
श्याम कुमार
इन दिनों प्रदेश सरकार के मंत्री अरविंद कुमार शर्मा अपनी खराब छवि के लिए बहुत चर्चित हो रहे हैं। लेकिन यथार्थ यह है कि उन्होंने अपनी छवि स्वयं खराब की है। वह जब उत्तर प्रदेश की सत्ता में शामिल होने लखनऊ आए थे, उस समय चर्चा थी कि मोदी व अमित शाह उन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के लिए यहां लाए हैं। उनके इसी वजन के कारण एक साथ दो भारीभरकम विभाग ऊर्जा एवं नगर विकास उन्हें सौंप दिए गए थे। ये दोनों विभाग जनता से सीधे जुड़े हुए विभाग हैं तथा दोनों ही विभाग अपने निकम्मेपन के कारण जनता को रुलाते आ रहे हैं। यदि अरविंद कुमार शर्मा चाहते तो इन निकम्मे विभागों के कड़ाई से पेंच कसकर इनकी सभी ढीली चूलें सही करते और इन्हें सच्चे अर्थां में जनकल्याणकारी विभाग सिद्ध करते। इससे आम जनता में उनकी भारी लोकप्रियता होती तथा वह प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ मंत्री माने जाते। उनकी ईमानदार छवि उस समय सोने में सुहागा का काम करती।
अरविंद कुमार शर्मा से यहीं भारी चूक हो गई। मैंने अपनी छह दशक से अधिक की पत्रकारिता में शासन एवं प्रशासन के लोगो में एक बहुत बड़ा परिवर्तन यह देखा है कि पहले मंत्रियों और आईएएस अफसरों में बहुत विनम्रता होती थी तथा वे अपने को सचमुच जनसेवक मानते थे। लेकिन अब ये दोनों ही जमातें अहंकार में बुरी तरह डूबी हुई हैं तथा उनका सच्चे जनसेवक वाला रूप जैसे पूरी तरह गायब हो चुका है। वे राजा-महाराजा की तरह रहते हैं और जनता को हेयदृष्टि से देखते हैं। सामने वाला कितना भी बड़ा बुद्धिजीवी एवं वरिष्ठ हो, नेता उसे अपेक्षित सम्मान नहीं देता। इसका मुख्य कारण यह भी है कि नित्य सैकड़ों लोग अपना महत्व भूलकर मंत्री के समक्ष नतमस्तक रहते हैं। बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है, जो गलत तत्व हुआ करते हैं तथा गलत स्वार्थ की सिद्धि हेतु मंत्री के चरणों पर गिरने में उन्हें संकोच नहीं होता है। जहां तक आईएएस अफसरों का प्रश्न है, उन्हें तो कोई चुनाव भी नहीं लड़ना होता है, इसलिए विनम्रता और शालीनता उनसे कोसों दूर रहती है।
अरविंद कुमार शर्मा बड़े योग्य एवं ईमानदार आईएएस अफसर माने जाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश में जब वह मंत्रिपद पर आसीन हुए तो उनसे गलती यह हुई कि उन्होंने यश अर्जित करने के बजाय आज के मंत्रियों की तरह राजा-महाराजा वाली शैली अपना ली, जिसके परिणामस्वरूप जनता से उनका निकट संबंध नहीं स्थापित हो पाया। इस रवैये का दुष्परिणाम यह हुआ कि उनकी जनसमस्याओं को हल करने वाली छवि बनने के बजाय अहंकार में चूर मंत्री वाली बन गई। नगर विकास एवं ऊर्जा, दोनों विभागों का निकम्मापन एवं भ्रष्टाचार जनता को उत्पीड़ित करता रहा, लेकिन अरविंद कुमार शर्मा ‘नीरो’ की तरह ‘बंसी’ बजाते रहे। वह जनता को अतिसुलभ रहने के बजाय उससे पूरी तरह दूर हो गए। उनसे सम्मानपूर्वक मिल पाना तो कठिन हुआ ही, फोन पर भी उनकी उपलब्धता असंभव हो गई।
वैसे तो लगभग सभी मंत्रियों का अब ऐसा ही हाल है, लेकिन चूंकि ऊर्जा एवं नगर विकास विभाग जनता से दैनंदिन प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए विभाग हैं, इसलिए उन विभागों की निष्क्रियता का परिणाम अरविंद कुमार शर्मा को भुगतना पड़ा और वह जनता के कोपभाजन बन गए। यहां अरविंद केजरीवाल का उदाहरण देना समीचीन होगा। अरविंद केजरीवाल जब अन्ना हजारे के सान्निध्य से उठकर राजनीति के प्रांगण में उतरे थे तो उनकी बड़ी स्वच्छ एवं ईमानदार छवि थी और उस छवि पर रीझ कर जनता ने उन्हें हाथोहाथ लिया था। ऐसा लगा था कि हमारे यहां वास्तविक लोकतंत्र की दुंदुभी बजनी शुरू हो गई है। लेकिन कुछ समय बाद ही अरविंद केजरीवाल अपने दूसरे रूप में आ गए और जनता के मन में उनके प्रति सम्मान की जो विशाल इमारत बनी थी, वह धराशायी हो गई। अरविंद केजरीवाल ने जनता की आशाओं पर तुषारापात कर दिया।
ऐसा ही एक अन्य उदाहरण अखिलेश यादव का है। वह जब राजनीति में उतरे थे और मुलायम सिंह यादव ने उन्हें चुनाव के समय जो महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा था, उसके निर्वाह में वह आदर्श की प्रतिमूर्ति सिद्ध हुए थे। उन्होंने बदनाम छवि वाले डीपी यादव को उस समय पार्टी में लेने से इनकार कर दिया था। इसका जनता के मन पर इतना जबरदस्त प्रभाव पड़ा था कि अखिलेश यादव की धूम मच गई थी। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने कुछ कार्य ऐसे किए, जिससे वह जनता के दिलरुबा बन गए थे। मायावती अपनी सुरक्षा के मनोरोग से बुरी तरह ग्रस्त रहती थीं। जो कालिदास मार्ग पब्लिक के गमनागमन के लिए सदा से खुला हुआ था, उसे मायावती ने बंद करा दिया था। अखिलेश यादव ने मुख्यमन्त्री बनते ही कालिदास मार्ग के उस अवरोध को हटवा दिया और सड़क पहले की तरह लोगों के गमनागमन के लिए खोल दी गई। इससे जनता में अखिलेश यादव की भारी जयकार हुई।
अखिलेश यादव के इस रूप से जनता में यह धारणा बनने लगी थी कि जो पार्टी ‘गुंडा पार्टी’ के रूप में मशहूर है, उसका अब कलेवर बदल रहा है। लेकिन तमाम अफसरों ने राजनीति को काजल की कोठरी बना डाला है, जिससे होकर गुजरने पर नेता के चेहरे पर कालिख लग ही जाती है। इस प्रकार के अफसरों ने अखिलेश यादव की बनी हुई छवि धीरे-धीरे बदल दी। अखिलेश यादव की सरकार भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगाने लगी। सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं इस आधार पर तैयार होने लगीं कि उनमें कितने भ्रष्टाचार की गुंजाइश है। जिस प्रकार केंद्र में मनमोहनसिंह-सोनियागांधी की सरकार ‘घोटालों की सरकार’ बन गई थी, वही हाल उत्तर प्रदेश में अखिलेश-सरकार का हो गया। अखिलेश यादव गलत लोगों से बुरी तरह घिर गए तथा उन गलत लोगों की घेराबंदी में सही लोगों का अखिलेश यादव तक पहुंचना लगभग असंभव हो गया। इस प्रकार जनता का लाडला बन रहा नेता ‘अरविंद केजरीवाल’ होकर रह गया।
अरविंद कुमार शर्मा का भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ है। गनीमत है कि उनकी ईमानदार छवि अभी भी कायम है। वह अपने अहंकारी रूप को त्यागकर जनता के बीच पैठ बनाएं और प्रदेशभर में जनता से सीधे संवाद की व्यवस्था करें। इसके साथ ही वह ऐसा तंत्र बनाएं, जो इस बात की कड़ी निगरानी रखे कि जनता की समस्याएं सचमुच हल हो रही हैं या नहीं तो अभी भी अरविंद कुमार शर्मा जनता के लाडले बन सकते हैं।