दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा

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दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा
दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा

दस दिन में बदल दिया राजस्थान भाजपा का चेहरा। इसमें वसुंधरा राजे की भी सहमति। राजेंद्र राठौड़ का त्रिगुट बुलडोजर वाला बयान बहुत महत्व रखता है ।राजे बन सकती हैं चुनाव अभियान समिति की अध्यक्ष, सतीश पूनिया का महत्व बढ़ा। दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा

एस0 पी0 मित्तल

भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने 23 मार्च को चित्तौड़ के सांसद सीपी जोशी को राजस्थान भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया और 2 अप्रैल को विधायक दल की बैठक बुलाकर राजेंद्र राठौड़ को विधायक दल का नेता चुना लिया। राठौड़ अब विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता होंगे। किसी भी राजनीतिक दल में प्रदेश स्तर पर संगठन का मुखिया और विधायक दल का नेता ही चेहरा होता है। यानी भाजपा ने मात्र 10 दिन में राजस्थान में संगठन का चेहरा बदल दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी का चेहरा बदलने में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की भी सहमति रही है। सीपी जोशी ने जब प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाला तो राजे ने अपना वीडियो संदेश देकर शुभकामनाएं दी और जब 2 अप्रैल को राठौड़ को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया, तब इस बैठक में एक विधायक के तौर पर वसुंधरा राजे भी उपस्थित रही। नेता चुनने के बाद राठौड़ का सबसे पहले स्वागत राजे ने ही किया। अब तक यह माना जा रहा था कि आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजे स्वयं प्रदेश अध्यक्ष या विधायक दल का नेता राजे बनना चाहती हैं। दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा

चूंकि गत दो बार के चुनावों में भी वसुंधरा राजे अध्यक्ष और प्रतिपक्ष नेता बनी, इसलिए उनके समर्थक चाहते थे कि राजे को भी अगले चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया जाए। लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में भाजपा का चेहरा तो बदल दिया, लेकिन वसुंधरा राजे की सहमति से यह बात अलग है कि राजे के समर्थकों की भावनाओं के अनुरूप राजे को न तो प्रदेश अध्यक्ष और न विधायक दल का नेता बनाया गया। इन दोनों महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति में जिस प्रकार राजे की सहमति ली गई वह राजस्थान भाजपा की बदलती तस्वीर का उदाहरण है। सीपी जोशी जब अध्यक्ष बने तो स्पष्ट रूप से कहा कि कोई भी कार्यकर्ता उनके लिए जिंदाबाद के नारे न लगाएं, क्योंकि अध्यक्ष का पद सिर्फ एक दायित्व का पद है जो किसी भी कार्यकर्ता को मिल सकता है। इसी प्रकार विधायक दल का नेता बनने के बाद राठौड़ ने स्पष्ट कहा कि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं है। सब जानते हैं कि भाजपा राजस्थान में अगला विधानसभा का चुनाव किसी व्यक्ति विशेष के चेहरे पर नहीं लड़ेगी। इस बार उन्हीं कार्यकर्ताओं को प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी दी है जिन्होंने अपने चेहरे पर कमल का फूल चिपका रखा है।

पूनिया का महत्व बढ़ा


राजस्थान भाजपा में चेहरा बदलने की प्रक्रिया पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया का राजनीतिक महत्व बढ़ा है। साढ़े तीन वर्ष पहले जब भाजपा के प्रदेश महामंत्री के पद से पदोन्नत कर पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तब उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि सतीश पूनिया 2023 के चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। लेकिन पूनिया ने अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान जो मिलन सरिता और संगठन को मजबूत करने में भूमिका निभाई उसी का परिणाम है कि उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया है। कुछ दिन पहले तक पुनिया का पद विधायक दल के नेता के बराबर था लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में पूनिया को उप नेता का पद स्वीकार करना पड़ा। चूंकि पूनिया पार्टी के प्रति समर्पित है इसलिए उन्होंने उपनेता का पद सहर्ष स्वीकार कर लिया। राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में पूनिया का महत्व और बढ़ा है। पूनिया पहली बार के विधायक है और उपनेता बने गए हैं। यह भी अपने आप में बड़ी राजनीतिक उपलब्धि है।

त्रिगुट वाले बयान का महत्व


भाजपा विधायक दल का नेता बनने के बाद राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि अब प्रदेश में मेरा और सीपी जोशी और सतीश पूनिया का एक त्रिगुट बन गया है त्रिगुट का यह बुलडोजर अब कांग्रेस सरकार को उखाड़ देगा। राजनीतिक दृष्टि से राठौड़ का यह बयान अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। त्रिगुट वाले बयान के बहुत मायने हैं। यह कहा जा सकता है कि राठौड़ विधायक दल का नेता अपनी योग्यता से भी बने हैं। उप नेता के पद पर रहते हुए राठौड़ ने विधानसभा में जो फ्लोर मैनेजमेंट किया उससे कई बार कांग्रेस की सरकार संकट में आई। कांग्रेस के 80 विधायकों के इस्तीफे के प्रकरण में भी हाईकोर्ट में राठौड़ स्वयं ही पैरवी कर रहे हैं। जातिगत समीकरण बैठाने का लाभ भी राठौड़ को मिला है।

अब विधानसभा का सिर्फ एक सत्र होगा


विधानसभा की व्यवस्थाओं के जानकारों का मानना है कि अब विधानसभा का सिर्फ एक सत्र होगा। हाल ही में जो बजट सत्र हुआ वह अनिश्चितकाल के लिए स्थगित है। विधानसभा के नियमों के मुताबिक 6 माह के अंतराल में सत्र बुलाना पड़ता है। अब यदि अलग से सत्र मई-जून में बुलाया गया तो फिर दूसरे सत्र की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि अक्टूबर माह में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो जाएगी। यानी राजेंद्र राठौड़ सिर्फ एक सत्र में ही प्रतिपक्ष के नेता की भूमिका में नजर आएंगे। यह बात अलग है कि प्रतिपक्ष का नेता बनते ही राठौड़ को कैबिनेट मंत्री की सुविधा मिलना शुरू हो गई है।

राजे बन सकती हैं चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष


सीपी जोशी और राजेंद्र राठौड़ की नियुक्ति में जिस प्रकार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की सहमति ली गई उससे प्रतीत होता है कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व राजे को नाराज नहीं करना चाहता है। प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता के पद के बराबर ही चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष का पद होता है। माना जा रहा है कि राजे को अब चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा। यानी नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। सूत्रों की मानें तो राजे ने इस समिति का अध्यक्ष बनने पर अपनी सहमति दे दी है। उम्मीदवारों के चयन से लेकर संपूर्ण चुनाव अभियान तक में राजे की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। दस दिन में बदला राजस्थान का चेहरा