चिराग़ पासवान:हनुमान या भस्मासुर..!

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चिराग़ पासवान:हनुमान या भस्मासुर..!
चिराग़ पासवान:हनुमान या भस्मासुर..!

    बिहार के राजनैतिक गलियारों में आजकल चिराग छाए हुए हैं और चर्चा तेज है कि मोदी के हनुमान माने जाने वाले चिराग कभी भी राजग को गच्चा दे सकते है.  बिहार में चिराग भले ही लोकसभा में अपने पांचो प्रत्याशी जीता ले गए हो मगर केवल अपने ६% पासवान वोटों के बदौलत उनकी औकात शून्य है. चिराग़ पासवान:हनुमान या भस्मासुर..!

राजा पप्पू कुमार

बिहार विधानसभा का चुनाव अगले वर्ष संभावित है और सत्ता के शह और मात  का खेल शुरू हो चुका है. नीतीश एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी दावेदारी ठोक रहे है और एक तरह से तय है कि राजग की तरफ से भी उनके नाम पर रजामंदी है. इसके उलट राजग के अंदर की स्थिति देखें तो सब कुछ सही नहीं दिखता है. मुख्यमंत्री नीतीश और भाजपा गठबंधन के प्रमुख सहयोगी चिराग पासवान की पार्टी के बीच अंदरखाने खटपट शुरू हो चुकी है .

    बिहार के राजनैतिक गलियारों में आजकल चिराग छाए हुए हैं और चर्चा तेज है कि मोदी के हनुमान माने जाने वाले चिराग कभी भी राजग को गच्चा दे सकते है. दरअसल अगस्त के आखरी हफ़्तों में सोशल मीडिया पर एक खबर तेजी से चली कि बिहार भाजपा अध्य्क्ष दिलीप जायसवाल कि लोजपा के दूसरे धड़े के नेता और चिराग के चाचा पशुपति पारस से मुलाकात हुई है. इसी एक खबर ने कई राजनैतिक अटकलबाजियो को हवा देना शुरु किया और कहा जाने लगा कि भाजपा नेतृत्व चिराग से नाराज है और पारस के बहाने उन्हें लगाम लगाना चाहता है . इस हवा को और भी तेजी तब मिली जब अमित शाह से पारस और उनके पूर्व सांसद भतीजे प्रिंस के मुलाकात की तस्वीरें अखवारों की सुर्खियाँ बनी. अब तो तय था कि गठबंधन में सबकुछ सही नहीं है. जिस पारस को राजग में पांच सांसद होते हुए चिराग के विरोध के कारण लोकसभा में एक भी सीट लड़ने को नहीं मिली, उसका अमित शाह से मिलना शुभ संकेत नहीं था .

      हाल के लोकसभा चुनावों में जिस तरह चिराग की लोजपा(रामविलास) को सफलता मिली है, उससे चिराग अति उत्साहित हो गए है. कहा जाता है कि इसी कारण उनके पैर जमीन पर नहीं है और वे अपने मंत्रिपद के विभाग को लेकर भी संतुष्ट नहीं हैं और इसलिए उन्होंने दबाव की राजनीति शुरू की है और अपने पापा की तरह नए मौसम वैज्ञानिक बनना चाह रहे हैं . कैबिनेट का हिस्सा होते हुए भी वो कई बार विपक्ष की भाषा बोलते नजर आये . वक्फ विल पर जिस तरह का स्टैंड उन्होंने लिया वो भाजपा को रास नहीं आया . इसके अलावा लेटरल एंट्री , अनुसूचित जाति/ जनजाति के क्रीमी लेयर और वर्गीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पर चिराग का अपनी अलग डफली बजाना भी भाजपा को असहज कर गया. वही बिहार की राजनीती करने वाले चिराग का जातीय जनगणना पर राहुल के सुर में सुर मिलाना भी किसी को समझ में नहीं आया क्योंकि बिहार में जातीय जनगणना हो चुकी है . ऐसे में भाजपा नेतृत्व की नजर तिरछी होनी शुरु हो गयी और आनन-फानन में बिहार भाजपा प्रमुख को पशुपति पारस से मिलने को कहा गया .

       बिहार में चिराग भले ही लोकसभा में अपने पांचो प्रत्याशी जीता ले गए हो मगर केवल अपने ६% पासवान वोटों के बदौलत उनकी औकात शून्य है. हर हाल में उन्हें किसी पार्टी की वैशाखी की जरुरत होगी और राजग गठबंधन उनके लिए सबसे मुफीद है, उन्हें इसका अंदाजा है मगर अगले विधान सभा में वेहतर मोल भाव के लिए वो ये चाल चल रहे हैं . इन्ही घटनाक्रमों के दौरान उन्होंने अपने पार्टी का सम्मेलन झारखण्ड में किया और वहां चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया . एक तरह से दबाव बनाते हुए उन्होंने ८१ सदस्यों वाली झारखण्ड विधानसभा में ११ सीटों की मांग रख दी . इससे भाजपा आलाकमान सचेत हो गयी और चिराग के चाचा पारस को अमित शाह ने दिल्ली बुला लिया. अमित शाह ने पारस से मुलाकात की और भाजपा ने उन्हें राजग का हिस्सा बता दिया. जिस पारस को कल तक राजग में कोई एक सीट नहीं दे रहा था ,उसे भाजपा ने  झाड पोछ कर  बाहर निकाला और चिराग को सन्देश दे दिया की वो ज्यादा उड़े नहीं.

       बिहार में जब भाजपा और चिराग के बीच नूराकुश्ती चल रही थी, तभी खबर आई कि भाजपा चिराग की पार्टी के तीन सांसदों को तोड़ रही है. खबर के पीछे कहानी ये थी कि अमित शाह के विश्वस्त केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय मुजफ्फरपुर में एक सम्मेलन के बाद चिराग की पार्टी के सांसद शांभवी चौधरी के साथ उनकी पार्टी के एक और सांसद वैशाली के वीणा देवी से मिले और आशंका जताई गई कि लोजपा टूट रही है. हालत इतनी गंभीर हो गयी कि चिराग को कहना पड़ा कि काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती . चिराग अपनी पार्टी की उस टूट का जिक्र कर रहे थे, जब उनके चाचा पारस ने उनको ही पार्टी से निकालकर दल पर कब्ज़ा कर लिया था हालाकि उस समय इस टूट के पीछे नीतीश और उनकी पार्टी का हाथ माना गया था . वजह थी २०२० का विधान सभा चुनाव, जिसमे चिराग की पार्टी ने सीट तो एक ही जीती मगर नीतीश की पार्टी को तीसरे स्थान पर पंहुचा दिया था. इस बार कहा जा रहा है कि    उनकी पार्टी में उनके बहनोई अरुण भारती को छोड़कर बाकी सांसद भाजपा में जा रहे है और भाजपा जब चाहे, इसे अंजाम दे सकती है . वैसे भी बीणा देवी पिछली बार भी उन्हें छोड़कर पाला बदल चुकी है और जनता दल(यू) के विधान पार्षद दिनेश सिंह की पत्नी है. वही शांभवी नीतीश के ही मंत्री अशोक चौधरी की बेटी है . तीसरे खगडिया के राजेश वर्मा कारोबारी है और उनपर पहले भी आयकर के छापे पड चुके है. हालाकि बाद में इन तीनो ने वयान जारी कर चिराग के साथ खड़े रहने का दाबा किया मगर राजनीति में इन दावों की सच्चाई हर कोई जानता है . इन विवादों में तेजस्वी भी कूदे और चिराग के साथ नाइंसाफी की बात की मगर चिराग ने मामले को सँभालने की कोशिश की और उनके जीजा सांसद अरुण सामने आये और इन सबके पीछे तेजस्वी की पार्टी का हाथ बता दिया . लगे हाथ चिराग भी केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर आये मगर ये आग इतनी जल्दी ठंडी होती नहीं दिखती है

       बिहार में चिराग को काफी मशक्त के बाद सफलता मिली है मगर यह उनके अकेले की सफलता नहीं है . बिना भाजपा के वो अपनी सीट हाजीपुर भी शायद ही निकाल पाते. दूसरी ओर नीतीश से अभी भले ही उनके रिश्ते अच्छे दिखते हों, मगर  नीतीश शायद ही किसी को माफ़ करते है . कहा जाता है कि अभी भी उनके मन में पारस के लिए एक कोना है और जिस तरह पारस को अलग थलग किया गया, उससे वो खुश नहीं थे. आखिर उनके कहने पर ही तो पारस ने अपनी पार्टी और परिवार को तोडा था. ऐसे में भाजपा पर उनका दबाव था कि पारस को राजग में जगह दी जाय और जब चिराग ने तेवर दिखाया तो अमित शाह ने पारस से  मिलकर दोनों साथियों को एकसाथ साधने की कोशिश की . वही खबर यह भी आयी कि प्रशांत किशोर से चिराग की मुलाकात हुई है और 2 अक्टूबर को जनसुराज की स्थापना के बाद कुछ नया हो सकता है और यह मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हो सकता है. ऐसे भी कई मुद्दों पर उन दोनों की सहमति रही है मगर इसकी पुष्टि नहीं हुई है .

       बिहार में चिराग की लोकप्रियता पासवानो के अलावा दूसरी जातियों में भी है मगर उन्हें अभी परिपक्वता की राजनीति सीखनी है. वो हमेशा ही जल्दी में दिखते है और इसी कारण उनके पार्टी और परिवार में टूट हुई. उन्हें समझना होगा कि भले ही उन्हें मुख्यमंत्री बनने की जल्दी हो मगर न तो राजद और न ही राजग गठबंधन में यह जगह खाली है . ऐसे में उन्हें सब्र सीखना होगा नही तो वो हनुमान तो क्या, अपने लिए भस्मासुर ही साबित होंगे.     चिराग़ पासवान:हनुमान या भस्मासुर..!