विजय गर्ग
दुनिया के एक मशहूर कारोबारी और टेस्ला तथा एक्स (पूर्व में ट्विटर) के मालिक की दूरसंचार कंपनी ‘स्टारलिंक इंटरनेट सर्विसेज’ फिलहाल करीब सौ देशों को इंटरनेट सेवाएं दे रही है। इस कंपनी की बातचीत भारत से भी चल रही है। उम्मीद है कि यह देश के दूरदराज क्षेत्रों में भी तेज और सस्ती इंटरनेट सेवाएं देने में प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से होड़ करेगी। आज इंटरनेट तमाम सुविधाओं का वाहक बन गया है, इसकी बदौलत जो डिजिटल क्रांति आई है, उसने कई कामकाज आसान कर दिए हैं। अब तो कृत्रिम बुद्धिमता की तकनीक भी इसी इंटरनेट के कंधे पर सवार होकर नए गुल खिला रही है। मगर इसी इंटरनेट के रास्ते कई फर्जीवाड़े भी हो रहे हैं। इनसे पूरी दुनिया परेशान है। एक समस्या इसकी वजह से पैदा हो रहे मानसिक प्रदूषण और डेटा के रूप में जन्म ले रहे कचरे की है, जिस पर ज्यादा विचार नहीं हो रहा है। मगर यह इंटरनेट अब अंतरिक्ष में कचरे की भरमार का कारक भी बन गया है। यानी दूरसंचार क्रांति धरती पर ही अनेक तरह का कबाड़ पैदा नहीं कर रही है, बल्कि अंतरिक्ष में जिन उपग्रहों की बदौलत इंटरनेट हम तक पहुंच रहा है, वे भी समस्याएं बढ़ा रहे हैं। अंतरिक्ष बुहारने की जरूरत
अंतरिक्ष में कचरा कोई नई समस्या नहीं है। सितारों के निर्माण की प्रक्रिया में बहुत सारा कचरा पहले ही हमारे नजदीकी अंतरिक्ष में मौजूद रहा है। उसके खतरे पहले से कायम हैं। पर जब से अंतरिक्ष इंसानी गतिविधियों का केंद्र बना है, वहां इस कचरे ने और ज्यादा खतरनाक रूप धर लिया है। हम जिस इंटरनेट पर आज इतने ज्यादा निर्भर हो गए हैं, उसे हम तक पहुंचाने के एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल हो रहे उपग्रह अंतरिक्षीय कबाड़ की बड़ी वजह बन गए हैं। ये उपग्रह अंतरिक्ष में मुख्यतः दो स्थानों पर हैं। एक तो पृथ्वी की निचली कक्षाओं में, जहां खासतौर से अकेले ‘स्टारलिंक’ ने अब तक 6764 उपग्रह पहुंचा दिए हैं। इनमें से 6714 काम कर रहे हैं, जबकि शेष कबाड़ होकर चक्कर काट रहे हैं। ‘स्टारलिंक’ की मदद करने वाली एलन मस्क की ही एक और कंपनी ‘स्पेसएक्स’ की योजना आगामी वर्षों में 42 हजार उपग्रह और भेजने की है, ताकि दुनिया में चप्पे-चप्पे तक इंटरनेट पहुंचाया जा सके। ‘स्टारलिंक’ ने वर्ष 2019 में अपना पहला दूरसंचार उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा था। इसके अगले पांच साल में ही उसके उपग्रहों की संख्या साढ़े छह हजार पार गई।
अंतरिक्ष की ऊपरी कक्षाओं में भारत समेत दुनिया के कई देशों के 3135 संचार उपग्रह पहले से ही हैं। अभी तक का आकलन कहता है कि पृथ्वी की निचली कक्षाओं में 14 हजार से ज्यादा उपग्रह मौजूद हैं, जिनमें से करीब 3500 निष्क्रिय यानी कबाड़ हो चुके हैं। इस कबाड़ पर नजर रखने वाली अमेरिकी संस्था ‘स्लिंगशाट एअरोस्पेस’ का कहना है कि ये निष्क्रिय उपग्रह कचरा बन गए हैं। इसके अलावा तमाम अन्य अंतरिक्षीय गतिविधियों से हमारे करीबी अंतरिक्ष में बारह करोड़ से ज्यादा छोटे-बड़े मलबे के टुकड़े तेजी से चक्कर काटने लगे हैं। असल में, इसके खतरे दो तरह के हैं। एक जितनी बड़ी संख्या में नए उपग्रह विभिन्न उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष में छोड़े जा रहे हैं, अचानक किसी दिन वहां मौजूद कचरा उनके रास्ते में आ सकता है और पूरे मिशन को खत्म कर सकता है। दूसरे, जिस तरह की भीड़ पृथ्वी की निचली कक्षा में हो गई है, वहां चक्कर काटते उपग्रहों से ही इस कचरे का विनाशकारी आमना-सामना हो सकता है।
कोई देश यह नहीं बताता कि उसके किस उपग्रह का मकसद क्या है और वह आखिर कितने उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने वाला है। इसकी वजह यह है कि इन उपग्रहों के दोहरे उपयोग सैन्य और नागरिक दोनों ही हैं। सिर्फ सरकारें नहीं, निजी कंपनियां भी कारोबारी हितों के मद्देनजर इनसे जुड़ी जानकारियां नहीं बताती हैं। ऐसी स्थितियों का परिणाम क्या हो सकता है, इसकी एक नजीर इसी वर्ष जून और अगस्त में मिली थी। जून में एक रूसी उपग्रह विस्फोट के साथ फट गया, तो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उससे छिटके कचरे की जद में आने का खतरा पैदा हो गया। इसके बाद अगस्त में अंतरिक्ष में काफी ऊंचाई पर पहुंचा एक चीनी राकेट फटा तो उसके टुकड़े मलबे की शक्ल में अंतरिक्ष में फैल गए।
• वर्ष 2021 में चीन ने संयुक्त राष्ट्र की अंतरिक्ष संस्था को बताया कि एलेन मस्क की कंपनी ‘स्पेसएक्स’ की ही एक इकाई ‘स्टारलिंक इंटरनेट सर्विसेज’ के उपग्रह दो बार चीन के अंतरिक्ष स्टेशन के बहुत पास आ गए थे। पहली जुलाई और 21 अक्तूबर 2021 को हुई इन घटनाओं को लेकर चीन ने काफी नाराजगी दिखाई थी। संयुक्त राष्ट्र के अंतरिक्ष मामलों के दफ्तर की वेबसाइट के मुताबिक ‘स्पेसएक्स’ के उपग्रहों के बेहद नजदीक आ जाने की स्थिति को देखते हुए चीन के अंतरिक्ष स्टेशन में किसी टक्कर से बचने की उपायों को लागू कर दिया था, जिससे इसका कामकाज प्रभावित हुआ था। मसला अकेले चीन के लिए नहीं है। ऐसे मामलों पर नजर रखने वाली वेबसाइट ‘स्लिंगशाट’ का आकलन है कि पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों के अत्यधिक नजदीक आ जाने की घटनाओं में एक साल के अंदर ही 17 फीसद का इजाफा हुआ है। चूंकि इस निचली कक्षा में ‘स्टारलिंक’ के उपग्रहों का बोलबाला है, इसलिए इसकी मूल कंपनी ‘स्पेसएक्स’ को टक्कर रोकने वाले कई उपाय खुद करने पड़ते हैं। दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों को भी ऐसे उपाय करने पड़ रहे हैं। जैसे यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का कहना है कि बीते एक साल में उसके उपग्रहों को टकराव रोकने के लिए औसत से तीन या चार गुना ज्यादा उपाय करने पड़े हैं।
प्राकृतिक गतिविधियों पर हमारा कोई वश नहीं, लेकिन मानवीय गतिविधियों के कारण अंतरिक्ष में पैदा हो रहे कचरे की रोकथाम कुछ अर्थों में जरूर संभव है। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के एक पैनल का सुझाव है कि इंसानी गतिविधियों से अंतरिक्ष में पैदा हो रहे कबाड़ को रोकने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को एक साथ लाकर कोई तालमेल बनाया जाए। मगर समस्या यह है कि ज्यादातर देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर गोपनीयता बरतते हैं। निजी अंतरिक्ष एजेंसियां भी तकनीक के चोरी होने के भय से आंकड़े साझा नहीं करतीं । इसके अलावा चूंकि लंबी दूरी की बहुराष्ट्रीय मिसाइलों के निर्माण और जासूसी के काम में उपग्रहों का इस्तेमाल अंतरिक्ष संबंधी कार्यक्रमों से सीधे जुड़े होते हैं, इसलिए इन कार्यक्रमों का सटीक डेटा सार्वजनिक नहीं किया जाता। एक दूसरे पर अविश्वास की इस स्थिति में कोई बदलाव तभी संभव है, जब संयुक्त राष्ट्र इसमें दखल दे। जाहिर है कि जब तक ऐसा नहीं होता, अपने घर को भीतर से बुहारने वाली और सारा कचरा दरवाजे के बाहर ठेलने वाली मानव सभ्यता के लिए अंतरिक्ष की बिगड़ती सेहत एक समस्या ही बनी रहेगी। अंतरिक्ष बुहारने की जरूरत