अजीत कुमार सिंह
भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व चौधरी चरण सिंह जी का जन्मदिन किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसे किसान दिवस के रूप में देश भर में याद किया जाता है।आज़ादी के बाद सबसे व्यापक और प्रगतिशील भूमि सुधार कार्यक्रम जमींदारी उन्मूलन कार्यक्रम रहा है। जिसने ज़मीनों का मालिकाना हक किसानों को दिया आज जब लगभग महीने भर से कड़कती ठंड में दिल्ली की सीमा पर किसान धरने पर हैं। और 30 किसान ठंड से दिवंगत हो चुके हैं। 1978 की ऐतिहासिक किसान रैली के नायक रहे चौधरी चरण सिंह की याद आना स्वाभाविक है। सभी विश्लेषक एवं राजनीति के जानकार संख्या बल के लिहाज से 1978 की उस रैली को आजाद भारत की सबसे बड़ी रैली बताते हैं बोट क्लब से लेकर इंडिया गेट के आगे नेशनल स्टेडियम के पार तक भीड़ ही भीड़ दिखती थी।
मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल से चौधरी चरण सिंह व राज नारायण का निष्कासन हो चुका था। चौधरी चरण सिंह किसान हितों को लेकर निरंतर चिंतित राजनेता के रूप में देशव्यापी ख्याति प्राप्त कर चुके थे। ग्रामीण उपेक्षा से उपजी बदहाली, गांव से शहर की ओर बढ़ता पलायन, गांव एवं शहर के बीच बढ़ती आर्थिक-सामाजिक विषमता, किसानों को उनके उत्पाद का उचित दाम नहीं मिलना आदि प्रश्नों पर वह पंडित नेहरू के कार्यकाल से ही मुखर विरोध दर्ज कराते रहे। जेडीयू नेता केसी त्यागी के अनुसार…कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन नागपुर में आयोजित हुआ। जिसमें पार्टी की ओर से पंडित नेहरू ने प्रस्ताव किया कि भारत में भी सहकारी खेती को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए । उत्तर प्रदेश के प्रमुख मंत्री होते हुए चौधरी चरण सिंह ने प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के राजस्व मंत्री के रूप में जमींदारी उन्मूलन लागू कर वह काफी वाहवाही लूट चुके थे। किसान दिवस पर चौधरी चरण सिंह जी का स्मरण…
चौधरी चरण सिंह ने बिंदुवार अधिकारिक प्रस्ताव का विरोध प्रारंभ कर दिया वह भारतीय समाज की मानसिकता एवं कृषि भूमि के प्रति किसान के व्यक्तिगत लगाव पर धाराप्रवाह बोलते रहे। अधिवेशन में उपस्थित कार्यकर्ता करतल ध्वनि से उनका स्वागत करते रहे उनके भाषण की समाप्ति के बाद यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया। जबकि उस समय पंडित नेहरू कांग्रेस के पर्याय और पार्टी के वैचारिक सिद्धांतकार भी माने जाते थे। मंडी व्यवस्था के स्वरूप को लेकर भी चरण सिंह की राय स्पष्ट थी और किस प्रकार बिचौलिए मनमाने तरीके से किसान की फसल का दाम ओने-पौने दर पर तय करते हैं। वह इसे ज्यादा पारदर्शी एवं जवाबदेह बनाने के पक्षधर थे इसी समृद्ध वैचारिकता के कारण “बोट क्लब” की वह रैली ऐतिहासिक बन गई थी। अपने सभी आलोचकों को उन्होंने अपने व्यापक जनसमर्थन से निरुत्तर कर दिया था।
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई पर कोई असुविधाजनक टिप्पणी किए बिना उन्होंने गांव, कृषि, बढ़ती असमानता और भ्रष्टाचार पर अपने भाषण को केंद्रित किया इस शक्ति का प्रदर्शन उनके लिए कई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दे गया। इसी भिन्न दृष्टिकोण ने उन्हें और अधिक प्रभावी एवं उपयोगी साबित किया जनता पार्टी ने उन्हें उप प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी अपने पहले ही बजट में उन्होंने किसानों के लिए नाबार्ड जैसे संगठन की स्थापना की जो आज भी कृषि हितों के संरक्षण की जिम्मेदारी में संलग्न है।
चौधरी चरण सिंह ने अपने जीवन का एक-एक पल कृषि सुधार और कृषक उत्थान के लिए ही जीया भूमि सुधार एवं जमींदारी उन्मूलन कानून बनाकर उन्होंने ऐसा साहसी कार्य किया।जिसकी सराहना देश में ही नहीं, विदेशों तक की गई थी। गरीब किसानों को जमींदारों के शोषण से मुक्ति दिलाकर उन्हें भूमिधर बनाने के इस क्रांतिकारी कदम से उनकी ख्याति देश भर में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक फैल गई थी। उनके जीवन पर लिखी गई देशभक्त मोर्चा प्रकाशन की पुस्तक परंतप में उनके द्वारा किए गए भूमि सुधारों की सभी जानकारियां विस्तार से दी गई हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार कानून बनाकर श्रेष्ठतम क्रांति का श्रीगणेश किया जमींदारी प्रथा समाप्त हुई। शोषण से मुक्त हुए किसान भूमिधर बन गए वे 1951 में सूचना एवं न्याय मंत्री बने और तीन महीने बाद ही कृषि मंत्रालय भी उनके पास आ गया। उधर मिटती हुई सामंतशाही ने जमींदारवाद बचाने के लिए पटवारियों की शरण ली फिर से किसानों की जमीन को धोखे से जमींदारों को दिया जाने लगा। चौधरी चरण सिंह ने उन्हें कड़ी चेतावनी दी, तो तिलमिलाहट में हजारों पटवारियों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दिया। उन्हें विश्वास था कि सरकार को उनके सामने घुटने टेकने पड़ेंगे, लेकिन चौधरी साहब के दृढ़ निश्चय ने उनका साहस तोड़ दिया। उन्होंने सभी त्याग पत्र स्वीकार कर उनके स्थान पर लेखपालों की भर्ती कर दी।
पटवारी शब्द ही राजस्वतंत्र से तिरोहित हो गया। इसके बाद 1954 में योजना आयोग ने निर्देश दिया कि जिन जमींदारों के पास खुद काश्त के लिए जमीन नहीं है। उनको अपने आसामियों से 30 से 60 फीसदी भूमि लेने का अधिकार मान लिया जाए। चौधरी साहब के हस्तक्षेप से यह सुझाव यूपी में नहीं माना गया। लेकिन अन्य प्रदेशों में इसकी आड़ में गरीब किसानों से भूमि छीन ली गई। इसके बाद 1956 में चौधरी चरण सिंह की प्रेरणा से ही जमींदारी उन्मूलन एक्ट में यह संशोधन किया गया कि कोई भी वह किसान भूमि से वंचित नहीं किया जाए। जिसका किसी भी रूप में जमीन पर कब्जा हो उन्होंने सहकारी कृषि एवं जमींदारी उन्मूलन पर पुस्तकें भी लिखीं।जिनकी सराहना दुनिया भर में की गई। सरकार को कृषि सुधार लागू करने के लिये किसान संगठनों, कृषि अर्थ विशेषज्ञों से और देश की कृषि आर्थिकी की समझ रखने वाले लोगों से बात कर के ही कोई एजेंडा तय करना चाहिए। आखिर सरकार जब इंडस्ट्री ओरिएंटेड या इंडस्ट्री फ्रेंडली बजट बनाती है और एसोचैम, फिक्की और अन्य बड़े उद्योगपतियों से बात करती है और उनकी समस्याओं और सुझावों पर भी ध्यान देती है तब हम कृषि फ्रेंडली या खेती ओरिएंटेड बजट क्यों नहीं बना सकते हैं?
पहले रैलियां बोट क्लब पर होती थीं फिर वे जंतर मंतर पर ठेल दी गयीं। बाद में रामलीला मैदान में वे होने लगीं अब दिल्ली किसानों, जनता के लिये एक वर्जित क्षेत्र बना दिया गया। किसानों को दिल्ली सीमा पर ही अपनी बात सत्ता को सुनाने के लिये लाखों की संख्या में इस घोर सर्दी में महीने भर से बैठना पड़ रहा है। आज का सरकारी रवैया यह दिखाता है कि, लोकमत से चुनी सरकार भी ठस,अहंकारी और अलोकतांत्रिक हो सकती है। सरकार को चाहिए कि, वह अब किसानों से बातचीत कर के इस समस्या का सार्थक समाधान निकाले। आज 23 दिसंबर चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण और किसान दिवस ज़िंदाबाद…. किसान दिवस पर चौधरी चरण सिंह जी का स्मरण…
(चित्र उस ऐतिहासिक दिल्ली की रैली का जिसको चौधरी चरण सिंह जी संबोधित कर रहे हैं)