डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’
अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल। बूढा पीपल है कहाँ, कहाँ गई चौपाल॥ बदल गया देहात…
रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात। नस्लें शहरी हो गई, बदल गया देहात॥
जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात।मेड़ करे ना खेत से, आपस में अब बात॥
चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल। अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल॥
शहरी होती जिंदगी, बदल रहा है गाँव। धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव॥
गलियाँ सभी उदास हैं, पनघट हैं सब मौन। शहर गए उस गाँव को, वापस लाये कौन॥
बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव। उलझ रहे हर आंगना, फूट-कलह के पाँव॥
पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार। लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार॥
खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश। पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वह देश॥
लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव। नहीं रही थी अब जहाँ, बूढ़ी पीपल छाँव॥ बदल गया देहात…
— तितली है खामोश (दोहा संग्रह)