गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में जांच की आंच बड़ों तक पहुंचने लगी है।सीबीआई, लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने प्रदेश सरकार से तत्कालीन मुख्य सचिव (सीएस) आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई व बाद में सीएस रहे दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की मंजूरी मांगी है। घोटाले में गिरफ्तार इंजिनियरों के बयान और दस्तावेज के आधार सपा सरकार के कार्यकाल के दोनों पावरफुल आईएएस अफसरों की जांच का नंबर आया है। दोनों पूर्व सीएस रिवर फ्रंट के निर्माण को लेकर गठित उच्चस्तरीय अनुश्रवण समिति (टास्क फोर्स) का सबसे अहम हिस्सा थे।
आलोक रंजन और दीपक सिंघल के जांच के घेरे में आने की वजह योजना में हुईं गड़बड़ियों की अनदेखी को बताया जा रहा है। दरअसल, रिवर फ्रंट को मंजूरी मिलने के बाद 25 मार्च, 2015 को आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव (सिंचाई) दीपक सिंघल, सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता, विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता भी शामिल थे।
नियमों के विरुद्ध होते रहे टेंडर
टास्क फोर्स ने 23 बैठकें की और सिंघल ने प्रॉजेक्ट के 20 से 25 दौरे किए थे। आरोप है कि इस दौरान इन्हें कोई गड़बड़ी और अनियमितता नहीं दिखाई दी। योजना से जुड़े हर काम का बजट छह से आठ गुना बढ़ गया, नियमों के विरुद्ध टेंडर होते रहे और मनाही के बावजूद एक काम के बजट का इस्तेमाल दूसरे काम में होता रहा। इसके बावजूद कोई सवाल नहीं उठाए गए और न ही किसी के खिलाफ जांच करवाई गई। राज्य सरकार द्वारा गठित जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसे समझ से परे बताते हुए कहा था कि इतनी बड़ी परियोजना में कोई चेक्स ऐंड बैलेंसेज का सिस्टम प्रतीत नहीं होता है।
इंजिनियरों के बयानों से बढ़ीं मुश्किलें
जांच के दौरान जिन इंजिनियरों के बयान लिए गए, उनमें से कुछ ने कहा है कि तय सीमा पार करके अधिक खर्च और भुगतान इसलिए किया गया, क्योंकि काम जल्द खत्म करने के टास्क फोर्स से निर्देश दिए जा रहे थे। तत्कालीन सीएम के ड्रीम प्रॉजेक्ट और काम जल्द खत्म करने की आड़ में कई काम बिल्कुल छोड़ दिए गए। कुछ कार्यों की प्रगति धीमी रखी गई और छूटे कार्यों का बजट दूसरी जगह बिना मंजूरी लगा दिया गया।
सरकारी पैसों पर विदेश यात्राएं कीं
चैनलाइजेशन और रबर डैम की तकनीक के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए आलोक रंजन, दीपक सिंघल और अन्य अधिकारियों ने तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ चीन, जापान, स्टॉकहोम, जर्मनी, मलयेशिया, सिंगापुर, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की यात्राएं कीं। हालांकि, जांच के दौरान सिंचाई विभाग के अधिकारी और इंजिनियर इन यात्राओं का ब्योरा नहीं दे सके।