
जीवन केवल साँसों का चलना नहीं है। यह हर उस पल का नाम है जिसमें हम कुछ सीखते हैं, अनुभव करते हैं, और आगे बढ़ते हैं। बहुत से लोग कहते हैं, “जीवन चलने का नाम है,” क्योंकि स्थिरता मृत्यु का लक्षण है और गति जीवन की पहचान। लेकिन इससे भी आगे, जीवन एक अवसर है… जीवन केवल साँसों का चलना नहीं

जीवन क्या है..? बहुत लोग यह बात कहते हैं कि जीवन चलने का नाम है। वास्तव में जीवन एक अपोर्चुनीटी(अवसर) है, एक पासिबिलिटी(संभावना) है, एक मिस्ट्री(रहस्य) है या यूं कहें कि जीवन एक रहस्य है। आदमी अक्सर सतही तौर पर जीवन को जीता है। उसका भरपूर आनंद नहीं उठाता। जरूरी यह है कि हम अपने जीवन के हर पल को महसूस करें,उसे सहज व सरल ढंग से जीयें। वर्तमान में जीना महत्वपूर्ण है,भूत और भविष्य की सोच हमें परेशानियों से लैस करती है। ओशो के अनुसार, जीवन को जीने का सबसे अच्छा तरीका है कि हम उसे पूरी तरह से और गहरे तरीके से जिएं, हर पल को अनुभव करें, और बिना किसी डर या चिंता के जिएं। जीवन जीने के लिए जीजिविषा जरूरी है। जीजिविषा मतलब ‘जीने की इच्छा।’ जीवन को हम कभी भी बोझ मानकर नहीं चलें। वास्तव में जीवन के प्रति हमारी गहन लालसा होनी चाहिए, जिजीविषा यही तो है। जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण सदैव सकारात्मक होना चाहिए। दृढ़ संकल्प बहुत ही महत्वपूर्ण व जरूरी है, जीवन जीने के लिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि सबसे बड़ी ताकत हमारी इच्छाशक्ति है।
जीवन की गूढ़ और रहस्यमयी यात्रा में अनुभव हमें हर पल कुछ नया सिखाता है। सच तो यह है कि जीवन के विभिन्न प्रकार के अनुभवों से मनुष्य सीखता है और जीवन रूपी नैय्या में आगे बढ़ता है। अनुभवों से मनुष्य का आंतरिक दृष्टिकोण बदलता है और दृष्टिकोण में बदलाव से जीवन को एक नया आकार,नई शेप या नई दृष्टि मिलती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि मनुष्य अपने मन के आंतरिक दृष्टिकोण को बदलकर ही अपने जीवन के बाहरी पहलुओं को बदल सकता है। जीवन में सफलता या असफलता हमारी क्षमता से अधिक हमारे स्वयं के दृष्टिकोण पर निर्भर करती है। जीवन में सकारात्मक सोच रखना बहुत आवश्यक है, क्यों कि नकारात्मक रवैया हमारे अंदर निराशा का भाव पैदा करता है। हमें अपने जीवन पथ से अलग ले जाता है।सकारात्मक दृष्टिकोण का मतलब है जीवन के प्रति एक आशावादी व सुंदर, पाज़ीटिव रवैया रखना, अच्छे परिणामों की उम्मीद करना और चुनौतियों का सामना करने में हमेशा दृढ़ और कृतसंकल्पित रहना। वास्तव में यह हमारी एक मानसिक और भावनात्मक स्थिति है, जो हमारे जीवन के उज्ज्वल पक्ष(अच्छे पक्ष) पर ध्यान केंद्रित करने और समस्याओं के बजाय समाधान खोजने में मदद करती है। हमें अपने स्वयं पर विश्वास होना चाहिए।
कांफिडेंस बहुत बड़ी चीज़ है। वास्तव में, सच तो यह है यह विश्वास ही होता है जो हमें शक्ति देता है। वास्तव में उम्मीद, आशा और विश्वास ही तो जीवन है।किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि विश्वास वह जोखिम है, जो हमें सत्य की ओर ले जाता है। बिना विश्वास के, बिना उस आंतरिक आग के, जो हमें अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है, हम जीवन की गहराई को कैसे समझ सकते हैं? जो व्यक्ति जोखिम नहीं लेता, वह कुछ हासिल नहीं करता। हमारा मन विचारों की एक सतत धारा है। यह धारा कभी रुकती नहीं, कभी स्थिर नहीं होती। देखा जाए तो हमारे दुख, हमारी खुशियां, हमारे सपने, सब इस धारा का ही हिस्सा हैं। मनुष्य का मन बहुत ही चंचल होता है क्योंकि, यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो नई चीजों की तलाश में और विभिन्न भावनाओं और विचारों के कारण लगातार बदलती रहती है, लेकिन मनुष्य को यह चाहिए कि वह इस धारा(मन की चंचलता) को स्थिर करने का प्रयास करे। चंचलता में नहीं डूबे, क्यों कि यह हमें परेशानियों में डाल देगा। याद रखिए कि ध्यान मन को शांत करने और विचारों पर नियंत्रण पाने में मदद करता है। इंद्रियों को नियंत्रित करने से मन को भटकने से रोका जा सकता है। कहना चाहूंगा कि सकारात्मक सोच मन को शांत करने और खुशी बढ़ाने में मदद करती है। वास्तव में इन उपायों को अपनाकर, हम मन की चंचलता को कम कर सकते हैं और मन को शांत और स्थिर बनाया जा सकता है। वास्तव में जीवन में हमें कभी भी कठिनाइयों, संघर्षों से घबराना बिल्कुल नहीं है। जीवन में हर मोड़ पर कठिनाईयों का, संघर्षों का सामना हमें करना पड़ता है, क्यों कि जीवन फूलों की सेज कतई नहीं है। यहां फूल हैं तो कांटे भी हैं और हमें इन कांटों से संघर्ष करके आगे निकलना है और
इससे हम आगे तभी निकल सकते हैं,जब हम सकारात्मक हों, हमारे अंदर विश्वास की लौ हमेशा प्रज्ज्वलित रहे।सच तो यह है कि कठिनाइयां और संघर्ष ही हमारे लिए अवसर हैं। जब लगे कि सब कुछ खत्म हो गया, तब भी एक छोटा-सा विश्वास, एक छोटी-सी आशा, हमें फिर से उठा सकती है। हमारी सबसे बड़ी ताकत हमारी इच्छाशक्ति है। हमारी इच्छा, हमारा संकल्प, वह शक्ति है जो पहाड़ों को भी हिला सकती है। रामधारी सिंह ‘दिनकर’ अपनी प्रसिद्ध कविता ‘रश्मिरथी’ में क्या खूब कहते हैं-‘है कौन विघ्न्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में ? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़, मानव जब ज़ोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।’ अंत में यही कहूंगा कि कभी भी डरो मत, गलतियां करो, सीखो, और हमेशा आगे बढ़ो। यही जीवन है। जीवन केवल साँसों का चलना नहीं