
परमार्थ समाज सेवी संस्थान के सचिव डॉ. संजय सिंह ने इस ऐतिहासिक क्षण पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जल सहेलियों की यह 18 दिवसीय यात्रा ओरछा के कंचना घाट से शुरू होकर छतरपुर के जटाशंकर धाम में संपन्न होगी। इस यात्रा के दौरान जल सहेलियां गांव-गांव जाकर जल संरक्षण का संदेश देंगी और लोगों को जल प्रबंधन के महत्व को समझाएंगी। हिमालयन बेसिन रिवर की अध्यक्ष डॉ. इंदिरा खुराना ने जल सहेलियों के प्रयासों की सराहना करते हुए पहली जल सहेली सिरकुंवर के कार्य की विशेष रूप से प्रशंसा की और जल सहेलियों का हौसला बढ़ाया। नाबार्ड के जनरल मैनेजर कमर जावेद ने कहा कि इस यात्रा के माध्यम से जल सहेलियां गांव-गांव में भूजल के महत्व को उजागर करेंगी और जल संरक्षण एवं प्रबंधन की जानकारी देंगी, जिससे यह यात्रा बुंदेलखंड के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी।
वाटर फॉर पीपल्स के निदेशक विश्वदीप घोष ने कहा कि जल सहेलियां न केवल पानी के महत्व को समझा रही हैं, बल्कि जल प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों को भी गांव-गांव तक पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह यात्रा क्षेत्र में जल संरक्षण को एक मजबूत आंदोलन का रूप देगी।इस भव्य आयोजन का संचालन समाजसेवी डॉ. मुहम्मद नईम ने किया। इस अवसर पर नगर परिषद ओरछा के अध्यक्ष शिशुपाल, उपाध्यक्ष अनिल यादव, वरिष्ठ समाजसेवी रामचंद्र शुक्ला, पत्रकार अनिल शर्मा सहित हजारों जल सहेलियां उपस्थित रहीं।
समाज की समृद्धि और जीवन की गुणवत्ता के लिए भी एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है जल संकट। अनुमानों के मुताबिक 2021 में सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,486 क्यूबिक मीटर थी जो 2031 तक और गिरकर 1,367 क्यूबिक मीटर होने वाली है ये आंकड़ा डरावना है जो पानी की उपलब्धता के मामले में वैश्विक औसत 5,500 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति से काफी कम है। यह गंभीर जल संकट की तरफ संकेत देता है।नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत में पानी की मांग इसकी आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। तेजी से बढ़ते आर्थिक विकास, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और जीवनशैली में बदलाव के कारण पानी की मांग विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ेगी। भारत में 70 फीसदी जल का उपयोग कृषि क्षेत्र में होता है, लेकिन हमारी जल उपयोग दक्षता अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में बहुत कम (लगभग 30-35प्रतिशत) है। यदि जल उपयोग दक्षता में तेजी से सुधार किया जाए और जल बचाया जाए, तो यह पानी घरेलू क्षेत्रों में उपलब्ध कराया जा सकेगा। जल संकट का सामना करेगा भारत..!

बुंदेलखंड में नदियों एवं जल स्रोतों की स्थिति
बुंदेलखंड उत्तर और मध्य भारत के एक हिस्से के रूप में जाना जाता है जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 7-7 जिलों से मिलकर बना है। बुन्देलखण्ड पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल की उपलब्धता अत्यधिक कम है, और पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं। जो नदियाँ आज से दो दशक पहले 8 से 10 महीने प्रवाहमान रहती थी और लोगों की जीविकोपार्जन का साधन हुआ करती थी वही सूखी नदियाँ आज इस बात की गवाही देती हैं कि मानव द्वारा सुनियोजित खनन से इन नदियों का प्राकृतिक प्रवाह और जीवन चक्र पूरी तरह से प्रभावित हुआ। बुन्देलखण्ड की दुर्दशा का सबसे प्रमुख कारण इस इलाके की जल संरचनाओं का जीर्णशीर्ण, छोटी नदियों का सूखना, तालाबों का अतिक्रमित होना एवं वन क्षेत्र का घटना है , जिससे जल संकट बढ़ा है। मानवीय लालच के कारण छोटी नदियाँ मृतप्राय हो चुकी हैं या होने के कगार पर हैं। गोपाल सिंह बताते है -“जबसे बड़ी-बड़ी मोटरें आई हैं , लोगों ने बड़े पैमाने पर नदियों से पानी निकालकर सिंचाई करना शुरू कर दिया है। लोगों ने जब पानी का लालच इतना बढ़ा लिया कि वो किलोमीटर से दूर नदी के पानी को ले जाते हैं और बड़ी मात्रा में सिंचाई करते हैं।” प्राकृतिक स्त्रोतों के अंधाधुंध दोहन से नदियाँ सूखने लगी हैं। जब छोटी नदियाँ मरती हैं तो बड़ी नदियों के अस्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है , उनका पारिस्थितिक प्रवाह भी कम होने लगता है जो आने वाले समय में गंभीर जल संकट की ओर आगाह कर रहा है।
नदी किनारे बसे किसान, कुम्हार, मछुआरे, ढीमर जैसे लोग इन नदियों से अपनी आजीविका चलाते थे लेकिन अब नदी के जल स्तर में कमी आने के कारण उनकी स्थिति भी बिगड़ गई है। इससे न केवल जल संकट बढ़ा है, बल्कि पलायन भी एक गंभीर समस्या बन गई है। इसके अलावा बुंदेलखंड क्षेत्र में चंदेल कालीन तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिनका निर्माण 9वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था। चंदेल राजाओं ने जल संरक्षण को प्राथमिकता दी थी और जल प्रबंधन के तहत कई हजारों तालाबों का निर्माण किया था। इन तालाबों का निर्माण विशेष रूप से जल संरक्षण के उद्देश्य से किया गया था। तालाबों के चारों ओर पहाड़, मिट्टी के टीले या प्राकृतिक चट्टानों का सहारा लिया गया था, जिससे पानी तीन दिशाओं से संरक्षित हो सके। लेकिन समय के साथ, जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और औद्योगिकीकरण हुआ, इन तालाबों की स्थिति बिगड़ गई। अब, पानी की प्रबंधन की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। कई तालाबों में गाद और सिल्ट जमा हो गया है, जिससे जल संग्रहण की क्षमता घट गई है। इसके अतिरिक्त, तालाबों के आसपास अतिक्रमण होने से जल धारा अवरुद्ध हो गई है । आज के समय में बुंदेलखंड में 2000 से अधिक चंदेल कालीन तालाब हैं, लेकिन इनमें से केवल 500 तालाब ही उपयोगी हैं। इन तालाबों की संरचनाएँ कमजोर हो गई हैं, जिससे जल संरक्षण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। इसके साथ ही, तालाबों का क्षेत्र भी कम हो रहा है, क्योंकि वे अतिक्रमण का शिकार हो रहे हैं।
ऐसे में गांवों में रहने वाली महिलाएं आगे आई हैं। उन्होंने परमार्थ समाज सेवी संस्थान की पहल पर एक समूह बनाया है, जिसका नाम है जल सहेली समूह।बुंदेलखंड के “जलपुरुष” के रूप में प्रसिद्ध संजय सिंह बताते हैं कि समूह के नाम के आधार पर समूह से जुड़ने वाली महिलाओं को जल सहेली कहते हैं, जो अपने गाँव के क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं। जल सहेलियां गाँव के लोगों को पानी से जुड़े हर प्रकार की समस्या के समाधान बताती हैं। इसमें पानी का संचयन करना,जल संरक्षण,कुओं को गहरा करना,जल संरचनाओं का पुनर्द्धार करना ,छोटे बाँध बनाना,हैण्ड पंप को सुधारना, सरकार के साथ समुदाय की भागीदारी करवाना, प्रशासनिक मिलना और ज्ञापन देना तक शामिल हैं।जल सहेलियों के द्वारा किये जा रहे प्रयासों को प्रधामंत्री जी ने अपनी मन की बात में सराहा है। बुंदेलखंड में इन जल सहेलियों 100 से अधिक गाँवों को पानीदार बनाने का काम किया है इसके साथ ही 100 से अधिक चंदेलकालीन तालाबों को सरकार के सहयोग से जीर्णोद्धार एवं 6 छोटी नदियों के पुनर्जीवन के प्रयास किये हैं। क्या जल संकट का सामना करेगा भारत