घोसी का उपचुनाव में ओम प्रकाश राजभर के बड़बोलेपन का खामियाजा , सुधाकर सिंह को उम्मीद से मतदाताओं ने वोट दिया जादा। ओम प्रकाश राजभर के बड़बोलेपन का खामियाजा भुगतें दारा
विनोद यादव
घोसी विधानसभा के उपचुनाव में सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह ने बड़े अंतर से (42 हजार 672 वोट) जीत हासिल की। इसी के साथ उन्होंने राजभर के आगे के राजनीतिक भविष्य पर भी संकट खड़ा कर दिया। कहां मंत्री पद की आस लिए राजभर और दारा भाजपा में आए थे और कहां अब उन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए ही संघर्ष करा पड़ेगा।करीब 2 महीने पहले ओपी राजभर ने अपनी पार्टी सुभासपा का NDA से गठजोड़ किया। उन्होंने सपा से नाता तोड़कर भाजपा का साथ पकड़ लिया। इसी के साथ कहा जाने लगा कि राजभर के आने भाजपा मजबूत होगी। उन्हें योगी सरकार में मंत्री भी बनाया जाएगा। ओपी राजभर के दावों का सिलसिला चलता रहा उन्होंने अपना दम-खम दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जो कुछ बोल सकते थे, जमकर बोले। दारा सिंह की जीत के बड़े-बड़े दावे किए। लेकिन, मतगणना शुरू होने से परिणाम तक उनके दावे फुस्स होते नजर आने लगे।धीरे-धीरे इस बात पर मुहर लग गई कि किसी भी तरह से दारा सिंह सुधाकर सिंह के सामने नहीं टिके।
घोसी में मिली हार बीजेपी की अकेले की हार नहीं है। इसे ओम प्रकाश राजभर की भी हार मान सकते हैं, जो कि घोसी में चुनाव से ठीक पहले सपा से पल्ला झाड़कर एनडीए का हिस्सा बने थे. उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह के लिए प्रचार भी किया था और खूब बड़ी-बड़ी बातें भी की थी. अब घोसी चुनाव के नतीजे के बाद पीले गमछा वालों की जो छवि टूटी वो तो टूटी है साथ में इस लिटमस टेस्ट में ओम प्रकाश राजभर भी फेल साबित हुए हैं।घोसी उपचुनाव में दारासिंह के ऊपर स्याही फेंके जाने के बयान पर ओपी राजभर ने कहा कि दारा सिंह चौहान के ऊपर जो स्याही फेंकी गई है उसके पीछे साप जिम्मेदार है सपा के लोगों ने उनके ऊपर से आई थी। उन्होने कहा कि जिस लड़के ने बयान दिया है वह समाजवादी पार्टी की साजिश है भाजपा को बदनाम करने के लिए बयान दिया गया है।
इसमें कोई शक नहीं कि पिछड़ों के भीतर समाजवादी गठबंधन के प्रति माहौल बनाने में इस नेता का सबसे बड़ा योगदान है। बेबाक ओम प्रकाश राजभर अपने अटपटे बयानों को लेकर इसीलिए चर्चा में भी रहते हैं राजभर ने घोसी विधानसभा उपचुनाव में कहां अहीरों की बुद्धि 12 बजें आती हैं ।अगर आप राजनीति में हैं तो आपको हर क्षण हर पल राजनीति करनी चाहिए। ओम प्रकाश राजभर की खासियत यह है कि सिर्फ सोने के टाइम राजनीति भलें न करें 24 घण्टे में जितना घण्टा जागते है राजनीति ही करते है। एक छोटी आबादी के प्रतिनिधित्व के नाम पर राजनीति में उतरने वाला शख्स कब यूपी का सबसे बड़ा बार्गेनर बन गया किसी को पता भी नहीं चला। विचारधारा को ताक पर रखकर अपने राजनीतिक प्रभुत्व को बढ़ाने के जोरदार प्रयास में लगा हुआ आदमी को आप जो भी कहें उससे उसे फर्क नहीं पड़ता। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इसके पहले सपा गठबंधन में मठ भेज रहें थे। फिर मोदी से लेकर अमित शाह तक सभी पर उट पटाग बयान देना उनकी राजनीतिक के बड़बोलेपन को दर्शाता हैं।
सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर लगातार समजवादी पार्टी पर हमलावर रहें उन्होंने समाजवादी पार्टी के खात्मे की बात तक कही थी, उन्होंने कहा, ‘अगर ओमप्रकाश राजभर समाजवादी पार्टी को 47 से 125 के पार ले जा सकता है, तो वैसे उन्हें दोबारा 45 पर ला देगा. अखिलेश यादव ने ओमप्रकाश राजभर से पंगा लिया है.’ ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि यूपी में कांग्रेस अपने में पिट रही है. बहुजन समाज पार्टी अपने में पिट रही है. अब भाजपा और समाजवादी पार्टी ही बची है. इस बार हमारे निशाने पर सपा है।लेकिन घोसी उपचुनाव में शिवपाल यादव द्वारा थामी गयी कमान ने इस बात पर मुहर लगा दी चाहें लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का हमें डटकर संघर्ष करने की जरूरत हैं और मतदाताओं को बढ़चढ़कर वोट देने की जरूरत हैं तभी हम सघर्ष की लड़ाई को आगें तक लड़ सकते हैं हिंदुत्व ,सनातन ,मंदिर मस्जिद के मुद्दों से हटकर शिक्षा, चिकित्सा ,रोजगार, बढ़ती महगांई और अपराध तथा भ्रष्टाचार के मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहिए ओ चाहें जीत में तब्दील हो या हार में हाशिए पर रहने वाले लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित करना होगा तभी हम मजबूती से लड़ पायेगें। एक कहावत हैं भेड़ के बाड़ की रखवाली का जिम्मा सियार को दे दिया जाए तो उसकी खैरियत आप ही जाने। खैर अवसरवादी नेताओं ने तो समाज का बेड़ा गर्क कर दिया है जिसके जीते जागते उदाहरण हैं।
ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद हैं जो सामाजिक न्याय का प्रवचन तो चर्चा में बने रहने के लिए मीडिया में और मंचो से देते रहते हैं लेकिन दूर दूर तक उनका सामाजिक न्याय के मुद्दों से कोई सरोकार नहीं हैं।उन्हें केवल और केवल पिछड़ी जाति की अपनी राजभर ,निषाद बिरादरी को गुमराह कर साम्प्रदायिक एवं सामाजिक न्याय अथवा दलित पिछड़े अल्पसंख्यक तबके की धुर विरोधी भाजपा के साथ गलबहियां खिलाकर अपने बेटे को संसद पहुँचाने एवं टिकट नीलामी करके अकूत धन कमाने की चाह भर है बस।भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए वाले गठबन्धन में शामिल होकर ओम प्रकाश राजभर ने यह साबित कर दिया है कि बिना आन्दोलन के जाति जाति अलापने से पनपे नेता फसली अर्थात अवसरवादी नेता होते हैं जो कि अपना हित साधने के लिए चिर विरोधी से हाथ मिलाकर समाज का बेड़ा गर्क करने का काम करते हैं।ओम प्रकाश राजभर के पास अभी मौका है 2024 का चुनाव अभी एक साल दूर है और भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की पूर्णबहुमत सरकार है और राजभर एंव निषाद बिरादरी को अनुसूचित जाति में शामिल करवा लें तथा एक समान शिक्षा को लागूं करा ले ताकि होने वाले लोकसभा चुनाव में कम से कम अपने समर्थकों और मतदाताओं को कुछ तो बता सके और काम दिखा सकें। ओम प्रकाश राजभर के बड़बोलेपन का खामियाजा भुगतें दारा