वैश्विक जलचक्र असंतुलन से जुड़ी चुनौतियां की गंभीरता

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वैश्विक जलचक्र असंतुलन से जुड़ी चुनौतियां की गंभीरता
वैश्विक जलचक्र असंतुलन से जुड़ी चुनौतियां की गंभीरता

ललित गर्ग

असंतुलित जलचक्र के कारण समूची दुनिया के समुख पानी एक बड़ी गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण समस्या बन रही है। पृथ्वी के चारों ओर पानी के घूमने की प्रणाली को जल-चक्र कहा जाता है, जीवन को संचालित करने के लिए जिसका सुचारु होना आवश्यक होता है। पूरी दुनिया में पीने के पानी की भारी समस्या है और उसके अधिक विकराल होने की संभावनाओं की चेतावनी लम्बे समय से दिये जाने के बावजूद हम नहीं चेत रहे हैं। पानी के दुरुपयोग, जल संसाधनों के कुप्रबंधन, बदलते जलवायु, भूमि के बढ़ते उपयोग और वन क्षेत्रों में कटौती ने समूचे जल-चक्र को असंतुलित कर दिया है। कहते हैं कि पानी की असल अहमियत वही शख्स समझता है, जो तपते रेगिस्तान में एक बूंद पानी की खोज के लिए मीलों भटका हो। वह शख्स पानी की कीमत क्या जाने, जो नदी के किनारे रहता है। भारत के कई राज्यों में पीने के पानी की भारी समस्या है और उसके अधिक विकराल होने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है। नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में अगले ही साल 21 शहरों में भूजल खत्म होने की आशंका व्यक्त करते हुए एक बार फिर चेताया है। वैश्विक जलचक्र असंतुलन से जुड़ी चुनौतियां की गंभीरता

नीति आयोग की रिपोर्ट बड़े खतरे का संकेत दे रही है। अब जलचक्र के असंतुलित होने का असर भारत पर भी पड़ना निश्चित है। इसलिये भारत में जल-समस्या जीवन-संकट बन सकती है। भारत में पुराने जमाने में तालाब, बावड़ी और नलकूप थे, तो आजादी के बाद बांध और नहरें बनाईं। वक्त के बदलने के साथ-साथ सोच भी बदली, अति भोगवाद, सुविधावाद बढ़ा तो प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति उपेक्षा भी घनघोर होती गयी। संयम का सूत्र छूट गया। आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि वह प्रकृति में निहित संदेश को हम सुन नहीं पा रहे हैं। जलसंकट पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। समय-समय पर प्रकृति चेतावनियां देती है पर आधुनिकता के कोलाहल में हम बहरा गये हैं। आज देश का कोना-कोना जल समस्या से ग्रस्त है। वर्ष 2018 में कर्नाटक ने अभूतपूर्व बाढ़ देखी थी, किंतु अब 2019 में उसके 176 में से 156 तालुके सूखाग्रस्त घोषित हो चुके हैं। महाराष्ट्र, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ भयंकर जल समस्या का सामना कर रहे हैं।

विश्लेषकों द्वारा तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका पानी के लिए व्यक्त की जाती रही है। निकट भविष्य में पानी का प्रयोग अस्त्र रूप में भी संभावित है। कुछ समय पहले पाकिस्तान से तनाव हो जाने पर भारत द्वारा सिंधु नदी के प्रवाह को रोक कर पानी की उपलब्धता बाधित करने की चेतावनी दी गई थी जबकि देश में ही पानी की अनुपलब्धता की समस्या पूरे राष्ट्र में पिछले 10-15 साल से चल रही है। इसके मूल में नियमित रूप से वर्षा का न होना तथा सूखा पड़ते रहना तथा सरकार की गलत नीतियां भी हैं। पानी की उपलब्धता की स्थिति को देखते हुए यह लगने लगा है कि विश्वयुद्ध हो या न हो, पर हर गली-मोहल्ले में, शहर -शहर में,गांव-गांव में पानी के लिए 10-15 वर्ष में ही युद्ध होंगे और भाईचारे के साथ रह रहे पड़ोसी पानी के लिए आपस में लड़ेंगे।

भारत सहित दुनिया के अधिकांश देश जल-समस्या से पीड़ित है। पृथ्वी पर तीन अरब लोग पहले से जल संकट का सामना कर रहे हैं। अब जल-चक्र असंतुलन से न जाने और कितने लोग संकट में आ जाएंगे। बड़ी चिंता यह भी कि इससे दुनिया की जीडीपी को आठ से पंद्रह प्रतिशत तक नुकसान हो जाएगा। दरअसल, प्रकृति की उपेक्षा के साथ-साथ सिर्फ अपना लाभ देखने की दुष्प्रवृत्ति ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। जल की बर्बादी, वन क्षेत्रों का खात्मा,पेड़-पौधों का लगातार काटना,ओजोन परत को नुकसान,ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु संकट और इन सब के कारण अंततः जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर ही आती आंच के रूप में इसके दुष्परिणाम सामने है। एक तथ्य यह भी है कि इन दुष्परिणामों की चिंता तो खूब होती रही है लेकिन सरकारें एवं आमजन इस समस्या के प्रति उतना गंभीर नहीं है जितनी अपेक्षा है। देश के जो क्षेत्र जल संकट की भयावह स्थिति का सामना कर रहे हैं, उन क्षेत्रों में एक घड़े पानी की कीमत व्यक्ति या मनुष्य के जीवन से अधिक है। वहां गर्मी में तो महिलाएं प्रातःकाल से ही जल की व्यवस्था में जुट जाती हैं।

बदलते जलवायु परिवर्तन का आलम यह है कि देश में जहां सूखा पड़ता था, अब वहां बाढ़ आ रही है। चरम जलवायु घटनाओं का स्वरूप बदल रहा है। जल चक्र पर भी इसका असर पड़ रहा है। बीते समय में चरम घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इन्हीं घटनाओं से होने वाले नुकसान को कम करने और इसका मुकाबला करने के लिए मोदी सरकार ने मिशन मौसम शुरू किया है। ‘मिशन मौसम’ के तहत सरकार टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके मौसम की भविष्यवाणी को बेहतर बनाने का काम करेगी। हर साल चक्रवात, बाढ़, सूखा और हीटवेव जैसे जलवायु परिवर्तन से उपजी आपदाओं के चलते करीब 10,000 लोगों की मौत हो जाती है। ‘मिशन मौसम’ की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी से इनमें से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

सरकार ने ‘मिशन मौसम’ के लिए 2,000 करोड़ रुपए का बजट रखा है। इतना ही नहीं, ये सरकार को आपदा के आने से पहले तैयार होने और उसके बाद जनजीवन को जल्द से जल्द सुचारु करने में भी मदद करेगा। मिशन “मौसम प्रबंधन“ तकनीकों का पता लगाएगा और इसमें कृत्रिम रूप से बादलों को विकसित करने के लिए एक प्रयोगशाला बनाना, रडार की संख्या में 150 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करना और नए उपग्रह, सुपर कंप्यूटर और बहुत कुछ जोड़ना शामिल है। भारतीय मौसम वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनके पास इतनी विशेषज्ञता होगी कि वे न केवल बारिश को बढ़ा सकेंगे बल्कि कुछ क्षेत्रों में ओलों और बिजली के साथ-साथ इसे भी रोक सकेंगे।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जलचक्र के असंतुलित होने से उत्पन्न समस्याओं को लेकर भी आवाज बुलंद होती रही हैं पर जैसे हालात बनते जा रहे हैं इन चिंताओं का असर ढाक के तीन पात जैसा ही है। इससे भी गंभीर बात यह कि जल-चक्र बिगड़ने से दुनिया का आधा खाद्य उत्पादन ही खतरे में आ गया है। तब उन देशों का क्या होगा, जो पहले से खाद्यान्न संकट को झेल रहे हैं। जाहिर है, संकट में शामिल देशों की सूची बढ़ती ही जाएगी। कहना न होगा कि अब भी नहीं संभले और विकास का वैकल्पिक रास्ता नहीं खोजा, तो भयावह स्थिति को कोई नहीं रोक सकता। जलचक्र के असंतुलन की स्थिति का आकलन कोरी कल्पना पर आधारित नहीं है। विशेषज्ञों के समूह ‘ग्लोबल कमीशन ऑन द इकोनॉमिक्स ऑफ वॉटर’ ने तथ्यों और परिस्थितियों के गहन वैज्ञानिक अनुसंधानों और विश्लेषणों के माध्यम से भयावह हालात की ओर आगाह किया है। हालात चिंताजनक इसलिए हुए हैं क्योंकि सभी संसाधनों के क्षरण की गति बेतहाशा बढ़ गई है। समस्या न केवल वैश्विक है बल्कि एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, इसलिए वैश्विक स्तर के प्रयासों से ही जल-चक्र के असंतुलन से उत्पन्न परिस्थितियों के समाधान की राह तलाशनी होगी।

नीति आयोग के एक ताजा सर्वे के अनुसार भारत में 60 करोड़ आबादी भीषण जल संकट का सामना कर रही है। अपर्याप्त और प्रदूषित जल के उपभोग से भारत में हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराए गए विवरण के अनुसार भारत में दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर जिस प्रकार पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं, उससे लगता है कि 2030 तक भारत के 21 महानगरों का जल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और वहां पानी अन्य शहरों से लाकर उपलब्ध कराना होगा। जल से जुड़ी चुनौतियां एवं जलचक्र के असंतुलित होने की स्थितियों को स्वीकार कर हम भारतीयों को संकल्पित होना होगा इन चुनौतियों एवं समस्याओं से जूझने के लिये। वैश्विक जलचक्र असंतुलन से जुड़ी चुनौतियां की गंभीरता