डॉ0 रमेश ठाकुर
प्राकृतिक परंपरा से लेकर मानव जीवन के जीने की जरूरतें तक, ओजोन परत पर निर्भर है जिसके संरक्षण और हानि पहुंचाने वाले पदार्थों से छुटकारा पाने के मकसद से ही प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को ‘विश्व ओजोन दिवस’ मनाया जाता है। वर्ष-1994 को संयुक्त राष्ट्र में आयोजित महासभा ने 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए ये अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया हुआ था, जो साल-1987 में ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर करीब 49 देशों ने अपनी सहमति के लिए हस्ताक्षर किए। दिवस को मनाने का उद्देश्य ओजोन परत के संबंध में लोगों को जागरूक करना और बचाने के ओर प्रेरित करना। ओजोन परत,पृथ्वी की सतह से करीब 15 से 30 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में मौजूद है। ओजोन परत, जो यूवी किरणों को कम करके पृथ्वी पर मानव जीवन का संचालन करती है जिसके प्रभाव से ही जमीनों पर उगने वाली विभिन्न किस्म की फसलें पैदा होती है। ओजोन परत की जब थोड़ी सी कमी महसूस होने लगती है तो धरती पर ऑक्सीजन, खाद्य और पर्यावरण में बदलाव दिखने शुरू हो जाते हैं। वैश्विक समर्थन के बिना’ओजोन परत’का संरक्षण असंभव..?
ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ इस समय संपूर्ण संसार मेंं बहुतेरे हैं। जैसे, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी प्रतिक्रियाशील गैसों के अलावा क्लोरीन और ब्रोमीन युक्त गैसें भी जनजीवन के क्रियाकलापों में कोहराम मचा रही हैं। वहीं, क्लोरोफ़्लोरोकार्बन, जैसे सीएफ़सी-11, सीएफ़सी-12, और सीएफ़सी-113, कार्बन टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफ़ॉर्म रेफ़्रिजरेंट गैसें जो हाइड्रोक्लोरोफ़्लोरोकार्बन भी मौजूदा वक्त में ओजोन परत को क्षति पहुंचा रही हैं। सभी मुल्कों की कोशिशें हैं कि इन गैसों और पदार्थों की निर्भरता को किसी सूरत में कम किया जाए, जिसके संबंध में 16 सितंबर 2009 को वियना में हुई आम सभा में सम्मिलित सभी देशों के मध्य एक कार्यसमिति भी बनाई गई थी। भारत इस दिशा में बेहतरीन कार्य कर रहा है। केंद्र सरकार में नवगठित ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ इस पर रात दिन काम में जुटा है। ओजोन परत को लेकर विश्व कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने ‘वैश्विक ओजोन अनुसंधान केंद्र’ का गठन कर लगातार पर्यावरण हरकतों पर निगरानी करके वहां से प्राप्त परियोजना रिपोर्ट को सभी देशों से निरंतर साक्षा कर रहे हैं।
मानव शरीर में चलती सांसों के लिए ऑक्सीजन के अलावा ओजोन की भी अति आवश्यकता होती है। बिना ओजोन परत के जीवन असंभव हैं? मौजूदा वक्त में ओजोन परत को नुकसान बड़े-बड़े कर कारखानों से निकलने वाली विषेली गैसें जिसे धुंआ बनाकर आकाश में छोड़ा जाता है, ईट भटृटों से निकलता प्रदूर्षण, फैक्टियों का धुंआ भी उपर छोड़ा जाता है। इन्हीं सभी कारणों के चलते जलवायु परिवर्तन हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। मौसम के बदलते पैटर्न से लेकर खाद्य उत्पादन को खतरा पैदा करने वाले समुद्री जलस्तर में वृद्धि तक, जिससे विनाशकारी बाढ़ का खतरा हमेशा मंडरात रहता है। जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव मात्र किसी एक देश पर नहीं है, वैश्विक स्तर पर है और वह भी अभूतपूर्व पैमाने पर? जहरीले पदार्थों पर प्रतिबंध के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को कठोर होना होगा और जरूरत पड़ने पर सख्त कार्रवाई भी करनी होगी। वरना, भविष्य में इन प्रभावों का अनुकूल होना अधिक कठिन और महंगा होगा।
ओजोन परत के पूर्ण संरक्षण को लेकर विकसित देशों में 2030 तक और विकासशील देशों में 2040 तक अंतिम चरणबद्ध समाप्ति की योजना बनाई गई है। सन् 2007 में, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकार देशों ने कार्यक्रम में तेजी लाने के कुछ कठोर निर्णय लिए थे, लेकिन बाद में कुछ देश इस लक्ष्य से पीछे हट गए। उसके बाद 2009 में फिर से संधी बनाई, तब कहीं जाकर सदस्य देशों में 2030 और 2040 तक का लक्ष्य निर्धारित हुआ। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी देश अपने यहां ओजोन संरक्षण की दिशा में काम में जुटे हैं। भारत में केंद्र सरकार ने बकायदा इसको लेकर एक अलग मंत्रालय भी बनाया है जिसे ‘पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ का नाम दिया है, जिसमें सैकड़ों की संख्या में वैज्ञानिक इसी काम में जुटे हैं कि कैसे ओजोन परत को सहजा जाए। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का काम है, पृथ्वी से जुड़ी घटनाओं जैसे ओजोन परत पर निगरानी, बदलते मौसम की हरकतों पर निगाह, जलवायु, भूकंप, सुनामी, आर्कटिक, अंटार्टिक, और दक्षिणी सागरों की स्थिति, समुद्री संपत्तियों के अन्वेषण जैसे तमाम विज्ञान-प्रौद्योगिकी से जुड़े अनुसंधानों पर पैनी नजर रखना होता है। दरअसल, ये ऐसा वैज्ञानिक पर्यावरणीय विषय है जिसमें आमजन की भागीदारी कम, हुकूमतों की ज्यादा रहती है। ओजोन परत की रखवाली कोई एक मुल्क नहीं कर सकता. इसमें संपूर्ण विश्व को सामूहिक समर्थन देना होगा। वैश्विक समर्थन के बिना’ओजोन परत’का संरक्षण असंभव..?