महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 

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महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 
महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 

डॉ.रमेश ठाकुर  

संगठन सर्वोपरि  होता है। संगठन की एकता किसी भी सियासी दल को शून्य से शिखर तक पहुंचा सकती है। महाराष्ट्र में भाजपा का स्थानीय दलों को पछाड़कर अव्वल पायदान पर काबिज होने के पीछे उसका मजबूत संगठन ही है। दशक पूर्व तक पार्टी अपना पैर जमा रही थी, अन्य दलों के सहारे थी लेकिन इस चुनाव में सफलता के झंडे गाड़े हैं वो दूसरी सियासी पार्टियों के लिए सीख जैसे हैं। हालांकि चुनावी रिजल्ट में ‘मैन ऑफ द मैच’ रहे एकनाथ शिंदे के इर्द-गिर्द महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर घूम रही है। उनकी मांग, ढाई-ढाई वर्ष की हिस्सेदारी को फिलहाल  भाजपा ने नकार दिया है क्योंकि नंबर के लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी है। बिखराव की कहानी यहीं से एक दफे और होने की संभावनाएं जगने लगी हैं। महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 

इस सप्ताह मंगलवार की बीती रात एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के बीचे गुप्त एक कमरे में घंटों की बातचीत ने भाजपा के भीतर खलबली मचा दी है। भाजपा को डर है कि कहीं ये दोनों नेता अपने मूल कैडर में न चले जांए। खुदा न खास्ता, अगर ऐसा हुआ, तो उनकी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। विभाजित दोनों दल, शिवसेना और एनसीपी फिर से अगर एक हो जाते हैं और कांग्रेस को साथ लेकर आसानी से सरकार भी बना सकते हैं क्योंकि एकनाथ शिंदे कभी नहीं चाहेंगे कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वह उप-मुख्यमंत्री बने जबकि, भाजपा यही चाहती है। ये तो वही कहावत हुई, ‘दुल्हे को घोड़े से उतारकर गधे पर बैठा देना? ये टीस कितनी कड़वी होती है, देवेंद्र फडनवीस से बेहतर शायद कोई नहीं जानता होगा।

बहरहाल, इतना तो तय है कि मौजूदा चुनाव ने महाराष्ट्र की सियासत में नया इतिहास जरूर लिख दिया है। ‘कौन असली, कौन नकली’ का भी फैसला हो गया? मराठा क्षत्रप के उपनाम से मशहूर रहे शरद पवार के करिश्मे ने भी दम तोड़ दिया। सियासी पंड़ित कभी उन्हें चाणक्य की उपाधि देते थे, वह भी धूमिल हो गई। उधर, उद्धव गुट का क्या हश्र हुआ? उसे भी लोगों ने अच्छे से देख लिया। महाराष्ट्र में भाजपा 2019 के विधानसभा से ही धीरे-धीरे अपना जनाधार बढ़ाने में लगी थी, जिसमें वह कामयाब हुई। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सियासत में तेजी से बदलाव हुए। लोकसभा चुनावों में असरदार साबित हुआ मनोज जरांगे फैक्टर भी पूरी तरह धराशाही हो गया। ऐसा लग रहा था, कि उनका फैक्टर भाजपा को नुकसान पहुंचाएगा, लेकिन वैसा हुआ कतई नहीं?

  क्या भाजपा अगले पांच वर्ष तक मजबूत सरकार चला पाएगी, साथ ही अजीत पवार और एकनाथ शिंदे को एक रख पाएगी? ये सबसे बड़ी चुनौती है उनके समक्ष। अजीत पवार भी मुख्यमंत्री बनना चाहते है, वह भी किसी भी सूरत में? उपमुख्यमंत्री तो वह कई मर्तबा बन लिए, अब चाहत सीएम की कुर्सी ही है। ये ऐसे फैक्टर हैं जो भाजपा को परेशान कर रहे हैं। वहीं, कांग्रेस का ‘संविधान बचाओ’ वाला नारा भी विधानसभा चुनाव में उतना असरदार नहीं रहा, जितना लोकसभा में रहा। एनसीपी विभाजन के बाद लोगों के मन में शरद पवार के प्रति जो सहानुभूति लोकसभा में दिखी, वह इस चुनाव में खत्म हो गई। शिवाजी महाराज के दोनों वंशज अब भाजपाई हैं। उदयन राजे भोसले सातारा से सांसद हैं और शिवेंद्र राजे भोसले सातारा विधानसभा के प्रतिनिधि।

  बहरहाल, इस बार सभी की नजर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के परफॉर्मेंस पर थी जिसमें एकनाथ शिंदे ने बाजी मारी है। उनकी ताकत उद्धव ठाकरे से अब दोगुनी हो गई है। बीते लोकसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की यूबीटी ने 9 सीटें जीतीं थी। जबकि, शिंदे सेना ने 7 सीटों पर कब्जा किया था। तब ऐसा लगा था कि उद्धव  का पलड़ा भारी है पर, असली और नकली शिवसेना का फाइनल मुकाबला विधानसभा चुनाव में हुआ जिसमें शिंदे 57 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई। सॉफ्ट हिंदुत्व की बात करने वाले उद्धव सेना 20 सीटों पर सिमट गई जिनमें 10 सीटें उसे सिर्फ मुंबई से मिली। शिंदे सेना को मुंबई में सिर्फ 6 सीटें मिलीं, मगर पश्चिम महाराष्ट्र, कोंकण, विदर्भ, उत्तर महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में 51 सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे को तगड़ी पटखनी दी है। इन इलाकों की ग्रामीण सीटों पर भी शिंदे का जलवा रहा। इस दौरान एकनाथ शिंदे ने बाला साहेब के हिंदुत्व को जनता के बीच में रखा। भविष्य में सबसे बड़ा सवाल एक ये भी रहेगा, क्या उद्धव के पास जितने विधायक हैं, उन्हें पांच साल तक सहेजकर रख पाएंगे। महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ