क्या अमेरिका ने यूक्रेन को मंझधार में छोड़ दिया..?

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क्या अमेरिका ने यूक्रेन को मंझधार में छोड़ दिया..?
क्या अमेरिका ने यूक्रेन को मंझधार में छोड़ दिया..?

राजेश कुमार पासी

एक देश को कभी भी किसी दूसरे देश के भरोसे जंग नहीं लड़नी चाहिए, ये बात रूस-यूक्रैन युद्ध ने एक बार फिर साबित कर दी है। अमेरिका के उकसावे में आकर यूक्रैन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की ने अपने देश को ऐसे अंधे कुँए में धकेल दिया है जहां से यूक्रैन कभी भी बाहर नहीं निकल पायेगा। डोनाल्ड ट्रंप न केवल यूक्रैन से अब तक की गई अमेरिकी मदद की कीमत मांग रहे हैं बल्कि आगे मदद करने की बड़ी कीमत वसूल करने का इशारा कर रहे हैं। देखा जाए तो जेलेन्स्की ने नाटो में शामिल होने के जिद्द में आकर अपने देश को रूस जैसी बड़ी ताकत के सामने युद्ध में धकेल दिया। अब यह बात कोई और नहीं बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कह रहे हैं । उनका कहना है कि यूक्रैन ने अपने युद्ध के लिए यूरोप और अमेरिका का इस्तेमाल किया है । जिस नाटो में शामिल होने के लिए उन्होंने अपने देश को युद्ध की आग में झोंक दिया, अब उसी नाटो ने यूक्रैन को शामिल करने से इनकार कर दिया है। जिस नाटो में शामिल होने के लिए जेलेन्स्की बेकरार थे, आज उसी नाटो को अमेरिका छोड़ने की धमकी दे रहा है। बिना अमेरिका के नाटो का कोई मतलब नहीं है, यही कारण है कि अब जेलेन्स्की यूरोपीय देशों को अपना नाटो बनाने की सलाह दे रहे हैं। क्या अमेरिका ने यूक्रेन को मंझधार में छोड़ दिया..?

अभी तक जेलेन्स्की यूरोप और अमेरिका के लाडले बने हुए थे लेकिन अमेरिका में सत्ता परिवर्तन होते ही हालात एकदम विपरीत दिशा में चले गये हैं । जो बाइडन यूक्रेन युद्ध का इस्तेमाल करके रूस को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ट्रंप की सोच इससे अलग है । वैसे देखा जाये तो सिर्फ सत्ता परिवर्तन से किसी देश की विदेश नीति में इतना बड़ा बदलाव नहीं आता है लेकिन अमेरिका में ऐसा हो रहा है । बाइडन यूक्रेन की हर तरह की मदद करने को तत्पर दिखाई दे रहे थे जबकि ट्रंप न केवल अब की गई मदद की कीमत मांग रहे हैं बल्कि मदद जारी रखने के लिए इस शर्त को पूरा करने का दबाव बना रहे हैं ।

अमेरिका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने कहा था कि अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक है लेकिन अमेरिका का दोस्त होना उससे भी ज्यादा खतरनाक है । यह बात आज यूक्रेन और यूरोप के लिए सच साबित हो रही है । अमेरिका की दोस्ती ने पाकिस्तान को बर्बाद कर दिया है और कई मुस्लिम देश भी अमेरिका की दोस्ती की कीमत चुका रहे हैं । भारत अमेरिका की इस फितरत को अच्छी तरह समझता है इसलिये अमेरिका से अच्छे रिश्ते जरूर रखता है लेकिन अमेरिका से दोस्ती के चक्कर में रूस से अपने रिश्ते नहीं बिगड़ने दिये हैं । रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका चाहता था कि भारत रूस से दूरी बना ले लेकिन भारत ने इस पर ध्यान नहीं दिया । अमेरिका चाहता है कि भारत चीन के खिलाफ अमेरिका का हथियार बन जाये लेकिन भारत अपने तरीके से चीन से निपट रहा है ।

पश्चिमी मीडिया ने अभी तक यह प्रचारित किया है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है और यूक्रेन अपनी रक्षा कर रहा है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया है। सच यह है कि नाटो ने जेलेन्स्की को उकसा कर रूस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि रूस के पास यूक्रेन पर हमला करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा । रूस ने यह युद्ध यूक्रेन पर कब्जा करने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुरक्षा के लिए शुरू किया था। बाइडन के शासन में अमेरिका यह मानता था कि यूक्रेन पर रूस ने हमला किया है, यूक्रेन तो सिर्फ अपना बचाव कर रहा है । इसके अलावा यूरोपीय देश यह मानते थे कि अगर रूस को रोका नहीं गया तो रूस यूरोप पर भी हमला कर सकता है । यूरोप अभी भी अपनी पुरानी सोच पर चल रहा है लेकिन डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका मानता है कि युद्ध का कारण यूक्रेन की नाटो में शामिल होने की जिद्द है।

ट्रंप कह रहे हैं कि जेलेन्स्की युद्ध रोकना ही नहीं चाहते, इसलिए यह युद्ध चल रहा है। अभी तक इस युद्ध को खत्म करने के लिए जो बैठकें हो रही थीं, उसमें रूस की जगह यूक्रेन को तरजीह दी जा रही थी । भारत ने कई बार कहा है कि अगर युद्ध को रोकना है तो रूस के साथ भी बातचीत की जाए लेकिन रूस की बात न तो अमेरिका सुन रहा था न ही यूरोप सुन रहा था । अब अमेरिका ने अलग ही रास्ता अपना लिया है, इस युद्ध को समाप्त करने के लिए सऊदी अरब की मध्यस्थता में रूस और अमेरिका ने एक बैठक बुलाई जिसमें न तो यूक्रेन को शामिल किया गया और न ही यूरोप को बुलाया गया । सवाल यह है कि यूरोप और यूक्रेन को बाहर रखकर इस युद्ध को समाप्त करने का समझौता किया जा सकता है ।

ट्रंप का कहना है कि अमेरिका ने यूक्रेन को बचाने के लिए बहुत पैसा खर्च किया है अब यूक्रेन को इसकी भरपाई करनी चाहिए । इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अमेरिका को यूक्रेन के सभी प्राकृतिक संसाधनों में आधा हिस्सा चाहिए । इसके लिए डोनाल्ड ट्रंप ने बाकायदा एक ड्राफ्ट एग्रीमेंट बनाकर यूक्रेन को दिया है और कहा है कि आप इस पर विचार करें । अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन से जितने भी प्राकृतिक संसाधनों का निर्यात किया जाए, उसमें से पहले अमेरिका का आधा हिस्सा निकाला जाए । इसके बाद अमेरिका ही तय करे कि वो उन संसाधनों को खरीदेगा या नहीं, अगर अमेरिका नहीं खरीदता है तो ही उन्हें दूसरे देशों को भेजा जाए । देखा जाए तो अमेरिका यूक्रेन की मदद के बदले हर्जाना चाहता है । अमेरिका ने यह भी कहा है कि अगर यूक्रेन चाहता है कि अमेरिका उसकी मदद आगे भी जारी रखे तो उसे अमेरिका की शर्तें माननी ही होंगी । इस ड्राफ्ट एग्रीमेंट में कहा गया है कि यूक्रेन की जो भी आय होगी, उसमें से पहले अमेरिका का हिस्सा अलग किया जाएगा। उसके बाद ही यूक्रेन उस पैसे का इस्तेमाल कर सकता है।

वास्तव में जेलेंस्की ने रूस से बचाव के लिए खुद ही अमेरिका के सामने ऐसा प्रस्ताव रखा था, जिसमें यूक्रेन में मौजूद बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों में कुछ हिस्सा अमेरिका का भी होगा । उसका मानना था कि ऐसा करने से रूस यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा क्योंकि इससे अमेरिका का नुकसान होगा। दूसरी तरफ जेलेन्स्की ने यूरोप और अमेरिका को यह भी डर दिखाया कि अगर यूक्रेन को नहीं बचाया गया तो इन संसाधनों पर रूस का कब्जा हो सकता है। अब जेलेन्स्की की चाल उल्टी पड़ गई है, ट्रंप ने आधा हिस्सा मांग लिया है जिसे जेलेन्स्की कभी स्वीकार नहीं कर सकते । देखा जाए तो अगर यूक्रेन अमेरिका की यह मांग मान लेता है तो वो एक तरह से अमेरिका का आर्थिक उपनिवेश बन जायेगा और उसका पुनर्निर्माण भी मुश्किल हो जाएगा। रूस ने यूक्रेन को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है, युद्ध रुकने के बाद यूक्रेन की पहली जरूरत होगी कि वो अपने देश का पुनर्निर्माण करे । सवाल उठता है कि जब यूक्रेन अपनी आधी कमाई अमेरिका को दे देगा तो वो अपना पुनर्निर्माण कैसे करेगा।

अब यूक्रेन की हालत आगे कुंआ, पीछे खाई वाली हो गई है । अब अगर यूक्रेन अमेरिका की बात मानता है तो बर्बाद होगा और अगर नहीं मानता है तो भी बर्बाद होगा । यूरोप आज भी यूक्रेन के साथ खड़ा नजर आ रहा है लेकिन बिना अमेरिका के रूस को रोकना यूक्रेन के लिए मुश्किल होगा । रूस ने यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है और यह कब्जा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है । अगर अमेरिका यूक्रेन को वार्ता से बाहर रखकर रूस से कोई समझौता कर लेता है तो यूक्रेन के हितों की सुरक्षा कैसे होगी । इसकी गारंटी कौन लेगा कि समझौता होने के बाद रूस यूक्रेन के और इलाकों पर कब्जा नहीं करेगा । इसके अलावा सवाल यह भी है कि यूक्रेन के जिन इलाकों पर रूस ने कब्जा कर लिया है, उन्हें वापिस दिया जायेगा कि नहीं । यूरोप और अमेरिका के उकसावे में आकर जेलेंस्की ने यूक्रेन को ऐसी हालत में पहुंचा दिया है जिसमें आगे का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है । अपनी अकड़ में जेलेन्स्की रूस जैसी बड़ी ताकत से भिड़ गये. उन्होंने यह सब अपनी नहीं बल्कि दूसरों की ताकत के भरोसे किया था और इसकी कीमत उनका पूरा देश चुकाने वाला है । अब देखने वाली बात यह होगी कि इस युद्ध का अंत कैसे होता है और युद्ध के बाद हालात क्या मोड़ लेते हैं । क्या अमेरिका ने यूक्रेन को मंझधार में छोड़ दिया..?