
श्री कृष्ण को “योगेश्वर” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “योगों का स्वामी”। श्री कृष्ण को योग का जनक माना जाता है। श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध के मैदान में योग के महत्व और विभिन्न प्रकार के योगों के बारे में बताते हैं। भगवद गीता में इन तीन प्रकार के योगों का वर्णन किया है, जो योग के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। श्री कृष्ण ने जीवन के सभी पहलुओं में संयम बरतने और संतुलित जीवनशैली बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया है। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार सिर्फ शरीर का नियमन ही योग नहीं,बल्कि आत्मा के साक्षात्कार के लिए किया गया प्रत्येक प्रयास योग की श्रेणी में आता है। इसी कारण श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है। वे जनक हैं योग के, धाराएं बहती हैं उनसे योग की, बस जिसको जो आयाम स्पर्श करता है, वह उस आयाम पर अग्रसर हो जाता है। आप जिस योग को योग मानते है, वह पतंजलि योग है। लेकिन उनकी यात्रा भीतरी है, किंतु कृष्ण योगेश्वर हैं। वे दृष्टि देते हैं,स्वतंत्रता देते है,प्रेम और करुणा से आपको भरते है। वे जिससे आपको भरते हैं,वे वह स्वयं ही हैं,इसीलिए कृष्ण का योग धारा बन जाता है,आपसे आपको मिलता है और एक दिन केवल वह ही बचते हैं,आप उनमें मिल जाते हैं। महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है। उन्होंने योग दर्शन का मूल ग्रंथ ‘योग सूत्र’ लिखा था। पतंजलि ने योग को आम लोगों तक पहुंचाने का काम किया। योग का स्वामी कौन
ब्रह्मांड पांच तत्वों से मिलकर बना है। वायु,जल,अग्नि,आकाश और पृथ्वी। मानव जन्म जो हमें मिला है,उसे हम सार्थक बनाएं क्योंकि इतना सुंदर जीवन हमने प्राप्त किया है। पांचों तत्वों में से किसी भी तत्व की कमी या अधिकता जीवन को असंतुलित कर देती है और यह प्रभाव विनाश की ओर ले जाता है। कई प्रकार के विकार और रोग शरीर में उत्पन्न हो सकते हैं जिसे हम योग के माध्यम से दूर कर सकते हैं। 72 हजार नाड़ियों को संतुलित करने के लिए योग को विज्ञान से जोड़ा गया है। योग से केवल शारीरिक व्यायाम ही नहीं बल्कि इससे भी ऊपर है। मन के विकारों को दूर करने का योग महत्वपूर्ण साधन है। योग वेदों से लिया गया है। प्राचीन ऋषियों-मुनियों द्वारा योग अपनाया गया है। योग स्वयं के द्वारा ज्ञान प्राप्त करना है। यह मात्र प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। हमारे अन्दर की नकारात्मकता को सकारात्मकता में योग से परिवर्तित कर सकते हैं। हम योग को जाने पहचाने और उसका प्रयोग अपने जीवन में कर अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। योग करने से काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह सब हमसे दूर चले जाते हैं। जब हम अच्छी सोच का विकास करें तो हमें पवित्र,निर्मल,मन की प्राप्ति होगी।
भारतीय धर्म और दर्शन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। आध्यात्मिक उन्नति या शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये योग की आवश्यकता एवं महत्त्व को सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक संप्रदायों द्वारा एकमत से स्वीकार किया गया है। जैन और बौद्ध दर्शनों में भी योग के महत्त्व को स्वीकृति प्राप्त है। आधुनिक युग में योग के महत्त्व में और अधिक अभिवृद्धि हुई है। मनुष्यों में बढ़ती व्यस्तता एवं मन की व्याकुलता इसके प्रमुख कारणों में से हैं। आधुनिक मनुष्य को आज योग की अत्यधिक आवश्यकता हो गई है। मन और शरीर अत्यधिक तनाव,प्रदूषण एवं भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण रोगग्रस्त होते जा रहे हैं। व्यक्ति के अंतर्मुखी और बहिर्मुखी स्थिति में असंतुलन आ गया है।
आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में जहाँ शारीरिक और मानसिक तनाव आम बात है। शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक सुख व आध्यात्मिक प्रगति के लिए योग महत्वपूर्ण है। योग से बीमारियों को दूरकर खुद को स्वस्थ रख सकते हैं। योग से नैतिकता का विकास होता है और शाश्वत मूल्यों को विकसित किया जा सकता है। योग एक ऐसा मार्गदर्शक है जो हमें स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने की राह दिखाता है। यह प्राचीन ज्ञान का एक अमूल्य खजाना है जो हमें शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है। जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है। योग के इसी महत्त्व को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा योग की बढ़ती स्वीकारोक्ति एवं पश्चात् को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस तरह की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत लोगों तथा समाजों एवं संस्कृतियों के मध्य सांस्कृतिक एवं सभ्यागत वार्ता बनाए रखने में मदद करती है और इस स्वीकृति से पूरे विश्व को लाभ पहुँचता है। योग एक ऐसा शक्तिशाली उपकरण है जो हमें स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने में मदद कर सकता है। हमें अपने जीवन में योग को शामिल करना चाहिए और इसके लाभों का अनुभव करना चाहिए। यदि शरीर और मन को स्वस्थ रखना है तो हमें योग की शरण में जाना होगा। योग से आत्म शुद्धि होती है। योग का स्वामी कौन