प्रमोद तिवारी का भाजपा और विदेश नीति पर हमला

82
प्रमोद तिवारी का मोदी सरकार पर तीखा हमला
प्रमोद तिवारी का मोदी सरकार पर तीखा हमला

राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता प्रमोद तिवारी का यह बयान उस समय आया है जब भारत-पाकिस्तान संबंधों में अमेरिका की भूमिका को लेकर चर्चा गर्म है, और एक भाजपा सांसद (निशिकांत दुबे) ने विदेशी मंच से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर टिप्पणी की है। यह घटनाक्रम भाजपा की विदेश नीति की दिशा और विपक्ष की प्रतिक्रिया को एक नई धार देता है। प्रमोद तिवारी का भाजपा और विदेश नीति पर हमला

मुख्य आरोप और उनकी रणनीतिक प्रकृति

  1. विदेश नीति की अस्थिरता पर निशाना:-प्रमोद तिवारी ने मोदी सरकार की विदेश नीति को “ढुलमुल” और “बेपटरी” बताया।भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे मित्रवत पड़ोसी देशों से रिश्तों में आई दरार का हवाला देकर भारत की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर बताया गया।
  2. निशिकांत दुबे के बयान को लेकर आक्रामक रुख:-विदेश में भारतीय सांसद द्वारा पूर्व पीएम पर टिप्पणी को “गैरजिम्मेदाराना” और “देश के खिलाफ माहौल बनाने वाला” बताया गया।विदेश मंत्रालय की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए कि वह प्रतिनिधिमंडल को समुचित ब्रीफिंग देने में असफल रहा।
  3. ‘स्वदेशी’ बनाम ‘आयात’ पर सरकार की कथनी-करनी का विरोधाभास:– पीएम मोदी के “स्वदेशी प्रेम” को दिखावटी बताते हुए, उनके विदेशी वस्त्रों और उत्पादों के उपयोग का जिक्र कर कटाक्ष किया गया। चीन से बढ़ते आयात पर सीधे सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए, इसे देशवासियों के साथ छल बताया गया।

रणनीतिक उद्देश्य और संदेश

  • कांग्रेस का आत्म-प्रतिरूपण: कांग्रेस अपनी विदेश नीति की विरासत को मज़बूत, विचारशील और विश्वसनीय बताकर मोदी सरकार की कूटनीतिक दिशा पर अविश्वास पैदा कर रही है।
  • भाजपा को राष्ट्रहित विरोधी सिद्ध करने की कोशिश: दुबे की टिप्पणी को मुद्दा बनाकर विपक्ष भाजपा को “राष्ट्र विरोधी तत्वों” जैसा दिखाने की कोशिश कर रहा है, जिससे आम मतदाता में भाजपा की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़ा हो।
  • ‘स्वदेशी’ विमर्श को पलटवार: जनता के बीच लोकप्रिय ‘स्वदेशी’ नैरेटिव को हाइजैक कर भाजपा के भीतर अंतर्विरोधों को उजागर करना कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है।

संभावित प्रभाव और सियासी असर

  • भाजपा पर दबाव: विपक्ष के इस तीखे और सुसंगत हमले से भाजपा पर अपने सांसद के बयानों को लेकर स्पष्टीकरण देने का दबाव बन सकता है, खासकर तब जब मामला विदेश नीति और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा से जुड़ा हो।
  • विदेश मंत्रालय की साख पर प्रश्न: यदि सार्वजनिक विमर्श में यह बात पकड़ बनाती है कि विदेश मंत्रालय ने सांसदों को पर्याप्त गाइडेंस नहीं दी, तो मंत्रालय की पेशेवर दक्षता पर प्रश्न उठ सकते हैं।
  • कांग्रेस की छवि सुधार का प्रयास: लंबे समय से विदेश नीति पर रक्षात्मक रही कांग्रेस इस मुद्दे पर एक ‘आक्रामक रक्षक’ की भूमिका में आ रही है, जो 2024 के बाद की सियासत में उसे नई धार दे सकती है।

प्रमोद तिवारी का बयान केवल एक सांसद या सरकार की आलोचना नहीं है, यह एक व्यापक सियासी रणनीति का हिस्सा है जिसका उद्देश्य भाजपा की विदेश नीति, ‘राष्ट्रवाद’ और ‘स्वदेशी’ के नैरेटिव पर सवाल खड़ा कर उसके नैतिक अधिकार को चुनौती देना है। इस तरह कांग्रेस सत्ता पक्ष की कथनी-करनी के अंतर को उजागर कर, अपने लिए एक मजबूत नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रही है। प्रमोद तिवारी का भाजपा और विदेश नीति पर हमला