आतंक का अन्त

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आतंक का अन्त
आतंक का अन्त

अतीक अहमद और उसके भाई पर सूट कांड मामले में सनी सिंह थाना कुरारा इलाके का हिस्ट्रीशीटर है।शूटर सनी सिंह पर लगभग 17 मामले दर्ज हैं। सनी सिंह के माता-पिता मरने के बाद शूटर बना। अपराधी कई सालो से अपने घर नही गया। शूटर सनी सिंह,लवलेश तिवारी और अरुण मौर्या ने अतीक और अशरफ को मारी गोली। अब तीनों पुलिस की गिरफ़्त में हैं।योगी राज में मिट्टी में मिला माफिया अतीक, 43 साल में पहली बार मिली सजा। योगी सरकार ने अभियोजन और पुलिस के समन्वय से कोर्ट में प्रभावी पैरवी कर माफिया अतीक को दिलाई सजा। अपराध के खिलाफ योगी की जीरो टॉलरेंस की नीति का नतीजा, माफिया का अभेद्य किला हुआ ध्वस्त। मुकदमों का शतक लगा चुके अतीक का भाई के साथ पुलिस हिरासत में हुई हत्त्या। आतंक का अन्त

उत्तर प्रदेश में अपराधियों के खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘जीरो टोलरेंस’ नीति अतीक जैसे माफिया को घुटनों के बल आने पर मजबूर कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छबि पूरे देश में एक अलग तरह के तटस्थ शासक के रूप में उभरी है। अपराधियों में मुख्यमंत्री की इस नीति को लेकर खौफ है। किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले अपराधी और दंगायियों को 1000 बार सोचना पड़ता है। यही कारण है कि रामनवमी जैसे पवित्र दिवस पर पश्चिम बंगाल, बिहार और दूसरे राज्यों में आगजनी और हिंसा की घटनाएं हुईं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस तरह की कोई वारदात नहीं हुईं। योगी की कार्यशैली को लेकर पूरे देश में सियासी बहस छिडी है। माफिया अतीक के बेटे असद और उसके सूटर गुलाम के एनकाउंटर पर ओवैसी,अखिलेश यादव धर्म और मजहब का तड़का लगा रहे हैं। निश्चित रूप से सवाल उठाना विपक्ष का राजनीतिक धर्म है। लेकिन अपराध और माफिया को राजनीतिक संरक्षण देना कहां की नीति है। धर्म और जाति को हम वोट बैंक का सहारा कब तक बनाएंगे।

अतीक़ पर 101 तो अशरफ़ पर 57 मुक़दमे थे दर्ज – अतीक और अशरफ का आपराधिक इतिहास बेहद क्रूर रहा है। अतीक के खिलाफ वर्ष 1979 से अब तक 101 मुकदमा दर्ज हुए जबकि अशरफ के खिलाफ 57 मुकदमे दर्ज थे। यही वजह है कि इनसे पीड़ितों और दुश्मनों की संख्या काफी थी।इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि 2005 में राजू पाल की हत्या के बाद पुलिस जब राजू पाल की बॉडी को लेकर जा रही थी तो उसने 56 किलोमीटर तक उसका पीछा किया था और मेडिकल कॉलेज में भी डेड बॉडी पर गोलियां चलाई थी। साल 1979 में 17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर कत्ल का पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। इसके बाद तो उसने इतनी तेजी से अपराध की दुनिया में कदम बढ़ाए कि 1985 आते-आते वो प्रयागराज ही नहीं आसपास के जिलों में भी पैर पसारने लगा था।वैसे ही 1989 में चांद बाबा को मार डाला था।2007 में जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे तब अतीक के भाई अशरफ ने मदरसे से 2 लड़कियों को उठा लिया था और रेप किया था। बाद में मदरसे में छोड़ गया था।


प्रयागराज में बसपा विधायक रहे राजूपाल की हत्या के चश्मदीद गवाह उमेश पाल की फरवरी के अंतिम सप्ताह में हत्या कर दी गई। हत्या के बाद पूरे प्रदेश में सियासी माहौल गर्म हो गया। योगी सरकार पर लोग सवाल उठने लगे थे प्रदेश को माफिया मुक्त करने का दावा खोखला साबित हो रहा है। अतीक जैसे माफिया जेल में होने के बाद भी खुली सड़क पर निर्दोष लोगों की हत्या कर रहे हैं। पुलिस को भी निशाना बनाया जा रहा है। इस घटना में दोष निर्दोष गनर भी हत्या के शिकार हुए। सरकार को बुलडोजर नीति और अपराध मुक्त प्रदेश को लेकर कटघरे में खड़ा किया जाने लगा। इस घटना को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बेहद गंभीरता से लिया। उन्होंने खुद विधानसभा में ऐलान किया कि अपराधियों को मिट्टी में मिला देंगे। जब अतीक जैसे माफिया के खिलाफ सरकार एक्शन मोड में आ गई तो विपक्ष फिर वोट बैंक के डर से धर्म और मजहब की आड़ लेने लगा। उमेश पाल की हत्या पर जो पार्टी घड़ियाली आंसू बहा रहीं थी वहीं अतीक के खिलाफ कार्रवाई पर सियासी राग अलापने लगी।


योगी के एनकाउंटर नीति पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या उत्तर प्रदेश में कानून और संविधान को खत्म कर देना चाहिए। ओवैसी सवाल उठा रहे हैं कि संविधान और कानून का क्या मतलब है। फिर अदालत और जज जैसे पद को खत्म कर दिया जाना चाहिए। अपराधियों को सजा देने के लिए अदालत और संविधान है। एनकाउंटर कहीं का इंसाफ नहीं है। बिल्कुल सच है। ओवैसी की बात में दम है। हम भी यही चाहते हैं कि पुलिस किसी को भी फर्जी एनकाउंटर में न मारे। ओवैसी ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में कानून का एनकाउंटर किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी एनकाउंटर को फर्जी बताया। उनकी निगाह में सही गलत का फैसला सत्ता नहीं करती। हम अखिलेश यादव और ओवैसी के बातों से बिल्कुल सहमत हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। फिर अतीक ने उमेश पाल की हत्या क्यों करवाई क्या ऐसा होना चाहिए था। अगर नहीं तो ओवैसी क्यों चुप थे।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पूर्व सासंद अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ की गोली मार कर हत्या कर दी गई है।उत्तर प्रदेश पुलिस ने पूर्व सांसद अतीक़ अहमद और उनके भाई की हत्या की पुष्टि की है।पुलिस के मुताबिक हमलावर पत्रकार बनकर आए थे। तीन हमलावरों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना का संज्ञान लिया है और उच्चस्तरीय बैठक की है।योगी आदित्यनाथ ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश भी दिए हैं। घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायायिक आयोग के गठन की घोषणा भी की गई है।प्रयागराज के पुलिस कमिश्नर ने घटना के बारे में बताते हुए कहा, “क़ानूनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अतीक़ अहमद और उनके भाई अशरफ़ को मेडिकल के लिए ले जाया जा रहा था। इसी दौरान ये घटना हुई है।”अतीक़ अहमद और अशरफ़ को मेडिकल चैक अप के लिए कॉल्विन अस्पताल लाया जा रहा था जब हमला हुआ।पत्रकार बनकर आए हमलावरों ने अस्पताल के ठीक पास, पुलिस के घेर में चल रहे अतीक़ और अशरफ़ पर बेहद नज़दीक़ गोलियां चलाईं और उनकी मौत के बाद धार्मिक नारेबाज़ी की।दर्शक के मुताबिक, “पत्रकार अतीक़ अहमद और उनके भाई से बात कर रहे थे, इसी दौरान पत्रकार बनकर आए हमलावरों ने अचानक गोलियां चलाईं. तीनों हमलावरों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।”


योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश को एनकाउंटर प्रदेश बना दिया है। 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में 10713 से भी अधिक एनकाउंटर हुए है। पूरे देश में उत्तर प्रदेश शायद इस तरह का इकलौता प्रदेश है। एनकाउंटर में 183 से अधिक अपराधियों का सफाया हुआ। जिसमें मेरठ पुलिस ने सबसे अधिक 3152 एनकाउंटर किए हैं। निश्चित रूप से हम योगी सरकार की एनकाउंटर नीति की मुखालफत करते हैं। एनकाउंटर किसी समस्या का समाधान नहीं है। अपराधियों को खुद को बेगुनाह साबित करने का अवसर मिलना चाहिए। संविधान और कानून को सत्ता के पैरों तले दफ़न नहीं किया चाहिए। मानवीय अधिकारों की पूरी तरह रक्षा होनी चाहिए। हम अखिलेश यादव और ओवैसी की बातों से सहमत हैं। लेकिन हम अपराध और अपराधियों के राजनीतिक संरक्षणवादी नीति के बिलकुल खिलाफ हैं।

अतीक अहमद पर पहला आपराधिक मामला 1979 में प्रयागराज के खुल्दाबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था। तब से 44 साल के उसके आपराधिक सफर में उस पर लगभग 100 से अधिक केस दर्ज हुए लेकिन किसी भी मामले में कोई सजा नहीं हुई। योगीराज में पहली बार यह संभव हुआ जब पूर्व बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के गवाह अधिवक्ता उमेश पाल के अपहरण के मामले में एमपीएमएलए की कोर्ट ने अतीक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।इधर 24 फरवरी 2023 को उमेश पाल की हत्या से कानून व्यवस्था को नाकाम चुनौती देने के अतीक और उसके गुर्गों के दुस्साहस के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी के माफिया को मिट्टी में मिलाने के संकल्प ने अतीक के जुर्म और जरायम के साम्राज्य तहस नहस कर दिया गया। अतीक के बेटे असद सहित उसके 4 गुर्गों को पुलिस ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया। अपराध से अर्जित की गई उसकी और उसके गुर्गों की 1400 करोड़ की सम्पत्ति जब्त की जा चुकी। इसे अतीक के आतंक के अंत माना जा रहा है।एक तरफ माफिया को मिट्टी में मिलाने का सिलसिला जारी है। तो दूसरी तरफ आर्थिक अपराध से जुड़ी जांच एजेंसियां भी अतीक के आर्थिक साम्राज्य को चोट पहुँचाने में लग गई हैं। अतीक अहमद पर दर्ज मनी लांड्रिंग केस की जांच में जुटी प्रवर्तन निदेशालय की 15 टीमों ने प्रयागराज में अतीक के करीबियों के कई ठिकानों पर जमकर छापेमारी की है। अतीक पर कार्यवाही में 100 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्तियों का भी खुलासा हुआ है। वैसे अतीक पर दो साल पहले 2021 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था और इस मामले में उसकी 8 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई थी।


सवाल यह भी उठता है कि ओवैसी को उस दौरान मजहब क्यों नहीं दिखता। उस दौरान संविधान की याद क्यों नहीं आती। उस दौरान मजहब पर कहाँ चला जाता है जब हैदराबाद में एक डॉक्टर बेटी ने बलात्कार होता है। बाद में आरोपियों का एनकाउंटर कर दिया जाता है। उत्तर प्रदेश में 40 सालों तक अतीक अहमद का माफिया राज चलता है। हजारों लोग उसके अपराध की भेंट चढ़ते हैं। बसपा विधायक रहे राजूपाल की हत्या के बाद खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए चश्मदीद गवाह उमेशपाल की प्रयागराज में हत्या कर दी जाती है। लोगों की जमीनों पर अवैध कब्जा किया जाता है। फिर उमेश और राजूपाल की हत्या के समय उन्होंने सवाल क्यों नहीं उठाया। उस समय उनका धर्म और मजहब क्यों नहीं जागा। संविधान और न्याय की बात कहां चली गई।


योगी सरकार के एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले लोग 40 साल तक अतीत के माफिया राज पर मौन धारण किए थे। 100 से अधिक मुकदमों के बाद भी किसी अदालत की तरफ से उसे नोटिस तक नहीं दी गई। योगी सरकार में 40 साल के अपराध के बाद पहली बार अतीक और उसके गुर्गे पर शिकंजा कसा तो धर्म और मजहब याद आने लगा। निश्चित रूप से आम लोगों की माफियाओं और गुंडे-बदमाशों से कोई सहानुभूति नहीं है। अतीक जैसे बाहुबली को पांच-पांच बार विधायक और सांसद बनाया गया। इस तरह के अपराधी को सियासी संरक्षण क्यों मिलता रहा। क्या मुसलमान अतीक को पसंद करता है। क्या अतीक के गुनाहों से आम मुसलमान पीड़ित नहीं था।अतीक क्या सिर्फ मजहब और धर्म के आधार पर लोगों की जमीनों पर कब्जा और हत्याएं करता था।

अतीक और उसके दो सहयोगियों को बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के गवाह उमेश पाल के अपहरण के मामले में सजा मिली। गवाही बदलवाने के लिए 17 साल पहले 28 फरवरी 2006 को अतीक और उसके गुर्गों ने उमेश पाल का अपहरण कर लिया था। उन्हें अपने दफ्तर ले जाकर टार्चर किया और फिर जबरदस्ती हलफनामा दिलवाकर गवाही बदलवा दी।अतीक के चंगुल से मुक्त होकर उमेश पुलिस के पास गए और मुकदमा दर्ज करवाया। आज कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अतीक समेत बाकी दोनों आरोपियों को धारा-364ए/34, धारा-120बी, 147, 323/149, 341,342,504, 506 के सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसी के साथ उमेश के साथ अतीक के गुनाहों का पहला इंसाफ हो गया है।


मीडिया रिपोर्ट से खुलासा हो रहा है कि उसके संबंध माफिया डॉन अबू सलेम और पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई एवं लश्कर-ए-तैयबा से भी थे। हालांकि इस पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी यह जांच का विषय है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि अतीक के अपराध का साम्राज्य बहुत बड़ा था। उससे लोग डरते थे। योगी सरकार के पूर्व अब तक प्रदेश में जितनी भी सरकारें बनी सभी ने माफियाओं को संरक्षण दिया और उन्हें टिकट देकर भी संसद और राज्य विधानसभाओं तक भेजा। हालांकि एनकाउंटर पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं चाहे वह हैदराबाद एनकाउंटर रहा हो या फिर बटाला हाउस या विकास दुबे का या फिर अब अतीक और अशरफ का हो। निश्चित रूप से एनकाउंटर अपराध की समस्या का समाधान नहीं, लेकिन अपराध को संरक्षण देना भी न्याय नहीं है। योगी सरकार की अपराधियों के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति से आम लोगों के लिए सुकून और राहत है यह अपने आप में सबसे बड़ी बात है। आतंक का अन्त