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जनता की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसकी कहीं सुनवाई नहीं होती है। उसे इधर से उधर इतनी बार दौड़ाया जाता है कि अंत में थकहारकर वह अपनी किस्मत को कोसते हुए चुप बैठ जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता की फरियाद सुने जाने पर ही नहीं, उसकी समस्याओं का निस्तारण भी हो, इस पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित किया है। किन्तु प्रदेश की नौकरशाही विगत वर्षों में इतनी निष्क्रिय एवं हृदयहीन हो चुकी है कि उसे जनता के दुख-कष्ट से कोई पीड़ा नहीं होती। यही कारण है कि मुख्यमंत्री-आवास पर ही नहीं, जब प्रदेश-भाजपा के मुख्यालय पर भी फरियाद सुनी जाती थी तो वहां भी फरियादियों की भीड़ उमड़ती थी। दोनों जगहों पर जनता की फरियाद सुनने की व्यवस्था थी। लेकिन मुश्किल यह है कि नौकरशाही अपना पुराना ढर्रा नहीं छोड़ना चाहती। फरियादियों की समस्याएं व शिकायतें निराकरण के लिए सम्बंधित विभागों के पास भेज दी जाती हैं तथा शिकायतकर्ता के मोबाइल पर सूचना आ जाती है कि उसकी शिकायत अमुक विभाग के पास भेज दी गई है। मगर ऐसी व्यवस्था तो पहले भी थी। मुश्किल इसके बाद शुरू होती है। जनता की शिकायतें जिन विभागों के पास भेजी जाती हैं, वे टालने वाले रवैये के आदी हैं और अभी भी उनका वह रवैया नहीं बदला है। वे जनता की समस्याएं वास्तव में हल करने में कारगर ढंग से रुचि नहीं लेते तथा सिर्फ खानापूरी कर देते हैं। परिणाम यह होता है कि जिस प्रकार पहले ऐसा होता था कि जिस थानेदार की शिकायत की गई है, उक्त शिकायतपत्र कई स्तरों से होते-होते उसी थानेदार के पास जांच के लिए पहुंच जाता है, जिसकी शिकायत की गई है। वही स्थिति अभी भी विद्यमान है।
मैं जनहित के विभिन्न कार्याें एवं जनसमस्याओं के संदर्भ में मुख्यमंत्री आदि के पास विगत कई दशकों से पत्र भेजता रहा हूं। कुछ वर्षों से मेरे पास मोबाइल पर यह सूचना आ जाया करती है कि मेरा पत्र अमुक विभाग के पास भेज दिया गया है अथवा समस्या का निस्तारण कर दिया गया है। हाल में मुझे जो अनुभव हुए, उनसे मैं समझ गया कि नौकरशाही मुख्यमंत्री की सक्रियता एवं प्रयासों पर पानी फेरने पर आमादा है। सिर्फ दो उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं। लखनऊ में कबीर मार्ग पर जितनी चौड़ी सड़क है, सड़क के अगल-बगल उससे दुगनी चौड़ी पटरियां(फुटपाथ) हैं। विगत लगभग दो दशकों से यातायात बहुत बढ़ जाने के कारण कबीर मार्ग पर प्रायः जाम लग जाया करता है। मैं उत्तर प्रदेश नागरिक परिषद के अध्यक्ष के रूप में अनेक वर्षों से मांग कर रहा हूं कि पटरियां हटाकर कबीर मार्ग को चौड़ा कर दिया जाय।
मैंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास पुनः इस आशय का पत्र भेजा, जो वहां से लखनऊ नगर निगम पहुंचा। नगर निगम के अधिकारियों ने उसके उत्तर में ऊपर यह लिखकर भेज दिया कि पूर्व में एक बार कबीर मार्ग को चौड़ा करने का प्रस्ताव तैयार हुआ था, किन्तु क्षेत्र के लोगों के विरोध के कारण वह कार्यान्वित नहीं हुआ तथा अब भविष्य में आर्थिक संसाधन उपलब्ध होने पर उस पर पुनः विचार किया जाएगा। पहली बात तो यह कि उस समय क्षेत्र के लोगों ने नहीं, बल्कि उन दो स्वार्थी तत्वों ने विरोध किया था, जिन्होंने पटरियों पर अवैध कब्जा कर रखा है तथा नगर निगम के कुछ लोग उनसे मिले हुए थे। दूसरी बात यह कि किसी के निजी स्वार्थ के कारण जनहित का महत्वपूर्ण कार्य क्यों छोड़ दिया गया? यदि सरकारी काम में किसी ने बाधा डाली तो उसके विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं की गई? वास्तविकता यह है कि भ्रष्टाचार के कारण वैसा हुआ था। ‘अब भविष्य में जब आर्थिक संसाधन उपलब्ध होंगे’ वाला तर्क तो काम को अनिश्चितकाल तक के लिए टाल देने का है।
मेरे क्षेत्र डायमण्डडेरी काॅलोनी व आसपास चोरी आदि की घटनाएं होती हैं तथा असामाजिक तत्व हावी रहते हैं। ‘डायमण्डडेरी काॅलोनी कल्याण समिति’ के अध्यक्ष के रूप में मैंने विगत वर्षों में पुलिस एवं अन्य उच्चाधिकारियों को इस सम्बंध में अनेक बार पत्र लिखे। एक बार एक पूर्व-प्रमुख सचिव, गृह ने फोन पर भी पुलिस अधीक्षक(पूर्वी) को निर्दिष्ट किया कि वह हुसेनगंज थाने के प्रभारी निरीक्षक को लेकर मुझसे मिल लें और समस्या का पूर्ण निदान करें। लेकिन फिर भी कहीं कोई जुम्बिश नहीं हुई। एक बार मैंने मुख्यमंत्री को उक्त आशय का पत्र लिखा, जिसके बाद हुसेनगंज थाने के प्रभारी निरीक्षक ने ऊपर यह उत्तर भेज दिया कि थाने द्वारा पड़ताल की गई तो मेरी शिकायत गलत पाई गई। मुझे आश्चर्य हुआ। मेरी शिकायत बिलकुल सही थी, फिर भी पुलिस ने लीपापोती कर दी। मैं ‘डायमण्डडेरी काॅलोनी कल्याण समिति’ का अध्यक्ष हूं, किन्तु मुझसे प्रभारी निरीक्षक कभी मिला भी नहीं और गलत आख्या ऊपर भेज दी।
ये दृष्टांत सिर्फ ‘पतीली के चावल के एक दाने’ की भांति हैं। प्रायः सभी मामलों में नौकरशाही ऐसा ही टालमटोल वाला रवैया अपनाती है। एक बार मैं भाजपा के प्रदेश-मुख्यालय में वहां की ‘दैनिक जनसुनवाई’ देखने गया। मुख्यमंत्री आवास वाले उदाहरण वहां भी मिले। बाहर से लखनऊ आए हुए लोगों की शिकायतें यहां आने के बावजूद हल नहीं हो रही थीं। एक महिला अपने बच्चे के साथ सहारनपुर से आई हुई थी। भारी किराया खर्च कर सामान्य व्यक्ति को बार-बार लखनऊ आने में कितनी यातना होती है, कल्पना की जा सकती है! भाजपा के प्रदेश-मुख्यालय में उस दिन ‘जनसुनवाई’ की ड्यूटी पर लगाए गए मंत्री से जब मैंने इस बात का उल्लेख किया तो उनका उत्तर सुनकर आश्चर्य हुआ। उनके कथन का आशय था कि तमाम फरियादी फालतू शिकायतें लेकर आते हैं। यह अविश्वसनीय है कि कोई इतना रेलभाड़ा लगाकर फालतू शिकायत करने लखनऊ आएगा। लेकिन यदि ऐसे कुछ उदाहरण हों भी तो इसका यह अर्थ नहीं कि अन्य समस्त सही फरियादों का भी सही ढंग से निस्तारण न हो।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब तक इस दिशा में कठोर कदम नहीं उठाएंगे, जनता की समस्याओं का समाधान हरगिज नहीं होगा। उन्हें नौकरशाही की ढीली चूलें कठोरतापूर्वक कसनी होंगी। जिलों पर सर्वाधिक ध्यान केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है। जिलों, तहसीलों व प्रखण्ड स्तर पर जनता की समस्याएं हल की जाने की ठोस व्यवस्था होनी चाहिए। वहां निर्धारित अवधि में फरियादियों की समस्याएं संतोषजनक रूप में हल करना अनिवार्य किया जाना चाहिए। जिस स्तर पर भी ढिलाई मिले, शिथिलता बरतने वाले को कठोर दण्ड दिया जाय। चेतावनी अथवा मामूली दण्ड से कोई सुधार हरगिज नहीं होगा। विगत वर्षों में नौकरशाही जनता के प्रति बहुत अधिक निर्मम हो चुकी है। मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव को चाहिए कि जिस जनपद से अधिक शिकायतकर्ता आएं, वहां के जिलाधिकारी के विरुद्ध भी अत्यंत कठोर कार्रवाई करें। हर जनपद में एक अपर जिलाधिकारी की ड्यूटी सिर्फ यह देखने के लिए लगाई जानी चाहिए कि जनता की शिकायतों का सही एवं संतोषजनक रूप में निस्तारण हो रहा है या नहीं। लोकतंत्र का आधार जनता है, इसलिए जब उसे संतुष्टि होगी, तभी लोकतंत्र का महत्व एवं अस्तित्व सही होगा।
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