गुजरात में कोली समाज की राजनीति में दबी है आवाज़ In Gujarat, the voice of Koli society is suppressed in politics.

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गुजरात में एक तिहाई वोट शेयर वाले कोली समाज की राजनीति में दबी हुई है आवाज़।


गुजरात। गुजरात की आबादी का एक तिहाई हिस्सा कोली समुदाय का है और राज्य में उनका वोट शेयर बराबर है। वे 44-45 सीटों पर अपने दबदबे के साथ 82 विधानसभा सीटों के चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं, फिर भी प्रमुख राजनीतिक विमर्श और राज्य की राजनीति में उनका प्रभाव बहुत कम है। समुदाय के युवा नेताओं के अनुसार,इस समुदाय में कम साक्षरता दर और समुदाय के भीतर सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर उप-जाति आधारित विभाजन का परिणाम है, क्योंकि समुदाय के बड़े लोगों का ध्यान अपनी व्यक्तिगत प्रगति पर केंद्रित हैं, न कि संपूर्ण समुदाय के उत्थान पर।गुजरात के जातिगत समीकरण में एक तिहाई आबादी होने के बाद भी कोली समाज राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है।कांग्रेस हो या भाजपा कोली को किनारे ही करके चलते हैं।इधर कोली निषाद मछुआरा समाज सक्रियता दिखा रहा है।भाजपा से कोली समाज नाराज दिख रहा है।पर,कांग्रेस भी इन्हें साधने के लिए विशेष सक्रियता नहीं दिखा रहा है।जब से भाजपा की सरकार चल रही है,कोली समाज राजनीतिक उपेक्षा की मार झेल रहा है।दोनों प्रमुख दल जितना तवज्जों 12 प्रतिशत पाटीदार को देते हैं,उसका एक तिहाई अहमियत भी लगभग 30 प्रतिशत कोली निषाद मछुआरा को नहीं देते हैं।निषाद/मछुआरों के सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों से लंबे समय से सक्रिय राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव व भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटनराम निषाद ने कहा कि गुजरात में सागरपुत्र कोली-निषाद की 30 प्रतिशत से अधिक आबादी होने के बाद भी मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री तो दूर किसी दल ने कैबिनेट में भी स्थान देना उचित नहीं समझा।दोनों मुख्य दल 12 प्रतिशत पाटीदार को ही तवज्जों देते रहे हैं।


पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जो कोरी(बुनकर/जुलाहा) जाति के हैं,उन्हें भाजपा ने कोली जाति का प्रचारित कर कोली को साध लिया।इस सम्बंध में कोली-निषाद समुदाय नेता चौ.लौटनराम निषाद ने कहा कि कोरी व कोली बिल्कुल अलग जाति है।कोरी जाति शैक्षिक-राजनीतिक रूप से जागरूक है,सो राजनीतिक लाभ के लिए जातीय सूची में कोरी के साथ कोली को जुड़वा लिया।गुजरात मे कोविंद की कोरी जाति की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है। विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान गुजरात में इन्हें कोली प्रचारित किया जा रहा था।हमने झूठ से पर्दा उठाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी,मधुसूदन मिस्त्री व अर्जुन मोढवाडिया से फोन कर भावनगर,सूरत,बड़ोदरा व अहमदाबाद में राहुल गांधी जी के साथ हमने कोली-निषादों के संवाद कराने की बात किया,पर ऐसा तय नहीं हो पाया।अगर उस समय 3-4 संवाद कार्यक्रम हो गया तो भाजपा बाहर हो गयी होती और कांग्रेस 115-120 सीट जीतकर सरकार बना ली होती।


न्यू समाज कोली क्रांति सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणजी सोलंकी ने कहा, “समुदाय के युवा नेता समुदाय के सदस्यों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भीतर के प्रभावशाली लोग उन्हें तलपदा कोली, चुवालिया कोली, केडिया कोली, कोली पटेल आदि उप-जातियों के आधार पर विभाजित कर रहे हैं। लेकिन अब युवाओं ने इस विभाजन के खिलाफ लड़ने का फैसला किया है, क्योंकि हमारा अस्तित्व और राजनीति में महत्व दांव पर है।”इनके विचारों का समर्थन करते हुए लौटनराम निषाद का कहना है कि उत्तर भारत के राज्य हों या मध्य व पश्चिमी भारत के राज्य,राजनीतिक दल तो इन्हें फिरके व उपजातियों में बाँटकर कमजोर करते आ रहे हैं,वही अपने समाज के नेता भी निजस्वार्थ में उपजातियों का भेदभाव पैदा करते हैं।गुजरात ही नहीं,उत्तर प्रदेश, बिहार में भी इस तरह की राजनीति चलती है।


रणजी सोलंकी ने दो उदाहरणों का हवाला दिया-हाल ही में, देवभूमि द्वारका जिले के जमरावल नगरपालिका चुनावों में कोली समुदाय के सदस्यों ने व्यवस्था परिवर्तन पार्टी (वीपीपी) के चिह्न् पर चुनाव लड़ा था। उसे प्रचंड बहुमत मिला। कुल 33 सीटों में से 31 कोली समुदाय और वीपीपी के उम्मीदवारों के खाते में गईं। इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस की हार हुई।सोलंकी ने दूसरे उदाहरण का हवाला देते हुए कहा, “18 मई को हम सुरेंद्रनगर में एक कोली चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित शैक्षणिक संस्थान की आधारशिला रखे। यह स्कूली शिक्षा पूरी कर चुके छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक कोचिंग सेंटर होगा। समुदाय ने फैसला किया था कि इस अवसर पर आमंत्रित किसी भी राजनीतिक नेता को मंच पर नहीं बैठाया जाएगा। वे अन्य सामान्य समुदाय के सदस्यों के साथ दर्शक-दीर्घा में होंगे।”


राजकोट के कोली ठाकोर सेना के अध्यक्ष रणछोड़ उघरेजा कहते हैं, “राजकोट, सुरेंद्रनगर, अहमदाबाद, बोटाद व मोरबी जिलों में सौराष्ट्र तट के साथ और दक्षिण गुजरात के भरूच, सूरत, वलसाड, नवसारी शहरों में कोली समुदाय का कई विधानसभा सीटों पर प्रभुत्व है। यदि राजनीतिक दल कोली उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारते हैं तो वे पराजित हो सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि समुदाय में एकता की कमी है। विभिन्न समूह अब पूरे समुदाय को एकजुट करने के लिए काम कर रहे हैं।”उघरेजा और अन्य समुदाय के सदस्यों को एहसास है कि “समुदाय को एकजुट करने का तरीका साक्षरता और सामाजिक-आर्थिक विकास है। इसलिए समुदाय के भीतर समूह इस पर काम कर रहे हैं, शैक्षिक संस्थानों की स्थापना कर रहे हैं, अगली पीढ़ी के लिए शिक्षा की जरूरत के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं। एक बार यह और वित्तीय स्थिरता हासिल हो जाने के बाद समुदाय को एकजुट करना आसान होगा।”


तीन दशकों से अधिक समय से समुदाय की सेवा करने वाले जेठाभाई जोरा को डर है, “दो दिग्गजों, अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष अजीत पटेल और पूर्व मंत्री कुंवरजी बावलिया के बीच रस्साकशी तेज हो गई है और इसका आगामी विधानसभा चुनावों में राजनीतिक महत्व पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।”कोली समुदाय के एक नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “राजनीतिक दल मुश्किल से 15 से 20 उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। हालांकि यह समुदाय 44 से 45 सीटों पर काफी निर्णायक है और 82-85 सीटों के हार जीत का फैसला करते हैं, लेकिन नेताओं के बीच आंतरिक लड़ाई समुदाय के अधिकार और उचित प्रतिनिधित्व के लिए लड़ने को प्राथमिकता देती है।”