चीन से मोदी का प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति

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चीन से मोदी का प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति
चीन से मोदी का प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति
राजू यादव
राजू यादव

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का चीन से प्रेम अचानक क्यों जाग गया है। जबकि जग जाहिर है कि चीन हमेशा भारत विरोधी रहा है। अभी हाल में ही ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी उसने पाकिस्तान की भरपूर मदद की थी। चीन की नजदीकी हमेशा भारत से ज्यादा पाकिस्तान से ही रही है। sco समिट में पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत के लिए बहुत कम लोग पहुंचते हैं जबकि इस समिट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को रिसीव करने के लिए बहुत से लोग पहुंचते हैं। स्वागत के दौरान ही चीन ने भारत के साथ बड़ा खेल कर दिया। अर्थात हम कह सकते हैं की चीन का जो रिस्ता पाकिस्तान से है वह भारत के साथ नहीं हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की अचानक चीन प्रेम या फिर चीन की यात्रा चौका देने वाला है। प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा से भारतीय सैनिक भी खुश नहीं है। चीन से मोदी का प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति

ऑपरेशन सिंदूर में हमारी जंग पाकिस्तान से नहीं बल्कि चीन से ही थी। पाकिस्तान तो बस एक मोहरा था । दुनिया में दो ताकतवर देश के आगे भारत के प्रधानमंत्री झुकते नजर आ रहे हैं। अभी तक चीन का घोर विरोध कर रहे मोदी जी अब अचानक समर्थन क्यों है बड़ा सवालहै। चीन के प्रति मोदी जी का प्रेम आखिर कौन बता सकता है मोदी जी स्वयं या फिर अमित शाह या इनके दो पैसे वाले दोस्त अडानी या फिर अंबानी।

2 सितंबर 2024 को अडानी की कंपनी अदानी एनर्जी रिसोर्सेस शंघाई में स्थापित हुई है। अचानक 7 साल बाद चीन क्यों पहुंचे मोदी बड़ा सवाल उठता है। चीन के अखबार में दिख नहीं रहे हैं ।कहा जाता है कि चीन में प्रेस के स्वतंत्रता नहीं है जो प्रशासक कहता है वही समाचार पत्रों में छापा जाता है । मोदी जी चीन के समाचार पत्रों से गायब नजर आ रहे हैं। मात्र एक जगह वह भी सबके साथ कतार में खड़े मोदी जी नजर आते हैं । बाकी जगह से गायब है मात्र एक वीडियो जिसमें रुश के राष्ट्रपति पुतिन से मोदी बात करते नजर आते हैं।

  1. मोदी का चीन दौरा: कूटनीति या कारोबारी मजबूरी…?
  2. सीमा पर सैनिक नाराज़, शंघाई में अडानी का विस्तार – मोदी का झुकाव किसके लिए…?
  3. पाकिस्तान मोहरा, असली खेल चीन का – मोदी क्यों हुए नरम…?
  4. 7 साल बाद चीन यात्रा: संयोग नहीं, कारोबार का गणित…?
  5. लाल आँख का वादा कहाँ गया? मोदी चीन के आगे क्यों झुके…?
  6. जनता पूछ रही है: देशहित पहले या दो पैसे वाले दोस्त पहले…?

चीन से मोदी का अचानक प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति

1. भारत–चीन रिश्ते का विरोधाभास

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से चीन के प्रति आक्रामक रुख दिखाते रहे हैं। गलवान घाटी की घटना हो या सीमा विवाद, सरकार ने चीन को भारत का सबसे बड़ा खतरा बताया। लेकिन हाल के घटनाक्रम में उनके रुख में बदलाव देखने को मिला है।

2. SCO समिट में ठंडी मेजबानी

शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (SCO) समिट में प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत बेहद साधारण रहा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के लिए अधिक गर्मजोशी दिखाई गई। इससे साफ है कि चीन के लिए पाकिस्तान “रणनीतिक साथी” है, जबकि भारत सिर्फ औपचारिक सदस्य। चीन भारत को अपेक्षित महत्व देने के लिए तैयार नहीं है।

3. चीन–पाकिस्तान की गहरी दोस्ती

  • ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन का सीधा समर्थन मिला।
  • यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान चीन की रणनीति में सिर्फ मोहरा है, जबकि असली खिलाड़ी चीन है।
  • चीन भारत के खिलाफ हर वैश्विक मंच पर पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखता है।

4. मोदी की चीन यात्रा पर उठे सवाल

प्रधानमंत्री मोदी का अचानक चीन दौरा कई सवाल खड़े करता है:-

  • क्या यह कूटनीति का हिस्सा है या दबाव में लिया गया कदम…?
  • क्या आर्थिक कारणों से चीन से नजदीकी बनाई जा रही है…?
  • क्या इसका सीधा संबंध अडानी की शंघाई में कंपनी स्थापित होने से है…?

मोदी का चीन प्रेम: देशहित या दो पैसे वाले दोस्तों का दबाव?

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का चीन से अचानक प्रेम जागना कोई साधारण घटना नहीं है। जिस चीन को अब तक देश का सबसे बड़ा दुश्मन बताया जाता रहा, उसी चीन के लिए मोदी जी का झुकाव सवालों के घेरे में है।

5. अडानी–अंबानी फैक्टर

2 सितंबर 2024 को अडानी एनर्जी रिसोर्सेस ने शंघाई में कंपनी शुरू की। आलोचक मानते हैं कि मोदी की चीन यात्रा इसके साथ जुड़ी हो सकती है। क्या यह केवल व्यापारिक हितों का मामला है? क्या यह संयोग है? या फिर चीन यात्रा का असली मकसद अडानी-अंबानी जैसे “दो पैसे वाले दोस्तों” का व्यापार बढ़ाना है? अगर ऐसा है तो यह सीधा देशहित के खिलाफ है।

6. चीन की मीडिया में मोदी की अनुपस्थिति

चीन में प्रेस स्वतंत्र नहीं है, जो सरकार कहती है वही छपता है। इसके बावजूद मोदी को मीडिया से लगभग गायब रखा गया। सिर्फ एक वीडियो में वह पुतिन से बातचीत करते नजर आए। इसका साफ संकेत है कि चीन मोदी को प्रमुखता से दिखाने में दिलचस्पी नहीं रखता।

  • चीन के समाचार पत्रों और मीडिया में मोदी का नाम या तस्वीरें लगभग नदारद हैं।
  • सिर्फ एक वीडियो में वह रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करते दिखाई देते हैं।
  • यह संकेत देता है कि चीन मोदी को प्रमुखता से नहीं दिखाना चाहता।

7. भारतीय सैनिकों की नाराज़गी

सीमा पर डटे भारतीय सैनिक चीन को दुश्मन नंबर-1 मानते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की ओर से लड़ने वाले सैनिकों का मानना है कि असली जंग चीन से थी।उनके लिए पाकिस्तान महज कठपुतली है। ऐसे में मोदी का चीन से नजदीकी बढ़ाना उन सैनिकों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद सैनिकों और पूर्व सैनिकों में यह भावना गहरी है कि असली दुश्मन पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। ऐसे में प्रधानमंत्री का चीन प्रेम सैनिकों को नागवार गुजर रहा है।

कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी का अचानक चीन की ओर झुकाव राजनीतिक, रणनीतिक और कारोबारी तीनों स्तरों पर संदेह और सवाल खड़े करता है। बड़ा सवाल यही है कि — क्या यह भारत की सुरक्षा नीति से समझौता है या सिर्फ आर्थिक दबाव में उठाया गया कदम…?

मोदी का चीन प्रेम: देशहित,कूटनीति या कारोबारी मजबूरी..?

भारत और चीन का रिश्ता हमेशा अविश्वास और तनाव से भरा रहा है। गलवान घाटी से लेकर सीमा विवाद तक, चीन ने बार-बार भारत के खिलाफ अपनी मंशा जाहिर की है। पाकिस्तान को हर स्तर पर सहयोग देना और भारत की घेराबंदी करना चीन की पुरानी नीति है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अचानक चीन दौरा चौंकाने वाला है।

सबसे बड़ा सवाल यही है।

  • 2 सितंबर 2024 को अडानी एनर्जी रिसोर्सेस ने शंघाई में कंपनी स्थापित की।
  • क्या मोदी का चीन दौरा केवल कूटनीति नहीं बल्कि कॉर्पोरेट हितों से जुड़ा कदम है?
  • क्या अडानी-अंबानी जैसे करीबी उद्योगपतियों के व्यापारिक विस्तार को लेकर भारत की विदेश नीति प्रभावित हो रही है?

बड़ा सवाल

मोदी का चीन प्रेम क्या भारत की सुरक्षा रणनीति को कमजोर कर देगा…?
क्या यह दौरा भारत की मजबूरी है या व्यक्तिगत/कॉर्पोरेट दबाव का नतीजा…?
और सबसे अहम — क्या प्रधानमंत्री अपने ही सैनिकों की नाराज़गी और जनता के संदेह को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं…?

जनता के मन में उठता सवाल

  • क्या मोदी जी देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं…?
  • क्या विदेश नीति अब “दोस्तों के बिज़नेस मॉडल” के इर्द-गिर्द तय होगी…?
  • क्या यह वही मोदी हैं जिन्होंने “लाल आँख दिखाने” का वादा किया था, या अब झुककर हाथ मिलाने की राजनीति कर रहे हैं…?
  • “देश पूछ रहा है—मोदी जी, चीन से प्रेम क्यों…?”
  • “सैनिक लड़ रहे हैं सीमा पर, प्रधानमंत्री गले मिल रहे हैं चीन से।”
  • “लाल आँख दिखाने का वादा, झुकी नज़र में क्यों बदल गया…?”
  • “भारत की विदेश नीति या अडानी की बिज़नेस पॉलिसी…?”
  • “चीन से हाथ मिलाना, क्या सैनिकों की शहादत का अपमान नहीं…?”
  • “मोदी जी, यह दौरा देश के लिए है या दोस्तों के लिए…?”

मोदी जी का चीन दौरा केवल कूटनीति नहीं, बल्कि एक गहरी साज़िश और आर्थिक हितों का खेल है। सवाल साफ है—मोदी जी, यह प्रेम देश के लिए है या अडानी-अंबानी के लिए…? चीन से मोदी का प्रेम: सवालों के घेरे में विदेश नीति