कमलेश पांडेय-वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
प्रयागराज। महाकुंभ के हृदयविदारक हादसे के लिए जिम्मेदार कौन? प्रयागराज महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या ब्रह्ममुहूर्त स्नान से ठीक पहले संगम नोज पर जुटी बेकाबू भीड़ की आपाधापी से जो भगदड़ मची और हृदय विदारक घटना घटी, उससे सनातन धर्म पुनः कलंकित हुआ है। इस अप्रत्याशित हादसे से एक बार फिर हमारा ‘धर्म अनुशासन’ सवालों के घेरे में आ चुका है। साथ ही साथ भीड़ प्रबंधन सम्बन्धी प्रशासनिक तैयारियां भी, जिसको लेकर लाख प्रशासनिक दावे होते रहे हैं, जबकि एकाध घटनाएं ही उसकी तैयारियों की पूरी पोल खोल देती हैं। महाकुंभ के हृदयविदारक हादसे का जिम्मेदार कौन..?
इसलिए सुलगता सवाल है कि प्रयागराज महाकुंभ में भीड़ प्रबंधन की विफलता से हुए हृदयविदारक हादसे के लिए जवाबदेह कौन है? जिम्मेदार कौन है? आखिर ब्रेक के बाद जहां-तहां होते रहने वाली ऐसी रूह कंपा देने वाली घटनाओं को रोकने में हमारा प्रशासन अबतक नाकाम क्यों है और वह कबतक सक्षम हो पाएगा? या फिर कभी नहीं हो पाएगा, क्योंकि ऐसे मामलों में उसका ट्रैक रिकॉर्ड हमेशा खराब प्रतीत हुआ है।
फिलवक्त योगी सरकार ने प्रयागराज महाकुंभ हादसे की न्यायिक जांच करवाने के आदेश दे दिए हैं, ताकि यह पता चल सके कि इतनी बड़ी प्रशासनिक चूक कैसे हुई और उसके लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार है? क्योंकि इतने महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन में पहले हुईं अग्निकांड की घटनाएं और फिर अनियंत्रित भीड़ से मची भगदड़ के चलते वहां की पूरी प्रशासनिक तैयारी भी एक बार पुनः सवालों के घेरे में आ चुकी है। कहना न होगा कि वहां जो कुछ भी हुआ, वह भीड़ प्रबंधन सम्बन्धी प्रशासनिक विवेक के अकाल का परिचायक तो है ही, साथ ही साथ उसके त्वरित निर्णय लेने की क्षमता की अक्षमता को भी उजागर कर चुका है। जबकि वहां सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन और हेलीकॉप्टर तक से निगहबानी हो रही है, ताकि त्वरित निर्णय लेते हुए स्थिति पर काबू पाया जा सके।
वहीं, सवाल यह भी है कि इस हादसे के बाद आवागमन व वीआईपी व्यवस्था सम्बन्धी जो नीतिगत बदलाव किए गए, वह पहले ही क्यों नहीं किए गए? चूंकि महाकुंभ सम्बन्धी तैयारियां महीनों पहले से चल रही थीं और करोड़ों लोगों के जुटने के पूर्वानुमान भी लगाए जा चुके थे। फिर भी वहां हुई प्रशासनिक तैयारी तो नाकाफी लगी ही, साथ ही साथ श्रद्धालुओं के लिए कष्ट प्रदायक भी महसूस हुई। क्योंकि उनमें बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और विकलांग लोगों की सहूलियत का कोई ख्याल नहीं रखा गया था। इसलिए हताहतों व घायलों की सूची में उनकी संख्या ज्यादा है।
स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, इस घटना में जहां लगभग 30 श्रद्धालुओं को ‘अमरत्व’ यानी देवलोक प्राप्त हो गया, वहीं लगभग 100 लोग कुचल जाने के कारण घायल हो गए, जिनका इलाज स्थानीय अस्पताल में किया जा रहा है। वहीं, मृतकों के शवों को पाने में भी परिजनों को काफी तकलीफें उठानी पड़ी हैं। जबकि इस भगदड़ में बिछुड़े हुए परिजनों की जो व्यथा-कथा दिखाई सुनाई पड़ी, वह भी विचलित करने वाली है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दुःखद घटना ने जहां यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हृदय को द्रवित कर दिया, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भावुक नजर आए। हालांकि, योगी सरकार ने पीड़ितों के दु:खों को कम करने के लिए कतिपय राहत उपाय भी घोषित किये हैं, जिसके मुताबिक मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये प्रदान किये जायेंगे और घायलों को समुचित इलाज प्रदान किया जाएगा। इससे पीड़ित परिवारों को कुछ राहत भी मिली है।
हालांकि, इस पूरे महाआयोजन की रिपोर्टिंग करने वहां पहुंचे पत्रकारों ने भी यदि श्रद्धालुओं की आवागमन सम्बन्धी बैरिकेटिंग, संगम नोज पर ठहरने और स्नान स्थल की कमी तथा रहन-सहन सम्बन्धी कमियों को पहले ही उजागर कर दिया होता तो प्रशासन को भी संभलने का मौका मिल जाता। लेकिन इस विषय को नजरअंदाज करना लोगों पर भारी पड़ गया। इस नजरिए से प्रशासनिक खुफिया तंत्र को भी आप विफल मान सकते हैं।
जानकारों के मुताबिक, वहां मौजूद गड़बड़ी लगभग सबने जरूर देखी-सुनी होगी, लेकिन किसी ने भी उन कमियों को गंभीरता से नहीं लिया। क्योंकि यदि समय पर वहां व्याप्त अव्यवस्था की रिपोर्टिंग हुई होती तो महाकुंभ हादसे की इतनी बड़ी हृदयविदारक घटना नहीं घटती। चश्मदीद लोगों के मुताबिक, वहां समय पर कोई भी काम पूरा नहीं किया गया था। यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को फटकार भी लगाई थी और काम जल्द पूरा करने का आदेश दिया था। लेकिन अपने देश के प्रशासन की जो गैरजिम्मेदार और उत्तरदायित्व विहीन शैली रही है, उससे महाकुंभ की तैयारियां भी अछूती नहीं बचीं।
लिहाजा, इस अप्रत्याशित घटना से पूरे विश्व में भारत को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है, जबकि इस वृहत आयोजन की प्रारंभिक सफलता को लेकर उसकी तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। लोगों के मुताबिक, जो कमियां पहले बताई जानी चाहिए थी, वह नहीं बताई गईं। जैसे-
पहला, जब से महाकुम्भ की शुरुआत हुई तबसे श्रद्धालुओं को 10-15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ रहा था, जिससे बच्चे, बुजुर्गों और महिलाओं की परेशानी देखते ही बनती थी। इतना दूर चलने के दौरान उन पर गर्म कपड़ों व अन्य जरूरी सामानों का बोझ भी होता था।
दूसरा, वीआईपी विजिट के चक्कर में अधिकतर पूल और मार्ग बंद रखे जाते थे, जिससे आमलोगों को आवागमन में काफी तकलीफें हो रही थीं।
तीसरा, आमलोगों के लिए टॉयलेट, पीने योग्य पानी, जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उचित संख्या में उपलब्ध नहीं है।
चतुर्थ, स्थानीय रेलवे जंक्शन, बस स्टैंड से मेला क्षेत्र में जाने के लिए भीषण ट्रैफिक और व्याप्त अव्यवस्था से भी आमलोगों को काफी परेशानी होती है।
पंचम, वहां आम लोगों के लिए ठहरने की कोई माकूल व्यवस्था नहीं की गई है, और जो कुछ व्यवस्थाएं वहां की गई हैं, वो काफी महंगी हैं। जबकि सस्ते होटल या सस्ती व्यवस्था काफी दूर है। जबकि लोग-बाग एक रात संगम घाट पर किसी तरह से बिताना चाहते हैं।
इन बातों के मद्देनजर यह समझा जा सकता है कि प्रयागराज महाकुंभ हादसा एक अनहोनी थी, जो घट गई।
इस दौरान वहां जो कुछ भी हुआ वह अत्यंत ही दुखद है। क्योंकि प्रयागराज कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से असमय ही कुछ लोग काल-कवलित हो गए, जो दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। लेकिन महाकुंभ जैसे अपार जनभागीदारी वाले आयोजन को जिस सुव्यवस्थित तरीके से अब तक आयोजित किया गया, उसे किसी अनहोनी से कमतर नहीं करार दिया जा सकता। क्योंकि पहले अगलगी और फिर भगदड़ के मामले को स्थानीय प्रशासन ने जिस तीव्रता से नियंत्रित कर स्थिति को सामान्य बनाया, वह काबिलेगौर है और काबिलेतारीफ भी।
महाकुंभ यात्रा संपादित कर चुके लोगों ने बताया कि हमलोग दूरदराज से सपरिवार महाकुंभ गए, ट्रेन-बस-कार आदि से गए, वहां ठहरे और स्नान संपन्न कर लौट आए। वे सभी लोग उत्साह से परिपूर्ण थे, क्योंकि करोड़ों लोगों की आवाजाही के बावजूद कुम्भ नगरी की सफाई व अन्य व्यवस्था चकित करती थी। उनके लिए सबसे उल्लेखनीय प्रशासन व पुलिस का सहयोग था, जो किसी भी छोटे-बड़े सहयोग के लिए तत्पर दिखते थे।
यूँ तो इतने बड़े आयोजन में, दुनिया भर में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जहाँ अनियंत्रित या अज्ञात भय से अव्यवस्था मची। लगभग उसी तरह से यहाँ भी भगदड़ मचने की वजह से कुछ लोगों की मौत हुई, जिसे प्रशासनिक चूक या अनहोनी दोनों के अंतर्गत रखा जा सकता है, यह जांच का विषय है। बावजूद इसके, इस महाकुंभ में घटित आपदा में राजनीतिक या सामाजिक अवसर न खोजे जाएं। क्योंकि यह कुछ असामाजिक तत्वों का षड्यंत्र भी हो सकता है। इस नजरिए से कुछ मीडिया रिपोर्ट्स भी आई है और जांच भी हो रही है। यदि ऐसा कुछ हुआ है तो वह मानव सभ्यता के लिए शर्मिंदगी भरा कदम है।
कुछ लोगों की नजर में यदि प्रयागराज महाकुंभ में खामियां ही खामियां हैं तो फिर सवाल यह भी है कि अब तक उनके अनुसार लाख असुविधा के बावजूद भक्ति, श्रद्धा और पुण्य की त्रिवेणी में करोडों श्रद्धालुओं ने कैसे डुबकी लगाई? क्योंकि श्रद्धालु तो अपने कष्टों की कभी शिकायत नहीं करते। जबकि, कुछ शिकायत सदैव पर्यटकों को ही होती है। देखा जाए तो परेशानी तो घर से निकलते ही शुरू हो जाती है, परंतु वैसी परेशानियों को यदि हम लेकर चले तो जीना मुश्किल हो जाएगा।
प्राप्त रिपोर्टों के मुताबिक, संगम तट पर जिस नोज की ओर जाने की मनाही थी, उसी ओर भीड़ बढ़ी। हालांकि वहां बैरिकेटिंग भी पर्याप्त था। फिर भी जिस तरफ स्नानार्थी सोये हुए थे, उसी दिशा में भीड़ बढ़ी और बैरिकेटिंग टूटने की वजह से भीड़ भरभराती हुई सोये हुए स्नानार्थियों पर ही गिर पड़ी और उन्हें कुचलते हुए आगे बढ़ गई। लिहाजा यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार की परिस्थितियों को पर्याप्त जागरुकता व सतर्कता से ही बचाया जा सकता है।
इसके साथ यह भी कहा जा सकता है कि मीडिया को भी सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही स्थितियों में अतिवादी रिपोर्टिंग से बचना चाहिए। क्योंकि इस तरह के विशाल आयोजन में इस प्रकार की अनहोनी घटनाएं होने की संभावनायें हमेशा से बनी रहती हैं। जबकि सकारात्मक नजरिए से यह भी कहा जा सकता है कि प्रशासनिक राहत व बचाव दल त्वरित गति से सक्रिय हुआ और उपलब्ध हुआ। एम्बुलेंस की सक्रियता देखते ही बनी। प्रशासनिक सहानुभूति भी सराहनीय दिखी।
जानकारों के मुताबिक, भारत जैसे देश में एक बार जब किसी जगह पर भीड़ जमा होती है और उसमें धर्म का तड़का लग जाता है, तब वहां अव्यवस्था जरूर मचती है। हालांकि, महाकुंभ में मची भगदड़ के बाद अब स्थिति पूरी तरह से सामान्य हो गई है। पवित्र संगम तट पर हुई इस भगदड़ की घटना के बाद सुरक्षा और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोके जाने के लिए प्रशासन ने सख्त कदम उठाया है। जिसके तहत पूरे मेला स्थल को नो-व्हीकल जोन घोषित कर दिया है।
इसके अलावा, अब किसी भी वाहन को अंदर जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके साथ ही कई बड़े बदलाव किए गए हैं। सभी वीवीआईपी पास 4 फरवरी तक रद्द कर दिए हैं। यह फैसला मौनी अमावस्या से पूर्व रात्रि में हुई भगदड़ के कारण लिया गया है। इतना ही नहीं, तमाम रास्तों को भी वन वे कर दिया गया है। कहने का तातपर्य यह कि अब श्रद्धालु एक ही रास्ते से आएंगे और दूसरे रास्ते से ही बाहर जाएंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूरे मेला क्षेत्र को नो-व्हीकल जोन घोषित कर दिया गया है। लिहाजा, आगामी 4 फरवरी 2025 तक सभी श्रद्धालुओं को पैदल ही चलकर गंगा तट और संगम क्षेत्र तक जाना होगा। वहीं, आसपास के जिलों से आने वाली बसों को रद्द कर दिया गया है। बताया गया है कि मेला प्रशासन के आदेश के बाद इन बसों चलाया जा सकता है।
मेले में ड्रोन के साथ ही हेलिकॉप्टर से निगरानी की जा रही है। इसमें संगम के साथ पूरे मेला परिसर पर नजर रखी गई है। इसमें कैमरे से लोगों को देखा जा रहा है और लाउड स्पीकर के जरिए दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं। वहीं, श्रद्धालुओं को अफवाहों से बचने को कहा गया है। खास बात यह है कि वीवीआईपी पास और वाहन पास की एंट्री पास सब कैंसिल कर दिए गए हैं। समझा जाता है कि आगामी 4 फरवरी के बाद नए आदेश जारी हो सकते हैं।
वहीं, शहर के अंदर भी एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और नगर निगम के वाहन चल सकेंगे। जबकि क्राउड मैनेजमेंट के लिए अतिरिक्त अफसरों की तैनाती कर दी गई है। जहां-जहां श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा होगी, वहां से उनकी सुरक्षित निकासी कराई जा रही है। वहीं, बसों और ट्रेनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को वापस भेजा जाएगा। इस नजरिए से 360 स्पेशल ट्रेनों को तमाम स्टेशनों से चलाया जा रहा है।
बता दें कि 13 जनवरी से शुरू हुए महाकुंभ में अब तक तकरीबन 19 करोड़ श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगा चुके हैं। यह महाकुंभ 144 सालों में विशेष रूप से महत्व रखता है, और मौनी अमावस्या के दिन इसे लेकर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई, जिससे भगदड़ मच गई। वहीं, मची भगदड़ के बाद अब महाकुंभ के इस खास आयोजन को लेकर प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था और ज्यादा कड़ी कर दी है और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सभी आवश्यक इंतजाम किए हैं। बता दें कि इस भगदड़ के बावजूद मौनी अमावस्या पर करीब 7.64 करोड़ लोगों ने त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाई, जो एक नया कीर्तिमान बन चुका है। महाकुंभ के हृदयविदारक हादसे का जिम्मेदार कौन..?