आजा़दी,
कैसी आज़ादी ?
या ज़हर भरी एक मुठ्ठी बरवादी ?
खून से सने खंजरों को
अपने भाई की पीठ से
निकाल लेने के बाद
बहन , बेटी या बहू की
चिता की लकडियों को
कमजोर कंधे में लादने के बाद
खून-पसीने को मिलों,
खेतों,खलिहानों में
बंद कर बेचने के बाद
नौकरी के पीछे भूखा, नंगा, प्यासा
टूटी चप्पल और भी घिसाने के बाद;
घोटालों में देश को
तरबतर करने के बाद ;
घिनौने खिलोने
बच्चों के हाथ थमा देने के बाद ;
भ्रष्टाचार की फाईलों में
सच्चाई, इमानदारी ,इंन्सानियत आदि
न जाने और किन किन का गला दबाकर
दबा देने के बाद
और क्या बचा इस आज़ादी में ?
यानी एक मुठ्ठी बरवादी में ?
(यह रचना मौलिक एवं अप्रकाशित है ।)