आरक्षित श्रेणी के योग्य उम्मीदवारों के अनारक्षित सीटों पर जाने पर रोक लगाना पूरी तरह से असंतुलित है। आरक्षित वर्ग का मेधावी अभ्यर्थी अनारक्षित में समायोजन का हकदार। आरक्षित वर्ग का मेधावी अनारक्षित में समायोजन का हकदार
माननीय उच्चतम न्यायालय ने 21अप्रैल,2017 को दीपा ईवी(ओबीसी) के सम्बंध में निर्णय देते हुए कहा था कि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित में नौकरी का हकदार नहीं है।आरक्षित वर्ग (ओबीसी,एससी,एसटी) का अभ्यर्थी यदि अपने लिए आरक्षित श्रेणी के रूप में आवेदन है तो उसे उसी वर्ग में समायोजित किया जायेगा। इस फैसले के उल्टा माननीय उच्चतम न्यायालय का 16 मार्च 2021 को निर्णय आया कि मेरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित कोटा में समायोजन का हकदार है।अभी 20 अगस्त 2024 को शीर्ष अदालत ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए निर्णय दिया है कि ओबीसी आदि आरक्षित वर्ग के मेधावी अभ्यर्थियों को अनारक्षित कोटे में प्रवेश पाने से रोका नहीं जा सकता।मेधावी अभ्यर्थियों को अनारक्षित में प्रवेश पाने से रोकना पूरी तरह असंतुलित है।
20 अगस्त, 2024 को रामनरेश पुत्र रिंकू कुशवाह और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य मामले की सुनवाई करते हुए,भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित श्रेणी (यूआर श्रेणी) में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को यूआर सीटों पर जाने से रोकना उचित नहीं है। इसने कहा, “…एक मेधावी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार जो अपनी योग्यता के आधार पर क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी का हकदार है,उसे क्षैतिज आरक्षण की उक्त सामान्य श्रेणी से एक सीट आवंटित की जानी चाहिए। इसका मतलब यह है कि ऐसे उम्मीदवार को ओबीसी, एससी/एसटी जैसे ऊर्ध्वाधर आरक्षण की श्रेणी के लिए आरक्षित क्षैतिज सीट में नहीं गिना जा सकता है।”
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, “निस्संदेह, अपीलकर्ता जो मेधावी थे और जिन्हें यूआर-जीएस श्रेणी के तहत प्रवेश दिया जा सकता था, उन्हें क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण लागू करने में कार्यप्रणाली के गलत इस्तेमाल के कारण प्रवेश से वंचित कर दिया गया। यह भी विवाद का विषय नहीं है कि कई छात्रों, जिन्होंने अपीलकर्ताओं की तुलना में बहुत कम अंक प्राप्त किए हैं, को यूआर-जीएस सीटों के खिलाफ प्रवेश दिया गया है। यह सौरव यादव और साधना सिंह डांगी के मामलों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून का पूरी तरह से उल्लंघन है।” इसने आगे कहा, “…मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के अनारक्षित सीटों पर जाने पर प्रतिबंध लगाना पूरी तरह से अस्थिर है। इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर, एससी/एसटी/ओबीसी से संबंधित मेधावी उम्मीदवार,जो अपनी योग्यता के आधार पर यूआर-जीएस कोटे के तहत चुने जाने के हकदार थे, उन्हें जीएस कोटे में खुली सीटों के खिलाफ सीटों से वंचित कर दिया गया है।”
इस मामले में,रिट याचिकाकर्ताओं (अपीलकर्ता) ने सरकारी स्कूलों से उत्तीर्ण मेधावी आरक्षित उम्मीदवारों को एमबीबीएस अनारक्षित (यूआर) श्रेणी के सरकारी स्कूल (जीएस) कोटे की सीटें आवंटित न करने के प्रतिवादी-चिकित्सा शिक्षा विभाग के फैसले को चुनौती दी थी। इसने प्रतिवादी-विभाग को अपीलकर्ताओं को अनारक्षित श्रेणी के सरकारी स्कूल कोटे की एमबीबीएस सीटें आवंटित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था। उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिकाकर्ताओं ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) से उत्पन्न अपीलों के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इस तथ्य से व्यथित होकर कि रिक्त सीटें अनारक्षित श्रेणी के लिए जारी की जा रही थीं, उक्त रिट याचिकाएं अपीलकर्ताओं द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गईं, जहां यह प्रार्थना की गई थी।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, “इसलिए, हम पाते हैं कि जैसा कि एस. कृष्णा श्रद्धा के मामले में इस न्यायालय ने कहा है…, प्रतिवादियों को अगले शैक्षणिक सत्र 2024-25 में यूआर-जीएस सीटों पर अपीलकर्ताओं को प्रवेश देने के निर्देश जारी करना उचित होगा। 12 अगस्त 2024 के आदेश के अनुसार, हमने पहले ही निर्देश दिया है कि अपीलकर्ताओं के सफल होने की स्थिति में 7 सीटें खाली रखी जाएँ। अपीलकर्ताओं को उक्त सीटों पर बहुत अच्छी तरह से समायोजित किया जा सकता है।” इस प्रकार,शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित विवादित निर्णयों को खारिज कर दिया और प्रतिवादियों को यूआर-जीएस श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों पर एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए अगले शैक्षणिक सत्र में अपीलकर्ताओं को प्रवेश देने का निर्देश दिया।
आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी का कटऑफ सामान्य के बराबर या अधिक हो तो एसे आरक्षित कोटे में समायोजित न कर अनारक्षित में समायोजित करना न्यायसंगत होगा।तमाम अवसरों पर देखा गया है कि मेरिटधारी/उच्च य्राप्तांक वाले अभ्यर्थियों को उनके लिए आरक्षित कोटे में ही समायोजित कर दिया जाता है,जबकि वे अनारक्षित में समायोजन के हकदार होते हैं।
अनारक्षित का मतलब सवर्ण के लिए आरक्षित नहीं
शीर्ष कोर्ट का 16 मार्च, 2021 का निर्णय मेरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग का अनारक्षित में समायोजन के सम्बंध में आया था। मण्डल कमीशन से सम्बंधित उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को नजरअंदाज कर पिछडेवर्ग के कोटा की हकमारी की जाती रही है।ओबीसी की अभ्यर्थी दीपा ईवी के मामले में 21 अप्रैल,2017 के निर्णय के आधार पर उच्चतम कटऑफ मार्क्स/मेरिट के बाद भी ओबीसी,एससी, एसटी को उनके निर्धारित कोटे तक ही सीमित कर संविधान विरुद्ध कार्य किया जा रहा था। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस एस. रविन्द्र भट और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ के निर्णय के सम्बंध में साफ हो गया कि सामान्य श्रेणी का मतलब सामान्य वर्ग की जाति/जनरल कास्ट के लिए आरक्षित नहीं बल्कि अनरिजर्व्ड/ओपन कैटेगरी/अनारक्षित होता है जिसमें कटऑफ मार्क्स/मेरिट के आधार पर किसी भी श्रेणी का अभ्यर्थी स्थान पा सकता है।
मण्डल कमीशन की सिफारिश के अनुसार खुली प्रतियोगी परीक्षा में उच्च मेरिट के आधार पर चयनित ओबीसी अभ्यर्थी का समायोजन उसके निर्धारित 27 प्रतिशत कोटे में न कर अनारक्षित कोटा में किया जाना चाहिए।जिस किसी भी अभ्यर्थी की कटऑफ मेरिट/कटऑफ मार्क्स सामान्य वर्ग के बराबर या उससे अधिक हो,का समायोजन उसके कोटे में न कर अनारक्षित में करना चाहिए। किसी भी दशा में सामान्य वर्ग व ईडब्ल्यूएस की मेरिट ओबीसी, एससी,एसटी से कम नहीं होनी चाहिए।सामान्य वर्ग से उच्च मेरिटधारी ओबीसी,एससी,
एसटी प्रतियोगी का समायोजन उनके लिए आरक्षित कोटा में ही करना पूरी तरह हकमारी व नाइंसाफी है।
चयन प्रक्रिया मेरिट की उच्चता के आधार पर की जानी चाहिए।मेरिटधारी ओबीसी का समायोजन 27% में ही करना वर्तमान के लगभग 60% व मण्डल कमीशन के अनुसार 52.10% ओबीसी आबादी को उसके कोटे तक सीमित करना संविधान विरुद्ध है। मण्डल कमीशन के तहत ओबीसी आरक्षण सम्बंधित निर्णयों में भी मेरिट को प्राथमिकता दी गयी है। उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ,पूर्णपीठ के निर्णय के विरुद्ध दो जजों की बेंच व उच्च न्यायालय के एकल जज द्वारा पलटने के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण व पूर्णतः असंवैधानिक करार दिए जाने का निर्णय 16 मार्च,2021 के आधार पर निष्प्रभावी हो चुका है।ओवरलैपिंग खत्म करने सम्बंधित उच्च न्यायालय प्रयागराज के एकल जज के निर्णय उच्चतम न्यायालय का मजाक है। कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य वर्ग का चयन ओबीसी,एससी से कम मेरिट व कटऑफ पर किया गया,जो न्यायसंगत नहीं है।केवल ओबीसी का जाति-प्रमाण पत्र लगाने से चयनित ओबीसी अभ्यर्थियों को उसके निर्धारित कोटे में सीमित करना अनुचित है। उच्चतम न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि यदि ओबीसी अभ्यर्थी कोई अतिरिक्त लाभ(आवेदन शुल्क छूट,उम्र सीमा की छूट,अकादमिक छूट आदि) लेता है,तो उसे ओबीसी आरक्षण कोटे में ही रखा जाएगा।
16 मार्च,2021 का शीर्ष कोर्ट का निर्णय न्यायसंगत है।मेरिट के आधार पर आरक्षित वर्ग का समायोजन उस वर्ग के लिए आरक्षित कोटे में न कर अनारक्षित में ही करना न्यायसंगत,नैसर्गिक न्याय के अनुकूल व संवैधानिक है। आरक्षित वर्ग का मेधावी अनारक्षित में समायोजन का हकदार