

पूर्णिया से हुई थी होली की शुरुआत।भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का किया था वध,नरसिंह अवतार का खम्बा आज भी मौजूद है। पूर्णिया से हुई थी होली की शुरुआत
होलिका दहन को लेकर मान्यता है कि इसकी शुरुआत सबसे पहले बिहार के पूर्णिया जिले में हुई थी। जिले के बनमनखी के धरहरा गांव में पहली होली खेली गई थी। ऐसा कहा जाता हैं कि भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए इसी जगह भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का संध्या बेला में वध किया था। मान्यता है कि पूरे देश में होलिका दहन की शुरुआत बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा से ही हुई थी। आज भी यहां वो खम्भा मौजूद है, जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान नरसिंह प्रहलाद को बचाने के लिए इसी से बाहर आए थे। भगवान ने आधा नर और आधा सिंह का रूप रख इसी खंभे से अवतार लेकर राक्षस राज हिरण्यकश्यप का वध किया था। कहते हैं कि हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी का वरदान था कि उनका वध ना तो देवता कर पाएंगे ना दानव, ना जल में होगा ना थल में ना ही नभ में, ना दिन में होगा ना रात में, ना घर में होगा ना बाहर। हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को मारने का प्रयास किया। तब भगवान नरसिंह ने इसी खम्भे से अवतार लेकर घर की चौखट पर हिरण्यकश्यप को अपने जंघा पर रखकर अपने नाखून से फाड़ दिया था।
मान्यताओं के अनुसार राजा हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम प्रह्लाद था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु का भक्त है तो उसने प्रह्लाद को रोकने का काफी प्रयास किया लेकिन तब भी प्रह्लाद की भगवान विष्णु की भक्ति कम नहीं हुई। यह देखकर हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया,हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की किंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी-होलिका। उसे वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए होलिका से कहा। होलिका प्रह्लाद को गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कई किंतु भगवान विष्णु की कृपा से हवा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
क्या था वरदान
हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का उपासक था और यातना एवं प्रताड़ना के बावजूद वह विष्णु की पूजा करता रहा। क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में चली जाय क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। जब होलिका ने प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ पर होलिका जलकर राख हो गई। अंतिम प्रयास में हिरण्यकशिपु ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल कर दिया तथा प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा। एक बार फिर भगवान विष्णु प्रह्लाद को उबारने आए। वे खंभे से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए तथा हिरण्यकशिपु को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो न घर का बाहर था न भीतर, गोधूलि बेला में, जब न दिन था न रात, आधा मनुष्य, आधा पशु जो न नर था न पशु, ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो न अस्त्र थे न शस्त्र, मार डाला। इस प्रकार हिरण्यकश्यप अनेक वरदानों के बावजूद अपने दुष्कर्मों के कारण भयानक अंत को प्राप्त हुआ।जिस खम्बे से भगवान ने अवतार लिया वह खम्बा आज भी पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के धरहरा में मौजूद है।
दिए जाते ये साक्ष्य
गुजरात के पोरबंदर में विशाल भारत मंदिर है। वहां लिखा है कि भगवान नरसिंह का अवतार स्थल सिकलीगढ़ धरहरा बिहार के पूर्णिया जिला के बनमनखी में है। धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ के 31वें वर्ष के विशेषांक में भी सिकलीगढ़ का खास उल्लेख करते हुए इसे नरसिंह भगवान का अवतार स्थल बताया गया था। इस जगह प्रमाणिकता के लिए कई साक्ष्य हैं। यहीं हिरन नामक नदी बहती है। कुछ वर्षो पहले तक नरसिंह स्तंभ में एक सुराख हुआ करता था, जिसमें पत्थर डालने से वह हिरन नदी में पहुंच जाता था। इसी भूखंड पर भीमेश्वर महादेव का विशाल मंदिर है। मान्यताओं के मुताबिक हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष बराह क्षेत्र का राजा था जो अब नेपाल में पड़ता है। भागवत पुराण (सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय) में भी माणिक्य स्तंभ स्थल का जिक्र है। उसमें कहा गया है कि इसी खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी।
नरसिंह अवतार का खम्बा आज भी मौजूद है
भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर वध हिरण्यकश्यपु का वध किया था ,हिरण्यकशिपु एक असुर था जिसकी कथा पुराणों में आती है। उसका वध नृसिंह अवतारी विष्णु द्वारा किया गया।हिरण्याक्ष उसका छोटा भाई था जिसका वध वाराह ने किया था। विष्णुपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार दैत्यों के आदिपुरुष कश्यप और उनकी पत्नी दिति के दो पुत्र हुए। हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष।हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या द्वारा ब्रह्मा को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया कि न वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा न पशु द्वारा, न दिन में मारा जा सकेगा न रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र के प्रहार से और न किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान ने उसे अहंकारी बना दिया और वह अपने को अमर समझने लगा। उसने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों को प्रताड़ित करने लगा। वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा को वर्जित कर दिया। पूर्णिया से हुई थी होली की शुरुआत