ज़हर भरी आजा़दी…..

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सुव्रत दे    

  

जा़दी,

कैसी आज़ादी ?

या ज़हर भरी एक मुठ्ठी बरवादी ?

खून से सने खंजरों को

अपने भाई की पीठ से 

निकाल लेने के बाद

बहन , बेटी या बहू की

चिता की लकडियों को 

कमजोर कंधे में लादने के बाद

खून-पसीने को मिलों, 

खेतों,खलिहानों में 

बंद कर बेचने के बाद

नौकरी के पीछे भूखा, नंगा, प्यासा 

टूटी चप्पल और भी घिसाने के बाद;

घोटालों में देश को

तरबतर करने के बाद ;

घिनौने खिलोने 

बच्चों के हाथ थमा देने के बाद ;

भ्रष्टाचार की फाईलों में

सच्चाई, इमानदारी ,इंन्सानियत आदि 

न जाने और किन किन का गला दबाकर

दबा देने के बाद 

और क्या बचा इस आज़ादी में ?

यानी एक मुठ्ठी बरवादी में ?

(यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है ।)