वसंत की आहट में फागुन का संदेश

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वसंत की आहट में फागुन का संदेश
वसंत की आहट में फागुन का संदेश
अवनीश कुमार गुप्ता

फागुन भारतीय संस्कृति का वह ऋतु संधिकाल है, जिसमें शीत की स्थूलता विलीन होती है और वसंत की ललित आभा प्रकट होती है। यह केवल ऋतु परिवर्तन का संकेत नहीं, बल्कि मनुष्य के मानसिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक स्तर पर एक नवचेतना का आवाहन है। धर्मशास्त्रों में फागुन को दिव्य आनंद की ऋतु कहा गया है, जिसमें मानव मन प्रकृति के उन्मुक्त उल्लास के साथ जुड़कर चेतना के उच्चतर स्तर तक पहुँचता है। वसंतोत्सव केवल बाह्य जगत में परिवर्तनों का पर्याय नहीं, यह अंतःकरण के स्फुरण और मानव चेतना के नवसृजन का काल भी है। यही कारण है कि फागुन को धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से गहन महत्त्व प्राप्त है।  वसंत की आहट में फागुन का संदेश

धार्मिक संदर्भों में फागुन को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है। महाशिवरात्रि इसी मास में आती है, जो पुरुष और प्रकृति के सामंजस्य का प्रतीक है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण और शिव महापुराण में फागुन मास की महिमा का उल्लेख है, जिसमें इसे मोक्ष प्रदायक और आत्मशुद्धि का अवसर बताया गया है। होलिका दहन जहां असत् पर सत् की विजय का प्रतीक है, वहीं धूलिवंदन और रंगपर्व मनुष्य की सामाजिक एकता और सामूहिक चेतना को जाग्रत करने का माध्यम है। भगवान कृष्ण के ब्रज में फागुन का विशेष महत्त्व है, जहाँ रासलीला और फूलों की होली, भक्त और भगवान के प्रेम का प्रतीक बनती है। यही कारण है कि भारतीय संतों और महापुरुषों ने फागुन को अध्यात्म, साधना और भक्ति का श्रेष्ठ काल माना है। 

वैज्ञानिक दृष्टि से फागुन मानव स्वास्थ्य और प्रकृति के चक्र के मध्य संतुलन स्थापित करने वाला महीना है। इस समय शीत ऋतु की जड़ता समाप्त होकर ग्रीष्म के उष्ण प्रवाह की भूमिका बनती है। शरीर में जमे हुए कफ, वात और पित्त संतुलित होते हैं, जिससे नई ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार होता है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि इस समय शरीर में सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर अधिक सक्रिय हो जाते हैं, जिससे मनोविज्ञान में आनंद और उत्साह की वृद्धि होती है। 

होली में प्रयुक्त प्राकृतिक रंगों का शरीर और मन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। हल्दी, टेसू, गुलाल और चंदन जैसे पारंपरिक रंग त्वचा के लिए लाभदायक होते हैं और फंगल संक्रमण से बचाते हैं। होलिका दहन से वातावरण में उपस्थित हानिकारक जीवाणु नष्ट होते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ग्रामीण भारत में होलिका की अग्नि से गेंहू, जौ और चने की बालियों को सेंककर खाने की परंपरा इसी वैज्ञानिक आधार पर विकसित हुई थी, क्योंकि यह नए अनाज के पाचन के लिए शरीर को तैयार करता है। 

परंतु आधुनिकता के अंधानुकरण ने इस सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्त्व को धूमिल कर दिया है। आज का तथाकथित विकसित समाज फागुन के रंगों को केवल व्यर्थ मनोरंजन और शोरगुल का साधन मानने लगा है। जिन प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कभी स्वास्थ्यवर्धक होता था, उनकी जगह रासायनिक रंगों ने ले ली है, जो त्वचा और नेत्रों के लिए हानिकारक हैं। जहां कभी होली मिलन सामाजिक समरसता का माध्यम था, वहाँ आज व्यक्तिगत अहंकार और बाजारवाद ने इसे मात्र व्यापारिक उत्सव बना दिया है। 

वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति ने हमारे परंपरागत उत्सवों की मूल आत्मा को ही विकृत कर दिया है। आज के तथाकथित बौद्धिक वर्ग के लिए फागुन मात्र एक पारंपरिक प्रथा है, जिसकी वैज्ञानिक और सांस्कृतिक गहराइयों में उतरने की रुचि और क्षमता अब नहीं बची। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हमने अपनी ही परंपराओं को सतही समझकर उन्हें त्यागने का प्रयास किया, जबकि पाश्चात्य जगत इन्हीं परंपराओं से प्रेरणा लेकर अपने समाज को स्वस्थ और संतुलित बनाने में जुटा हुआ है। 

ऐसे समय में, जब समाज अपनी ही परंपराओं के प्रति उदासीन होता जा रहा है, फागुन का सही मर्म समझने की आवश्यकता और भी अधिक बढ़ जाती है। यह मात्र ऋतु परिवर्तन का सूचक नहीं, बल्कि मनुष्य के आंतरिक चेतना का उद्घाटन भी है। यह हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना ही जीवन का आधार है। धार्मिक दृष्टि से यह आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक साधना का समय है, वैज्ञानिक दृष्टि से यह शरीर और मन के संतुलन का अवसर है, और सामाजिक दृष्टि से यह बंधुत्व, प्रेम और समरसता को पुनर्जीवित करने का संदेश देता है। 

फागुन का यह पावन पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़कर, एक स्वस्थ, संतुलित और आनंदमय जीवन की ओर ले जाने वाला मार्ग प्रशस्त करता है। इसे मात्र एक परंपरा समझकर उपेक्षित करना अपने ही सांस्कृतिक अस्तित्व को खो देने जैसा होगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी परंपराओं को आधुनिकता के साथ समायोजित करें, न कि उन्हें विकृत कर उनकी मूल आत्मा को नष्ट करें। यही सच्चे अर्थों में फागुन का धार्मिक और वैज्ञानिक संदेश है। वसंत की आहट में फागुन का संदेश