मंडल आयोग ने पाया कि अन्य पिछड़ा वर्ग भले ही आर्थिक तौर पर मज़बूत रहा हो, लेकिन सरकारी नौकरियों में उसकी भागीदारी बहुत ही कम है।इस वर्ग के तहत कुल 3743 जातियां चिन्हित की गईं।यह भी पाया गया कि केंद्रीय सरकारी नौकरियों में ओबीसी 12.55 फीसदी हैं। केंद्र सरकार की और क्लास 1 (प्रशासनिक) यानी आईएएस-आईपीएस जैसी नौकरियों में इनकी भागीदारी सिर्फ़ 4.83 फीसदी ही है। अब अगला कदम यह जानना था कि इनकी कुल जनसंख्या में कितनी हिस्सेदारी है। 1931 के बाद जातिगत गणना नहीं हुई थी, लिहाज़ा इन आंकड़ों को अनुमान ही माना गया। सटीक नहीं, हालांकि मोटे तौर पर इससे अलग-अलग जातियों की हिस्सेदारी का अंदाज़ा लग जाता है।
मण्डल कमीशन के हिसाब से आंकड़े में सवर्ण-16.1 फीसदी,हिन्दू ओबीसी-43.7 फीसदी,अनुसूचित जाति-16.6 फीसदी, अनुसूचित जनजाति – 8.6 फीसदी और ग़ैर-हिंदू अल्पसंख्यक – 17.6 फीसदी हैं।सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात है कि सिर्फ़ मंडल आयोग ही हमारे पास वह स्रोत है जिसके आधार पर यह तय किया गया कि हिंदू ओबीसी समूची आबादी में 43.7 फीसदी की हिस्सेदारी रखते हैं।मंडल आयोग के चेयरमैन बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने रिपोर्ट में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का सुझाव दिया।इसकी वजह समझाते हुए उन्होंने लिखा,”सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने की जंग को पिछड़ी जातियों के ज़हन में जीतना ज़रूरी है। भारत में सरकारी नौकरी पाना सम्मान की बात है।ओबीसी वर्ग की नौकरियों में भागीदारी बढ़ने से उन्हें यकीन होगा कि वे सरकार में भागीदार हैं।पिछड़ी जाति का व्यक्ति अगर कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक बनता है, तो ज़ाहिर तौर पर उसके परिवार के अलावा किसी और को लाभ नहीं होगा, पर वह जिस समाज से आता है, उन लोगों में गर्व की भावना आएगी, उनका सिर ऊंचा होगा कि उन्हीं में से कोई व्यक्ति ‘सत्ता के गलियारों’ में है।”