आज सूचना क्रांति और तकनीक का जमाना है। आज हम डिजिटल युग में सांस ले रहे हैं,एक ऐसी दुनिया जो संचार और मनोरंजन से लेकर, आनलाइन खरीदारी, आनलाइन गतिविधियों, स्वास्थ्य सेवा और परिवहन तक हर चीज़ के लिए प्रौद्योगिकी पर निर्भर होती जा रही है। हालाँकि, डिजिटल क्रांति ने मनुष्य को अनेक बेजोड़ सुविधाएँ और प्रगति प्रदान की है, लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण संबंधी अनेक चुनौतियाँ भी सामने आई हैं, जिनमें से डिजिटल प्रदूषण प्रमुख चुनौती है। सूचना क्रांति और तकनीक के इस दौर में ‘डिजिटल प्रदूषण’ एक नया कंसेप्ट है जो हमारे पर्यावरण, पारिस्थितिकी तंत्र पर टेक्नोलॉजी के कारण होने वाले नकारात्मक प्रभावों को बताता है। गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है बढ़ता डिजिटल प्रदूषण
आज दुनिया भर में इंटरनेट क्रांति के बीच लैपटॉप, कंप्यूटर, सोशल नेटवर्किंग साइट्स व्हाट्स एप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब, ट्विटर का जमकर उपयोग और प्रयोग किया जा रहा है। रोजाना करोड़ों इ-मेल भेजें जाते हैं। विशाल डाटा(फोटो, विडियो, डाक्यूमेंट्स, ई-मेल आदि) केंद्रों में ‘क्लाउड डाटा’ स्टोरेज किया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि डाटा स्टोरेज बहुत ज्यादा बिजली की खपत करते हैं। इससे डिजिटल प्रदूषण को बढ़ावा मिलता है। वास्तव में डिजिटल प्रदूषण इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरा), अतिरिक्त डेटा भंडारण, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की ऊर्जा खपत और पूरे डिजिटल उद्योग का कार्बन पदचिह्न जैसे अनेक तरीकों से प्रकट होता है। दूसरे शब्दों में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि ई-कचरे से लेकर कार्बन उत्सर्जन तक डिजिटल प्रदूषण वास्तविक है। आज दुनिया भर में एंड्रॉयड मोबाइल, स्मार्टफोन, लैपटॉप, कंप्यूटर का प्रयोग किया जा रहा है। अप्रचलित गैजेट(काम में नहीं आने वाले) और हार्डवेयर घटक अक्सर लैंडफिल में पहुंच जाते हैं, जिससे विषाक्त इलैक्ट्रोनिक अपशिष्ट(ई-कचरा ) उत्पन्न होता है।
कहना ग़लत नहीं होगा कि सभी डिजिटल प्लेटफार्म ऊर्जा की खपत करते हैं। जब भी हम अपने गैजेट्स के माध्यम से कोई वीडियो स्ट्रीम करते हैं या विभिन्न ऑनलाइन गतिविधियों में संलग्न होते हैं, तो कहीं न कहीं सर्वर उस सेवा को चालू रखने के लिए बिजली की खपत करते हैं। पाठकों को जानकारी के लिए बताता चलूं कि डिजिटल प्रदूषण के कुछ बहुत ही चौंकाने वाले प्रभाव हैं। उदाहरण के लिए, अकेले डेटा सेंटर में प्रति वर्ग मीटर लगभग 1,000 केडब्ल्यूएच की खपत होती है, जो एक सामान्य अमेरिकी घर की बिजली खपत से लगभग दस गुना अधिक है। डिजिटल तकनीक के प्रोडक्शन में अक्सर दुर्लभ धातुओं का खनन शामिल होता है, जिससे पृथ्वी के सीमित संसाधन खत्म हो रहे हैं, जो हमारे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। गौरतलब है कि ई-कचरे से किसी भी राष्ट्र पर वित्तीय बोझ भी बढ़ता है और इसके संपर्क में आने से मनुष्य और जीवों को गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, खासकर विकासशील देशों में जहां ई-कचरा अक्सर फेंका जाता है।
बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि डिजिटल प्रदूषण को कुछ तरीके अपनाकर कम किया जा सकता है। मसलन, हरित आईटी मानकों/प्रमाणनों को अपनाना, उनका पालन करना सबसे तात्कालिक तरीकों में से एक है। इसमें ऊर्जा दक्षता के लिए कंप्यूटर सिस्टम को अनुकूलित करना, कम बिजली की आवश्यकता वाले सॉफ़्टवेयर का उपयोग करना, एआई एल्गोरिदम को शामिल करना आदि शामिल है, जो ऊर्जा के उपयोग को बुद्धिमानी से प्रबंधित कर सकते हैं। इसके अलावा पुराने और अप्रचलित इलैक्ट्रोनिक उपकरणों की रिसाइक्लिंग(पुनर्चक्रण) और उचित निपटान जरूरी है।उचित निपटान न केवल खतरनाक कचरे को लैंडफिल में जाने से रोकता है बल्कि मूल्यवान सामग्रियों को पुनः प्राप्त करने में भी मदद करता है, जिनका पुनः उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, संधारणीय सर्वर प्रबंधन समाधान के तहत नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित क्लाउड सेवाओं पर माइग्रेट करना या कार्बन न्यूट्रल होस्टिंग सेवाओं का उपयोग भी किया जा सकता है। वर्चुअलाइजेशन जैसी प्रथाओं से कंपनियों द्वारा मौजूदा हार्डवेयर का अधिक कुशलता से उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि इससे नए उपकरणों की आवश्यकता कम हो जाती है और इस प्रकार ई-कचरे और ऊर्जा खपत दोनों को कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं,कर्मचारियों को डिजिटल स्थिरता की संस्कृति और उसके महत्व के बारे में शिक्षित किए जाने के लिए आंतरिक जागरूकता अभियान, कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा सकते हैं। मसलन,प्रिंटर को डिफ़ॉल्ट रूप से डबल-साइड प्रिंटिंग पर सेट करना या कर्मचारियों को उपयोग में न होने पर अपने कंप्यूटर को बंद करने के लिए प्रोत्साहित करना जैसे सरल कदम महत्वपूर्ण ऊर्जा बचत में योगदान कर सकते हैं।
साथ ही, संगठनों को डिजिटल सफाई के लिए भी एक नियमित प्रोटोकॉल स्थापित करना चाहिए। मसलन,अप्रयुक्त फ़ाइलें, अनावश्यक ईमेल और पुराने डेटाबेस के स्थान पर केवल अति आवश्यक डेटा को ही स्टोर किया जाए और अनावश्यक डेटा को स्टोर न किया जाए, क्यों कि इससे अनावश्यक रूप से ऊर्जा की खपत होती है। टिकाऊ तकनीकी समाधानों में निवेश भी बहुत जरूरी है। इसके अलावा हमें यह चाहिए कि हम
टिकाऊ, अपग्रेड करने योग्य और पर्यावरण के अनुकूल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का चयन करें। अपने क्लाउड स्टोरेज में अनावश्यक फ़ाइलों को साफ करें और हम समाज के लोगों को डिजिटल प्रदूषण के बारे में जागरूक करें क्यों कि साझा किया गया हर ज्ञान एक अधिक टिकाऊ भविष्य में योगदान देता है। वृक्षारोपण करके भी हम कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पेड़ प्रकृति के सबसे अच्छे कार्बन सिंक हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पेड़ लगाना डिजिटल गतिविधियों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने का एक सीधा तरीका है।
अंत में यही कहूंगा कि आज की इस दुनिया में डिजिटल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है। डिजिटल प्रदूषण से निपटना किसी व्यक्ति विशेष, समाज विशेष और सरकार विशेष की जिम्मेदारी नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो यह एक सामूहिक मुद्दा और सामूहिक समस्या है। हमारी जागरूकता, हमारी सचेतनता से हम डिजिटल प्रदूषण के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों को काफी हद तक कम कर सकते हैं। गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है बढ़ता डिजिटल प्रदूषण