राजा पप्पू कुमार
बिहार विधान सभा चुनावों में भले ही एक साल की देरी है मगर यहाँ का राजनैतिक तापमान बढ़ा हुआ है. हर दिन नेताओं के बयानो और इधर से उधर छलांग लगाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. भाजपा और लालू गठबंधन जहाँ अपने मोहरे सजाने में व्यस्त है, वहीँ एक तीसरी शक्ति भी इन दोनों को टक्कर देने की तैयारी कर रही है. बिहार की राजनीति दो धुरों की रही है मगर इस बार प्रशांत किशोर पूरी मजबूती से तीसरा विकल्प देने के तैयारी कर रहे है. अभी तक रणनीतिकार की भूमिका में रहे प्रशांत किशोर अपने संगठन जन सुराज के माध्यम से गाँव गाँव घूम रहे है और पूरी ताकत से चुनौती दे रहे है. प्रशांत किशोर:तीसरा विकल्प या बयान वीर
बिहार् की राजनीति में प्रशांत के आगमान ने भूचाल ला दिया है . राजनेता भले ही इसे ख़ारिज कर रहे है मगर अंदर तूफ़ान मचा है. इस 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती पर प्रशांत की जन सुराज पार्टी की शक्ल ले लेगी. पार्टी दावा कर रही कि वो पूरे 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. नेता बात भले ही कुछ करे मगर उन्हें इसका अहसास है कि जिस व्यक्ति ने मोदी से लेकर तमिलनाडु,पंजाब,आंध्र प्रदेश,पश्चिम बंगाल तक के चुनावों में अपनी सफल भूमिका निभाई हो, उसे ऐसे ही ख़ारिज नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा 2015 के बिहार विधान सभा चुनावों में जीत में भी उनकी अहम् भूमिका रही है. वही वो कई साल तक नीतीश के चुनावी प्रबंधक के अलावा उनकी योजनाओं के सूत्रधार भी रहे है . 2018 में वो नीतीश की पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे है. जाहिर है प्रशांत किशोर को बिहार की सारी पार्टियों की अंदर की खामियों का पता है और इससे वो अंदर तक हिले हुए है. शायद यही कारण है कि नीतीश समय से पहले चुनाव करवाना चाह रहे है, जिससे प्रशांत किशोर को तैयारी का समय नहीं मिल पाए. दूसरी ओर प्रशांत किशोर कह रहे है कि संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी. अपनी तरफ से वो आम बिहारियों को जगा रहे हैं और पूंजी पलायन से लेकर प्रतिभा पलायन तक के मुद्दें उठा रहे है.
प्रशांत किशोर के राजनीति में कदम रखते ही आरोपों-प्रत्यारोपों का खेल शुरू हो गया है. जिस प्रशांत किशोर को जनता दल में रहते कोई उनकी जाति के नाम से नहीं जनता था, वही अभी उन्हें प्रशांत किशोर पाण्डेय के नाम से बुलाया जा रहा है. जाहिर है, यह बिहार है, जहाँ जाति , नीति पर भारी पड़ती है. जाति के बहाने उनके विरोधी उन्हें घेरना चाहते है मगर प्रशांत किशोर भी आंकड़ों से उन्हें घेर रहे है. उनका कहना है कि वैसे तो वो जाति की राजनीति नहीं करते मगर नीतीश अगर बिहार की राजनीति कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? क्योंकि ब्राम्हण वोट तो कुर्मियों से ज्यादा है. वही लालू की पार्टी में अलग ही खलबली मची है. राजद ने अपने पार्टी के तरफ से चिठ्ठी लिखकर लोगों को जन सुराज में नहीं जाने की सलाह दी है .
प्रशांत किशोर अपने जन जागरण अभियान में बिहार के पिछड़ेपन और पलायन पर काफी मुखर है और लोग उन्हें सुन भी रहे है . उनका कहना है कि पैसे वाले अपने बच्चे पढाई तो गरीब तबका रोजगार के लिए बच्चों को राज्य से बाहर भेज रहा है. वो दावा करते है कि उनकी सरकार बनते ही 10000 रु के नौकरी की व्यवस्था वो राज्य में ही कर देंगे. वही वो लोगों को पूछते है कि जब लालू अपनी 9बी फेल बेटे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए प्रयास कर रहे है तो आप केवल तमाशा देख रहे है. आगे वो कहते है कि आप भी अपने बच्चों के लिए वोट कीजिये. जाहिर है लोग उनकी बातों से प्रभावित दिखते है. वही वो यह भी दावा करते है कि जिस जाति की जितनी संख्या होगी, उतना प्रतिनिधित्व उस जाति को मिलेगा. वही हाल ही में उन्होंने पटना में मुस्लिमों का एक सम्मलेन भी किया जिसमे उनके पिछड़ेपन से लेकर भागीदारी तक की बात की. जाहिर है, जातियों से लेकर अल्पसंख्यकों तक के वोटों पर भी उनकी नजर है.
बिहार में प्रशांत किशोर नए तो नहीं है मगर जातियों के खेमों में बटे इस समाज में उनकी राजनीतिक हिसेदारी इतनी आसान नहीं होगी. उन्होंने अभी तक अपनी कंपनी आई-पैक के जरिए रणनीतिकार की भूमिका निभाई है मगर नयी भूमिका में उन्हें कई सवालों के जवाब देने होंगे. मसलन उनके अभियान पर जो पैसा खर्च हो रहा है, उस पे सवाल खड़े हो रहे हैं. वही पटना के एक सम्मेलन में जब उन्होंने अपनी पत्नी का लोगों से परिचय कराया तो उन पर परिवारवाद का सवाल खड़ा किया गया. यह भी कहा जाता है कि वो अति महत्वाकांक्षी है और इसी कारण उनकी कांग्रेस और नीतीश से नहीं बनी .कहने को तो वो ये भी कहते हैं कि वो दल के नेता नहीं बनेंगे मगर केजरीवाल का उदाहरण सामने है. जाहिर है, जब वो राजनीति में आयें है तो ये जवाब तो उन्हें देना पड़ेगा. केवल अपनी वाकपटुता से पत्रकारों को चुप करा देने से बात नहीं बनेगी.
बिहार में चुनावों का निश्चित समय तो करीब एक साल बाद आएगा मगर कहीं यह तय समय से पहले होता है तो निश्चित ही प्रशांत किशोर के सामने एक चुनौती होगी. बिहारियों को एक नया सपना तो वो दिखा रहे है मगर क्या सही मायनो में लोग उन पर विश्वास कर पाएंगे? कही वो बिहार के अरविन्द केजरीवाल तो नहीं साबित होंगे? सवाल कई है मगर जवाब केवल उनके भाषण तक ही सीमित है क्योंकि अभी तक उन्होंने कई राज्यों में लोगों को सुनहरे सब्जबाग दिखाकर नेताओं को चुनाव जितवायें है. उन वादों पे वहां की सरकारें कितनी खरी उतरी, इसका आंकड़ा शायद प्रशांत किशोर भी नहीं देना चाहेंगे . जाहिर है प्रशांत किशोर पर लोगों का यह भरोसा बनता है तो बिहार में एक तीसरे विकल्प की सम्भावना बनेगी नहीं तो भी केवल बयान वीर ही साबित होंगे. प्रशांत किशोर:तीसरा विकल्प या बयान वीर