बेटियों से पहले ही बेटों की विदाई

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बेटियों से पहले ही बेटों की विदाई
बेटियों से पहले ही बेटों की विदाई

अब लड़की और लड़के की विदाई शादी से पहले ही हो जाती है क्योंकि नौकरी के लिए शहर छोड़ने वाले युवा दोबारा परिवार के साथ नहीं रह पाते हैं और विवाह के पश्चात् दोनों ही वहीं बस जाते हैं । सिर्फ बेटियों की ही नहीं,बेटों की विदाई भी होती है । बेटियों से पहले ही बेटों की विदाई

राजेश कुमार पासी

यह एक सत्य है कि  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज ही उसका आधार है। बिना समाज के रहने की तो आम आदमी सोच भी नहीं सकता । समाज का आधार परिवार है और परिवार का आधार विवाह है और विवाह के बिना हम परिवार की कल्पना ही नहीं कर सकते। विवाह एक ऐसी व्यवस्था है जो एक स्त्री और पुरुष को जीवन भर के लिये एक दूसरे से बाँध देती है। उनका सब कुछ सांझा हो जाता है । विवाह के बाद लड़की को अधिकांश माँ-बाप यह कह कर विदा करते है कि अब ससुराल ही उसका घर है । हमारी संस्कृति ही ऐसी है कि जब एक लड़की का जन्म होता है तो उसी दिन से माता-पिता सोच लेते है कि वो एक पराई अमानत है और एक दिन उसे घर से विदा करना है । आज भी ज्यादातर मामलों में एक लड़की का पालन–पोषण भी इसी नजरिए से किया जाता है। हालांकि हाल के वर्षों में इस सोच में कुछ परिवर्तन आया है,अब लोग बेटियों को अहमियत देने लगे है और चाहते है कि वो भी पढ-लिखकर कुछ काबिल बनें और आत्मनिर्भर बनें ।

        पहले तो विवाह दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन कहा जाता था लेकिन इस धारणा में भी अब परिवर्तन आया है और अब एकल परिवारों का युग शुरू हो गया है ।  एक लड़के के मां-बाप बड़े उल्लास और उमंग के साथ नई दुल्हन को विदा कराके अपने घर ले जाते हैं । काफी दिनों तक घर में चारों तरफ खुशियाँ फैली रहती है परन्तु धीरे-धीरे घर में तनाव छाने लगता है और धीरे-धीरे यह तनाव झगड़े और क्लेश का रूप ले लेता है। घर में पति-पत्नी, सास-बहु, देवर-भाभी और ननद-भाभी के झगड़े शुरू हो जाते हैं और कई बार ऐसी नौबत आ जाती है कि परिवार बिखर जाता है। परिवारों का बिखरना एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गया है ।

       क्या कारण है कि जो परिवार बड़े चाव से एक पराई लड़की को बहु बनाकर लाता है, उन्हें वो दुश्मन लगने लगती है । जो बेटा आँखो का तारा था अब वो फूटी आँख नहीं सुहाता । जिस बेटे का सारा संसार उसके माँ-बाप और बहन-भाई थे अब वही उसे चुभने लगते है । एक लड़की जिसने एक पराये घर को अपना समझ के बड़ी उमंग के साथ कदम रखा था, अब वो उसे जल्द से जल्द छोड़ देना चाहती है। हमें यह जुमले सुनने को मिलते है कि बहु ने हमारा बेटा छीन लिया या हमारा बेटा अब हमारा नहीं रहा। मेरा मानना है कि 99 प्रतिशत लड़कियाँ ससुराल को अपना घर मानकर ही ससुराल में कदम रखती है और 99 प्रतिशत माता-पिता एक लड़की को अपना मान कर खुशी-खुशी घर लाते है । फिर क्या कारण है कि सब एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं ।

          इस समस्या की वजह है हमारी पुरानी और गलत सोच तथा बदलती दुनिया के साथ सामंजस्य स्थापित न कर पाना । आज संसार बहुत बदल चुका है और पिछले तीन-चार दशकों में युवा पीढ़ी में बहुत बदलाव आ चुका है । अब समझदारी इसमें है कि आप वक्त के साथ चलें नहीं तो आपका वक्त खराब हो सकता है। हमारा सोचना है कि शादी के बाद एक लड़की अपना मायका छोड़कर एक नये घर में प्रवेश करती है और उसकी सारी दुनिया बदल जाती है परन्तु सच्चाई यह है कि केवल लड़की ही नहीं, लड़का भी अपना परिवार छोड़कर एक नया परिवार बसाता है और उसका भी सारा संसार बदल जाता है। वास्तव में परिवार में एक नया परिवार पैदा हो गया है, ये बात किसी को समझ नहीं आती है । परिवार से परिवार का टकराव ही रिश्तों का टकराव बन जाता है ।

      हम इस सच्चाई से इसलिए अन्जान बने रहते है क्योंकि लड़का घर में ही रहता है,उसे लड़की की तरह अपना घर नहीं छोड़ना पड़ता । शादी के बाद एक लड़की की तरह उसकी भी एक नई जिंदगी शुरू होती है । कहने को तो वर-पक्ष के परिवार में बढ़ोतरी होती है पर वास्तविकता यह है कि वधु-पक्ष की तरह ही वर-पक्ष का परिवार भी छोटा हो जाता है क्योंकि शादी के बाद परिवार में ही एक नये परिवार का जन्म होता है, ये अलग बात है कि यह परिवार उस समय हमें नजर नहीं आता । शायद इसी कारणवश बेटे-बहू वाले घर को संयुक्त परिवार कहा जाता है।  शादी के बाद एक लड़के की जिन्दगी भी बदल जाती है पर यह बदलाव उसके घर वालों को सहन नहीं होता । बच्चे होने के बाद तो यह बदलाव और बड़ा हो जाता है। अब वह अपने और अपने परिवार के बारे में सोचने लगता है और परिवार में झगड़े बढ़ने लगते है। यही कारण है कि आज संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और हम सब एक दूसरे को दोष दे रहे हैं।

       इस समस्या से निपटने का यही एकमात्र उपाय है कि हम एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय अपने गिरेबान में झाँके और देखे कि हमसे कहाँ गलती हो रही है। जब तक हम मर्ज को नहीं पहचानेंगे, उसका इलाज नही कर सकते। हमें लड़कियों को विदा करना अच्छे से आता है परन्तु हमें लड़कों को भी विदा करना सीखना होगा । शादी के बाद बेटे की जिन्दगी में होने वाले बदलावों को ध्यान में रखकर माँ-बाप को अपनी जिन्दगी में भी बदलाव लाने होंगे और बेटों को भी अपने परिवार की भावनाओं का ख्याल रखना पड़ेगा। अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज में पारिवारिक तनाव और झगड़े कम हो तो सही या गलत की बहस में पड़ने की बजाये  युवा पीढ़ी की सोच के साथ सामंजस्य बिठाकर चलना पड़ेगा। अगर हमें अपने परिवारों को टूटने से बचाना है तो अपने बच्चों को कोसने की बजाय, उनकी भावनाओं को समझना होगा । अगर हम चाहते है कि अपने माँ-बाप और भाई-बन्धु छोड़कर हमारे घर आयी लड़की हमें अपने माँ-बाप और भाई-बन्धुओं की तरह इज्जत और प्यार करें तो हमें भी उसे बेटी वाला प्यार देना होगा। देखा जा रहा है कि बहु बनते ही एक लड़की से ससुराल पक्ष बहुत समझदारी से रिश्ते निभाने की उम्मीद करता है लेकिन ऐसा संभव नहीं है ।

       आजकल तो बेटियों से पहले ही बेटे घर से विदा हो जाते हैं, पहले पढ़ाई के लिए और फिर नौकरी के लिये उन्हें अक्सर अपना घर छोड़कर एक पराये शहर में अलग संसार बसाना होता है ।  अब लड़की और लड़के की विदाई शादी से पहले ही हो जाती है क्योंकि नौकरी के लिए शहर छोड़ने वाले युवा दोबारा परिवार के साथ नहीं रह पाते हैं और विवाह के पश्चात् दोनों ही वहीं बस जाते हैं । बुजुर्गों के अकेलेपन का यह बड़ा कारण बन गया है । हम यह तो जानते है कि बहुत थोड़े से मामलों को छोड़कर कोई माँ-बाप अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते और बच्चे अपने माँ-बाप के बारे में बुरा नहीं सोच सकते लेकिन सारा खेल आपसी समझ-बूझ की कमी का है।  भारतीय संस्कारों पर भरोसा करके अगर हम आपसी समझ-बूझ बढ़ाए तो कोई कारण नहीं है कि काफी हद तक पारिवारिक समस्याएं खत्म की जा सकती है । बेटियों से पहले ही बेटों की विदाई