इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ करने का मेरा अभियान विगत लगभग साठ वर्षों से चल रहा है। मैंने ग्यारहवीं कक्षा तक आधे से ज्यादा भारत घूम डाला था और मैंने देखा था कि सभी जगह इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ के रूप में अधिक जाना जाता है। जितने तीर्थस्थलों पर मैं जाता था, वहां इन्हीं दोनों में से कोई एक नाम प्रचलित मिलता था। तीर्थों मेें लोग यह जानकर कि मैं प्रयागराज से आया हूं, मुझे विशेष महत्व देते थे। धार्मिक पुस्तकों में भी सर्वत्र ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ नाम ही प्रचलित मिलते रहे हैं। 1961 में जब मैं इलाहाबाद में देश के प्रमुख राश्ट्रीय दैनिक ‘भारत’ में मुख्य संवाददाता एवं स्थानीय समाचार सम्पादक बना तो मैं अपने प्र्रधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव से अनुमति लेकर अखबार में इलाहाबाद के बजाय ‘प्रयाग’ नाम का उपयोग करने लगा। साथ में शासन से इस मांग का मेरा अभियान भी चल रहा था कि औपचारिक रूप से इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ रख दिया जाय। मेरे अभियान से प्रभावित होकर बहुत लोग इलाहाबाद के बजाय ‘प्रयाग’ लिखने लगे थे।
1966 में प्रयाग में जो महाकुम्भ हुआ, उसमें भी मैंने इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का जोरदार अभियान चलाया तथा पूरे महाकुम्भ-क्षेत्र में घूम-घूमकर मैंने हजारों संत-महात्माओं से नाम-परिवर्तन के ज्ञापन पर हस्ताक्षर कराए थे और वह ज्ञापन प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास भेजा था। उसी महाकुम्भ के दौरान मैंने ‘रंगभारती’ के तत्वावधान में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन में एक विशाल संत-साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया था, जिसकी अध्यक्षता महामण्डलेश्वर स्वामी प्रकाशानन्द जी महाराज ने की थी तथा मुख्य अतिथि हिन्दी की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा थीं। उसमें कुम्भ क्षेत्र में पधारे हुए प्रायः सभी महत्वपूर्ण संत-महात्मा तथा बड़ी संख्या में साहित्यकारगण शामिल हुए थे। उस संत-साहित्यकार सम्मेलन में महामण्डलेश्वर स्वामी वेदव्यासानन्द जी महाराज ने मेरा तैयार किया हुआ प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसमें प्रदेश एवं केन्द्र सरकार से मांग की गई थी कि इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ कर दिया जाय। वह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ था। चूंकि वह कांग्रेसी जमाना था और कांग्रेस को प्राचीन भारतीय संस्कृति से विरक्ति रहती थी, इसलिए उक्त प्रस्ताव पर सरकार की स्वीकृति नहीं मिली।
1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में पहली भाजपा-सरकार गठित हुई। उस समय अयोध्या-आंदोलन की बदौलत लालकृश्ण अडवानी की भांति कल्याण सिंह भी पूरे देश के महानायक बने हुए थे। उत्तर प्रदेश में कल्याण ंिसह की छवि बेजोड़ थी। उनका अत्यंत ठसकदार मुख्यमंत्री का रूप था। सारे अपराधी तत्व प्रदेश छोड़कर बाहर भाग गए थे और जो बचे थे, वे जेल में डाल दिए गए थे। कल्याण सिंह की उस यषस्वी सरकार को लोग अभी तक याद करते हैं। उस समय सीतापुर के प्रसिद्ध नेता राजेन्द्र कुमार गुप्त कल्याण सिंह के विशेष विश्वासपात्र थे तथा दोनों में महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श होता था। राजेन्द्र कुमार गुप्त से मेरी पहले से बहुत घनिष्ठता थी। कल्याण सिंह की सरकार में राजेन्द्र कुमार गुप्त वित्तमंत्री बनाए गए थे। एक दिन मैं राजेन्द्र कुमार गुप्त के पास मुख्यमंत्री को सम्बोधित अपना एक पत्र लेकर पहुंचा, जिसमें मेरी ‘रंगभारती’ संस्था द्वारा मांग की गई थी कि इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयाग’ या ‘प्रयागराज’ रखा जाय। राजेन्द्र कुमार गुप्त ने मेरे सामने ही कल्याण सिंह को फोन कर मेरी मांग का उल्लेख किया और उनसे बातें कीं। फिर उन्होंने मुझे बताया कि कल्याण सिंह मेरी मांग से सहमत हैं। मैं राजेन्द्र कुमार गुप्त को अपनी मांग का बार-बार स्मरण करा रहा था। एक दिन उन्होंने मुझे बताया कि प्रदेश सरकार ने मेरी मांग को स्वीकार कर लिया है तथा इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ हो जाएगा।
जानिए प्रयाग से इलाहाबाद और फिर प्रयागराज तक का सफर-
- पुराणों में कहा गया है, ”प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” अर्थात् प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने इसकी रचना से बाद प्रयाग में पहला यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग यानी यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना।
- कुछ मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने संसार की रचना के बाद पहला बलिदान यहीं दिया था, इस कारण इसका नाम प्रयाग पड़ा। संस्कृत में प्रयाग का एक मतलब ‘बलिदान की जगह’ भी है। इसके अलावा प्रयाग ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली भी है।
- 1575 में संगम के सामरिक महत्व से प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने इलाहाबास के नाम से शहर की स्थापना की जिसका अर्थ है- अल्लाह का शहर। उन्होंने यहां इलाहाबाद किले का निर्माण कराया, जिसे उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है।
- इसके बाद 1858 में अंग्रेजों के शासन के दौरान शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।
- आजादी की लड़ाई का केंद्र इलाहाबाद ही था। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 CE में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का जिक्र किया है, जिसे इलाहाबाद माना जाता है।
- उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का जिक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है।
- वैसे थो इलाहाबाद नाम मुगल शासक अकबर की देन है लेकिन इसे फिर से प्रयागराज बनाने की मांग समय-समय पर होती रही है।
- महामना मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजी शासनकाल में सबसे पहले यह आवाज उठाई और फिर अनेक संस्थानों ने समय-समय पर मांग दोहराई।
- मालवीय ने इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम भी छेड़ी थी। 1996 के बाद इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम फिर से शुरू हुई। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेद्र गिरी भी नाम बदलने की मुहिम में आगे बताया।
- आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के समक्ष भी नाम इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग की गई। वर्तमान में साधू संतों ने सरकार के सामने प्रस्ताव दिया था।
राजेन्द्र कुमार गुप्त से यह जानकारी मिलते ही मैंने उक्त आशय का समाचार विभिन्न अखबारों में प्रकाशनार्थ भेज दिया था, जिसके बाद इलाहाबाद में दैनिक ‘आज’ सहित अन्य कई अखबारों ने अपने यहां ‘डेटलाइन’ आदि में प्रयाग लिखना शुरू कर दिया था। अयोध्या का विवादित ढांचा गिरने के बाद 6 दिसम्बर, 1992 को कल्याण सिंह की सरकार केन्द्र द्वारा बर्खास्त कर दी गई थी। उसके अन्य दुष्परिणामों के साथ एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का मामला पता नहीं कहां गायब हो गया। दूसरी बार कल्याण सिंह वर्ष 1997 में पुनः मुख्यमंत्री बने तो मैंने उन्हें इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का प्रकरण याद दिलाया। उन्होंने वह कार्य पूरा करने का वायदा किया, किन्तु तभी भाजपा के एक गुट द्वारा कल्याण सिंह को हटाने का अभियान शुरू कर दिया गया तथा उन्हें उसमें उलझे रहना पड़ा। दो वर्ष में वह हट भी गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश में वर्ष 2000 में जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने थे तो इलाहाबाद मं वर्ष 2001 में पूर्ण महाकुम्भ आयोजित हुआ था। राजनाथ सिंह जब मुख्यमंत्री बने थे, उसके बाद से ही मैंने उन्हें इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन से सम्बंधित अनुरोधपत्र देना शुरू कर दिया था। यहां तक कि ‘जनता दर्शन’ में भी मैंने उन्हें अपने ज्ञापन पेश किए और इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ करने का अनुरोध किया। उन्होंने भी मेरे अनुरोध की प्रशंसा करते हुए मुझे आश्वासन दिया कि मेरी मांग वह अवश्य पूरी करेंगे। मैं उनसे कहता था कि आप सिर्फ आश्वासन न दंे, बल्कि मंत्रिपरिषद द्वारा प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकृत कराएं।
होते-होते प्रयाग का वह महाकुम्भ समाप्त हो गया तथा समाप्ति के बाद लखनऊ में एक आयोजन हुआ, जिसमें महाकुम्भ के संदर्भ में अनेक लोगों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। उस आयोजन में मैंने कई संत-महात्माओं को पहले से प्रेरित कर रखा था कि वे इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ करने का मुख्यमंत्री पर दबाव डालें। ऐसा ही हुआ। आयोजन में मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से जोरदार षब्दों में घोषणा की कि इलाहाबाद का नाम अब ‘प्रयागराज’ कर दिया जाएगा। लेकिन दुर्भाग्यवश प्रदेश के दूसरे भाजपा-मुख्यमंत्री की भी नाम-परिवर्तन वाली उक्त घोषणा पता नहीं कहां विलुप्त हो गई। मैंने डाॅ0 मुरली मनोहर जोशी पर भी ‘प्रयागराज’ नाम किए जाने का दबाव बनाया था और मुझे आशा थी कि अटल-सरकार के समय मेरी मांग पूरी हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इलाहाबाद के केशव प्रसाद मौर्य जब उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बनकर आए तो मैंने उनसे पहली ही भेंट में मांग की कि वह इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ किए जाने की मेरी मांग को बल प्रदान करें। उन्होंने बताया कि वह स्वयं इस विचार के समर्थक हैं। मैंने उन्हें बाद में भी अनेक बार अपनी मांग का स्मरण कराया और ‘प्रयागराज’ नाम किए जाने के बारे में मैंने जो आलेख लिखे थे, उनकी प्रतियां भेंट कीं। सौभाग्यवश इस समय उत्तर प्रदेश की बागडोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में है। योगी आदित्यनाथ का तन-मन भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत है। उन्होंने इलाहाबाद का नाम ‘प्रयागराज’ किए जाने पर सहमति व्यक्त की है। वह स्वयं भी ‘प्रयागराज’ नाम प्रयुक्त करते हैं। इलाहाबाद में जनवरी, 2019 में अर्द्धमहाकुम्भ का आयोजन होने वाला है। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह नाम-परिवर्तन का प्रस्ताव मंत्रिपरिषद द्वारा शीघ्रातिषीघ्र स्वीकृत करा लें और उसके बाद केन्द्र सरकार से भी अनुरोध करें कि वह रेल आदि समस्त केन्द्रीय विभागों में इलाहाबाद के बजाय ‘प्रयागराज’ नाम कर दे। यहां उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद से दिल्ली के लिए जब एक नई ट्रेन चलाई गई तो उस समय रेलवे बोर्ड के यातायात-सदस्य रामेष्वर प्रसाद ंिसंह ने, जो मेरे मित्र थे, मुझसे उस नई ट्रेन के नामकरण हेतु पूछा था। मेरे सुझाव पर उन्होंने उस ट्रेन का नामकरण ‘प्रयागराज एक्सपे्रस’ किया था।